कोर्ट असफल रिश्ते का बदला लेने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दे सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने शादी के बहाने बलात्कार के आरोपी को बरी किया
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने शादी के बहाने अपने साथी के साथ बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति को बरी करने का फैसला बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि महिला ने सहमति से शरीरिक संबंध बनाए थे।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा,
"याचिकाकर्ता (कथित बलात्कार पीड़िता) प्रतिवादी नंबर 2 (आरोपी-साथी) के साथ सहमति से शारिरिक संबंध बनाया और बाद में उठे विवाद के कारण ही एफआईआर दर्ज की गई। इसलिए यह कोर्ट असफल रिश्ते का बदला लेने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दे सकता है।”
कोर्ट कथित बलात्कार पीड़िता की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। मामले में रोहतक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(एन), 109, 406, 506 के तहत अपराधों से मुक्त कर दिया गया।
आरोप लगाया गया कि महिला के साथ उसके साथी ने शादी का झांसा देकर बलात्कार किया तथा पंचायत में दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के पश्चात लड़का उसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए सहमत हो गया। यह भी कहा गया कि आरोपी महिला को एक मंदिर में ले गया तथा उससे शादी करने का नाटक किया, लेकिन न तो उसके साथ शारिरिक संबंध बनाए न ही पहले लिए गए पैसे लौटाए।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि महिला की मेडिकल-कानूनी जांच की गई जिसमें यह निष्कर्ष निकला कि उसके साथ यौन संबंध होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
वकील ने कहा कि पंचायत समझौते के अवलोकन से संकेत मिलता है कि व्यक्ति ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि उसने याचिकाकर्ता को कनाडा ले जाने के बहाने उसके साथ यौन संबंध बनाए।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि इस चरण में ट्रायल कोर्ट को केवल कथित अपराध की सीमा का उल्लंघन करने वाले तथ्यात्मक तत्वों के अस्तित्व के संबंध में अनुमानात्मक राय बनानी है।
जस्टिस बरार ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 227, 239 और 240 के तहत राय बनाने के चरण में ट्रायल कोर्ट को रिकॉर्ड पर लाई गई सामग्री के सत्यापन मूल्य को स्वर्ण तराजू में तौलने या अभियोजन पक्ष की कहानी को सत्य मानने की आवश्यकता नहीं है।
शशिकांत शर्मा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2023 लाइव लॉ (एससी) 1037 पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि अभियोजन पक्ष के स्वीकार किए गए साक्ष्य से अपराध के आवश्यक तत्व नहीं बनते हैं तो न्यायालय आरोपी के खिलाफ ऐसे अपराध के लिए आरोप तय करने के लिए बाध्य नहीं है।
वर्तमान मामले में न्यायालय ने नोट किया कि याचिकाकर्ता समझौते के मद्देनजर शादी करने से पहले भी आरोपी के साथ रहता था।
यह कहते हुए कि विवाह के बाद याचिकाकर्ता और उसके साथी ने किराए के आवास में रहना शुरू कर दिया, न्यायालय ने विवाह की वैधता पर टिप्पणी किए बिना यह राय व्यक्त की कि याचिकाकर्ता आरोपी के साथ "सहमति से शारिरिक संबंध में थे और यह केवल बाद में उत्पन्न हुए विवाद के कारण है कि प्राथमिकी दर्ज की गई।
न्यायालय ने शिवंकर बनाम कर्नाटक राज्य (2019) का उल्लेख किया, जिसमें यह देखा गया हालांकि हम इस सवाल से चिंतित नहीं हैं कि क्या अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता-प्रतिवादी नंबर 1 वास्तव में विवाहित थे, हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे शिकायतकर्ता के अनुसार भी विवाहित जोड़े की तरह साथ रहते थे। वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों को कायम रखना मुश्किल है, जिसने संभवतः शिकायतकर्ता से शादी का झूठा वादा किया हो।
उपरोक्त के आलोक में कोर्ट ने अभियुक्त को दोषमुक्त करने के ट्रायल कोर्ट का निर्णय बरकरार रखा।
केस टाइटल- XXX बनाम XXX