लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 18: पॉक्सो अपराधों में रिपोर्ट करने की रीति
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 19 पॉक्सो अधिनियम में रिपोर्ट करने की रीति निर्धारित करती है। इस आलेख में धारा 19 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है
धारा 19
अपराधों की रिपोर्ट करना
(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी कोई व्यक्ति (जिसके अंतर्गत बालक भी हैं) जिसे यह आशंका है कि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किए जाने की संभावना है या यह जानकारी रखता है कि ऐसा कोई अपराध किया गया है, वह निम्नलिखित को ऐसी जानकारी उपलब्ध कराएगा :
(क) विशेष किशोर पुलिस यूनिट; या
(ख) स्थानीय पुलिस।
(2) उपधारा (1) के अधीन दी गई प्रत्येक रिपोर्ट में
(क) एक प्रविष्टि संख्या अंकित होगी और लेखबद्ध की जाएगी;
(ख) सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी,
(ग) पुलिस यूनिट द्वारा रखी जाने वाली पुस्तिका में प्रविष्ट की जाएगी। (3) जहां उपधारा (1) के अधीन रिपोर्ट बालक द्वारा दी गई है, उसे उपधारा (2) के अधीन सरल भाषा में अभिलिखित किया जाएगा जिससे कि बालक अभिलिखित की जा रही अंतर्वस्तु को समझ सके।
(4) उस दशा में जहां बालक द्वारा नहीं समझी जाने वाली भाषा में अंतर्वस्तु अभिलिखित की जा रही है वहां बालक को यदि वह उसे समझने में असफल रहता है कोई अनुवादक या कोई दुभाषिया जो ऐसी अर्हताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो विहित की जाए जब कभी आवश्यक समझा जाए उपलब्ध कराया जाएगा।
(5) जहां विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस का यह समाधान हो गया है कि वह बालक जिसके विरुद्ध कोई अपराध किया गया है, उसकी देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता है तब वह कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात् उसे यथाविहित रिपोर्ट के चौबीस घंटे के भीतर तुरंत ऐसी देखरेख और संरक्षण में (जिसके अंतर्गत बालक को संरक्षण गृह या निकटतम अस्पताल में भर्ती किया जाना भी है) रखने के लिए व्यवस्था की जाएगी।
(6) विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस अनावश्यक विलंब के बिना परन्तु चौबीस घंटे की अवधि के भीतर मामले को बालक कल्याण समिति और विशेष न्यायालय या जहां कोई विशेष न्यायालय पदाभिहित नहीं किया गया है वहां सेशन न्यायालय को रिपोर्ट करेगी, जिसके अंतर्गत बालक की देखभाल और संरक्षण के लिए आवश्यकता और इस संबंध में किए गए उपाय भी हैं।
(7) उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए सद्भावना में जानकारी देने के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सिविल या दांडिक कोई दायित्व उपगत नहीं होगा।
"सूचना" का अर्थ और अभिप्राय अभिव्यक्ति "सूचना उस संदर्भ में, जिसमे वह विद्यमान है, का तात्पर्य विशिष्ट तथ्यों से सम्बन्धित अथवा निर्धारण से सम्बन्ध रखने वाले विषय से सम्बन्धित विधि के बारे में बाह्य स्त्रोत से प्राप्त किया गया अनुदेश अथवा जानकारी है।
"शब्द सूचना" का अर्थ और अभिप्राय ? क्या यह तथ्यात्मक सूचना को लक्ष्यित करता है अथवा क्या यह विधि के प्रश्न पर सूचना को भी आच्छादित करता है? शब्द "सूचना" की व्याप्ति पर पहले चाहे जो कुछ भी संदेह विद्यमान हो, मामले को एक मामले में उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों के द्वारा सुनिश्चित किया गया था। जो निम्न रूप में किया गया
आयकर अधिकारी के द्वारा प्राप्त की गयी सूचना" को अभिलेख से परे होना आवश्यक नहीं है, इसे पहले से उपलब्ध निर्धारण अभिलेखों से प्राप्त किया जा सकता है।
मध्य प्रान्त और बरार विक्रय कर अधिनियम, 1947 की धारा 11 क में पद सूचना का तात्पर्य जानकारी है और इसे आवश्यक रूप में अभिकरण के परे होना आवश्यक नहीं है इस तथ्य की जानकारी कि निर्धारिती ने अपना त्रैमासिक विवरण प्रस्तुत नहीं किया था, के साथ ही साथ ट्रेजरी चालान निर्धारण प्राधिकारी के लिए सूचना गठित करता था, जिससे यह समाधान हो सकता था कि अधिनियम की धारा 11 क के अन्तर्गत "कुल-विक्रय ने निर्धारण को बचाया था।
इत्तिलाकर्ता-इत्तिलाकर्ता ऐसा प्राइवेट नागरिक है, जो शास्ति को वसूलने के लिए दाण्डिक कार्यवाही करता है। कुछ संविधियों के अधीन प्राइवेट नागरिक के लिए कोई आपराधिक दायित्व अधिरोपित करने के पहले शास्ति हेतु अपराधी के लिए बाद दाखिल करना आवश्यक होता है इसे सामान्य इतिलाकर्ता कहा जाता है।
शब्द "परिवाद" का अर्थ
"परिवाद का तात्पर्य किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष इस संहिता के अधीन अपनी कार्यवाही करने के विचार से मौखिक रूप में अथवा लिखित रूप में किया गया ऐसा कोई अभिकथन है कि कोई व्यक्ति, चाहे वह ज्ञात हो अथवा अज्ञात हो, अपराध कारित किया है, परन्तु इसमें पुलिस रिपोर्ट शामिल नहीं है।
स्पष्टीकरण किसी ऐसे मामले में पुलिस अधिकारी के द्वारा दी गयी रिपोर्ट, जो अन्वेषण के पश्चात् असंज्ञेय अपराध कारित करने को प्रकट करती है, परिवाद होना समझी जाएगी, और पुलिस अधिकारी, जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट दी गयी हो, परिवादी होना समझा जाएगा।
दाण्डिक परिवाद का तत्व किसी दाण्डिक परिवाद को दर्ज कराने के लिए विषय वस्तु शुद्ध रूप में आपराधिक होनी चाहिए और जहाँ तक वर्तमान मामले का सम्बन्ध है, या तो छल करने या कपट-वंचित करने या न्यास भंग करने के आशय का तत्व आवश्यक तत्व है, जिन्हें प्रथम दृष्टया उस करार का करने के समय साबित किया जाना है, जिसके बारे में परिवादी संतोषजनक रूप में परिवाद के तथ्य पर उसके अस्तित्व के लिए प्रथम दृष्टया मामला नहीं लाया है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) का अर्थदण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 की उपधारा (1) के अधीन प्रदान की गयी सूचना को सामान्यतः प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ आई आर) के रूप में जाना जाता है. यद्यपि इस पद का प्रयोग संहिता में नहीं किया गया है, फिर भी यह बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है।
और जैसा कि इसका नाम सुझाव देता है. यह पुलिस धाना के भारसाधक अधिकारी के द्वारा अभिलिखित संज्ञेय अपराध की सबसे पहले की और प्रथम सूचना होती है। यह दाण्डिक विधि को गतिमान बनाती है और अन्वेषण को प्रारम्भ करती है, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 169 अथवा 170, जैसी भी स्थिति हो, के अधीन राय बनाने और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के अधीन पुलिस रिपोर्ट भेजने के साथ समाप्त होती है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) का उद्देश्य प्रथम सूचना रिपोर्ट विश्वकोष नहीं होती है। प्रथम सूचना रिपोर्ट का उद्देश्य अभियुक्त के विरुद्ध अभिकथनों की शिकायत को गतिमान बनाना है।
मामले के पंजीकरण और आशयित पश्चातुवर्ती कार्यवाही का अभिभावी प्रयोजन केवल अभिकथनों का अन्वेषण करना और न्यायालय के समक्ष मामले को प्रस्तुत करना है, यदि उन अभिकथनों के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किया गया हो।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ आई आर ) का पक्ष - थुलिया काली बनाम तमिलनाडु राज्य ए आई आर 1973 एस सी 501 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रथम सूचना रिपोर्ट और उसकी व्याप्ति के पक्ष पर निम्न प्रकार से प्रतिपादित किया था -
(1) दाण्डिक मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट विचारण में प्रस्तुत किए गये मौखिक साक्ष्य को संपुष्ट करने के प्रयोजन के लिए साक्ष्य का अत्यधिक निर्णायक और महत्वपूर्ण भाग होता है।
(2) रिपोर्ट के महत्व का अभियुक्त के आधार बिन्दु से मुश्किल से अधिक आकलन किया जा सकता है।
(3) अपराध कारित करने के सम्बन्ध में पुलिस के पास तत्काल रिपोर्ट दर्ज कराने पर जोर देने का उद्देश्य
(i) उन परिस्थितियों, जिसमें अपराध को कारित किया गया था;
(ii) वास्तविक अपराधियों के नामों:
(iii) उनके द्वारा निभायी गयी भूमिका और
(iv) घटनास्थल पर उपस्थित चक्षुदर्शी साक्षियों के नामों से सम्बन्धित सूचना को शीघ्र प्राप्त करना है।
(4) प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में विलम्ब अधिकांशत अलंकरण में परिणामित होता है, जो विचार-विमर्श का सृजन होता है। विलम्ब के कारण रिपोर्ट न केवल तत्काल समय के लाभ से वंचित हो जाती है. वरन वह-
(1) रंजित प्रकथन को पुर· स्थापन करने:
(2) अतिश्योक्तिपूर्ण विवरण अथवा
(3) विचार-विमर्श तथा परामर्श के परिणामस्वरूप मनगढ़ंत कहानी बनाने का भी खतरा होता है।
(5) इसलिए यह आवश्यक है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में विलम्ब को संतोषजनक रूप में स्पष्ट किया जाना चाहिए।
प्रथम सूचना रिपोर्ट की आवश्यक अपेक्षाऐं प्रथम सूचना रिपोर्ट का महत्व उसके घटना के प्रथम अभिलिखित कथन होने में स्थित है। यह ऐसी सबसे पहले सूचना होती है, जिस पर अन्वेषण प्रारम्भ होता है।
पीड़िता की माँ के द्वारा किया गया मात्र इस प्रभाव का कथन कि अभियोक्त्री का कथन प्रधान कांस्टेबिल, चन्दुभाई के द्वारा अभिलिखित किया गया था. यह साबित नहीं करेगा कि प्रधान कांस्टेबिल, चन्दुमाई अभियोक्त्री के घर पर गया था और उसका परिवाद दर्ज कराने के पहले उसका कथन अभिलिखित किया था यदि तर्क की सुविधा के लिए यह माना जाता है कि प्रधान कांस्टेबिल, चन्दुभाई के द्वारा कुछ कथन अनिलिखित किया गया था, तब यह इस बात को साबित नहीं करता है कि वह सायला पुलिस थाना का भारसाधक अधिकारी था. न तो यह साबित होता है कि उसके द्वारा प्रदान की गयी सूचना को पुलिस थाना में अनुरक्षित रजिस्टर में प्रविष्ट किया गया था। इसलिए ऐसा कथन, यदि उसे अभिलिखित किया गया हो, संहिता की धारा 154 के अर्थ के अन्तर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट गठित नहीं करेगा। इस प्रकार अभियोक्त्री के द्वारा शपथ लिया गया अभिसाक्ष्य पर्याप्त रूप में उसके परिवाद के द्वारा संपुष्ट होता है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट, जो यह अभिकथन नहीं करती है अथवा प्रकट नहीं करती है कि दाण्डिक प्रावधान की आवश्यक अपेक्षाएं प्रथम दृष्टया संतुष्ट हुई है. विधिपूर्ण अन्वेषण का आधार नहीं बना सकती है अथवा उसका प्रारम्भिक भाग गठित नहीं कर सकती है।
एफ आई आर दाखिल करने में विलम्ब समाधनप्रद स्पष्टीकरण अन्तर्विष्ट करते हुये एफ आई आर दाखिल करने में कारित एक मात्र विलम्ब अभियोजन कथन को तुच्छ नहीं बनायेगा।
प्रथम सूचना रिपोर्ट अभियोजन के मामले को प्रतिकूल रूप में प्रभावित नहीं करती है-
प्रथम सूचना रिपोर्ट साक्ष्य का महत्वपूर्ण भाग होती है। यद्यपि यह साक्ष्य का सारवान भाग नहीं होती है, फिर भी इसका प्रयोग उस व्यक्ति, जो परिवाद दर्ज कराता है, को संपुष्ट करने अथवा खण्डन करने के लिए किया जा सकता है। लघु विवरणों का लोप अथवा पहला यह कि घटना की रिपोर्ट प्रथम सूचना रिपोर्ट के विस्तृत रूप में नहीं दी गयी है, अभियोजन मामले को प्रतिकूल रूप में प्रभावित नहीं करता है। यह केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट, न कि सम्पूर्ण अन्वेषण रिपोर्ट (आरोप-पत्र) होती है, जिसे पुलिस के लिए अन्वेषण पूरा होने के पश्चात् प्रस्तुत करना आवश्यक है।
मजिस्ट्रेट, यदि रिपोर्ट के द्वारा सहमत न हो, मामले की नयी जांच का आदेश दे सकता है। मजिस्ट्रेट इतिलाकर्ता अथवा परिवादी के निवेदन पर मामले के पुनः अन्वेषण का भी निर्देश दे सकता है।
पहले अवसर पर पहुंचनी चाहिए. क्योंकि इसे उस संज्ञेय अपराध कारित करने को प्रकट करना चाहिए, जिसके सम्बन्ध में पुलिस के द्वारा अन्वेषण प्रारम्भ किया जाता है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट घटना के स्वाभाविक और विश्वसनीय होने का सम्पूर्ण प्रकथन
हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम ज्ञान चन्द, 2001 क्रि. लॉ ज 2548 ए आई आर 2001 मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट बलात्संग की घटना को भवन के प्रथम तल पर कमरे में होने का कथन करती है, परन्तु न्यायालय में यथा अभिलिखित अभियोजन साक्षी के कथन के अनुसार अभियोक्त्री के साथ बलात्संग घर के सरदल पर खुले में कारित किया गया था। कमरा और सरदल एक-दूसरे के नजदीक स्थित है। अभियोजन साक्षी घटना का चक्षुदर्शी साक्षी नहीं है।
जब वह घर पर पहुंची थी, तब वह अपनी पुत्री, बलात्संग की पीड़िता को चारपाई के नीचे घर के सरदल पर लेटे हुए पायी थी। स्थल योजना का अवलोकन, जो इसके बीच दो स्थान की दूरी दर्शाती है. अमहत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त अभियोजन साक्षी, जो चक्षुदर्शी साक्षी नहीं है, वरन सपुष्टिकारक साक्षी है, के मुंह से आने वाली ऐसी लघु असंगतता किसी महत्व की नहीं है और वह अभियोजन मामले को उस समय कोई शैथिल्यता कारित नहीं की थी, जब उसके द्वारा घटना का किया गया सम्पूर्ण प्रकथन स्वाभाविक और विश्वसनीय होना पाया गया था।
संज्ञेय अपराध कारित करने से सम्बन्धित प्रथम सूचना रिपोर्ट-
(1) संज्ञेय अपराध कारित किए जाने से सम्बन्धित प्रत्येक इतिला, यदि पुलिस थाना के भारसाधक अधिकारी को मौखिक रूप में दी गयी हो। उसके द्वारा या उसके निर्देश के अधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी, और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनायी जाएगी, और ऐसी प्रत्येक इत्तिला पर चाहे वह लिखित रूप में दी गयी हो अथवा पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गयी हो, उस व्यक्ति के द्वारा हस्ताक्षरित की जाएगी, जिसने उसे दिया था और उसका सार ऐसे अधिकारी के द्वारा रखी जाने वाली ऐसी पुस्तिका में ऐसे प्ररूप में प्रविष्ट किया जाएगा, जो राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे।
"परंतु यदि किसी स्त्री द्वारा, जिसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 326-क, धारा 326-ख धारा 354 धारा 354-क, धारा 354-ख, धारा 354.ग. धारा 354-घ. धारा 376, धारा 376 क, धारा 376-कख, धारा 376-ख, धारा 376-ग, धारा 376-घ, धारा 376- धक, धारा 376- घख], धारा 376-ड या धारा 509 के अधीन किसी अपराध के किए जाने या किए जाने का प्रयत्न किए जाने का अभिकथन किया गया है. कोई इत्तिला दी जाती है तो ऐसी इत्तिला किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा अभिलिखित की जाएगी।
परंतु यह और कि
(क) यदि वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354- क, धारा 354-ख, धारा 354-ग, धारा 354-घ धारा 376 धारा 376-क, धारा 376- कख धारा 376-ख धारा 376-ग. धारा 376-घ. धारा 376-धक, धारा 376- घख] धारा 376-8 या धारा 509 के अधीन किसी अपराध के किए जाने का या किए जाने का प्रयत्न किए जाने का अभिकथन किया गया है अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से निःशक्त है, तो ऐसी इसिला किसी पुलिस अधिकारी द्वारा उस व्यक्ति के, जो ऐसे अपराध की रिपोर्ट करने की ईप्सा करता है, निवास-स्थान पर या उस व्यक्ति के विकल्प के किसी सुगम स्थान पर, यथास्थिति किसी द्विभाषिए या किसी विशेष प्रबोधक की उपस्थिति में अभिलिखित की जाएगी.
(ख) ऐसी इतिला के अभिलेखन की वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी,
(ग) पुलिस अधिकारी धारा 164 की उपधारा (5-क) के खंड (क) के अधीन किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उस व्यक्ति का कथन यथासंभवशीघ्र अभिलिखित कराएगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन यथा अभिलिखित इत्तिला की प्रतिलिपि इत्तिला देने वाले व्यक्ति को तत्काल निःशुल्क दी जाएगी।
(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट सूचना अभिलिखित करने के लिए पुलिस थाना के भारसाधक अधिकारी की ओर से इन्कारी के द्वारा व्यथित कोई व्यक्ति ऐसी इतिला का सार लिखित रूप में और डाक द्वारा सम्बद्ध पुलिस अधीक्षक के पास भेज सकता है, जो
यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसी इतिला से किसी संज्ञेय अपराध का कारित किया जाना प्रकट होता है, तो वह या तो स्वयं मामले का अन्वेषण करेगा या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी के द्वारा इस संहिता के द्वारा उपबन्धित रीति में अन्वेषण किए जाने का निर्देश देगा और ऐसे अधिकारी को उस अपराध के सम्बन्ध में पुलिस थाना के भारसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी।