पंजाब यूनिवर्सिटी कैलेंडर | सीनियरिटी की परवाह किए बिना हर शिक्षक को रोटेशन के आधार पर डिपार्टमेंट हेड बनने का मौका दिया जाना चाहिए: हाईकोर्ट
पंजाब यूनिवर्सिटी कैलेंडर वॉल्यूम III की व्याख्या करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षण विभाग में जूनियर और सीनियर के रूप में कद के बावजूद सभी को रोटेशन के आधार पर डिपार्टमेंट हेड बनने का मौका दिया जाना चाहिए।
जस्टिस संजय वशिष्ठ ने कहा,
"इस कोर्ट को नियमों की सही व्याख्या करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है, इसे बनाने के इरादे और उद्देश्य को देखते हुए यानी शिक्षण विभाग में जूनियर और सीनियर के रूप में कद के बावजूद सभी को रोटेशन के आधार पर डिपार्टमेंट हेड बनने का मौका दिया जाना चाहिए। यह व्याख्या नियम 2.3 से ही मजबूत होती है, जहां प्रोफेसर, रीडर या लेक्चरर जैसे किसी व्यक्ति के पद का उल्लेख करने के बजाय जिस शब्द से नियम शुरू होता है वह है 'एक व्यक्ति'।"
न्यायालय ने आगे कहा कि नियम 2.3 के अनुसार, डिपार्टमेंट हेड/हेड के रूप में नामित व्यक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा तथा तब तक दूसरी बार पदस्थापना के लिए पात्र नहीं होगा, जब तक कि विभाग के सभी प्रोफेसर/रीडर/लेक्चरर समग्र रूप से नियम 2.1 के अनुसार हेड के रूप में नामित नहीं हो जाते।
ये टिप्पणियां प्रोफेसर (डॉ.) मोहनमीत खोसला द्वारा दायर याचिका के जवाब में की गईं, जिसमें पंजाब यूनिवर्सिटी को उन्हें तीन वर्ष की निर्धारित अवधि के लिए संचार अध्ययन विद्यालय का हेड नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग की गई।
खोसला ने उस आदेश को रद्द करने की भी मांग की, जिसके तहत सहायक प्रोफेसर सुमेधा सिंह को उक्त पद पर नियुक्त किया गया।
यूनिवर्सिटी ने तर्क दिया कि खोसला ने 2008 में ही अपना कार्यकाल पूरा कर लिया, जब वह असिस्टेंट प्रोफेसर थीं और पंजाब यूनिवर्सिटी कैलेंडर नियमों के अनुसार,
"डिपार्टमेंट हेड' के रूप में नामित व्यक्ति तीन वर्षों की अवधि के लिए इस पद पर रहेगा और तब तक दूसरी बार पदनाम के लिए पात्र नहीं होगा, जब तक कि विभाग में सभी प्रोफेसर/रीडर (एसोसिएट प्रोफेसर)/पात्र व्याख्याता (असिस्टेंट प्रोफेसर) को अध्यक्ष/प्रमुख के रूप में नामित नहीं कर दिया जाता।"
इन दलीलों को सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि शिक्षण विभाग में डिपार्टमेंट हेड का पद किसी विशेष पद पर पदोन्नति नहीं है, बल्कि यह केवल पदनाम है और वह भी किसी निश्चित समय पर तीन वर्षों के विशिष्ट कार्यकाल के लिए।
पंजाब यूनिवर्सिटी कैलेंडर नियमों का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने कहा कि पहली और सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि शिक्षण विभाग में डिपार्टमेंट हेड का पद रोटेशन द्वारा सौंपा जाना चाहिए तथा रोटेशन का प्रयोग नियमों के तहत दिए गए तरीके के अनुरूप सख्ती से पूरा किया जाना चाहिए।
इसमें आगे कहा गया,
"नियम 2.1 को सरल और पूर्ण रूप से पढ़ने से पता चलता है कि प्रथम दृष्टया, संबंधित शिक्षण विभाग में 'किसी व्यक्ति' को अध्यक्ष/प्रमुख के रूप में नामित करने के उद्देश्य से प्रतिवादी-यूनिवर्सिटी को उन सभी प्रोफेसरों का कोटा समाप्त करना होगा, जो नियम 2.1(i)(a) की श्रेणी में आते हैं। उसके बाद ही नियम 2.1(ii)(a) के अंतर्गत आने वाले रीडर्स की अगली श्रेणी को अध्यक्ष/प्रमुख के रूप में नामित करने के उद्देश्य से विचार किया जाएगा। अंत में अध्यक्ष/प्रमुख को पात्र लेक्चरर में से रोटेशन द्वारा नामित किया जा सकता है, जिनके पास विभाग में व्याख्याता के रूप में न्यूनतम 8 वर्ष का शिक्षण अनुभव है, जैसा कि नियम 2.1(ii)(c) के तहत निर्धारित है।"
न्यायालय ने आगे कहा कि प्रतिवादी यूनिवर्सिटी द्वारा अपनाई गई त्रिस्तरीय प्रणाली में शिक्षण विभाग में रोटेशन के आधार पर किसी व्यक्ति को प्रधान पद दिया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि एक बार प्रोफेसरों का रोटेशन/कोटा शुरू हो जाने के बाद यह पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। यदि कोई प्रोफेसर उपलब्ध नहीं है तो डिपार्टमेंट हेड के रूप में पदनाम के लिए विचार करने का मौका रीडर्स (एसोसिएट प्रोफेसर) के कोटे पर आ जाएगा और एक बार रीडर्स (एसोसिएट प्रोफेसर) का कोटा समाप्त हो जाने के बाद योग्य व्याख्याताओं (सहायक प्रोफेसर) की बारी आएगी।
जस्टिस वशिष्ठ ने इस बात पर प्रकाश डाला,
"शिक्षण विभागओं में प्रधान पद के लिए नियमों के निर्माताओं द्वारा रोटेशन प्रणाली तैयार करने का उद्देश्य, यानी अच्छे और अधिकतम गुणवत्ता वाले शिक्षकों को तैयार करना है जो शिक्षण विभागों के मामलों को अधिक कुशल और प्रभावी तरीके से प्रबंधित कर सकें।"
इस प्रकार न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यूनिवर्सिटी कैलेंडर नियम (नियम 2.3) के अनुसार, एक बार किसी व्यक्ति को डिपार्टमेंट हेड के रूप में नामित कर दिया जाता है तो वह दूसरी बार उसी पदनाम के लिए पात्र नहीं होगा, जब तक कि विभाग में अन्य सभी उपलब्ध और पात्र प्रोफेसर, रीडर और लेक्चरर अध्यक्ष/प्रमुख के रूप में नामित होने का अवसर नहीं ले लेते।
केस टाइटल- डॉ. मोहनमीत खोसला बनाम पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ और अन्य