पिछली याचिका खारिज होने के बाद भी लगातार अग्रिम जमानत याचिकाएं सुनवाई योग्य: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर की गई लगातार जमानत याचिकाएं तब भी सुनवाई योग्य हैं, जब पिछली याचिका खारिज कर दी गई हो।
जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,
"दूसरी/लगातार अग्रिम जमानत याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं, चाहे पिछली याचिका वापस ले ली गई हो/अभियोजन पक्ष के लिए दबाव न डाले जाने के कारण खारिज कर दी गई हो/या फिर पहले की याचिका को गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दी गई हो।"
न्यायालय ने निम्नलिखित सिद्धांतों का भी सारांश दिया:
i) सीआरपीसी 1973 की धारा 438 के तहत दायर की गई दूसरी/लगातार अग्रिम जमानत याचिकाएं कानूनन सुनवाई योग्य हैं। इसलिए ऐसी याचिका केवल उसके सुनवाई योग्य होने के आधार पर खारिज नहीं की जानी चाहिए।
ii) दूसरी/लगातार अग्रिम जमानत याचिकाओं के सफल होने के लिए याचिकाकर्ता/आवेदक को परिस्थितियों में पर्याप्त परिवर्तन दिखाना अनिवार्य/प्रासंगिक रूप से आवश्यक होगा और केवल सतही या दिखावटी परिवर्तन दिखाना पर्याप्त नहीं होगा।
iii) परिस्थितियों में पर्याप्त परिवर्तन के लिए कोई विस्तृत दिशा-निर्देश निर्धारित नहीं किए जा सकते, क्योंकि प्रत्येक मामले के अपने विशिष्ट तथ्य/परिस्थितियां होती हैं। इस मुद्दे को न्यायालय के न्यायिक विवेक और विवेक पर छोड़ देना सबसे अच्छा है, जो ऐसी दूसरी/क्रमिक अग्रिम जमानत याचिकाओं से निपटता है।
iv) यदि न्यायालय दूसरी/क्रमिक अग्रिम जमानत याचिकाओं को स्वीकार करने का विकल्प चुनता है तो ऐसी याचिका स्वीकार करने के लिए ठोस और स्पष्ट कारणों को दर्ज किया जाना आवश्यक है, भले ही ऐसी याचिका दूसरी/क्रमिक याचिकाएं ही क्यों न हो। दूसरे शब्दों, में न्यायालय द्वारा ऐसी दूसरी याचिकाओं को सफलतापूर्वक स्वीकार करने का कारण पारित किए गए उक्त आदेश से आसानी से और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
v) एक बार अग्रिम जमानत की याचिका वापस लिए जाने/अभियोजन न किए जाने के कारण खारिज किए जाने अथवा हाइकोर्ट द्वारा गुण-दोष के आधार पर खारिज किए जाने के बाद सेशन कोर्ट द्वारा कोई दूसरी/क्रमिक अग्रिम जमानत याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा।
अदालत अपनी ही बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति की दूसरी अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर आईपीसी की धारा 354-ए, धारा 376(2)(एन) और 511 के तहत मामला दर्ज किया गया।
अग्रिम जमानत दिए जाने की पिछली याचिका फरवरी में वापस लिए जाने के कारण खारिज कर दी गई।
यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 161 और धारा 164 के तहत पीड़िता के रुख में भौतिक सुधार हुए हैं और पीड़िता ने ऐसे भौतिक सुधारों के माध्यम से हमले की अन्य घटनाओं का उल्लेख किया।
यह कहा गया कि पहली याचिका वापस लिए जाने के बाद याचिकाकर्ता के पास नई तस्वीरें आईं, जो याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दिए जाने के साथ-साथ विचार करने के लिए नई सामग्री और आधार प्रदान करती हैं।
राज्य के वकील ने याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दिए जाने का विरोध किया, क्योंकि वर्तमान याचिका गैर-स्थायी है। यह अग्रिम जमानत दिए जाने के लिए दूसरी याचिका है और इसके गुण-दोष के आधार पर भी।
बयानों को सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी का विश्लेषणात्मक अध्ययन यह स्पष्ट करेगा कि इसमें अग्रिम जमानत मांगने वाली याचिका सहित दूसरी या लगातार जमानत याचिकाओं की स्थिरता या अन्यथा से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है।
कोर्ट ने कहा जब कानून में कोई वैधानिक निषेध प्रदान नहीं किया जाता है, खासकर संहिताबद्ध और विधायी कानून के मामले में तो न्यायालय को ऐसे निषेधों को लागू करने का तार्किक रूप से अधिकार नहीं है।
बाबू सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1978 एआईआर (एससी) 527 पर भरोसा किया गया, जिसमें यह माना गया कि जमानत याचिका खारिज करना अपने आप में न्यायालय को बाद में समय के अनुसार किसी अन्य पर विचार करने से नहीं रोकता।
यह सुरक्षित रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि जमानत याचिका (चाहे नियमित जमानत याचिका हो या अग्रिम जमानत याचिका) के संबंध में न्यायालय का निर्णय अनिवार्य रूप से एक अंतरिम आदेश है। इसलिए रिस ज्यूडिकेटा की अवधारणा लागू नहीं होती है।
न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि सभी हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से क्रमिक अग्रिम जमानत पर विचार करने के लिए आवश्यक शर्त परिस्थितियों में पर्याप्त परिवर्तन पर्याप्त नई सामग्री का पता लगाना और समान प्रकृति के अन्य कारक हैं।
वर्तमान मामले में न्यायालय ने नोट किया कि याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित वकील द्वारा दूसरी अग्रिम जमानत दायर करने का एकमात्र आधार यह है कि याचिकाकर्ता के पास कुछ तस्वीरें हैं जो याचिकाकर्ता के मामले को पुष्ट करती हैं।
इसमें आगे कहा गया,
"यहां यह ध्यान देने योग्य है कि इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया कि इन तस्वीरों को पहले की अग्रिम जमानत याचिका के साथ क्यों नहीं पेश किया गया और न ही यह बताया गया कि ये तस्वीरें अब याचिकाकर्ता के ज्ञान/कब्जे में कैसे आईं। फिर भी उक्त तस्वीरों का अवलोकन याचिकाकर्ता के दूसरे अग्रिम जमानत को बनाए रखने के कारण को आगे नहीं बढ़ाता।"
न्यायालय ने कहा कि मात्र तस्वीरों पर भरोसा करने से परिस्थितियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ सकता या दूसरी अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करने के लिए नई प्रासंगिक सामग्री की उपलब्धता नहीं हो सकती।
परिणामस्वरूप याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी,
"याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप अत्यंत गंभीर प्रकृति के हैं। भले ही यह मान लिया जाए कि याचिकाकर्ता से कोई वसूली नहीं की जानी है, लेकिन यह अपने आप में याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने के लिए पर्याप्त कारण नहीं होगा।"
केस टाइटल- XXX बनाम XXX