किराया अनुबंध 11 महीने का क्यों होता है और किराएदार क्या कभी मकान मालिक हो सकता है
आधुनिक समय में किराएदार और मकान मालिक व्यवस्था अधिक देखने को मिल रही है क्योंकि शहरो का विस्तार हो रहा है और शहरों में दूसरे शहर के लोग आकर रह रहे हैं जिससे वे किसी मकान में कुछ समय के लिए किराएदार के नाते से रहते हैं। किसी संपत्ति के मालिक के लिए भी यह कच्छी आय का साधन हो गया है। संपत्ति के मालिक अपनी संपत्तियों को किराए पर देकर एक बेहतरीन आय अर्जित करते हैं।
किराया अनुबंध एक कानूनी विषय है तो इस पर सभी कानूनी जानकारियां उन व्यक्तियों को होना चाहिए जो किसी संपत्ति को किराए पर देते हैं और जो किसी संपत्ति को किराए पर लेते हैं। समाज में एक भ्रांति हमेशा से बनी हुई है कि किराएदार मकान मालिक हो जाता है जबकि कानून में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है।
किराएदारी कानून
किराएदारी कानून भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग हैं। इन्हें कंट्रोल करने के लिए अलग-अलग राज्यों ने अपने-अपने कानून बनाए हैं पर संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम एकमात्र ऐसा कानून है जो समस्त भारत पर एक जैसा लागू होता है। इस कानून के अंतर्गत पट्टा के विषय में उपबंध दिए गए हैं। यही पट्टा किराएदारी होता है।
कोई भी व्यक्ति जो किसी दूसरे व्यक्ति से कोई जमीन या मकान किराए पर लेता है वह जमीन और मकान का मालिक कभी भी नहीं हो सकता यदि ऐसा किराएदार किसी मकान या जमीन पर दो सौ साल तक भी रहे तब भी वह उसका मालिक नहीं हो सकता है।
कानून ने स्पष्ट किया है कि किराएदार के पास किसी मकान या जमीन पर रहकर उसके उपभोग करने का अधिकार होता है पर उसका मालिकाना हक नहीं होता है। मालिकाना हक उसी व्यक्ति का होता है जिस व्यक्ति के पास में प्रारंभ से होता है। किराएदारी के अंतर्गत केवल जमीन या मकान का अधिपत्य सौंपा जाता है उसका मालिकाना हक नहीं दिया जाता है। इसलिए यह स्थापित नियम है कि कोई भी किराएदार कभी भी किसी संपत्ति का मालिक नहीं हो सकता।
किराया अनुबंध और किराए की रसीद आवश्यक है
किराएदारी मामले में देखा जाता है कि किराया अनुबंध और किराए की रसीद को लेकर मकान मालिक और किराएदार सतर्क नहीं होते हैं। मकान मालिक भी अपना किरायानामा बनवाते नहीं है और किराएदार भी इस पर जोर नहीं देते जबकि यह बहुत खतरनाक है। किसी भी संपत्ति को किराए के देने पर पूर्व उस संपत्ति का किरायानामा बनवाया जाना चाहिए और हर महीने किराए की वसूली पर मकान मालिक द्वारा किराएदार को एक रसीद देना चाहिए जिसे किराया रसीद कहा जाता है। इस प्रकार के व्यवहार से सबूत रिकॉर्ड पर रहते हैं।
इससे साबित होता है कि जो व्यक्ति संपत्ति पर अपना कब्जा बना कर बैठा है वह संपत्ति पर एक किराएदार की हैसियत से है। अगर ऐसा कोई सबूत नहीं हो तब संपत्ति पर कब्जा बना कर बैठा व्यक्ति यह भी दावा कर सकता है कि मैं मालिक की हैसियत से बैठा हूं या फिर मुझे दान में मिला है और भी दूसरे बहुत सारे पहलू है जिन पर उसके द्वारा यह दावा किया जा सकता है कि मैं किस हैसियत से इस संपत्ति पर अधिपत्य लेकर बैठा हूं।
इन समस्याओं से बचने के लिए किरायानामा और किराए की रसीद आवश्यक रूप से बनाई जाना चाहिए तभी किसी संपत्ति को किराए पर दिया जाना चाहिए इससे कानूनी मदद मिलती है और मकान मालिक तथा किराएदार दोनों के कानूनी अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं।
पट्टा और किराया
अमूमन पट्टा और किराया को अलग-अलग समझा जाता है जबकि ऐसा नहीं है। पट्टा और किराया एक ही चीज है पट्टे का अर्थ होता है किसी भी संपत्ति को एक निश्चित समय सीमा के लिए या अनिश्चित समय के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को उपभोग करने के लिए सौंप देना और उसके बदले में कोई निश्चित धनराशि ले लेना। इसे अंग्रेजी में लीज कहा जाता है। आमतौर पर सरकार पट्टे जारी करती है तो ऐसा समझा जाता है कि पट्टे सरकार ही देती है जबकि कोई भी संपत्ति को किराए पर लेना पट्टा ही होता है। इसका स्पष्ट उल्लेख संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम में मिलता है।
जब कभी किसी संपत्ति को पट्टे पर दिया जाता है तो उसका एक पट्टा लिखा जाता है। संपत्ति का मालिक अपनी सहमति से यह पट्टा लिखता है कि वे संपत्ति का मालिक है और उसके द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को संपत्ति का उपयोग करने के लिए एक निश्चित प्रतिफल के बदले संपत्ति सौंपी जा रही है। अब इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जो व्यक्ति संपत्ति पर कब्जा किए हुए हैं उस व्यक्ति का कब्जा एक किराएदार के नाते हैं अर्थात उस जमीन को या मकान को पट्टे पर लिया है।
किरायानामा 11 महीने का ही क्यों?
आमतौर पर यह भी देखा जाता है कि जब भी किसी मकान या जमीन को किराए पर दिया जाता है तो मकान मालिक 11 महीने का किरायानामा बनाता है जिससे लोगों को यह लगने लगा है कि किरायानामा 11 महीने का ही होता है जबकि यह बात ठीक नहीं है।
11 महीने का किरायानामा जैसी चीज कानून में कहीं कोई उल्लेखित नहीं मिलती है। यह तो लोगों द्वारा बनाई गई एक प्रथा है। कोई भी किरायानामा 11 महीने का भी हो सकता है और 11 महीने से कम का भी हो सकता है और 50 वर्ष तक का भी हो सकता है और एक अनिश्चित समय के लिए भी हो सकता है। इसके लिए कोई निश्चित समय नहीं है पर कोई भी संपत्ति को 11 महीने से अधिक समय के लिए किराए पर दिया जाता है तब ऐसी संपत्ति के पट्टे का रजिस्ट्रेशन कराना होता है।
इसका उल्लेख भारतीय रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत मिलता है जहां यह स्पष्ट रुप से लिखा हुआ है कि अगर 11 महीने से अधिक समय के लिए किसी संपत्ति को किराए पर दिया जाता है तब ऐसी स्थिति में उस किरायानामा को रजिस्टर कार्यालय में रजिस्टर्ड करवाया जाएगा। अब यहां पर रजिस्ट्रेशन का काम थोड़ा महंगा होता है, वहां पर स्टांप शुल्क देना होता है रजिस्ट्रेशन का शुल्क देना होता है और फिर किरायानामा रजिस्टर्ड होता है तभी उसे कानूनी मान्यता मिलती है।
यहां पर लोग किरायानामा की रजिस्ट्री से बचने के लिए यह विकल्प इस्तेमाल करते हैं कि किरायानामा को 11 महीने से अधिक का बनाते ही नहीं है और किरायानामा में यह लिख देते हैं कि 11 महीने के बाद किराया कितना रहेगा और हर साल किराए में कितनी बढ़ोतरी होगी इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि एक बार किरायानामा बना लेने से अगली बार बनाने की आवश्यकता नहीं होगी और अगली बार मौखिक रूप से ही किरायानामा रहेगा।
एक बार का किरायानामा साक्ष्य के रूप में काम आ जाता है इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी संपत्ति का कब्जा किसी दूसरे व्यक्ति को एक किराएदार की हैसियत से दिया गया है और उसमें एक निश्चित धनराशि मकान मालिक द्वारा तय की गई है जो किराए के रूप में किराएदार द्वारा दी जाएगी। इसके अलावा 11 महीने के किरायानामा जैसी कोई भी चीज कानून में कहीं भी उपलब्ध नहीं है यह केवल रजिस्ट्री से बचने का एक उपाय मात्र है।
किरायानामा को एक हजार या कम से कम ₹500 के नॉन जुडिशल स्टांप पर लिखकर किसी नोटरी वकील से तस्दीक करवाया जा सकता है। उसकी तस्दीक करने से इस किरायानामा को कानूनी मान्यता मिल जाती है।
अंत में हम यह स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि किसी भी संपत्ति का किराएदार उसका मालिक तब तक नहीं हो सकता है जब तक वह संपत्ति को खरीदता नहीं है या दान के रुप में या वसीयत के रूप में हासिल नहीं करता है। केवल एक किराएदार की हैसियत से वह संपत्ति का मालिक कभी भी नहीं बन सकता।
संपत्ति का मालिक बनने के लिए संपत्ति को खरीदना पड़ता है यह दान के जरिए लेना होता है या फिर वसीयत के जरिए संपत्ति को प्राप्त करना होता है। एक किराएदार के रूप में संपत्ति कभी भी नहीं मिलती है। किराएदार को संपत्ति पर केवल एक उपभोग करने का अधिकार प्राप्त होता है और उसके बदले भी उसे एक निश्चित धनराशि संपत्ति के मालिक को देना पड़ती है।
11 महीने के किराया अनुबंध जैसी चीज भी कानून में नहीं है यह केवल रजिस्ट्री से बचने का एक उपाय मात्र है। यदि एक लंबे समय के लिए किसी व्यक्ति को मकान किराए से दिया जाए तब एक पट्टा रजिस्टर्ड करवाया जाना चाहिए जैसे कि सरकार अपनी संपत्ति जब भी किसी व्यक्ति को किराए पर देती है तब उससे एक निश्चित अवधि के लिए एकमुश्त राशि लेकर उसे पट्टा लिखकर दे देती है।
जैसे कि अनेक फैक्ट्री और टॉकीज सरकार द्वारा दी गई लीज की जमीन पर चल रहे हैं। सरकार ने उन्हें 100 वर्ष या 50 वर्ष के लिए वह संपत्ति एक पट्टा लिख कर दिया है। वह लोग उस संपत्ति के मालिक नहीं है उन्होंने सरकार को एक निश्चित धनराशि 100 वर्ष या 50 वर्ष के लिए दी है उसके बाद उनका उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।