Transfer Of Property Act में कौनसी प्रॉपर्टी का ट्रांसफर किया जा सकता है

Update: 2025-01-09 03:06 GMT

प्रॉपर्टी अंतरण अधिनियम की धारा 6 जिन प्रॉपर्टीयों को अंतरित किया जा सकता है उनके संबंध में उल्लेख कर रही है। इस अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत सभी प्रॉपर्टीयों को अंतरित किए जाने का उल्लेख कर दिया गया है तथा कुछ ही प्रॉपर्टीयां ऐसी हैं जिन्हें अंतरित नहीं किए जाने का उल्लेख किया गया है।

प्रॉपर्टी अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 6 सभी प्रकार की प्रॉपर्टीयों को अंतरित करने का वर्णन कर रही है तथा इस धारा के अंतर्गत स्पष्ट किया गया है कि सभी प्रकार की प्रॉपर्टीयां अंतरित की जा सकती हैं परंतु इस धारा के अंतर्गत कुछ अपवाद दिए गए हैं जिन्हें अंतरित नहीं किया जा सकता। यह महत्वपूर्ण धारा है तथा समय-समय पर इस धारा के अंतर्गत अनेक बार संशोधन किए गए हैं। जिस अवस्था में आज यह धारा है सदा से इस प्रकार से यह धारा कभी नहीं थी तथा इस में अनेकों बार संशोधन हुए। आज जो इसका रूप हम देख रहे हैं ऐसा रूप इसका सदा से नहीं था।

1885 में इस में पहला संशोधन किया गया, 1900 में दूसरा संशोधन किया गया, 1927 में तीसरा संशोधन किया गया, 1934 में चौथा संशोधन किया गया, 1950 के इसमें छठी बार फिर संशोधन किया गया तथा कुछ शब्द जोड़े गए।

धारा 6 के अनुसार सदेव प्रॉपर्टी की अंतरण पर बल देती है न की उसके संग्रह पर। अंतरण एक विधिक उपधारणा है यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि प्रॉपर्टी अंतरणीय नहीं है तो उसे सिद्ध करना होगा कि वह प्रॉपर्टी अंतरणीय नहीं है।

बैजनाथ सिंह बनाम चंद्रपाल सिंह के वाद में प्रतिवादी के पूर्वजों ने एक जमीदार की अनुमति से उसे नजराना देकर उस प्रॉपर्टी पर बगीचा लगाया था जिसका वह पट्टाधारी था। पट्टाधारी ने अपनी प्रॉपर्टी चंद्रपाल सिंह के पक्ष में अंतरित कर दी। वादी का तर्क था कि बगीचे का अंतरण अवैध है। यह अभिनिर्णीत हुआ कि किसी भी विपरीत रूढ़ि या करार के अभाव में पट्टाधारी जिसने जमीदार की अनुमति से बगीचा लगाया था प्रॉपर्टी को अंतरित करने में सक्षम होगा। यह धारा यह सामान्य नियम है कि प्रत्येक प्रकार की प्रॉपर्टी अंतरणीय है।

प्रतिपादित करने के साथ ही साथ कतिपय अपवादों को भी उल्लेख करती है। इस धारा में खंड क से लेकर खंड झ तक अनेक अपराध का उल्लेख किया गया है तथा इसके अतिरिक्त हिंदू विधि, मुस्लिम विधि, भू विधियों तथा रूढ़ियों एवं प्रथाओं द्वारा भी अनेक अपवाद स्वीकार किए गए हैं।

हिंदू विधि के अंतर्गत धार्मिक पद तथा धार्मिक प्रयोजनों के निमित्त दी गई प्रॉपर्टी अंतरण नहीं होती है जैसे माहिती अधिकार, देबोत्तर प्रॉपर्टीयां तथा समांसिता। इसी प्रकार मुस्लिम विधि के अंतर्गत धार्मिक पद तथा वक्फ प्रॉपर्टी के अंतरण पर प्रतिबंध लगाया गया है।

कुछ इस प्रकार समझा जाए कि जिन प्रॉपर्टीयों का अंतरण नहीं हो सकता उनका उल्लेख इस अधिनियम के अंतर्गत कर दिया गया है तथा धारा 6 के अंतर्गत जिन भी बातों का उल्लेख किया गया है केवल उन्हीं का अंतर नहीं हो सकता है बाकी सभी का अंतरण किया जा सकता है और इसके अलावा कुछ पर्सनल लॉ भी हैं तथा कुछ भू विधियां भी हैं जिनके अंतर्गत भी अंतरणीय नहीं हो सकता है।

प्रॉपर्टी अंतरण अधिनियम में मान्य अपवाद- इस अधिनियम की धारा 6 में कुल 10 खंडों में अपवादों का उल्लेख किया गया है।

खंड 'क' में कुल 3 प्रकार के अपवादों का उल्लेख किया गया है उन तीनों प्रकारों का वर्णन यहां इस आलेख में न्याय निर्णयों के साथ किया जा रहा है।

किसी प्रत्यक्ष वारिस की विरासत की संभावना

एक हिन्दू उत्तरभोगी द्वारा अन्तरण

मुस्लिम उत्तराधिकारी द्वारा अन्तरण

प्रत्यक्ष वारिस उस व्यक्ति को कहते हैं जो प्रॉपर्टी धारक की मृत्यु पर जीवित रहेगा उसी से प्रॉपर्टी पाने का अधिकार होगा यदि वह (सम्पत्ति धारक) वसीयत के बगैर मर जाता है।

सिद्धान्त इस सूत्र पर आधारित है कि कोई भी व्यक्ति किसी जीवित व्यक्ति का उत्तराधाकिारी नहीं होता है। इंग्लिश विधि के अन्तर्गत समांशिता हित लगभग अनुपलब्ध है। अतः कोई भी पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में यह नहीं कह सकेगा कि वह पिता के उपरान्त उसको सम्पत्ति का वारिस होगा। वह केवल इतना ही कह सकेगा कि वह पिता की सम्पत्ति का प्रत्यक्ष वारिस है और यदि पिता की मृत्यु वसीयत रहित होती है तथा पिता की मृत्यु के समय वह जीवित रहेगा तो उसे सम्पत्ति प्राप्त होगी। किसी प्रत्यक्ष वारिस का अपने पूर्वज की सम्पत्ति प्राप्त करने का अधिकार केवल एक सम्भावना या उम्मीद मात्र होती है जो किसी भी समय विफल हो सकेगा।

स्टाकले बनाम पारसन्स' के बाद में यह अभिनित हुआ था कि "यह एक निर्विवादित सिद्धान्त है कि कोई भी व्यक्ति किसी जीवित व्यक्ति की सम्पत्ति में जिसे वह जीवित व्यक्ति के विधिक उत्तराधिकारी के रूप में या सम्बन्धी के रूप में प्राप्त करने की उम्मीद रखता है, न तो विधि के अन्तर्गत और न ही साम्या के अधीन किसी प्रकार का हित, चाहे वह समाश्रित हो या भिन्न, पाने का अधिकारी होगा।

उस व्यक्ति के जीवनकाल में कोई भी व्यक्ति उसकी सम्पत्ति में एक सम्भावना या उम्मीद से बेहतर अधिकार नहीं प्राप्त करता है।' यह सिद्धान्त लोक नीति पर आधारित प्रतीत होता है। यदि ऐसे अन्तरणों को स्वीकृति प्रदान कर दी जाए तो ऐसे लोगों की बाढ़ आ जाएगी जो सम्भावित उत्तराधिकारियों से केवल सम्भावनाओं की खरीद-फरोख्त करेंगे जिससे प्रकल्पित विवादों को बढ़ावा मिलेगा।

समाश्रित हित एक सुनिश्चित किस्म को सम्पत्ति होती है और यह अन्तरणीय है। समाश्रित हित केवल सम्भावना पर आधारित नहीं रहता है अपितु यह वर्तमान में विद्यमान अपूर्ण हित होता है। अ अपनी पत्नी पर तथा भतीजे ब को छोड़कर मर जाता है। ब' का 'अ' की सम्पत्ति में हित केवल एक सम्भावना मात्र है क्योंकि उसका हित इस तथ्य पर निर्भर है कि 'प' को समय सम्पत्ति यथास्थिति में रहे।

किन्तु यदि 'अ' अपनी सम्पत्ति का अपने जीवनकाल में ही बन्दोबस्त कर देता है जिसके अनुसार अ की मृत्यु के पश्चात् 'प' को जोवनकाल के लिए सम्पत्ति मिलेगी, तत्पश्चात् दत्तक पुत्र को यदि वह कोई पुत्र गोद लेती है, और यदि वह गोद नहीं लेती है तो भतीजे 'ब' को मिलेगी। इस स्थिति में ब' का हित समाश्रित है। यदि 'प' की मृत्यु बिना गोद लिए होती है तो यह समाश्रित हित निहित हित में परिवर्तित हो जाएगा।

किसी सकुल्य की मृत्यु पर वसीयत सम्पदा प्राप्त करने की सम्भावना- किसी सम्बन्धी के वादे पर निर्भर हित कि वह अपनी मृत्यु के समय अपनी सम्पत्ति वसीयत द्वारा अपने किसी सम्बन्धी के पक्ष में अन्तरित कर देगा सम्भावना की कोटि में आता है और यह भी अनिश्चित तथा असंभव प्रकृति का होता है। इस प्रकार के हित का अन्तरण भी इस धारा के अन्तर्गत प्रतिसिद्ध है। ऐसा करार यदि भंग होता है तो दूसरा पक्षकार प्रतिकर की माँग कर सकेगा यद्यपि सम्पत्ति अन्तरणीय नहीं होती है।

इसी प्रकार की अन्य सम्भावनाएँ– सम्भावित अधिकार तथा वसीयत सम्पदा की प्रकृति वाली अन्य सम्भावनाओं का भी अन्तरण इस खण्ड के अन्तर्गत वैध नहीं होगा, क्योंकि इसकी मात्रा इतनी अनिश्चित परिवर्तनीय तथा सीमित होती है कि यह विधि की अवधारणा से परे हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति भविष्य में सफाई का कार्य कर अर्जित आय को अन्तरित करने का प्रयास करता है जबकि उस कार्य को करने का उसे कोई अधिकार नहीं है केवल एक सम्भावना है कि वह कार्य उसे मिल जाएगा, अन्तरणीय नहीं होगा।

इसी प्रकार अगली बार मछुआरे के जाल में फंसने वाली मछलियां, प्रतिदिन कमाने वाले व्यक्ति को भावी मजदूरी सौदे से पूर्व विक्रेता का राशि में हित, भावी पट्टे से मिलने वाला किराया, लाटरी का इनाम इत्यादि ऐसे हित हैं जो अन्तरणीय नहीं किन्तु जहाँ तक मन्दिर में भविष्य में आने वाले चढ़ावे का प्रश्न है, यह विवादास्पद है।

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