अनुशासित बल के कर्मचारी बिना किसी कारण के छुट्टी अवधि से अधिक समय तक रहने के हकदार नहीं: मेघालय हाइकोर्ट

Update: 2024-05-18 06:40 GMT

मेघालय हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस एस. वैद्यनाथन की सिंगल बेंच ने अश्विन पट्टी बनाम भारत संघ के मामले में रिट याचिका पर निर्णय करते हुए कहा कि अनुशासित बलों के कर्मचारी बिना किसी उचित कारण के अपनी छुट्टी अवधि से अधिक समय तक रहने पर किसी भी राहत के पात्र नहीं।

मामले की पृष्ठभूमि

अश्विन पट्टी (याचिकाकर्ता) सीमा सुरक्षा बल (BSF) के पूर्व कांस्टेबल थे, जिन्हें 3 दिसंबर 1997 को भर्ती किया गया था। बुनियादी प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें 18 दिसंबर 1998 को 65वीं बटालियन BSF में तैनात किया गया। याचिकाकर्ता ने 24 मई, 2014 को छुट्टी के लिए आवेदन किया, जिसे 50 दिनों के लिए मंजूर किया गया। हालांकि उन्होंने स्वीकृत छुट्टी का लाभ नहीं उठाया और बाद में अपनी बहन की बीमारी के कारण 15 दिनों की अर्जित छुट्टी के लिए आवेदन किया। यह छुट्टी भी मंजूर कर ली गई लेकिन वे निर्धारित समय पर वापस ड्यूटी पर रिपोर्ट करने में विफल रहे। उन्हें कई नोटिस और अवसर दिए जाने के बावजूद याचिकाकर्ता ड्यूटी पर वापस नहीं लौटे, जिसके परिणामस्वरूप सारांश सुरक्षा बल न्यायालय (प्रतिवादी) द्वारा उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि बर्खास्तगी प्रक्रिया में प्रक्रियागत अनियमितताएं थीं। उन्होंने दावा किया कि सभी साक्ष्य अंग्रेजी में दर्ज किए गए, जिसे वे समझ नहीं पाए। इस प्रकार उन्होंने BSF नियम 1969 के नियम 134 का उल्लंघन किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने तर्क दिया कि कोई उचित जांच नहीं की गई और उन्हें बचाव का उचित मौका नहीं दिया गया।

दूसरी ओर प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने बिना पर्याप्त कारणों के 305 दिनों तक ड्यूटी से अनुपस्थित रहा। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को काम पर वापस आने के लिए कई अवसर दिए गए, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा। प्रतिवादियों ने BSF की अनुशासनात्मक प्रकृति पर जोर दिया और याचिकाकर्ता को इसी तरह के अपराधों के लिए पहले मिली सजाओं का हवाला दिया। उन्होंने दावा किया कि याचिकाकर्ता द्वारा अनुशासन का बार-बार उल्लंघन करने और आदेशों का पालन करने में विफलता को देखते हुए सेवा से बर्खास्तगी उचित थी।

अदालत के निष्कर्ष

अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता ने बिना पर्याप्त कारणों के अपनी स्वीकृत छुट्टी अवधि से अधिक समय तक काम किया और बार-बार नोटिस के बावजूद ड्यूटी पर वापस नहीं आया। इसने नोट किया कि BSF अनुशासित बल है और ऐसे संगठनों के भीतर अनुशासन बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया।

न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम दत्ता लिंगा तोषटवाड के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कांस्टेबल, जो अपनी छुट्टी की अवधि से अधिक समय तक रुका रहता है और उसके बाद काम पर आता है, उसे किसी भी राहत का हकदार नहीं माना जाता।

न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण अत्यधिक अस्वीकार्य है और उसने अपनी सेवा में अनुशासन बनाए नहीं रखा। इसलिए उसे सेवा में बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती। याचिकाकर्ता एक कांस्टेबल होने के नाते विशेष रूप से अनुशासित बल का सदस्य होने के नाते अपने सीनियर अधिकारियों के आदेश और आज्ञा का पालन करने के लिए बाध्य था।

न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम दिलेर सिंह के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुशासित बल के सदस्य से नियमों का पालन करने अपने मन और जुनून पर नियंत्रण रखने अपनी प्रवृत्ति और भावनाओं की रक्षा करने की अपेक्षा की जाती है।

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को जांच प्रक्रिया के दौरान खुद का बचाव करने के लिए पर्याप्त अवसर दिए गए, लेकिन वह प्रभावी ढंग से ऐसा करने में विफल रहा। इसने निष्कर्ष निकाला कि बर्खास्तगी प्रक्रिया में कोई प्रक्रियात्मक अनियमितता नहीं थी और सारांश सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा लगाए गए दंड को बरकरार रखा। अंततः न्यायालय ने याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए सेवा से बर्खास्तगी को उचित पाया तथा बर्खास्तगी आदेश की वैधता को बरकरार रखा।

उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- अश्विन पट्टी बनाम भारत संघ

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