CBI जांच का निर्देश देने से पहले आरोपी की सुनवाई की जरूरत नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
CBI जांच का आदेश पारित करने से पहले आरोपी की सुनवाई की जरूरत न होने पर जोर देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी को पंजाब में करोड़ों रुपये के धोखाधड़ी मामले की जांच करने का निर्देश दिया।
जस्टिस जसजीत बेदी ने उदाहरणों का अवलोकन करते हुए कहा,
"यह न्यायालय धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद भी CBI द्वारा जांच का आदेश दे सकता है। ऐसा आदेश पारित करने से पहले आरोपी की सुनवाई की जरूरत नहीं।"
न्यायाधीश ने कहा,
"इस तरह के निर्देश जारी करने से पहले न्यायालय को केवल यह जांचना है कि आरोपी व्यक्ति शक्तिशाली और अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। जांच पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई, जिससे अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर किया जा सके या उसे ध्वस्त किया जा सके। ऐसे निर्देश उन मामलों में भी जारी किए जा सकते हैं, जहां अंतरराज्यीय प्रभाव हैं। इसके अलावा CBI द्वारा इस तरह की जांच का आदेश देना उस पर निगरानी रखने के बराबर नहीं होगा, क्योंकि CBI कानून के अनुसार इस तरह की जांच करने के लिए स्वतंत्र है।"
ये टिप्पणियां करोड़ों की धोखाधड़ी मामले की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते समय की गईं, जहां आरोपी व्यक्तियों ने कथित तौर पर दिल्ली-कटरा एक्सप्रेसवे के लिए NHAI द्वारा अधिग्रहित भूमि पर करोड़ों का मुआवजा प्राप्त करने के लिए हलफनामा तैयार किया था। यह प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता और आरोपी व्यक्ति भूमि विवाद में पक्ष थे। हालांकि भूमि अधिग्रहण के समय मुआवजे के लिए एसडीएम को एक जाली हलफनामा प्रस्तुत किया गया, जिसमें कहा गया कि भूमि पर कोई मुकदमा नहीं है।
परिणामस्वरूप, अधिकारियों ने मुआवजे के रूप में आरोपी व्यक्तियों के पक्ष में 28 करोड़ रुपये से अधिक जारी किए। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पंजाब पुलिस ने निष्पक्ष तरीके से जांच नहीं की इसलिए स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।
दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि आरोपी व्यक्तियों, संजीत कौर और गीतिंदर कौर को हास्यास्पद आधारों पर दोषमुक्त कर दिया गया।
न्यायालय ने कहा,
"उन्हें पता था कि दीवानी कार्यवाही लंबित है। उन्हें अधिग्रहित भूमि के मुआवजे के रूप में उनके बैंक अकाउंट में करोड़ों रुपये मिले। उन्होंने स्टाम्प पेपर खरीदे। केवल इसलिए कि उन्होंने अपनी मां को पावर ऑफ अटॉर्नी दी, उन्हें उनके स्पष्ट दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता।”
न्यायालय ने पाया कि दीवानी मामले में आरोपी व्यक्तियों की ओर से पेश हुए वकील की भूमिका की भी जांच नहीं की गई, जबकि उन्होंने अमरजीत कौर द्वारा प्रस्तुत झूठे हलफनामे पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया कि भूमि पर कोई मुकदमा नहीं चल रहा है
इसके अलावा न्यायालय ने पाया कि लुधियाना के एसडीएम जिनके माध्यम से आरोपियों के खातों में पैसा जारी किया गया, उन्होंने न तो झूठे हलफनामे दाखिल करने के लिए धारा 195 सीआरपीसी के तहत आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की और न ही उन्हें अभियोजन पक्ष का गवाह बनाया गया।
उन्होंने टिप्पणी की,
"यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि धारा 173 सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट को इस तरह से तैयार किया गया, जिससे अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर किया जा सके।”
जस्टिस बेदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जांच अधिकारी ने अमरजीत कौर को जांच में शामिल होने की अनुमति दी। फिर उसे किसी भी न्यायालय द्वारा जमानत दिए बिना गैर-जमानती अपराध में रिहा कर दिया। यह भी प्रतीत होता है कि उसे जांच में शामिल होने के लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया।
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने कहा,
"इस प्रकार रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि जांच निष्पक्ष तरीके से आगे नहीं बढ़ी है। वास्तव में यह याचिकाकर्ता/शिकायतकर्ता के मामले को कमजोर करने के उद्देश्य से की गई।"
इस प्रकार निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए CBI को अधिमानतः 6 महीने के भीतर जांच करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल- सुनीत कौर बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य