निजी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन के लिए मंजूरी की आवश्यकता नहीं: ट्रायल जज को रिश्वत देने की साजिश मामले में M3M निदेशक की याचिका का ED ने किया विरोध
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मंगलवार को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में M3M ग्रुप के निदेशक रूप बंसल की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें उन्होंने ट्रायल कोर्ट जज को रिश्वत देने की साजिश के आरोप में उनके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग की थी। उन्होंने याचिका में तर्क दिया था कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A के तहत अभियोजन के लिए आवश्यक पूर्व मंजूरी नहीं ली गई।
बंसल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) की धाराएं 7, 8, 11 और 13, तथा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज है।
आमतौर पर जब कोई लोक सेवक अपने आधिकारिक कार्यों से संबंधित अपराधों में आरोपी होता है तो उसके खिलाफ जांच शुरू करने से पहले सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी लेना आवश्यक होता है।
बंसल का तर्क है कि केवल साजिश (120-बी IPC) के आधार पर किसी व्यक्ति को अभियुक्त नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि जज के खिलाफ भी कार्रवाई न हो। चूंकि कथित जज के खिलाफ 17A के तहत मंजूरी नहीं ली गई, इसलिए पूरा मामला अमान्य हो जाता है।
ED की ओर से पेश सीनियर पैनल वकील ज़ोहेब हुसैन और लोकेश नारंग ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि बंसल एक निजी व्यक्ति हैं, लोक सेवक नहीं। इसलिए वह धारा 17A की मंजूरी की कमी का हवाला देकर याचिका नहीं दायर कर सकते।
ED ने यह भी कहा कि यदि यह मान भी लिया जाए कि लोक सेवक के खिलाफ मंजूरी के बिना अभियोजन नहीं हो सकता तो भी इसका यह मतलब नहीं है कि उस अपराध में शामिल निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी कार्रवाई बंद हो जाएगी।
चीफ जस्टिस शील नागू ने इस मामले की पहले प्रशासनिक स्तर पर सुनवाई की थी, इसलिए उन्होंने इससे मामले से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद यह याचिका जस्टिस मंजरी नेहरू कौल के समक्ष सूचीबद्ध की गई।
बंसल की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होकर नेटवर्क समस्या का हवाला देते हुए सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 30 जुलाई की तारीख तय की।
उल्लेखनीय है कि FIR रद्द करने की यह याचिका पहले जस्टिस अनुप चितकारा के समक्ष अक्टूबर, 2023 में सूचीबद्ध हुई थी। बाद में रॉस्टर में बदलाव के कारण मामला जस्टिस एन.एस. शेखावत के समक्ष गया, जिन्होंने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया। फिर यह मामला जस्टिस मंजरी नेहरू कौल के समक्ष आया, जिनके सामने बंसल ने याचिका वापस लेने की कोशिश की थी।
इसके बाद एक नई याचिका दायर की गई, जो किसी अन्य एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई। लेकिन उस पीठ से भी मामला वापस ले लिया गया, क्योंकि चीफ जस्टिस को एक शिकायत प्राप्त हुई थी।
केस टाइटल: रूप बंसल बनाम राज्य हरियाणा एवं अन्य