बॉम्बे हाईकोर्ट ने लोकसभा चुनाव में वास्तविक उम्मीदवार को बदलने का प्रयास करने वाले व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

Update: 2024-08-29 10:05 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पंजाब सेवा (मेडिकल उपस्थिति) नियम 1940 जिसमें मेडिकल प्रतिपूर्ति का लाभ देने के लिए महिला कर्मचारी के केवल जैविक माता-पिता को शामिल किया गया, न कि उसके ससुराल वालों को पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी ने कहा,

"महिला कर्मचारी जो अपने ससुराल वालों के साथ उनके वैवाहिक घर में रह रही हैं और ससुराल वाले उक्त महिला कर्मचारी पर निर्भर हैं, उन्हें मेडिकल सुविधा देने से इनकार करना और इसके बजाय उनके जैविक माता-पिता को यह सुविधा देना राज्य द्वारा पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है।"

न्यायालय ने यह भी कहा कि उक्त मुद्दे पर भारत सरकार द्वारा पहले ही विचार किया जा चुका है। महिला कर्मचारियों को यह विकल्प दिया गया कि वे मेडिकल सुविधा के लिए अपने जैविक माता-पिता या सास-ससुर में से किसी एक को चुन सकती हैं, जो सरकारी महिला कर्मचारी पर निर्भर हैं।

ये टिप्पणियां महिला कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसने पंजाब सेवा (मेडिकल उपस्थिति) नियम 1940 के प्रावधान को चुनौती दी, जिसमें परिवार की परिभाषा में केवल उसके जैविक माता-पिता शामिल हैं न कि ससुराल वाले, मेडिकल प्रतिपूर्ति के लाभ के लिए भले ही उक्त महिला कर्मचारी विवाह के बाद अपने ससुराल वालों के साथ अपने वैवाहिक घर में रह रही हो।

याचिकाकर्ता के वकील ईश पुनीत सिंह ने तर्क दिया कि नियम 1940 में बनाए गए और विचाराधीन नियमों के तहत प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उन पर पुनर्विचार नहीं किया गया। उन्होंने आगे कहा कि विवाह के बाद जब महिला कर्मचारी अपने ससुराल वालों के साथ रहती है तो महिला कर्मचारियों को यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे 1940 के नियमों के तहत चिकित्सा प्रतिपूर्ति का लाभ जैविक माता-पिता को देना चाहती हैं या उन ससुराल वालों को जो विवाह के बाद उस पर निर्भर हैं।

राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि यह तय करना राज्य का विशेषाधिकार है कि मेडिकल प्रतिपूर्ति के अनुदान के लिए कौन पात्र होगा। एक बार उचित विचार-विमर्श के बाद 1940 के नियमों के तहत परिवार की परिभाषा की परिकल्पना की गई।

याचिकाकर्ता राज्य को उसके अनुरूप उक्त परिभाषा को बदलने का निर्देश नहीं दे सकता। इसलिए वर्तमान रिट याचिका खारिज किए जाने योग्य है।

प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,

"उक्त नियम इस उद्देश्य से जारी किए गए कि जो परिवार किसी कर्मचारी पर आश्रित है, उसे भी मेडिकल सुविधाएं मिलनी चाहिए।"

उक्त उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अविवाहित महिला कर्मचारियों या तलाकशुदा महिला कर्मचारियों या अलग रह रही महिला कर्मचारियों के मामले में कोई समस्या नहीं है, क्योंकि जैविक माता-पिता को पहले से ही परिवार की परिभाषा में शामिल किया गया, जिससे 1940 के नियमों के तहत परिकल्पित परिवार के किसी भी सदस्य के महिला सरकारी कर्मचारी पर आश्रित होने की स्थिति में मेडिकल प्रतिपूर्ति मिल सके।

जस्टिस सेठी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब 1940 के नियमों के तहत प्राप्त करने का इरादा और उद्देश्य किसी कर्मचारी के आश्रित को मेडिकल सुविधा प्रदान करना है। महिला कर्मचारी अपने वैवाहिक घर में रह रही है। उसके ससुराल वाले उस पर आश्रित हैं तो 1940 के नियमों के तहत परिकल्पित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ऐसे ससुराल वालों को लाभ दिया जाना चाहिए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार जब भारत सरकार द्वारा अपनी महिला कर्मचारियों को चिकित्सा सुविधा के लिए जैविक परिवार या ससुराल वालों में से किसी एक को चुनने का विकल्प दे दिया गया तो राज्य को इस मुद्दे पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है, जिससे 1940 के नियमों के तहत परिकल्पित परिवार की परिभाषा में उचित संशोधन किया जा सके।

उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के परामर्श से पंजाब सरकार के मुख्य सचिव को इस मुद्दे पर विचार करने और 8 सप्ताह में उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया।

मामले को आगे के विचार के लिए 23 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया गया।

केस टाइटल- स्वर्णजीत कौर बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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