Land Acquisition Act| एक बार भूमि का बाजार मूल्य साक्ष्य के आधार पर निर्धारित हो जाता है तो संदर्भ न्यायालय द्वारा मुआवजा कम करना अनुचित: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि संदर्भ न्यायालय केवल पक्ष के दावे के आधार पर भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा कम नहीं कर सकता, जबकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1898 के तहत साक्ष्य के आधार पर बाजार मूल्य पहले ही तय किया जा चुका है।
जस्टिस राजबीर सहरावत ने कहा,
"एक बार फाइल पर प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर बाजार मूल्य निर्धारित हो जाने के बाद संदर्भ न्यायालय द्वारा भूमि मालिकों को देय मुआवजे की राशि को केवल इसलिए कम करना न्यायोचित नहीं है, क्योंकि भूमि मालिकों ने फाइल पर प्रस्तुत साक्ष्य के बिना बाजार मूल्य के बारे में दावा किया। अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो न्यायालय को केवल संदर्भ न्यायालय के समक्ष पक्ष द्वारा किए गए दावे के आधार पर बाजार मूल्य कम करने का अधिकार दे सके।"
ये टिप्पणियां भूमि मालिकों द्वारा उनकी भूमि के अधिग्रहण के कारण मुआवजे की राशि में वृद्धि के लिए दायर दो अपीलों पर सुनवाई करते हुए की गईं, जो हरियाणा सरकार द्वारा भूमि मालिकों को दिए जाने वाले मुआवजे की राशि में कमी करने की प्रार्थना करते हुए दायर की गई थी।
सरकार ने हरियाणा के एक गांव के लिए सीवरेज योजना के उद्देश्य से भूमि का अधिग्रहण किया। भूमि अधिग्रहण कलेक्टर ने 5600 रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया। इससे व्यथित होकर भूमि मालिकों ने अदालत से संदर्भ मांगा।
अपीलकर्ता-भूमि मालिकों ने सेल डीड को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें क्षेत्र में भूमि का बाजार मूल्य 1,00,000 रुपये से लेकर 3,42,8571 रुपये प्रति एकड़ तक दर्शाया गया। साक्ष्य की सराहना के बाद संदर्भ अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के अनुसार, क्षेत्र में भूमि का बाजार मूल्य 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ से कम नहीं था।
इस आधार पर कि भूमि स्वामियों ने स्वयं 70,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से बाजार मूल्य का दावा किया, इसलिए संदर्भ न्यायालय ने यह राय दी कि उन्हें देय मुआवजा 70,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से तय किया गया।
संदर्भ न्यायालय द्वारा निर्धारित बाजार मूल्य से भी कम बाजार मूल्य दिए जाने से व्यथित होकर भूमि स्वामियों ने वर्तमान अपील दायर की है।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने यह राय दी कि भूमि स्वामियों को उस भूमि के लिए मुआवजे के रूप में बाजार मूल्य पाने का अधिकार है, जिसे वे खो रहे हैं। उनका दावा अप्रासंगिक तथ्य है। भले ही भूमि स्वामियों ने अधिग्रहण के तहत अपनी भूमि के मूल्य के रूप में किसी विशेष राशि का दावा किया हो।
न्यायालय ने कहा,
"उन्हें अपने दावे को सही ठहराने या भूमि के बाजार मूल्य को प्रमाणित करने के लिए अभी भी साक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।"
जस्टिस सहरावत ने इस बात पर प्रकाश डाला,
“अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो न्यायालय को केवल संदर्भ न्यायालय के समक्ष पक्ष द्वारा किए गए दावे के आधार पर बाजार मूल्य कम करने का अधिकार दे सके। पुराने कानून के तहत दावेदारों को देय मुआवजे को केवल तभी कम किया जा सकता है, जब अपील में किए गए दावे पर कोर्ट फीस के भुगतान के संदर्भ में भूमि स्वामी के अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता था।”
पीठ ने आगे कहा कि संदर्भ न्यायालय ने मुआवजे को कम करने का कोई औचित्य नहीं दिया, सिवाय इसके कि भूमि स्वामियों ने कम मूल्य का दावा किया।
न्यायालय ने कहा,
भूमि स्वामियों ने निर्धारित मूल्य का दावा नहीं किया बल्कि उनका दावा केवल इस बात का है कि उनकी भूमि का बाजार मूल्य 70,000/ रुपये प्रति एकड़ से कम नहीं था। इसका स्पष्ट अर्थ है कि मूल्य 70,000/- रुपये प्रति एकड़ से अधिक है। उन्होंने किसी भी मामले में मूल्य 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ साबित किया।”
यह कहते हुए कि चूंकि संदर्भ न्यायालय स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि भूमि का बाजार मूल्य 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ है, न्यायालय ने कहा,
"भूमि स्वामियों को संदर्भ न्यायालय द्वारा दिए गए सभी वैधानिक लाभों के साथ 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजे का हकदार माना जाना चाहिए।"
तदनुसार, याचिका का निपटारा कर दिया गया।
केस टाइटल- यशपाल एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य