संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत पट्टा भी संपत्ति के अंतरण का एक माध्यम है इससे पूर्व के आलेख में पट्टे की परिभाषा प्रस्तुत की गई थी तथा उसकी कालावधि के संबंध में उल्लेख किया गया था इस आलेख में संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 107 से संबंधित पट्टे करने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।
इस धारा में पट्टे की प्रक्रिया को समाविष्ट कर दिया गया है तथा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कोई भी पट्टा किस प्रकार से किया जाएगा तथा उसका रजिस्ट्रीकरण आवश्यक है या नहीं।
यह धारा उन विधियों या तरीकों का उल्लेख करती है जिनके द्वारा पट्टों को निष्पादित किया जा सकेगा। धारा का पैराग्राफ एक अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है। पट्टे के मामले में रजिस्ट्रीकरण की अनिवार्यता हस्तान्तरित हित के मूल्य पर निर्भर नहीं करता है, जैसा कि विक्रय या बन्धक के मामलों में होता है, अपितु यह अन्तरण भी शर्तों पर निर्भर करता है।
चौक पट्टा के मामलों में हित का मूल्य निर्धारित करना कठिन होता है जिसे रजिस्ट्रीकरण के प्रयोजन के लिए युक्तियुक्त आँकड़ा के रूप में प्रयोग में लाया जा सके। ऐसा होने के कारण स्थावर सम्पत्ति का पट्टा, उसका मूल्य कुछ भी क्यों हो, यदि एक वर्ष या इससे कम की अवधि के लिए सृजित किया जा रहा है तो यह संव्यवहार अरजिस्ट्रीकृत आश्वासन पर पूर्ण किया जा सकेगा यदि इसे कब्जे के परिदान के साथ प्रभावी बनाया गया हो। यदि यह संव्यवहार पट्टा का संव्यवहार न होकर किसी अन्य प्रकार का संव्यवहार होता तो रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होता है।
क्षेत्र विस्तार धारा 107 चार पैराग्राफ में विभक्त है। प्रथम तीन पैराग्राफ विशिष्ट सिद्धान्त प्रतिपादित करते हैं जबकि चौथा पैराग्राफ एक परन्तुक है जो राज्य सरकार को विशिष्ट अधिसूचना जारी करने के लिए प्राधिकृत करता है।
पैराग्राफ एक उन पट्टों के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है जिनमें रजिस्ट्रीकरण आवश्यक है। जिनमें रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होगा वे पट्टे हैं, स्थावर सम्पत्ति का वर्षानुवर्षी पट्टा, या एक वर्ष से अधिक को किसी अवधि का पट्टा या वार्षिक किराया (भाटक) आरक्षित करने वाला पट्टा ऐसे मामलों में यदि रजिस्ट्रीकरण की प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी है तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि एक वर्ष से अधिक की अवधि का पट्टा सृजित नहीं किया गया है।
ऐसा दस्तावेज, यदि रजिस्ट्रीकृत नहीं है तो इसे धारा 17 सपठित धारा 29 (1) रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 के अन्तर्गत साक्ष्य के रूप में मान्यता नहीं प्राप्त होगी, चाहे पट्टा की अवधि साबित करने के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए हो। पैराग्राफ दो, उन पट्टों के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करता है जो मौखिक करार द्वारा मात्र सम्पत्ति का कब्जा हस्तगत कर अस्तित्व में लाए जा सकते हैं।
इस प्रकार पैराग्राफ दो पैराग्राफ एक का अपवाद प्रस्तुत करता है। पैराग्राफ दो के अनुसार ऐसे सभी पट्टे सिवाय पैराग्राफ एक में वर्णित प्रयोजन के लिए सृजित पट्टों के, या तो रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज द्वारा या मौखिक करार द्वारा सृजित किए जा सकेंगे। मौखिक करार की दशा में सम्पत्ति के कब्जे का परिदान होना आवश्यक होगा। कब्जे का परिदान भौतिक या विवक्षित हो सकेगा।
उदाहरणार्थ यदि पट्टाग्रहीता अनुज्ञाधारी के रूप में सम्पत्ति को धारण कर रहा था तो वह पट्टेदार के रूप में कब्जे की निरन्तरता बनाये रखे। अनुज्ञाधारी जो अब पट्टेदार है धारा 53 क के अन्तर्गत संरक्षण पाने का अधिकारी होगा।"
पैराग्राफ तीन सुस्पष्ट करता है कि यदि स्थावर/ अचल सम्पत्ति का पट्टा सृष्ट किया जा रहा है और इसे रजिस्ट्रीकृत विलेख द्वारा पूर्ण किया जा रहा है तो वह विलेख अथवा यदि एक से अधिक विलेख हैं तो उनमें से प्रत्येक विलेख का पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार द्वारा निष्पादन होना आवश्यक होगा।
यदि किसी सम्पत्ति का पट्टा अस्तित्व में है तो उसी सम्पत्ति का दूसरा पट्टा उसी दौरान मौखिक परिवर्तन या अन्य रूप में अस्तित्व में नहीं आ सकता है।
एक वर्ष से अधिक की अवधि का पट्टा सृजित करने के लिए मौखिक करार के अन्तर्गत यदि सम्पत्ति का कब्जा प्रदान कर दिया गया हो तो पट्टा, पट्टे की अवधि के प्रथम वर्ष के लिए वैध होगा और यदि पट्टेदार इसके पश्चात् भी कब्जा बनाये रखता है तो पट्टाकर्ता की सहमति से वह अतिधारण द्वारा, धारा 116 के अन्तर्गत पट्टादार होगा।
यदि यह साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है कि किराये का भुगतान हो चुका है अतः सृजित पट्टेदारी, आजीवन पट्टेदारी है तो आजीवन पट्टेदारों के सृजन के लिए यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है। इस प्रयोजन हेतु इससे कुछ अधिक साबित करना होगा।
एक वर्ष के लिए किसी सम्पत्ति का निश्चित वार्षिक किराये पर जो अग्रिम रूप में देय हो पट्टे पर दिया जाना वर्षानुवर्षी पट्टे के तुल्य होगा तथा पट्टा विलेख का रजिस्ट्रीकरण आवश्यक होगा। अन्यथा इसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकेगा।
एक विद्यमान रजिस्ट्रीकृत पट्टा के रेन्ट में यदि परिवर्तन किया जा रहा है तो उसका रजिस्ट्रेशन आवश्यक होगा। कोई भी ऐसा प्रयास जो रजिस्ट्रीकृत पट्टा विलेख में परिवर्तन करने के लिए आशयित है, ऐसा प्रयास केवल एक अन्य रजिस्ट्रीकृत विलेख द्वारा ही सम्भव हो पायेगा एक स्थापर सम्पत्ति का पट्टा वर्षानुवर्ष के लिए या वार्षिक किराया आरक्षित करने के लिए, केवल रजिस्ट्रीकृत विलेख द्वारा ही हो सकेगा। किसी भी राज्य के रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियम ने इस प्रावधान के प्रभाव को नष्ट नहीं किया है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि सृजन की दृष्टि से पट्टों को दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है जिन्हें क्रमश: धारा 107 के प्रथम एवं द्वितीय पैराग्राफ में वर्णित किया गया है। यह वर्गीकरण इस तथ्य पर आधारित है कि पट्टे के सृजन के लिए रजिस्ट्रीकरण आवश्यक है या नहीं।
कृषि प्रयोजनार्थ पट्टा-
श्याम लाल बनाम दीप दास चेलाराम के वाद में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने अभिनिर्णीत किया है कि धारा 107 में उपबन्धित प्रावधान कृषि प्रयोजनार्थ पट्टों के सम्बन्ध में प्रवर्तित नहीं होता है। अतः यदि कृषि प्रयोजनार्थ पट्टे का सृजन किया गया है तथा उसका रजिस्ट्रीकरण नहीं किया गया है, तो भी यह दस्तावेज साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा क्योंकि कृषि प्रयोजनार्थं पट्टों की स्थिति सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम में वर्णित पट्टों से पृथक होती है।
पर उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को रद्द कर और यह निर्णय दिया है कि धारा 107 के उपबन्ध अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित सभी पट्टों पर लागू होगा जिसमें कृषि प्रयोजनार्थ पट्टे भी सम्मिलित हैं। जब तक कि राज्य सरकार धारा 117 के अन्तर्गत अन्यथा आदेशित न करे।।
पैराग्राफ एक – एक स्थावर सम्पत्ति का पट्टा केवल एक रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज द्वारा ही सृजित किया जा सकेगा, यदि यह पट्टा :-
(क) वर्षानुवर्ष के लिए है या
(ख) एक वर्ष से अधिक को किसी अवधि के लिए है या
(ग) वार्षिक किराया आरक्षित करने के लिए है।
पैराग्राफ एक के अन्तर्गत ही स्थायी प्रकृति के पट्टे भी आयेंगे। अतः ऐसे पट्टे के सृजन के लिए रजिस्ट्रीकृत विलेख की आवश्यकता होगी। पट्टेदार के जीवनकाल के लिए सृजित पट्टा एक वर्ष से अधिक अवधि का पट्टा होता है, अतः इसे रजिस्ट्रीकृत होना चाहिए।
राजेन्द्र प्रताप सिंह बनाम रामेश्वर प्रसाद के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि एक वर्ष से अधिक की अवधि का पट्टा अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रीकृत होना चाहिए। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि पट्टाकर्ता तथा पट्टेदार दोनों द्वारा लिखित पर हस्ताक्षर हो। इसकी वैधता के लिए केवल यह आवश्यक है कि दस्तावेज का संयुक्त रूप में निष्पादन हो। जीवनकालिक पट्टे स्थायी प्रकृति के पट्टों से भिन्न होते हैं।
प्रमुख अन्तर इस प्रकार हैं-
(क) साधारणतया स्थायी पट्टों में कोई अवधि निर्धारित नहीं होती है।
(ख) पट्टेदार एवं पट्टाकर्ता को मृत्यु के पश्चात् उनके विधिक उत्तराधिकारी, अधिकारों, जिनका उल्लेख पट्टा विलेख में होता है, सक्षम होते हैं।
साधारणतया स्थायी पट्टेदार क्रेता न होते हुए भी क्रेता के समस्त अधिकारों का प्रयोग करने के लिए सक्षम होता है क्योंकि विक्रय की भाँति स्थायी पट्टे के मामले में भी कालावधि का कोई अस्तित्व नहीं होता है।
अरजिस्ट्रीकरण का प्रभाव जैसा कि धारा 107 प्रथम पैरा में उल्लिखित है, स्थावर सम्पत्ति का वर्षानुवर्षी या एक वर्ष से अधिक किसी अवधि का या वार्षिक किराया आरक्षित करने वाला पट्टा केवल रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा किया जा सकेगा, साथ ही धारा 106 (1) उपवन्धित करती है कि तत्प्रतिकूल संविदा या स्थानीय विधि या प्रथा न होते कृषि या विनिर्माण के प्रयोजनों के लिए स्थावर सम्पत्ति का पट्टा वर्षानुवर्षी प्रकृति का पट्टा समझा जाएगा।
अतः यदि पट्टा अनिवार्यतः रजिस्ट्रीकरणीय है, परन्तु रजिस्ट्रीकरण नहीं किया गया है तो ऐसा पट्टा अवैध होगा। एक अवैध पट्टे का नवीकरण नहीं हो सकेगा। ऐसा पट्टा केवल इच्छाजनित प्रकृति का पट्टा होगा।
यदि पट्टा वैधत स्पष्ट किया गया था और पट्टा विलेख में नवीकरण प्रसंविदा का उल्लेख है तो ऐसी प्रसंविदा तभी प्रभावी होगी जय नवीकृत पट्टा की भी रजिस्ट्री हो। नवीकृत पट्टा बिना रजिस्ट्री के वैध नहीं होगा। मूल पट्टे को रजिस्ट्री नवीकृत पट्टे के लिए प्रभावी नहीं होगी। नवीकृत पट्टे की भी रजिस्ट्री उसी प्रकार होनी चाहिए जिस प्रकार मूल पट्टे की हुई थी।
एक पट्टेदार को जो अरजिस्ट्रीकृत पट्टे के अध्यधीन सम्पति धारण करता है जबकि पट्टे का रजिस्ट्रीकरण होना अनिवार्य था उसे अतिचारी नहीं माना जा सकता क्योंकि सम्पत्ति का पट्टे के रूप में कब्जा उसे सम्पत्ति स्वामी की सहमति से हो प्राप्त हुआ होगा। यदि तथाकथित पट्टेदार, संपत्ति स्वामी की सहमति के बिना सम्पत्ति पर प्रवेश करता है उसका कब्जा ले लेता है तो यह अतिचारी होगा।
एक वैध पट्टे का संव्यवहार पट्टाकर्ता तथा पट्टेदार की इच्छा या मंशा से अस्तित्व में आता है। इसको अनुपस्थिति में कब्जा धारक भारतीय दण्ड संहिता की धारा के अन्तर्गत अतिचारी होगा। सहमति की उपस्थिति तथा संव्यवहार प्रक्रिया का अननुपालन, संव्यवहार को इच्छाजनित पट्टा का स्थान प्रदान करता है तथा पट्टा धारक विशिष्ट अधिनियम की धारा 27 क के अन्तर्गत विशिष्ट अनुपालन हेतु एवं सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 53 क के अन्तर्गत भागिक पालन हेतु वाद संस्थित करने में समर्थ होगा।
परन्तु वर्तमान में रजिस्ट्रेशन एवं अन्य सम्बन्धित विधियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2001 (2001 का 48) तथा सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 2002 (2003 का 3) इस स्थिति पर प्रश्नचिह्न लगाता हुआ प्रतीत होता है। इस स्थिति का यथाशीघ्र स्पष्टीकरण होना आवश्यक है।
अरजिस्ट्रीकृत पट्टा विलेख को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगी और न ही प्रमाण के रूप में द्वितीयक या मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकेगा, परन्तु कब्जा की प्रकृति दर्शाने हेतु इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकेगा। रेन्ट को मात्रा या रकम भी साबित करने के लिये यह स्वीकार्य है।
इस प्रावधान में यह अपेक्षित है कि यदि पट्टा एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए निष्पादित होता है तो उसका पंजीकृत होना आवश्यक होगा। यदि यह अभिकथित किया जाता है कि पट्टा पंजीकृत नहीं था किन्तु यदि इस आशय का प्रमाण दिया जाता है कि पट्टा 30 वर्ष से अधिक अवधि का है, तो यह प्रकल्पित किया जाएगा कि पट्टा साक्ष्य अधिनियम की धारा 90 के अध्यधीन निष्पादित एवं प्रमाणित है।
यदि दस्तावेज को साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य भी समझा जाए तो भी दस्तावेज वादी के पूर्वजों के कब्जा एवं कब्जे की निरन्तरता के साक्ष्य के रूप में किराये के भुगतान को साबित करने के लिए पर्याप्त है। पट्टाग्रहीता का सम्पत्ति पर दावा स्वीकार्य होगा
पट्टा करार का भागिक पालन रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को समाप्त नहीं करता भागिक पालन के सिद्धान्त को केवल वहाँ पर उपयोग में लाया जा सकेगा जय विशिष्ट अनुपालन हेतु वाद संस्थित किया गया हो, परन्तु भागिक पालन का सिद्धान्त इस धारा में वर्णित प्रावधान या रजिस्ट्रेशन अधिनियम की धारा (1) में वर्णित सिद्धान्त पर अभिभावी नहीं होगा।
एक वर्ष या एक वर्ष से अधिक का पट्टा-
एक मकान का पट्टा यदि निश्चित एक वर्ष की अवधि मात्र के लिए तो ऐसे पट्टे को मौखिक साक्ष्य तथा पट्टे के परिदान के द्वारा साबित किया जा सकेगा। एक वर्ष को निश्चित अवधि का पट्टा तथा पट्टेदार द्वारा यह अभिव्यक्ति कि वह यदि पट्टाकर्ता सहमत हो तो उसी रेन्ट पर सम्पत्ति को एक वर्ष की अवधि से अधिक की अवधि का पट्टा धारण करने को तैयार है, तो ऐसा पट्टा एक वर्ष से अधिक की अवधि का पट्टा नहीं होगा।
इसी प्रकार एक ऐसा पट्टा जिसके तहत पट्टाकर्ता अपनी सम्पत्ति एक वर्ष की अवधि के लिए पट्टे पर देने के लिए सहमति देता है, साथ ही साथ इस बात पर को सहमत होता है कि वह न तो किराया बढ़ायेगा और न ही आने वाले दो वर्षों तक सम्पत्ति को खाली नहीं करायेगा यदि पट्टेदार इसके लिए सहमत हो कि वह परिसर खाली नहीं करेंगा उन दो वर्षों में, तो ऐसा पट्टा रजिस्ट्रीकरणीय नहीं होगा यह निष्कर्ष इस आधार पर निकाला गया है कि यदि दस्तावेज में एक वर्ष की अवधि विशिष्टतः उल्लिखित है, तो दस्तावेज में उल्लिखित अन्य शब्द जो पट्टे की निरन्तरता को दर्शाते हैं, के सन्दर्भ में यह माना जाएगा कि वे पक्षकारों की भावी सहमति से सम्बद्ध है, तथा किसी भी रूप में निर्धारित वास्तविक शर्तों को प्रभावित नहीं करेंगे।
दिल्ली मोटर कं० बनाम बासुरेकर, 5 के वाद में एक बिल्डिंग किराये पर कारोबार चलाने के उद्देश्य से एक अनिश्चितकाल के लिए दी गयी। यह तय हुआ था कि किराये का निर्धारण पन्द्रह महीने के पश्चात् अर्जित लाभ के प्रतिशत के आधार पर निर्धारित होगा। इस प्रकरण में पट्टे की अवधि एक वर्ष से अधिक की है। यह अनिवार्यतः रजिस्ट्रीकरणीय है तथा धारा 106 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम को आकर्षित नहीं करती है।
एक स्थावर सम्पत्ति पट्टेदार के जीवनकाल के लिये पट्टा, एक वर्ष से अधिक की अवधि का पट्टा होगा और यह अनिवार्यतः रजिस्ट्रीकरणीय है। यद्यपि बी० पी० सिंह बनाम सोमनाथ के वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अभिनिर्णीत किया है कि पट्टेदार के जीवनकाल के लिए सृजित किया गया पट्टे का रजिस्ट्री करना आवश्यक नहीं है। इसी प्रकार एक सम्बत् वर्ष के लिए सृजित पट्टा के लिए रजिस्ट्रीकरण आवश्यक नहीं है।
कई दस्तावेजों में वर्णित पट्टा यदि एक पट्टा का सृजन एक से अधिक दस्तावेजों द्वारा किया जाता है, तो सम्पूर्ण पत्राचार अथवा कम से कम वे पत्र जिनमें प्रस्ताव एवं स्वीकृति का उल्लेख है का रजिस्ट्रीकरण होना आवश्यक है। इसी प्रकार उस दस्तावेज का भी रजिस्ट्री होना भी आवश्यक है जिसके द्वारा विद्यमान रजिस्ट्रीकृत पट्टे के रेंट में परिवर्तन किया गया है। यदि मूल पट्टा विलेख जिसमें नवीकरण हेतु खण्ड उपबन्धित किया गया था, रजिस्ट्रीकृत था, तो नवीकृत पट्टा भी केवल रजिस्ट्रीकृत पट्टा विलेख द्वारा सृजित होगा।
तृतीय पैरा पट्टाकर्ता तथा पट्टेदार द्वारा निष्पादन-
तृतीय पैराग्राफ सन् 1929 में संशोधन के फलस्वरूप इस धारा में समाविष्ट किया गया है। यह पैरा यह उपबन्धित करता है कि जहाँ स्थावर सम्पत्ति का पट्टा रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा किया गया है वहाँ ऐसा लिखत या जहाँ कि एक से अधिक लिखत हैं, यहाँ हर एक ऐसी लिखत पट्टाकर्ता और पट्टेदार दोनों द्वारा निष्पादित की जाएगी चाहे वह पट्टा विलेख हो या कथूलियत ऐसा दस्तावेज, स्वयं निष्पादक के विरुद्ध ही साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा तथा सम्पत्ति स्वामी को प्राधिकृत करेगा कि वह सम्पत्ति धारक को सम्पत्ति से बेदखल कर सके।
प्रथम पैराग्राफ के अन्तर्गत आने वाले पट्टे, जो मौखिक करार द्वारा सृजित किए गये हैं क्या द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत वैध पट्टे के रूप में स्वीकृत किए जा सकते हैं? - प्रथम पैराग्राफ में प्रयुक्त "केवल" शब्द यह सुस्पष्ट करता है इसके क्षेत्र विस्तार के अन्तर्गत आने वाले पट्टे रजिस्ट्रीकृत विलेख से भिन्न किसी अन्य रूप में सृजित नहीं किए जा सकते हैं।
पर अन्य प्रकार के पट्टे इसी धारा के पैराग्राफ दो में वर्णित प्रकार से सृजित किए जा सकेंगे, अर्थात् मौखिक करार एवं सम्पत्ति के परिदान द्वारा ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या प्रथम पैराग्राफ के अन्तर्गत आने वाले पट्टे को किन्तु जो मौखिक करार एवं पट्टे के परिदान द्वारा सृजित किया गया है, द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत वैध पट्टे के रूप में मान्यता दी जाएगी?
इस सम्बन्ध में न्यायालय का मत है कि ऐसे पट्टे को द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत वैध पट्टे के रूप में मान्यता दी जाएगी। अतः एक वर्ष से अधिक की अवधि का पट्टा जिसका सृजन मौखिक करार तथा कब्जा के परिदान द्वारा किया गया है, एक वर्ष की अवधि के लिए वैध पट्टा होगा।
यह भी अभिनिर्णीत हुआ है कि यदि किसी ऐसे प्रकरण में प्रथम वर्ष के समापन के अवसर पर पट्टाकर्ता, पट्टादार से रेन्ट स्वीकार करता है तथा उसे कब्जा जारी रखने की सहमति देता है तो पट्टा वर्षानुवर्षं या मासानुमास, पट्टा के प्रयोजन के अनुरूप नवीकृत हो जाएगा
द्वितीय पैराग्राफ के अन्तर्गत आने वाले पट्टों से सम्बन्धित है। यह राज्य सरकार को प्राधिकृत करता है कि वह शासकीय राजपत्र में अभिसूचना द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट कर सकेगी कि वर्षानुवर्षी वर्ष से अधिक अवधि के या वार्षिक भाटक आरक्षित करने वाले पट्टों को छोड़कर स्थावर सम्पत्ति के पट्टे या ऐसे पट्टों का कोई भाग अरिजस्ट्रिीकृत लिखत द्वारा या कब्जे के परिदान द्वारा बिना मौखिक करार द्वारा किया जा सकेगा।
अतः यदि सरकार की भूमि का पट्टा सृजित किया जाता है तथा इस आशय को अधिसूचना जारी की गयी है कि ऐसा पट्टा धारा 107 के प्रावधान से प्रभावी नहीं होगा तो उस दस्तावेज का रजिस्ट्रीकरण होना आवश्यक नहीं होगा जैसा कि धारा 90 रजिस्ट्रीकरण अधिनियम में उपबन्धित है।
जब कभी भी एक स्थावर सम्पत्ति के सम्बन्ध में सरकार के साथ कोई करार किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 299 के अन्तर्गत कतिपय आवश्यकताओं को पूर्ण करना होता है।
इस प्रयोजन हेतु निम्नलिखित आवश्यकताओं का पूर्ण होना आवश्यक होगा :
(1) संविदा राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा निष्पादित होनी चाहिए।
(2) संविदा एक ऐसे व्यक्ति द्वारा राष्ट्रपति या राज्यपाल के एवज जैसी भी स्थिति हो में निष्पादित होनी चाहिए तथा
(3) संविदा से यह सुस्पष्ट हो कि वह राष्ट्रपति या राज्यपाल जैसी भी स्थिति हो, के एवज में निष्पादित की गयी है।
एक ऐसी संविदा या करार, जो उपरोक्त तथ्यों के विरोध में की गयी हो शून्य होगी। राज्य बनाम फूल चन्द' के वाद में एक मकान उत्तर प्रदेश सरकार के पक्ष में पढ़े के रूप में 5 वर्ष की कालावधि हेतु अन्तरित किया गया। अन्तरण विलेख पर सम्पत्ति स्वामी ने अपने हस्ताक्षर किए किन्तु राज्यपाल की ओर से किसी ने हस्ताक्षर नहीं किए।
अतः इस संव्यवहार के सृजन में उपरोक्त आवश्यकताओं की आपूर्ति नहीं की गयी। पट्टे की अवधि के समापन के पश्चात् पट्टाकर्ता को कुछ वर्षों का किराया दिया गया। इसके पश्चात् पट्टाकर्ता ने पट्टाग्रहीता को बेदखली हेतु वाद संस्थित किया। उसका अभिकथन था कि चूँकि दस्तावेज रजिस्ट्रीकृत नहीं था, अतः वह खाली करने की नोटिस देने के दायित्वाधीन नहीं था।
उसका यह भी अभिकथन था कि सरकार का कब्जा केवल एक अनुज्ञापी का कब्जा है। सरकार का यह अभिकथन था कि उसे सम्पत्ति का कब्जा एक शून्य पट्टा के अध्यधीन प्राप्त हुआ था और सरकार धारा 106 के अन्तर्गत प्रतिमास के आधार पर किरायेदार है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अभिनिर्णीत किया कि सरकार का कब्जा, एक अनुज्ञापी का कब्जा था अतः वेदखली हेतु नोटिस देने की आवश्यकता नहीं थी।
एम० मोहम्मद बनाम भारत संघ के वाद में बम्बई उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्णीत किया है कि यदि सरकार पट्टाकर्ता की हैसियत में है तो भी संविधान के अनुच्छेद 299 में वर्णित औपचारिकताओं का पूर्ण किया जाना आवश्यक होगा।
ओम प्रकाश एवं अन्य एक मकान के मालिक थे। उन्होंने उक्त मकान को मशीनरी (प्रा० ) लि० को 3 वर्ष की कालावधि के लिए किराए पर दिया था। यह कालावधि पुनः तीन वर्ष की अवधि के लिए विस्तारित की गयी। भवन स्वामी ने किराएदार को सूचित किया कि पट्टे को कालावधि के समापन पर सम्पत्ति का कब्जा भवन स्वामी द्वारा निर्देशित व्यक्ति को सौंप दिया जाए।
किरायेदार ने मकान मालिक के निर्देशानुसार सम्पत्ति का कब्जा हस्तगत नहीं किया। अतः सम्पत्ति का कब्जा एवं मध्यवर्ती लाभ प्राप्त करने हेतु मकान मालिक ने वाद संस्थित किया। किरायेदार का तर्क था कि पट्टे की अवधि के समापन के उपरान्त दोनों पक्षकारों के बीच एक करार हुआ था जिसमें यह तय हुआ था कि किराएदार मकान में तीन साल तक और रह सकेगा पर उसे पहले से अधिक किराया देना होगा किराये की अन्य शर्ते पूर्ववत ही रहेंगी।
किरायेदार का यह भी अभिकथन था कि वह सदैव वद्धिंत किराया देने का इच्छुक था एवं तैयार था, पर मकान मालिक कभी किराया लेने ही नहीं आया किरायेदार का यह भी अभिकधन था कि पट्टेदारी को समाप्त करने हेतु उसे कभी भी समुचित नोटिस नहीं दी गयी थी।
इन तथ्यों के आधार पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय द्वारा पूनम चन्द बनाम मोती लाल', के वाद में प्रकट किए गये सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए सुस्पष्ट किया कि पट्टा के कालावधि के समापन के फलस्वरूप समाप्त होने की दशा में सांविधिक नोटिस की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
यदि पट्टागृहीता स्वयं पट्टे की अवधि स्वीकार करता है तथा यह भी स्वीकार करता है कि पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है तो ऐसी स्थिति में नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। निर्धारित अवधि का पट्टा अवधि के समापन के साथ ही समाप्त कोई विशेष भूमिका नहीं होती है