क्या PMLA की Section 45, CrPC की Section 438 के तहत दी गई Anticipatory Bail पर भी लागू होती है?

Directorate of Enforcement v. M. Gopal Reddy मामले में, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 24 फरवरी 2023 को निर्णयित किया, एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर विचार किया गया – क्या Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) की Section 45 में जो सख्त शर्तें (Rigorous Conditions) हैं, वे Anticipatory Bail (पूर्व-गिरफ्तारी जमानत) पर भी लागू होती हैं, जिसे CrPC (Code of Criminal Procedure) की Section 438 के तहत मांगा जाता है?
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें आरोपी को Anticipatory Bail दी गई थी, यह कहते हुए कि Section 45 की सख्त शर्तें Anticipatory Bail के मामलों में भी पूरी की जानी चाहिए। इस निर्णय ने Nikesh Tarachand Shah और Dr. V.C. Mohan जैसे पुराने मामलों में उत्पन्न भ्रम को दूर किया और यह सुनिश्चित किया कि आर्थिक अपराधों (Economic Offences) को गंभीरता से लिया जाए।
PMLA की Section 45 की व्याख्या (Scope of Section 45 of the PMLA and Its Rigour)
Section 45 एक विशेष और सख्त प्रावधान है जो सामान्य ज़मानत कानूनों से अलग है। इसके अनुसार, किसी भी आरोपी को PMLA के तहत Bail (ज़मानत) नहीं दी जा सकती जब तक कि:
(i) Public Prosecutor को ज़मानत का विरोध करने का अवसर न मिल जाए, और
(ii) Court यह सुनिश्चित न कर ले कि आरोपी प्रथम दृष्टया दोषी नहीं है और ज़मानत पर रहने के दौरान दोबारा अपराध नहीं करेगा।
इन दो शर्तों को "Twin Conditions" कहा जाता है। यह सामान्य Bail Jurisprudence (ज़मानत संबंधी सिद्धांतों) से हटकर है और यह दिखाता है कि Money Laundering जैसे गंभीर मामलों में ज़मानत कठिन होनी चाहिए।
इस फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि यह सख्त शर्तें न सिर्फ Regular Bail के लिए, बल्कि Anticipatory Bail के लिए भी लागू होती हैं। यानी, Section 438 CrPC के तहत दी गई जमानत याचिकाओं पर भी Section 45 की कसौटी लागू होगी।
पिछले फैसलों में उत्पन्न भ्रम की स्थिति (Clarification of Conflicting Precedents)
इस मामले में विवाद इसलिए पैदा हुआ क्योंकि High Court ने Nikesh Tarachand Shah v. Union of India (2018) के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें Supreme Court ने Section 45 की कुछ बातों को असंवैधानिक बताया था। लेकिन बाद में कानून में संशोधन (Amendment) किया गया और Section 45 को फिर से प्रभावी बनाया गया।
बाद में आए Dr. V.C. Mohan v. Assistant Director, Directorate of Enforcement (2022) के फैसले में Supreme Court ने स्पष्ट किया कि संशोधित Section 45 अब पूरी तरह से लागू है और उसे Anticipatory Bail के मामलों में भी मानना होगा।
इस फैसले में Supreme Court ने कहा कि High Court ने Nikesh Tarachand Shah के फैसले को गलत समझा और उसने Dr. V.C. Mohan जैसे बाद के और स्पष्ट निर्णय को नजरअंदाज़ किया। इसलिए High Court का आदेश पूरी तरह कानून के विपरीत था।
आर्थिक अपराधों की गंभीरता और ज़मानत (Seriousness of Economic Offences and Bail Jurisprudence)
Supreme Court ने दोहराया कि Money Laundering जैसे आर्थिक अपराध समाज पर गहरा असर डालते हैं और इनसे सार्वजनिक धन (Public Funds) का दुरुपयोग होता है। Court ने कहा कि इन मामलों में Bail देने से पहले अदालत को अत्यंत सतर्कता (Caution) बरतनी चाहिए।
P. Chidambaram v. Directorate of Enforcement (2019) और Y.S. Jagan Mohan Reddy v. CBI (2013) जैसे मामलों में भी Court ने कहा था कि Economic Offences के मामलों में Bail देना एक सामान्य प्रक्रिया की तरह नहीं हो सकता। इससे न्याय व्यवस्था की साख और वित्तीय प्रणाली की अखंडता (Integrity) प्रभावित हो सकती है।
इस फैसले में Supreme Court ने बताया कि High Court ने Bail को IPC के किसी साधारण अपराध की तरह माना जबकि उसे PMLA के विशेष प्रावधानों के तहत देखना चाहिए था।
जांच की प्रक्रिया और आरोपी का सहयोग (Importance of Ongoing Investigation and Cooperation)
Supreme Court ने यह भी देखा कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा था। Enforcement Directorate (ED) ने उसके और प्रमुख आरोपी के बीच संबंध के कई प्रमाण जुटाए थे, जिनमें महंगी सुविधाओं का लाभ उठाना और विदेश यात्राएं शामिल थीं।
भले ही आरोपी का नाम FIR में न हो या अन्य आरोपी बरी (Acquitted) हो चुके हों, इससे ED की ongoing investigation को रोका नहीं जा सकता। Court ने साफ कहा कि जांच प्रक्रिया चल रही है और ऐसे में आरोपी को Arrest से छूट देना गलत होगा।
PMLA कानून की विशेष प्रकृति की पुष्टि (Reaffirming the Special Nature of PMLA Offences)
Court ने दोहराया कि PMLA एक विशेष अधिनियम है जिसका उद्देश्य ऐसे अपराधों से निपटना है जिनमें अपराध से प्राप्त धन को वैध (Legitimate) दिखाने की कोशिश की जाती है।
PMLA की Section 45 एक Non-Obstante Clause है, जो CrPC के सामान्य प्रावधानों से ऊपर है। इसका साफ मतलब है कि Parliament ने Bail को इस कानून के तहत कठिन बनाना चाहा है।
Anticipatory Bail एक पूर्व-गिरफ्तारी उपाय है, जो पूरी तरह न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति (Discretion) पर आधारित है। लेकिन जब मामला Money Laundering का हो, तो यह विशेष कानून की कसौटी पर ही परखा जाएगा।
अंतिम निर्णय और निर्देश (Final Outcome and Judicial Guidance)
Supreme Court ने ED की अपील को स्वीकार करते हुए High Court द्वारा दी गई Anticipatory Bail को रद्द कर दिया। Court ने कहा कि आरोपी अगर गिरफ्तार होता है और फिर Regular Bail के लिए आवेदन करता है, तो वह कानून के अनुसार और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर तय किया जाएगा।
इस फैसले से सभी निचली अदालतों के लिए एक स्पष्ट संदेश गया है कि चाहे Bail सामान्य हो या Anticipatory, PMLA मामलों में Section 45 की Twin Conditions पूरी की जानी चाहिए।
Directorate of Enforcement v. M. Gopal Reddy का यह फैसला Bail कानून की दिशा को स्पष्ट करता है और यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक अपराधों में Bail आसानी से न मिले। Supreme Court ने यह कहा कि Section 45 की सख्त शर्तें Anticipatory Bail पर भी लागू होती हैं और उसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
यह निर्णय दिखाता है कि जब अपराध सार्वजनिक हित (Public Interest) और व्यवस्था की जड़ें हिलाने वाला हो, तो न्याय व्यवस्था को और भी कठोरता से कानून का पालन करना चाहिए। यह फैसला न केवल विधि का पालन सुनिश्चित करता है बल्कि भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों से निपटने की दिशा में न्यायपालिका की प्रतिबद्धता भी दर्शाता है।