जीवन जीने का अधिकार सभी को प्राप्त: Live-In Relationship में रहने वाली नाबालिग लड़की की सुरक्षा याचिका पर पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
यह देखते हुए कि केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता विवाह योग्य आयु के नहीं हैं, इससे उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता, पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने नाबालिग लड़की को बाल गृह भेजने का निर्देश दिया, जो अपने 19 वर्षीय लिव-इन पार्टनर के साथ अपने रिश्तेदारों से सुरक्षा की मांग कर रही थी।
उसे बाल गृह भेजने का निर्देश देते हुए न्यायालय ने कहा कि लड़की नाबालिग है, इसलिए अदालत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह माता-पिता के रूप में नाबालिग के हित में क्या सर्वोत्तम है इसकी जांच करे।
जस्टिस हरकेश मनुजा ने कहा,
"चंडीगढ़ पुलिस को याचिकाकर्ता नंबर 1 (नाबालिग लड़की) को हरियाणा के पंचकूला के सेक्टर 16 स्थित आशियाना बाल गृह ले जाने का निर्देश दिया जाता है, जहां उसे तब तक रखा जाएगा जब तक कि पुलिस अधीक्षक सिरसा आकर उसे बाल गृह सिरसा में ले जाकर वयस्क होने तक उसे सौंप न दें और वयस्क होने पर वह यह चुनने के लिए स्वतंत्र होगी कि वह कहां रहना चाहती है।"
कोर्ट ने आगे कहा,
"भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है तथा किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा। संवैधानिक आदेश के अनुसार प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना राज्य का परम कर्तव्य है।"
केवल इस तथ्य से कि याचिकाकर्ता विवाह योग्य आयु के नहीं हैं या लड़की अभी भी नाबालिग है, याचिकाकर्ताओं को भारत के नागरिक होने के नाते संविधान में परिकल्पित उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा।
न्यायालय 17 वर्षीय लड़की और 19 वर्षीय लड़के द्वारा दायर सुरक्षा याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो कथित तौर पर Live-In Relationship में रहते हैं जिन्हें अपने रिश्तेदारों से धमकियों की आशंका है।
दोनों पक्षकार एक-दूसरे से बातचीत करने के लिए हाइकोर्ट के मध्यस्थता और सुलह केंद्र के समक्ष उपस्थित हुए। हालांकि लड़की ने कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ नहीं जाना चाहती।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने खुशप्रीत सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य, 2022 (3) आरसीआर (सिविल) 988 का संदर्भ दिया, जिसमें समान मामले में संरक्षण की मांग करने वाली नाबालिग लड़की ने न्यायालय से संपर्क किया और न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
I. संबंधित जिले के पुलिस/पुलिस आयुक्त नाबालिग/बच्चे को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत गठित समिति के समक्ष पेश करने के लिए बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को नियुक्त करेंगे।
II. संबंधित समिति किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 36 के तहत परिकल्पित जांच करेगी और सभी हितधारकों को शामिल करके उक्त अधिनियम की धारा 37 के तहत उचित आदेश पारित करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के उद्देश्यों की अच्छी तरह से पूर्ति हो।
III. बाल कल्याण समिति नाबालिग के रहने-खाने के संबंध में उचित निर्णय लेगी तथा बच्चे/नाबालिग की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित सभी मुद्दों पर जांच करेगी।
IV. किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 37 के तहत विचाराधीन ऐसे न्यायनिर्णयन और आदेशों के पारित होने के दौरान समिति देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे को रखने/बच्चे की हिरासत के संबंध में उचित अंतरिम/निर्णय भी लेगी।
V. संबंधित एसएसपी/एसपी/सीपी नाबालिग के साथ-साथ उसके अगले दोस्त, जिसके माध्यम से नाबालिग ने इस न्यायालय से संपर्क किया, उनको खतरे की धारणा के खिलाफ कानून द्वारा वारंट किए गए उचित कदम उठाएंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि संबंधित याचिकाकर्ताओं को याचिका में उल्लिखित प्रतिवादियों के कहने पर किसी भी शारीरिक नुकसान से बचाया जाए।
VI. याचिकाकर्ताओं को इस कॉपी की प्राप्ति से 03 दिनों की अवधि के भीतर संबंधित जिलों के एसएसपी/एसपी के कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है। ऐसा न करने पर संबंधित एसएसपी/एसपी एक बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को नियुक्त करेंगे, जो नाबालिग को उसके बाद 01 सप्ताह की अवधि के भीतर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश करेगा।
VII. किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत गठित बाल कल्याण समिति इस न्यायालय को अनुपालन रिपोर्ट भेजेगी।
मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना या उस पर टिप्पणी किए बिना और विशेष रूप से कथित रिश्ते की वैधता पर न्यायालय ने एसएसपी को याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए प्रतिनिधित्व पर विचार करने का निर्देश दिया।
यह कहा गया कि यदि निजी प्रतिवादियों के हाथों याचिकाकर्ताओं को कोई खतरा है तो कानून के अनुसार कार्य करें और यदि आवश्यक हो, तो उन्हें अंतरिम सुरक्षा प्रदान करें।
इसके अलावा, न्यायालय ने पुलिस को बाल कल्याण समिति के रूप में खुशप्रीत सिंह के मामले (सुप्रा) में निहित निर्देशों में विस्तृत सभी कदम उठाने का निर्देश दिया।
नाबालिग लड़की को बाल गृह भेजने का निर्देश देते हुए न्यायालय ने कहा,
"किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत गठित बाल कल्याण समिति, बाल गृह सिरसा में याचिकाकर्ता संख्या 1 की भलाई सुनिश्चित करेगी।"
केस टाइटल- XXXX बनाम हरियाणा राज्य