पति द्वारा बुनियादी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा न करना क्रूरता और परित्याग के बराबर: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Update: 2024-05-17 07:12 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने पति द्वारा दायर तलाक की याचिका एकतरफा खारिज करने का फैसला बरकरार रखा। उक्त फैसले में कहा गया कि पति बुनियादी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहा, जो क्रूरता और परित्याग के बराबर है।

पति ने आरोप लगाया कि पत्नी अपने बच्चे के साथ अपने वैवाहिक घर को छोड़कर चली गई, जो क्रूरता के बराबर है। हालांकि न्यायालय ने पाया कि पति ने ही पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करने में विफल होकर उसे छोड़ दिया और क्रूरता की।

जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस हर्ष बंगर की खंडपीठ ने कहा,

"बुनियादी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफलता, अपीलकर्ता (पति) की ओर से क्रूरता और परित्याग की विशेषता को दर्शाती है।"

खंडपीठ ने कहा,

"सामान्य विवेक से यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तलाक के लिए याचिका दायर करके अपीलकर्ता-पति अपने स्वयं के गलत कामों का लाभ उठाना चाहता था। अपने वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने में विफल होने के कारण अपीलकर्ता-पति को यह दलील देने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि ट्रायल कोर्ट को उसे तलाक दे देना चाहिए, क्योंकि प्रतिवादी-पत्नी के खिलाफ एकपक्षीय कार्यवाही की गई।”

न्यायालय फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu marriage Act ) की धारा 13 के तहत क्रूरता और परित्याग के आधार पर अपीलकर्ता-पति द्वारा दायर तलाक याचिका को एकपक्षीय रूप से खारिज कर दिया गया।

पति ने फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक की याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि पत्नी बच्चे के साथ अपने वैवाहिक घर को छोड़कर चली गई। यह भी कहा गया कि पति को किसी दूर के रिश्तेदार के माध्यम से पता चला कि पत्नी विदेश चली गई और उसके माता-पिता ने उसके ठिकाने का खुलासा करने से इनकार किया।

जबकि पत्नी ने दलील दी कि पति ने प्रतिवादी-पत्नी को इटली ले जाने का वादा किया, जहां वह शादी के बाद और फिर 2009 में बच्चे के जन्म के बाद रह रहा था। वह 2011 में भारत आया था और उस समय भी उसने उसे इटली ले जाने का वादा किया था। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया।

फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए दलील खारिज कर दी कि पति द्वारा पेश किए गए साक्ष्य इसके विपरीत साबित करते हैं और यह पति ही था जिसने प्रतिवादी-पत्नी के साथ क्रूरता से व्यवहार किया था।

प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने पाया,

"फैमिली कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्ष में कोई अवैधता या विकृति नहीं है कि अपीलकर्ता-पति रिकॉर्ड से ऐसा कुछ भी नहीं दिखा सका कि उसने प्रतिवादी-पत्नी या उनके नाबालिग बच्चे को कोई भरण-पोषण राशि दी थी।"

न्यायालय ने कहा,

"कार्यवाही के दौरान प्रतिवादी-पत्नी के विरुद्ध एकपक्षीय कार्यवाही किए जाने के बावजूद इस बात पर बल देना महत्वपूर्ण है कि क्रूरता और परित्याग के आरोपों के संबंध में उसके विरुद्ध स्वतः कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।"

तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए न्यायालय हमेशा लगाए गए आरोपों की सत्यता पर विचार कर सकता है और उनकी जांच कर सकता है।

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