Dowry Prohibition Act | जिला मजिस्ट्रेट की मंजूरी के बिना मामला दर्ज नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दहेज निषेध अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।
जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा,
"पंजाब राज्य पर लागू दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 8-ए के साथ-साथ माननीय सुप्रीम कोर्ट और इस न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत किए गए किसी भी अपराध के संबंध में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।"
न्यायालय दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत 2023 में दर्ज एफआईआर रद्द करने के लिए धारा 482 CrPc के तहत एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने अपनी बेटी की शादी 2022 में आरोपी-याचिकाकर्ता के साथ तय की थी। आरोपी ने कथित तौर पर उसे दिरबा में कैलिफोर्निया पैलेस बुक करने के लिए मजबूर किया। शादी के कार्ड छप चुके थे और कार्ड बांटने सहित सारी योजनाएँ बन चुकी थीं। आरोपी व्यक्ति लालच में आ गए और शादी की शर्त के तौर पर 25 लाख रुपये दहेज की मांग की।
यह प्रस्तुत किया गया कि पंचायत बुलाई गई और सम्मानपूर्वक आरोपी व्यक्तियों के घर पहुंची, जहां उन्होंने फिर से 25 लाख रुपये के दहेज की अपनी मांग दोहराई, जिसके आधार पर वे अपने बेटे की शादी उसकी बेटी के साथ करेंगे। इसलिए यह आरोप लगाया गया कि आरोपियों ने विचाराधीन अपराध किया है जिसके लिए उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। जांच के आधार पर धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट पेश की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि पंजाब राज्य में लागू दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 8-ए के अनुसार जिला मजिस्ट्रेट आदि की पूर्व मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन नहीं चलाया जा सकता। अभियोजन शुरू करने का मतलब है कि एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। इसलिए परिणामी कार्रवाई का कोई सवाल ही नहीं उठता।
बयानों को सुनने के बाद अदालत ने पंजाब राज्य में लागू दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 8-ए के प्रावधानों की जांच की।
धारा 8-ए के अनुसार,
"जिला मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा विशेष या सामान्य आदेश द्वारा इस संबंध में नियुक्त किए गए किसी अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना इस अधिनियम के तहत किए गए किसी भी अपराध के संबंध में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई अभियोजन नहीं चलाया जाएगा।"
राज्य, सीबीआई बनाम शशि बालासुब्रमण्यम एवं अन्य, 2007(2) अपराध 91 पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन कब शुरू हुआ पर विचार किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभियोजन शब्द में आपराधिक कार्यवाही की संस्था या शुरुआत शामिल होगी और इसमें जांच और जांच भी शामिल होगी।
न्यायालय ने नोट किया कि वर्तमान मामले में संबंधित अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना एफआईआर दर्ज की गई। यह स्पष्ट है कि कार्यवाही की संस्था और निरंतरता पर अधिनियम के प्रावधानों में स्पष्ट कानूनी प्रतिबंध है।
उपरोक्त के आलोक में एफआईआर और परिणामी कार्यवाही रद्द कर दी गई।
केस टाइटल- कमलजीत सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य।