संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 108 एक वृहद धारा है तथा इसमे अनेक प्रावधान पट्टाकर्ता और पट्टेदार के दायित्व और अधिकारों के संबंध में प्रस्तुत किये गए है। जैसा कि इससे पूर्व के आलेख में पट्टाकर्ता के दायित्वों के संबंध में उल्लेख किया गया था इस आलेख में पट्टेदार के दायित्व का वर्णन किया जा रहा है।
दोनों के दायित्व ही एक दूसरे के विरुद्ध एक दूसरे के अधिकार भी है। यह एक प्रकार से सहवर्ती है।
पट्टेदार का दायित्व-
तथ्य प्रकट करने का दायित्व – (धारा 108 (ट)) :-
यह धारा उपबन्धित करती है पट्टेदार उस हित की, जिसे वह लेने वाला है, प्रकृति या विस्तार के में ऐसा तथ्य, जिसे पट्टेदार जानता है और पट्टाकर्ता नहीं जानता और जिससे ऐसे हित के मूल्य में तात्विक वृद्धि होती है, पट्टाकर्ता को प्रकट करने के लिए आबद्ध है।
पट्टेदार का यह कर्तव्य होता है कि वह पट्टे पर लो जाने वाली सम्पत्ति की प्रकृति उसके विस्तार एवं ऐसा समस्त तथ्यों को पट्टाकर्ता के समक्ष प्रकट करने के लिए बाध्य है क्योंकि ये तत्व प्रस्तावित हित के मूल्य में तात्विक वृद्धि करते हैं तथा इनके विषय में पट्टाकर्ता को ज्ञान नहीं रहता है और पट्टेदार अच्छी प्रकार जानता है।
पट्टेदार का यह दायित्व इसी अधिनियम की धारा 155 (क) में वर्णित अप्रकटीकरण का कृत्य कपटपूर्ण आचरण घोषित है तथा इस कारण से संविदा समाप्त की जा सकती है, जबकि इस उपबन्ध के अन्तर्गत अप्रकटीकरण की स्थिति में पट्टाकर्ता क्षतिपूर्ति के लिए वाद संस्थित कर सकेगा।
उदाहरण के लिए यदि पट्टेदार पट्टाकर्ता से भूमि का एक टुकड़ा पट्टे पर लेता है यह जानते हुए कि उस भूमि की सतह के नीचे खनिज विद्यमान है। इस तथ्य का ज्ञान पट्टाकर्ता को नहीं है। इस संव्यवहार में पट्टेदार अप्रकटीकरण का दोषी होगा तथा पट्टाकर्ता वाद संस्थित करने का हकदार होगा।
किराया या भाटक का भुगतान (धारा 108 (ठ):-
पट्टेदार उस तिथि से किराये का भुगतान करने के दायित्वाधीन होगा जिस तिथि को उसने सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त किया था न कि उस तिथि से जिस तिथि को पट्टाकर्ता ने पट्टा विलेख पर हस्ताक्षर किया था। पट्टेदार, पट्टा सम्पत्ति के उस अंश का किराया प्रदान करने के दायित्वाधीन नहीं होगा जिसका कब्जा उसे प्राप्त नहीं हुआ है।
यदि एकमुश्त किराया सम्पूर्ण सम्पत्ति के लिए निर्धारित किया गया था तथा पट्टाकर्ता, पट्टेदार को पट्टा सम्पत्ति के एक अंश से बेदखल कर देता है वह तब तक किराया को मांग करने के लिए प्राधिकृत नहीं होगा जब तक कि वह किरायेदार को सम्पत्ति के उस भाग का कब्जा नहीं प्रदान कर देता है जिससे उसे बेदखल किया गया था।
यह तथ्य कि किरायेदार को जिस भाग से बेदखल किया गया था, वह केवल एक तुच्छ भाग महत्व का नहीं है। पट्टेदार को उस सम्पूर्ण सम्पत्ति का कब्जा मिलना चाहिए जिसके लिए करार हुआ था तथा जिसके लिये वह किराया अदा करने के दायित्वाधीन था। यदि पट्टा सम्पत्ति साइक्लोन (चक्रवात) या किसी अन्य नैसर्गिक कारण से नष्ट हो जाती है तो इस आधार पर पट्टेदार किराया कम कराने का अधिकारी नहीं होगा।
यदि पट्टेदार पट्टा की अवशिष्ट कालावधि का समर्पण करने के लिए पट्टाकर्ता को नोटिस देता है पर पट्टाकर्ता ऐसी नोटिस लेने के लिए मनाकर देता है एवं समर्पण को भो अस्वीकार कर देता है, तो यह नहीं कहा जा सकेगा कि पट्टेदार का किराया का भुगतान करने का दायित्व समाप्त हो गया है।
यह खण्ड पट्टेदार पर यह बाध्यकारी करता है कि वह नियम समय एवं स्थान पर किराये का भुगतान करे या भुगतान की निविदा करें। इसमें यह अपेक्षा नहीं की गयी कि पट्टाकतां किराये की मांग करें।
यदि पट्टा हेतु किए गये संव्यवहार में पट्टाकतों ने यदि समनुदेशन नहीं किया है तथा पट्टेदार अग्रिम रूप में किराए का भुगतान करता है जिसे पट्टाकर्ता स्वीकार कर लेता है, तो वह अग्रिम भुगतान की रकम को किराये के भुगतान के रूप में उस समय स्वीकार करेगा जब किराया देय होगा।
एक किरायेदार युक्तियुक्त किराये के निर्धारण की माँग नहीं कर सकेगा जबकि किरायादारी इस अधिनियम के अन्तर्गत सृजित की गयी हो। पट्टेदार किराये की मात्रा में कमी की माँग नहीं कर सकेगा यदि पट्टेदार पट्टा सम्पत्ति के किसी भाग से बेदखल नहीं होता। भले ही मरम्मत न होने के कारण सम्पति का एक भाग पट्टेदार के लिए अनुपयोगी हो गया हो।
पर यदि पट्टा सम्पत्ति का एक भाग आप्लावन के कारण अनुपयोगी हो जाता है तो पट्टेदार किराया में कमी की माँग कर सकेगा भले ही अधिनियम में इस आशय के प्रावधान न हो यदि पट्टाकर्ता पट्टा सम्पत्ति का असली स्वामी नहीं है और इस कारण पट्टेदार पट्टा सम्पति से बेदखल कर दिया जाता है असली स्वामी द्वारा, तो ऐसी स्थिति से पट्टेदार पट्टाकर्ता को रेन्ट का भुगतान करने के दायित्वाधीन नहीं होगा।
यह सिद्धान्त पट्टेदार पट्टाकर्ता एवं उपपट्टाकर्ता के बीच लागू नहीं होगा। यदि मूल पट्टाकर्ता ने मूलपट्टेदार के विरुद्ध बेदखली हेतु डिक्री प्राप्त कर लिया है तो भी उपपट्टेदार मूल पट्टेदार पट्टाकर्ता को किराये का भुगतान करने के दायित्वाधीन होगा जब तक कि वह स्वयं (उपपट्टेदार) अपने पट्टाकर्ता के विरुद्ध पारित डिक्री के उपरान्त सम्पत्ति को धारण किए रहता है।
पट्टेदार द्वारा मरम्मत : (धारा 108 (ड):-
यह उपबन्ध पट्टेदार पर महत्वपूर्ण दायित्व अधिरोपत करता है। इसके अनुसार पट्टेदार का यह कर्तव्य है कि वह पट्टा सम्पत्ति में युक्तियुक्त घिसाई या अप्रतिरोध बल द्वारा हुए परिवर्तनों के सिवाय सम्पत्ति को वैसी ही अच्छी हालत में जैसी में पट्ट समय थी जब उस पर उसका कब्जा कराया गया था, रखने के लिए और पट्टे के पर्यवसान पर प्रत्यावर्तन करने के लिए और पट्टाकर्ता तथा उसके अभिकर्ता को पट्टे की अवधि के दौरान सब युक्तियुक्त समयों पर सम्पत्ति में प्रवेश करने और उसकी हालत में किसी खराबी को सूचना देने पर सूचना वहाँ छोड़ने की अनुज्ञा देने के लिए आबद्ध है तथा जबकि ऐसी खराबी पट्टेदार या उसके सेवकों या अभिकर्ताओं के किसी कार्य या व्यतिक्रम द्वारा हुई हो तब वह ऐसी सूचना के दिए जाने पर छोड़े जाने से तीन मास के अन्दर उसे ठीक कराने के लिए आबद्ध है।
इस उपबन्ध के अन्तर्गत पट्टेदार का यह कर्तव्य है कि वह पट्टाधृति को अच्छी संस्थिति में रखे तथा पट्टे के पर्यवसान के उपरान्त सम्पत्ति उसी स्थिति में पट्टाकर्ता को लौटाया जिस स्थिति में सम्पत्ति उसे सौंपी गयी थी, पर सम्पत्ति को सामान्य रूप में होने वाली क्षतियों, जैसे टूट-फूट या अवरोधी शक्ति से होने वाली टूट-फूट की मरम्मत अपेक्षित नहीं है। पट्टेदार का कर्तव्य पट्टा में सम्मिलित सम्पूर्ण सम्पत्ति पर विस्तारित होगा।
मरम्मत से यह अभिप्राय नहीं है कि पट्टेदार एक ऐसे भवन की मरम्मत कराये जिसकी वर्षों से मरम्मत नहीं हुई थी, केवल इसलिए कि उसने उक्त भवन को पट्टे पर लिया है। उसका दायित्व केवल यह होगा कि वह उस सम्पत्ति को उसी स्थिति में पट्टाकर्ता को लौटाये जिस स्थिति में सम्पत्ति उसे प्राप्त हुई थी। उससे अच्छी स्थिति में सम्पत्ति लौटाने के दायित्वाधीन पट्टेदार नहीं होता है।
अतः यदि एक जीर्णशीर्ण भवन पट्टे पर लिया गया है तो पट्टेदार का यह कर्तव्य नहीं होगा कि भवन को वापस लौटाते समय वह उसका नव निर्माण कराये यदि पट्टेदार ने पट्टा सम्पत्ति पर कोई कार्य यथा दरवाजे पर जालियाँ अन्य डेकोरेशन के कार्य कराया है, जो पट्टाकर्ता को पसन्द नहीं था और पट्टाकर्ता ने इस उपबन्ध से अन्तरिती उसे हटाने को नोटिस दो तथा नोटिस पाने के उपरान्त पट्टेदार ने उसी वस्तुओं को युक्तियुक्त समय के अन्दर हटा लिया तो, पट्टाकर्ता इस आधार पर पट्टेदार को पट्टा सम्पत्ति से बेदखल नहीं कर सकेगा।
यदि पट्टेदार नोटिस की अवहेलना करेगा तो पट्टाकर्ता बेदखली की कार्यवाही करा सकेगा। वर्षानुवर्षी पट्टे में पट्टेदार पर यह परोक्ष दायित्व होता है वह पट्टा परिसर को अच्छी स्थिति में रखेः तथा युक्तियुक्त सुधार या मरम्मत की कार्यवाहों करे जैसे जाली लगवाना, टूटी खिड़को एवं दरवाजों के पल्लों को बदलना, नालियों की सफाई करवाना इत्यादि।
यदि पट्टे पर दिया गया गोदाम, पट्टा दिये जाने के समय फिर एवं अच्छी स्थिति में था पट्टाकर्ता ने संविदा की थी केवल तुच्छ सुधारों एवं मरम्मतों को कराने के लिए किन्तु यदि को एक दीवाल गिर जाती है जिससे बगल के गोदाम को दोवाल नष्ट हो जाती है तो वह हुई पूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा किन्तु पट्टेदार का समनुदेशितो असमाप्त पट्टे की अवधि के लिए। दीवाल के गिरने एवं पड़ोसी की दीवाल को क्षति पहुँचने के लिए पट्टेदार के रूप में उत्तरदायों होगा।
पट्टाकर्ता को नोटिस देने का दायित्व : ( धारा 108 (ढ):-
यदि पट्टा सम्पत्ति या उसके किसी भाग के प्रत्युद्धरण के लिए किसी कार्यवाही को या ऐसी सम्पत्ति से संयुक्त पट्टाकतों के अधिकारों पर कोई अतिक्रमण किया और उनमें किसी हस्तक्षेप को जानकारी पट्टेदार को हो जाए तो वह पट्टाकर्ता को उसको सूचना युक्तियुक्त तत्परता से देने के लिए आवद्ध है इस प्रावधान को प्रयोजन यह है कि पट्टाकर्ता को अवसर मिले जिससे वह अपने हितों की सुरक्षा कर सके।
यदि पट्टे को निरन्तरता के दौरान पट्टाकतां को यह ज्ञात हो जाता है कि कोई व्यक्ति सम्पत्ति के सम्बन्ध में उसके अधिकार को चुनौती दे रहा है; उसको सम्पत्ति उससे छीनने की कोशिश कर रहा है तो वह अपने अधिकारों को उद्घोषणा के लिए न्यायालय के समक्ष वाद संस्थित कर सकेगा तथा अतिवारी अन्य व्यक्तियों से अपनी सम्पत्ति की सुरक्षा कर सकेगा।
सामान्य स्थिति में भू-स्वामी पट्टेदार के माध्यम से अपनी सम्पत्ति धारण करता है। यदि पट्टेदार को सम्पत्ति से अपदस्थ कर दिया गया है तो वह भी सिद्धान्ततः अपदस्थ हो जाता है। अतः सम्पत्ति का कब्जा वापस पाने हेतु वह बाद स्थित कर सकेगा।
सम्पत्ति से अभिप्राय- सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 108 खण्ड (ङ) के प्रयोजन हेतु सम्पत्ति से अभिप्रेत है वह सम्पत्ति जो पट्टा की विषयवस्तु हो । अन्य सम्पत्ति जो पट्टा को विषयवस्तु नहीं है या उसका भाग नहीं है, इस प्रावधान से आच्छादित नहीं है।
पट्टेदार द्वारा उपयोग धारा 108 (ण):-
पट्टेदार सम्पत्ति का और उसकी उपज का (यदि कोई हो) ऐसे उपयोग कर सकेगा जैसे एक मामूली प्रज्ञा वाला व्यक्ति करता है, यदि यह उसको अपनी होती, किन्तु सम्पत्ति का उस प्रयोजन से भिन्न, जिसके लिए वह पट्टे पर दी गयी थी, उपयोग न तो स्वयं करेगा न किसी अन्य को करने देगा, न काष्ठ काटेगा, न बेचेगा, न पट्टाकर्ता के निर्माणों को गिराएगा, न नुकसान पहुँचाएगा, न ऐसी खानों या खदानों को खुदवाएगा जो पट्टा देने के समय खुली नहीं थी, न कोई ऐसा अन्य कार्य करेगा जो उस सम्पत्ति के लिए नाशक हो स्थायी रूप से क्षतिकर हो।
यह प्रावधान एक साधारण पट्टे के मामले में पट्टेदार के साधारण अधिकारों के सम्बन्ध में स्थिति को सुस्पष्ट करता है किन्तु इसके प्रावधान अभिव्यक्त रूप में प्रदत्त अधिकारों को सीमित नहीं करते हैं यदि कतिपय परिसर गोदाम हेतु पट्टे पर दिया गया हो तथा पट्टेदार उसे उपपट्टे पर दे देता है एवं उपपट्टेदार उसे आवासीय परिसर के रूप में प्रयोग में लाता है।
और वह परिसर आग से जलकर नष्ट हो जाता है तो पट्टेदार प्रथमदृष्टया परिसर को कारित क्षति के लिए उत्तरदायी होगा और यह साबित करने का दायित्व पट्टेदार पर होगा कि परिसर को होने वालों क्षति के लिए न तो वह और न ही उपपट्टेदार उपेक्षा का दोषी था।
यह उपबन्ध यह अपेक्षा करता है कि पट्टेदार पट्टाकर्ता सम्पत्ति का उपभोग एक अच्छे पट्टेदार के रूप में करे तथा सम्पत्ति को इस प्रकार मरम्मत करे जो सम्पत्ति को नष्ट होने से बचाने के लिए आवश्यक है या कम से कम पट्टाकर्ता को सम्पत्ति को होने वाली किसी गम्भीर खतरे के विषय में अवगत कराये साधारणतया एक पट्टेदार अपनी पट्टाधृति पर सुधार करने के लिए प्राधिकृत है किन्तु उसे यह अधिकार नहीं है कि वह सम्पत्ति का पट्टा से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए उपयोग करें।
यदि सम्पत्ति का पट्टा आवासीय प्रयोग के लिए था तथा पट्टेदार उसका किसो अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग कर रहा था तो उसे व्यादेश के द्वारा अन्य प्रयोजन हेतु सम्पत्ति के उपयोग से रोका जा सकेगा। यदि एक भवन वस्त्र के विक्रय हेतु पट्टे पर लया गया है तथा पट्टाग्र होता उसी भवन में कपड़े संग्रह भी करता है तो कपड़े का संग्रह कपड़े के विक्रय से भिन्न प्रयोजन नहीं होगा।
यदि एक परिसर पट्टे पर गैराज के रूप में प्रयोग करने के लिए दिया गया था जिसमें गाड़ियाँ खड़ी की जानी थी और पट्टेदार, गाड़ियाँ खड़ी करने के साथ ही साथ उसमें वर्कशाप भी चलाता है तो वर्कशाप का कार्य गैराज के कार्य से पृथक नहीं माना जाएगा।
यदि एक दुकान वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये पट्टे पर दी गयी थी पर पट्टेदार उसमें आटे को चक्की लगा लेता है तो ऐसे कृत्य से पट्टे का प्रयोजन विफल हो जाएगा, पर यदि दुकान पट्टे पर देते समय कोई प्रयोजन निर्धारित नहीं किया गया है तो आटे की चक्की चलाना भिन्न प्रयोजन नहीं होगा। एक पट्टेदार संदत परिसर में आवश्यक व्यवस्था करने के लिए प्राधिकृत है।
इसके माध्यम से यह सम्पति को अपने प्रयोजन हेतु उपयोगी बनाता है। पट्टाकर्ता को यह कहने का अधिकार नहीं है कि पट्टेदार ऐसा क्यों कर रहा है और यह भी एक लम्बे अन्तराल के बाद जब प्रक्रिया के दौरान न कोई सारवान परिवर्तन किया गया हो और न हो परिसर को कोई सारवान् क्षति पहुँचो हो, फिर भी पट्टेदार सम्पत्ति को वापस लौटाते समय इस बात के दायित्वाधीन होता है कि वह परिसर को उसी रूप में वापस लौटाए जिस रूप में उसने पट्टाकर्ता से प्राप्त किया था।
ऐसा करने के लिए आने वाले खर्चे का भुगतान स्वयं पट्टेदार को करना होगा ऐसी स्थिति में पट्टेदार के विरुद्ध किसी प्रकार का आदेश पारित नहीं होगा।
पट्टा के प्रयोजनों से भिन्न उपयोग–जिस प्रयोजन हेतु सम्पत्ति के पट्टे पर दिया जाता है, पट्टेदार का यह दायित्व होता है कि सम्पत्ति का उपयोग वह उसी प्रयोजन हेतु करे। यदि पट्टा के प्रयोजन से इतर सम्पत्ति का उपयोग किया जाता है तो ऐसा कृत्य पट्टा संविदा का उल्लंघन होगा।
अतः यदि सम्पत्ति गन्ना की पेराई करने के कारोबार हेतु दी गयी थी किन्तु पट्टेदार परिसर को रेडीमेड वस्त्र बेचने के लिए उपयोग में लाता है तो ऐसा उपयोग अवैध होगा तथा पट्टेदार के विरुद्ध बेदखली की डिक्री पारित हो सकेगी।
पट्टेदार द्वारा यह तर्क प्रस्तुत करना कि गन्ने की पेराई का कारोबार मौसमी प्रकृति का कारोबार है तथा शेष समय बन्द रहता है अतः केवल ऐसे समय ही वह रेडीमेड वस्त्र का कारोबार करता है मान्य नहीं होगा, क्योंकि पट्टे पर परिसर को लेते समय पट्टेदार को इस तथ्य का ज्ञान था और उसे पट्टा को संविदा में इस तथ्य को सुनिश्चित करा लेना चाहिए था कि जब पेराई का मौसम समाप्त हो जाएगा तो वह परिसर का उपयोग वस्त्र बेचने हेतु करेगा।
यदि उसने ऐसा नहीं किया था तो परिसर का भिन्न प्रयोजन हेतु उपयोग पट्टे की संविदा का उल्लंघन माना जाएगा तथा बेदखली की कार्यवाही पट्टेदार के विरुद्ध की जा सकेगी इस सिद्धान्त के प्रवर्तन के लिए यह आवश्यक है कि सम्पत्ति के प्रमुख या महत्वपूर्ण प्रयोजन को परिवर्तित किया जाए। यदि ऐसा नहीं है तो साधारणतया न्यायालय उपयोग के परिवर्तन या उपयोग में बदलाव का संज्ञान नहीं लेगा, पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने लक्ष्मणचन्द्र बनाम बंसरी मुखर्जी के वाद के भिन्न मत व्यक्त किया है।
न्यायालय ने कहा कि धारा 108 (ण) के प्रावधान को देखने एवं उसकी विवेचना करने के उपरान्त न्यायालय इस मत का है कि इस उपबन्ध का सारतत्व प्रयोजन की भिन्नता नहीं है, अपितु यह है कि भिन्न उपयोग के फलस्वरूप सम्पत्ति पर हानिकारक, क्षतिकारक या विनाशकारक प्रभाव पड़ा हो।
यह निष्कर्ष पदावलि, जो उस सम्पत्ति के लिए नाशक हो या स्थायी रूप से क्षतिकर हो, निकलता है। उक्त पदावलि को उपबन्ध में प्रयुक्त पदावलि पर सम्पत्ति का उस प्रयोजन से भिन्न, जिसके लिए वह पट्टे पर दी गयी थी उपयोग न तो स्वयं करेगा, न किसी अन्य को करने देगा, के सापेक्ष देखने पर स्थिति और भी सुस्पष्ट हो जाती है।
पट्टेदार उपयोग को इस प्रकार परिवर्तित नहीं करेगा जिससे कि भूस्वामी के पट्टा सम्पत्ति में हित प्रभावित हो या सम्पत्ति को भौतिक रूप में क्षति पहुँचे।
अतः यदि पट्टेदार ने सम्पत्ति का उपयोग आफिस प्रयोजन हेतु न कर आवासीय प्रयोजन हेतु सम्पत्ति को प्रभावित किए बिना किया है तो ऐसा उपयोग इस उपबन्ध से प्रभावित नहीं होगा। पर यह ध्यान देने की बात है कि यह निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा गुरुदयाल बनाम राजकुमाएं तथा दशरथ बाबू राव बनाम काशीनाथ के वाद में दिए गये निर्णयों से मेल नहीं खाता है।
फलतः स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। सम्पत्ति के उपयोग की भिन्नता उसके व्यापक अंश से सम्बद्ध होनी चाहिए। इस तथ्य को उच्चतम न्यायालय ने प्रेम चन्द्र बनाम डिस्ट्रिक्ट जजों के वाद में सुस्पष्ट कर दिया है। इस मामले में पट्टेदार ने अपनी पट्टा सम्पत्ति के एक कमरे में टेलरिंग शाप खोल रखी थी जिसे चुनौती दी गयी थी।
इस उपबन्ध के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने सुस्पष्ट किया कि इस प्रकृति को टेलरिंग शाप आवासीय प्रकृति के पट्टे को प्रभावित नहीं करेगा। भवन मात्र इस कारण से सभी इच्छाओं एवं प्रयोजनों हेतु आवासीय से अ-आवासीय नहीं होगा। यदि भवन का बड़ा हिस्सा आवासीय प्रयोजन हेतु उपयोग में लाया जा रहा है तो वह आवासीय ही बना रहेगा हो उसके एक अंश को अ-आवासीय प्रयोजन हेतु, जो तुच्छ प्रकृति का है, प्रयोग में लाया जा रह हो।
स्थायी संरचना (धारा 108 (त)):-
यह खण्ड उपबन्धित करता है कि पट्टेदार पट्टा को सम्मति के बिना पट्टा सम्पत्ति पर कोई स्थायी संरचना कृषि प्रयोजनों से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए खड़ी न करेगा, किन्तु यदि पट्टेदार ऐसा करता है तो यह उस संरचना को खण्ड (ज) के अन्तर्गत हटाने के दायित्वाधीन होगा।
यदि पट्टेदार उस संरचना को नहीं हटाता है या हटाने में विफल रहता है तो वह पट्टाकर्ता की सम्पत्ति हो जाएगी। यदि पट्टेदार पट्टा सम्पत्ति पर कोई स्थायी संरचना खड़ी करता है तो पट्टाकर्ता इस कार्य के सन्दर्भ में पट्टेदार के विरुद्ध व्यादेश लेकर ऐसा कार्य करने से उसे स्थायी रूप से रोक सकेगा।
इस खण्ड में उल्लिखित उपबन्ध उस स्थिति में प्रवर्तनीय नहीं होगा जब पक्षकारों के बीच कोई प्रतिकूल संविदा हुई हो जिसके अन्तर्गत पट्टेदार उक्त भूमि पर कोई आवासीय भवन या दुकान बनाने के लिए प्राधिकृत हो पट्टा सम्पत्ति में परिवर्तन महत्वपूर्ण होगा भले इससे परिसर को कोई क्षति न हो या सारवान रूप में उसके मूल्य में कमी हो।
यदि पट्टेदार पट्टाकर्ता की अनुमति से कृषि भूमि पर निर्मित भवन को अन्तरित करता है तो अन्तरिती भवन सामग्री का अधिकारी होगा, पर उस भूमि का नहीं जिस पर भवन निर्मित हुआ था, क्योंकि भूमि का धारणाधिकार वैयक्तिक था। इस प्रयोजन हेतु एक ऐसा निर्माण जिसकी दीवारें ईंटों से बनी हो तथा छत नालीदार शीट से बनी हो, स्थायी निर्माण माना जाएगा।
कोई निर्माण स्थायी प्रकृति का है या नहीं यह एक तथ्य का विषय प्रश्न है तथा इसका निर्धारण निर्माण की प्रकृति एवं उस मंशा, जिससे वह निर्माण किया गया है, के आधार पर किया जाता है। पट्टा सम्पत्ति में अनधिकृत संवर्धन या परिवर्तन स्वयं इस खण्ड से आच्छादित नहीं है। इस खण्ड को आकर्षित करने के लिए यह साबित किया जाना आवश्यक होगा कि पट्टेदार ने पट्टाकर्ता की अनुमति के बिना पट्टा सम्पत्ति पर एक स्थायी निर्माण किया है।
कब्जा पुनः स्थापित करने का दायित्व (धारा 108 (थ):-
यह खण्ड उपबन्धित करता है कि पट्टे के पर्यवसान पर पट्टेदार पट्टाकर्ता को सम्पत्ति पर कब्जा देने के लिए आबद्ध है। पट्टे का पर्यवसान धारा 111 में वर्णित किसी भी कारण से हो सकेगा और जब पट्टे का पर्यवसान होगा तो पट्टेदार का यह कर्तव्य होगा कि यह सम्पत्ति पर से अपना कब्जा हटा ले तथा सम्पत्ति पट्टेदार को वापस लौटा दे।
यदि पट्टेदार इस मत का है कि पट्टे का पर्यवसान नहीं हुआ है तो उसे तथ्य साबित करना होगा। यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है तो वह अनधिकृत कब्जा का दोषी होगा। यदि पट्टेदार सम्पत्ति का कब्जा पट्टा के पर्यवसान पर पुनः स्थापित करने में विफल रहता है या यह साबित करने में विफल रहता है कि पट्टे का पर्यवसान नहीं हुआ है तो वह किराया के बकाये का भुगतान करने से अपने आप को नहीं बचा सकेगा।
यदि पट्टे पर दी गयी सम्पत्ति का एक भाग को सरकार अधिगृहीत कर लेती है तो पट्टे के पर्यवसान पर पट्टाकर्ता उक्त सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए सरकार के विरुद्ध बाद संस्थित कर सकेगा।
पट्टेदार जब पट्टे के पर्यवसान पर जब सम्पत्ति पट्टाकर्ता को वापस लौटाता है तो उसका यह कर्तव्य होगा कि वह खाली सम्पत्ति पट्टाकर्ता को सौंपे। खाली सम्पत्ति लौटाने का सिद्धान्त केवल उन मामलों में ही लागू नहीं होगा जिनमें सम्पत्ति पट्टा की अवधि के समापन पर वापस की जाती है, अपितु उन मामलों में भी लागू होगा जिनमें पट्टेदार पट्टा को शून्य मानकर जैसे सम्पत्ति के नष्ट होने पर या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपने आप सम्पत्ति का असली मालिक घोषित करने पर पट्टा संविदा को रद्द करता है। यदि पट्टेदार सम्पत्ति का खाली कब्जा पट्टाकर्ता को नहीं देता है तो वह प्रतिकर अदा करने के दायित्वाधीन होगा यदि पट्टेदारी अनिश्चितकाल तक जारी नहीं रहती है।
यदि संविदा के फलस्वरूप संयुक्त पट्टेदारी सृजन हुआ है तो पट्टाकर्ता के सभी पट्टेदारों के विरुद्ध कब्जा हेतु कार्यवाही करनी होगी। केवल कुछ पट्टेदारों के विरुद्ध बेदखली की डिक्री प्राप्त कर वह सभी पट्टेदारों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं कर सकेगा। यदि पट्टा सम्पत्ति तक अतिचारों के कब्जे में है तथा पट्टेदार ने अतिचारों के कब्जे की सूचना पट्टाकर्ता को देकर अपनी पट्टेदारी का परित्याग कर दिया तो पट्टाकतां पट्टेदार से क्षतिपूर्ति नहीं प्राप्त कर सकेगा।
यदि पट्टेदार पट्टाकर्ता को नोटिस देकर अभिव्यक्त समर्पण द्वारा पट्टे का पर्यवसान करता है तो पट्टाकर्ता इस आधार पर सम्पत्ति का कब्जा ग्रहण करने से इन्कार नहीं कर सकेगा कि कब्जा के पुनः हस्तान्तरण से पूर्व उसे क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाना चाहिए।
यदि पट्टा विलेख में यह प्रावधान किया गया है कि पट्टा के समापन पर पट्टाकर्ता, पट्टेदार पट्टा सम्पत्ति पर निर्मित भवन को क्रय कर लेगा तो विभिन्न मानकों को ध्यान में रख कर भवन का मूल्य सुनिश्चित किया जाएगा। यदि वह भवन एक सिनेमाहाल है तो उसके लिए किसी विशेष मूल्य की मांग नहीं की जा सकेगी।
यदि पट्टे की अवधि के दौरान पट्टेदार ने किसी भूमि पर अतिक्रमण किया था तो पट्टे के पर्यवसान के पश्चात् पट्टेदार उक्त अतिक्रमित भूमि को पट्टाकर्ता को हस्तगत करने के दायित्वाधीन होगा।
पट्टे की अवधि के दौरान पट्टेदार का यह कर्तव्य है कि वह पट्टा सम्पत्ति की सीमाओं को सुरक्षित रखे तथा अपनी अन्य सम्पत्ति की सीमाओं में उसे सम्मिलित न करे। यदि पट्टेदार को उपेक्षा या उदासीनता के कारण पट्टा सम्पत्ति किसी अन्य सम्पत्ति में सम्मिलित हो जाती है तो यह पट्टाकर्ता को प्रतिकर अदा करने के दायित्वाधीन होगा उस सम्पत्ति का एक भाग उसे हस्तगत कर जिसमें वह सम्पत्ति विलीन हुई थी उसे वार्षिक मूल्य के बराबर। यदि पट्टेदार इस बात पर जोर देता है कि पट्टा संविदा में यह उपबन्ध था जिसके अन्तर्गत पट्टा के पर्यवसान के उपरान्त भी पट्टा सम्पत्ति का कब्जा उसके (पट्टेदार) के पास रहेगा तो इस तथ्य को साबित करने का दायित्व पट्टेदार पर होगा।
सर्वोपरि हक धारक द्वारा बेदखली- यदि पट्टेदार सर्वोपरि हक धारक द्वारा सम्पत्ति से बेदखल किया जाता है तो वह इस प्रकार पट्टे के समापन या पर्यवसान के पश्चात् पट्टा सम्पत्ति का कब्जा पट्टेदार, पट्टाकर्ता को हस्तान्तरित करने के दायित्याधीन नहीं है।
इस उपबन्ध के अन्तर्गत सर्वोपरि हक धारक द्वारा बेदखली क्या है? क्या इससे अभिप्रेत है पट्टेदार का वास्तविक रूप में सम्पत्ति से हटाया जाना एक ऐसे व्यक्ति द्वारा जो पट्टाकर्ता से श्रेष्ठ हक का दावा करता है।
वासुदेव के वाद में उच्चतम न्यायालय ने उन शर्तों को प्रतिपादित किया है जिनसे निष्काषन का गठन होगा और इसके फलस्वरूप पट्टेदार पट्टाकर्ता को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान करने के दायि से मुक्त हो जाएगा। वे शर्तें हैं-
(1) बेदखल करने वाले पक्षकार को पट्टा सम्पत्ति में बेहतर एवं वर्तमान हक प्राप्त है।
(2) पट्टेदार ने सम्पत्ति का त्याग कर दिया हो या अपनी इच्छा के विरुद्ध सर्वोपरि हक धारक के पक्ष में प्रत्यक्षतः अभिधार कर दिया हो।
(3) या तो भू-स्वामी इच्छुक हो या ऐसे पट्टेदार द्वारा ऐसे प्रत्यक्ष अभिधार के लिए सहमति दिया हो सर्वोपरि हक धारक ने या कोई घटना घटित हुई हो जैसे विधि में परिवर्तन या सक्षम न्यायालय द्वारा कोई डिको पारित हुई हो, जिसने पट्टाकर्ता को सहमति को आवश्यकता को समाप्त कर दिया हो या पट्टाकर्ता की इच्छा के औचित्य को समाप्त कर दिया हो।
दूसरे शब्दों में सर्वोपरि हक धारक निष्कापन हेतु ऐसी विधिक प्रक्रियाओं से संसक्त हो जिसका विधितः प्रतिरोध न किया जा सके। सर्वोपरि हक धारक द्वारा निष्कासन के विरुद्ध बचाव वहाँ भी लिया जा सकेगा जहाँ वास्तविक निष्कासन या बेदखली हो ही नहीं, पर निष्कासन का वास्तविक भय हो।
सर्वोपरि हक द्वारा निष्कासन तथा साबित करने का भार-
सर्वोपरि हकधारक द्वारा बेदखल किए जाने तथा इस बिन्दु को उठाने एवं पुष्टि करने का भार जिससे सुस्पष्ट हो सके कि सर्वोपरि हक धारक द्वारा बेदखल किया जाना निश्चित है, उस व्यक्ति पर होता है जो इस प्रकार के बचाव को प्रस्तुत करता है।