अनुपस्थित अभियुक्त के मामले में साक्ष्य का रिकॉर्ड: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 335

Update: 2025-01-09 11:40 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 335 उन परिस्थितियों को संबोधित करती है जहां अभियुक्त (Accused) अनुपस्थित हो, चाहे वह फरार हो या अज्ञात हो। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त की अनुपस्थिति के कारण न्याय में देरी न हो और महत्वपूर्ण साक्ष्य (Evidence) सुरक्षित रखे जा सकें।

यह धारा न्याय प्रक्रिया को सुचारू बनाए रखने और अभियुक्त के अधिकारों के साथ संतुलन स्थापित करने के लिए बनाई गई है। इस लेख में, हम धारा 335 के प्रावधानों का सरल भाषा में विस्तृत विश्लेषण करेंगे और इसके व्यावहारिक उपयोग को समझेंगे।

धारा 335(1): फरार अभियुक्त के मामले में साक्ष्य रिकॉर्डिंग (Recording Evidence in the Absence of an Absconding Accused)

लागू होने की शर्तें (Conditions for Invocation)

धारा 335(1) का उपयोग तभी किया जा सकता है जब निम्नलिखित दो शर्तें पूरी हों:

1. फरार होने का प्रमाण (Proof of Absconding): यह प्रमाणित होना चाहिए कि अभियुक्त गिरफ्तारी से बचने के लिए जानबूझकर फरार है।

2. गिरफ्तारी की कोई संभावना नहीं (No Immediate Prospect of Arrest): अभियुक्त को शीघ्रता से गिरफ्तार करने की कोई संभावना नहीं हो।

गवाहों का बयान दर्ज करना (Recording Depositions)

अदालत अभियोजन पक्ष (Prosecution) द्वारा प्रस्तुत गवाहों की गवाही को अभियुक्त की अनुपस्थिति में दर्ज कर सकती है।

इन बयानों को भविष्य में अभियुक्त के खिलाफ उपयोग किया जा सकता है, यदि:

• गवाह की मृत्यु हो चुकी हो।

• गवाह शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ हो।

• गवाह को न्यायालय में पेश करना अत्यधिक खर्चीला, समय लेने वाला, या असुविधाजनक हो।

उदाहरण (Illustration):

यदि एक व्यक्ति वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में फरार हो जाता है और अदालत पीड़ितों के बयान रिकॉर्ड कर लेती है। बाद में जब अभियुक्त पकड़ा जाता है और एक पीड़ित की मृत्यु हो चुकी होती है, तो उस पीड़ित का पूर्व में दर्ज बयान अदालत में सबूत के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

धारा 335(2): अज्ञात अपराधी के मामले में साक्ष्य रिकॉर्डिंग (Recording Evidence When the Offender is Unknown)

उच्च न्यायालय और सत्र न्यायाधीश की भूमिका (Role of High Courts and Sessions Judges)

यदि कोई गंभीर अपराध, जैसे हत्या, हुआ है और अपराधी अज्ञात है, तो उच्च न्यायालय या सत्र न्यायाधीश प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट (Magistrate) को जांच का निर्देश दे सकते हैं। इस जांच के दौरान, गवाहों की गवाही रिकॉर्ड की जाती है।

भविष्य के अभियोग में उपयोग (Use of Depositions in Subsequent Trials)

यदि बाद में कोई व्यक्ति आरोपी (Accused) के रूप में पहचाना जाता है, तो जांच के दौरान रिकॉर्ड किए गए बयान सबूत के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं।

उदाहरण (Illustration):

यदि एक हत्या होती है और अपराधी की पहचान नहीं हो पाती है, तो मजिस्ट्रेट पड़ोसियों और अन्य गवाहों के बयान दर्ज कर सकते हैं। वर्षों बाद, नए सबूत से अपराधी का पता चलता है, लेकिन उस समय तक एक गवाह विदेश जा चुका होता है। ऐसे में उस गवाह का पूर्व में रिकॉर्ड किया गया बयान अदालत में उपयोग किया जा सकता है।

अन्य धाराओं से संबंध (Relationship with Other Sections)

धारा 329: सरकारी विशेषज्ञों की रिपोर्ट (Reports of Government Experts)

धारा 329 के अंतर्गत फोरेंसिक (Forensic) रिपोर्ट्स गवाहों के बयानों को पूरक कर सकती हैं। यदि किसी अपराध स्थल से प्राप्त फोरेंसिक साक्ष्य किसी गवाह की गवाही का समर्थन करते हैं, तो यह मामला और भी मजबूत हो जाता है।

धारा 331: हलफनामों का उपयोग (Use of Affidavits)

धारा 331 के अंतर्गत हलफनामे (Affidavits) का उपयोग तथ्य प्रस्तुत करने के लिए किया जा सकता है। यह विशेष रूप से उपयोगी है जब गवाह अनुपलब्ध हो।

धारा 334: पूर्व दोषसिद्धि का प्रमाण (Proving Previous Convictions)

यदि अभियुक्त पहले से दोषसिद्ध है, तो धारा 334 के तहत पूर्व निर्णयों (Judgments) की प्रमाणित प्रतियां प्रस्तुत की जा सकती हैं।

व्यावहारिक प्रभाव और चुनौतियां (Practical Implications and Challenges)

समय पर न्याय (Timely Justice)

धारा 335 यह सुनिश्चित करती है कि अभियुक्त की अनुपस्थिति के कारण न्याय में अनावश्यक देरी न हो।

गवाहों की सुरक्षा (Protection of Witnesses)

गवाह अक्सर अभियुक्त के डर से गवाही देने में हिचकते हैं। धारा 335 उनके बयानों को रिकॉर्ड करके उन्हें सुरक्षा प्रदान करती है।

चुनौतियां (Challenges)

1. फरार होने का प्रमाण: अभियुक्त के फरार होने को साबित करना एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है।

2. साक्ष्य संरक्षण: लंबे समय तक गवाहों के बयानों की प्रामाणिकता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

अभियुक्त के अधिकारों की सुरक्षा (Safeguards for the Accused)

धारा 335 अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा के लिए कई उपाय प्रदान करती है:

1. उचित कारण: गवाह के अनुपलब्ध होने पर ही दर्ज बयानों का उपयोग किया जा सकता है।

2. जिरह का अवसर: अभियुक्त को गिरफ्तार होने के बाद दर्ज बयानों को चुनौती देने का अधिकार है।

धारा 335 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो न्याय प्रणाली में प्रक्रियात्मक लचीलापन (Procedural Flexibility) सुनिश्चित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि अपराधियों की अनुपस्थिति के कारण न्याय में बाधा न आए।

यह धारा अभियोजन पक्ष को साक्ष्य एकत्र करने और संरक्षित करने में मदद करती है, जबकि अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा भी करती है। इस प्रकार, यह न्यायिक प्रक्रिया को अधिक कुशल और निष्पक्ष बनाती है।

Tags:    

Similar News