काम करने दीजिए सरकार को जवाब बाद में दीजिए: बाढ़ PIL में तुरंत उत्तर की मांग पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की फटकार
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बाढ़ राहत और पुनर्वास को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को फिलहाल राहत कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने की छूट दी और छह हफ्ते बाद हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा,
“राहत दल काम कर रहे हैं, सेना काम कर रही है, हर कोई जुटा हुआ है। ऐसे समय पर नोटिस जारी करने से लोग बचाव और राहत कार्यों से हटाकर जवाब तैयार करने में लग जाएंगे। यह संकट की घड़ी है। कृपया रुकिए।”
याचिकाकर्ताओं की ज़िद पर अदालत ने कहा कि अदालत सामान्यत: इस वक्त राज्य से जवाब नहीं मांगती लेकिन आपके आग्रह पर अब सरकार को छह हफ्ते बाद जवाब देने का आदेश दिया गया।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही हिमालयी क्षेत्रों में बाढ़ और अवैध पेड़ कटान जैसे गंभीर मुद्दों पर संज्ञान ले चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पंजाब सरकार समेत कई एजेंसियों को नोटिस भी जारी किया।
एक याचिकाकर्ता के वकील ने 1988 की बाढ़ का हवाला देते हुए मौजूदा स्थिति को मानव निर्मित आपदा बताया और दावा किया कि राज्य प्रशासन ज़मीनी स्तर पर नज़र नहीं आ रहा, जबकि पंजाब का युवा खुद राहत कार्यों में जुटा है।
इस पर कोर्ट ने कहा,
“अगर आप चाहते हैं कि बचाव कार्य बाधित हो तो हम नोटिस जारी कर देंगे, लेकिन फिर उसकी ज़िम्मेदारी भी आपको लेनी होगी।”
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अपना मामला वापस ले लिया, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।
यह याचिका एडवोकेट शुभम ने दाखिल की थी, जिसमें बाढ़ प्रभावितों को भोजन, पानी, आश्रय, स्वास्थ्य सुविधाएं समेत न्यूनतम मानक राहत उपलब्ध कराने की मांग की गई थी। साथ ही कोर्ट-निगरानी वाली एक समिति गठित करने और प्रभावित गांवों में विशेष गिरदावरी कर मुआवज़ा बांटने का अनुरोध किया गया था।
मामला अब आगे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
टाइटल: शुभम बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य