किसी भी तरह के भेदभाव को साबित करने में विफल: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 1991 में अधिग्रहित गुरुद्वारा को मुक्त करने से इनकार किया

Update: 2024-10-22 05:52 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने धार्मिक संरचना अर्थात गुरुद्वारा सांझा साहिब को अधिग्रहण से मुक्त करने से इनकार कर दिया यह देखते हुए कि अधिग्रहण में कोई भी भेदभाव नहीं पाया गया।

यह याचिका 1999 में दायर की गई थी, भूमि अधिग्रहण कलेक्टर द्वारा 1991 में सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया।

चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल ने कहा,

"याचिकाकर्ता किसी भी तरह के भेदभाव को साबित करने में विफल रहा, क्योंकि याचिकाकर्ता की संपत्ति वी-3 सड़क के संरेखण में आती है, जबकि भूमि के अन्य हिस्सों को क्षेत्र के नियोजित विकास में समायोजित किया जा सकता है।"

पीठ ने आगे कहा कि इस आधार पर याचिका में कोई दम नहीं है कि रिट याचिका वर्ष 1999 में दायर की गई, जबकि 1991 में भूमि पहले ही केंद्र शासित प्रदेश में निहित हो चुकी थी, क्योंकि भूमि अधिग्रहण कलेक्टर द्वारा धारा 11A के तहत 27.03.1991 को अवार्ड की घोषणा की गई। याचिकाकर्ता ने 1894 अधिनियम की धारा 5-a के तहत 30 दिनों की अवधि के भीतर प्रस्तावित अधिग्रहण पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की थी।

बाबा चरणजीत कौर ने गुरुद्वारे के अधिग्रहण को इस आधार पर चुनौती देने वाली याचिका दायर की कि 1894 अधिनियम की धारा 4, 6 और 9 के तहत व्यक्तिगत नोटिस तामील नहीं किए गए।

आगे कहा गया कि परिसर का उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है और विभिन्न अन्य संस्थाओं के भूखंडों के कुछ हिस्सों को मुक्त कर दिया गया।

प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,

"गुरुद्वारा का निर्माण दिसंबर 1986 में संपत्ति खरीदने के बाद किया गया। यह आरोप लगाया गया कि गुरुद्वारा का निर्माण 1894 अधिनियम की धारा 4 के तहत अधिसूचना जारी करने से पहले किया गया, प्रतिवादी के अनुसार याचिकाकर्ता का भूखंड वी-3 सड़क के सड़क संरेखण के अंतर्गत आता है। याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन पर प्रशासन द्वारा विचार किया गया और उसे खारिज कर दिया गया।"

पीठ ने आगे कहा कि 1894 अधिनियम की धारा 4 और 6 के तहत अधिसूचना के संबंध में व्यक्तिगत नोटिस की सेवा का कोई प्रावधान नहीं है।

उन्होंने कहा,

"अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अधिसूचनाएं समाचार पत्रों के साथ-साथ आधिकारिक राजपत्र में भी प्रकाशित की जाएंगी। याचिकाकर्ता का यह मामला नहीं है कि नोटिस समाचार पत्रों या आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया गया। यू.टी. प्रशासन के रुख के अनुसार, गुरुद्वारा के पक्ष में राजस्व रिकॉर्ड में पहली बार वर्ष 1991 में प्रविष्टि की गई, जिस पर याचिकाकर्ता ने विवाद किया। इसलिए तथ्य के विवादित प्रश्न शामिल हैं। किसी भी मामले में 1894 अधिनियम की धारा 9 के तहत नोटिस देने में विफलता अधिग्रहण को प्रभावित नहीं करेगी, खासकर तब जब भूमि पहले से ही केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के पास निहित हो।”

यू.टी. प्रशासन को ब्याज सहित मुआवज़ा जारी करने के निर्देश जारी करने के विवाद पर पीठ ने कहा कि मुआवज़े के संबंध में रिट याचिका में कोई प्रार्थना नहीं है। वहीं कोर्ट ने कहा कि 1894 अधिनियम भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजे का दावा करने की प्रक्रिया निर्धारित करता है जिसका लाभ याचिकाकर्ता उठा सकता है।

याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया कि धार्मिक संरचना को तुरंत हटाया जाए और जनहित में रोटरी का निर्माण पूरा किया जाए।

केस टाइटल: पीकॉक एनवायरनमेंट एंड वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी बनाम यू.टी. राज्य चंडीगढ़ और अन्य

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