आईपीएस वाई पूरन आत्महत्या मामला | पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्वतंत्र एजेंसी को जाँच सौंपने की याचिका खारिज की

Update: 2025-11-12 12:48 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि चंडीगढ़ पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर संदेह करने का कोई आधार नहीं है।

चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने कहा,

"यूटी चंडीगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट अमित झांजी ने बताया कि उक्त प्राथमिकी में 14 लोगों को आरोपी बनाया गया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद कुछ सामग्री ज़ब्त कर ली गई और एफएसएल को भेज दी गई, जिसकी रिपोर्ट का इंतज़ार है। सीनियर एडवोकेट ने यह भी बताया कि मामले की जांच के लिए 10.10.25 को आईजी यूटी चंडीगढ़ की अध्यक्षता में SIT का गठन किया गया था। उपरोक्त से यह संकेत नहीं मिलता कि इसमें कोई ढिलाई या देरी हुई है। इसलिए जाँच स्थानांतरित करने का कोई मामला नहीं बनता।"

हरियाणा के एक गैर-सरकारी संगठन के अध्यक्ष नवनीत कुमार द्वारा दायर याचिका में चंडीगढ़ पुलिस द्वारा की जा रही जांच की निष्पक्षता पर चिंता जताते हुए अधिकारी की मौत से जुड़ी परिस्थितियों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई।

कथित तौर पर कुमार ने 7 अक्टूबर को चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर खुद को गोली मार ली थी और एक सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें उन्होंने हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर और रोहतक के तत्कालीन एसपी नरेंद्र बिजारनिया सहित कई अधिकारियों को दोषी ठहराया था। उन्होंने जाति आधारित भेदभाव और उत्पीड़न का भी आरोप लगाया था।

याचिका में कहा गया कि इतने उच्च पदस्थ लोक सेवक की बेहद रहस्यमय और परेशान करने वाली परिस्थितियों में हुई मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, जिससे सिविल सेवाओं की आंतरिक जवाबदेही व्यवस्था में जनता का विश्वास कम हुआ है।

इसमें आगे कहा गया कि कई सुसाइड नोटों की बरामदगी, जिनमें से एक कथित तौर पर लगभग एक महीने पहले लिखा गया, जिसमें आठ आईपीएस और दो आईएएस अधिकारियों को उनकी मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया, इस बात की ओर इशारा करता है कि जिस संस्थागत ढाँचे में उन्होंने काम किया था उसमें व्यवस्थागत उकसावे जाति-आधारित उत्पीड़न और आपराधिक साज़िश की गंभीर संभावना है।

याचिका में आगे कहा गया कि चंडीगढ़ पुलिस जो वर्तमान में मामले की जांच कर रही है, क्षेत्रीय, संस्थागत और प्रशासनिक सीमाओं से ग्रस्त है। खासकर इसलिए, क्योंकि मृतक हरियाणा कैडर का अधिकारी था और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन हरियाणा और केंद्र दोनों प्रतिष्ठानों से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि हितों के ये टकराव चल रही जांच को न तो निष्पक्ष और न ही प्रभावी बनाते हैं।

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