लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 16: पॉक्सो अधिनियम में किसी अपराध का दुष्प्रेरण
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 16 अधिनियम में उल्लेखित किए गए अपराधों के दुष्प्रेरण के संबंध में उल्लेख करती है। इस अधिनियम में किसी अपराध का दुष्प्रेरण भी अपराध बनाया गया है, यह आलेख इस ही प्रावधान पर प्रकाश डाल रहा है।
दुष्प्रेरण से संबंधित धारा 16 का यह मूल रूप है
धारा 16
किसी अपराध का दुष्प्रेरण
कोई व्यक्ति किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो पहला उस अपराध को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है; अथवा दूसरा उस अपराध को करने के लिए किसी षड़यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षड़यंत्र के अनुसरण में, और उस अपराध को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोप घटित जाए; अथवा
तीसरा उस अपराध के लिए किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है।
स्पष्टीकरण 1- कोई व्यक्ति जो जानबूझकर दुर्व्यपदेशन द्वारा या तात्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध है, जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छया किसी अपराध का किया जाना कारित या उपाप्त करता है अथवा कारित या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह उस अपराध का किया जाना उकसाता है।
स्पष्टीकरण 2- जो कोई या तो किसी कार्य के किए जाने से पूर्व या किए जाने के समय, उस कार्य के लिए जाने को सुकर बनाने के लिए कोई कार्य करता है और तद्द्द्वारा उसके किए जाने को सुकर बनाता है उस कार्य के किए जाने में सहायता करता है।
स्पष्टीकरण- 3 जो कोई किसी बालक को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के प्रयोजन के लिए धमकी या बल प्रयोग या प्रपीड़न के अन्य माध्यम से, अपहरण, कपट, प्रवंचना, शक्ति या स्थिति के दुरुपयोग, भेद्यता या संदायों को देने या प्राप्त करने का प्रयोग या अन्य व्यक्ति पर नियंत्रण रखने वाली किसी व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के फायदों के माध्यम से भर्ती परिविहित करता है, आश्रय देता है या उसे प्राप्त करता है उसको उस कार्य के करने में सहायता करना कहा जाता है।
शब्द "दुष्प्रेरण" और "उकसाना" का अर्थ
दुष्प्रेरण का आवश्यक रूप में तात्पर्य अपराध कारित करने के लिए कुछ सक्रिय सुझाव अथवा सहायता है। शब्द "उकसाना का शाब्दिक अर्थ किसी कृत्य को करने के लिए याचना करना, निवेदन करना, प्रकोपित करना, उत्प्रेरित करना अथवा उत्साहित करना है। कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उकसाने के लिए। तब कहा जाता है, जब वह उसे किसी माध्यम से अथवा भाषा से प्रत्यक्षतः अथवा अप्रत्यक्षत चाहे यह अभिव्यक्त याचना अथवा संकेत. इशारा अथवा उत्साहित करने का रूप लेता हो, किसी कृत्य को करने के लिए सक्रिय रूप में सुझाव देता है अथवा अभिप्रेरित करता है।
यह भी आवश्यक नहीं है कि उकसाना केवल शब्दों में ही होना चाहिए और यह आचरण के द्वारा नहीं हो सकता है। किसी उकसाने अथवा सहायता का प्रत्यक्ष साक्ष्य आवश्यक नहीं है। यह ऐसा विषय है, जिसे परिस्थितियों से निगमित किया जा सकता है। अभियोजन के लिए विधि में यह साबित करना आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित व्यक्ति के मस्तिष्क में वास्तविक प्रवर्तित कारण उकसाना, न कि कोई अन्य चीज थी।
लैगिक हमले का दुष्प्रेरण संस्वीकृति का ज्ञान
पूनम ठाकुर बनाम हरियाणा राज्य, 2018 क्रि लॉ ज 2387 के मामले में प्रथम दृष्ट्या इस बात का संकेतक है कि पीड़िता की दादी की ओर से अवैध लोप रहा है, जहाँ तक अपने पति के कृत्य को अवयस्क पीड़िता के माता-पिता से न बताने का सम्बन्ध है। दादी अवयस्क पौत्री पर कारित किये गये अपराध कारित करने के बारे में त्यों ही बताने के लिए आबद्ध थी, ज्यों ही उसे उसको बताया गया था। इस प्रकार, प्रथम दृष्ट्या पॉक्सो अधिनियम की धारा 16 के अधीन यथा अभिव्यक्त दुष्प्रेरण का तत्व बनता है।
"उकसाना" दुष्प्रेरक द्वारा दुष्प्रेरण किये जाने पर आपराधिक कार्य है, जहाँ दुष्प्रेरक आशय रखता है या वांच्छा करता है और को पर्याप्त ज्ञान है कि दुष्प्रेरित दुश्चेरक द्वारा वांछित या आशयित ढंग में कार्य के विशिष्ट अनुक्रम का अनुसरण करेगा। यह केवल साक्ष्य द्वारा युक्तियुक्त सन्देह के परे साबित ऐसी परिस्थितियों में है कि अभियुक्त अपराध का दुरण करने का दोषी निर्णीत किया जा सकता है।
किसी बात का दुष्प्रेरण वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो पहला उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है अथवा
दूसरा उस बात को करने के लिए किसी षड्यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षड्यंत्र के अनुसरण में, और उस बात को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोप घटित हो जाए अथवा तीसरा उस बात के लिए किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है।
स्पष्टीकरण /कोई व्यक्ति जो जानबूझकर दुर्व्यपदेशन द्वारा या तात्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध है. जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छया किसी बात का किया जाना कारित या उपाप्त करता है अथवा कारित या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह उस बात का किया जाना उकसाता है, यह कहा जाता है।
उदाहरण-क एक लोक आफिसर न्यायालय के वारन्ट द्वारा य को पकड़ने के लिए प्राधिकृत है व उस तथ्य को जानते हुए और यह भी जानते हुए कि ग य नहीं है ग को जानबूझकर यह व्यपदिष्ट करता है कि ग य है. और एतदद्वारा साराय क से ग को पकड़वाता है। यहाँ ख, ग के पकड़े जाने का उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण करता है।
स्पष्टीकरण 2
जो कोई या तो किसी कार्य के किए जाने से पूर्व या किए जाने के समय, उस कार्य के किए जाने को सुकर बनाने के लिए कोई बात करता है और तद्द्द्वारा उसके किए जाने को सुकर बनाता है, वह उस कार्य के करने में सहायता करता है, यह कहा जाता है।
अवैध लोप के द्वारा दुष्प्रेरण दुष्प्रेरण किसी अन्य व्यक्ति को उत्साहित करने, उकसाने अथवा सहायता करने का कृत्य होता है। कोई व्यक्ति भाषा के किसी माध्यम से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष चाहे यह अभिव्यक्त निवेदन अथवा संकेत करने का रूप लेता हो, के द्वारा उकसा सकता है। दुष्प्रेरण गठित करने के लिए दुराशय अथवा आशय की एकता होनी चाहिए। जानकारी अथवा आशय के बिना कोई दुष्प्रेरण नहीं हो सकता है, और जानकारी और आशय अपराध से सम्बन्धित होना चाहिए।
अवैध लोप के द्वारा दुष्प्रेरण को साबित करने के लिए यह दर्शाया जाना चाहिए-
(क) अभियुक्त ने साशय अहस्तक्षेप के माध्यम से अपराध कारित करने में सहायता प्रदान किया था, और
(ख) लोप में विधिक कर्तव्य का मंग अन्तर्ग्रस्त होना चाहिए।
"दुष्प्रेरण" का आवश्यक तत्व यह सुस्थापित है कि दुष्प्रेरण होने के लिये आपराधिक आशय या आशय की बहुलता होनी चाहिये। ज्ञान या आशय के बिना, कोई दुष्प्रेरण नहीं हो सकता और ज्ञान तथा आशय को दुष्प्रेरित किये जाने के लिये अधिकधित कार्य से सम्बन्धित होना चाहिये। "उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण को गठित करने के लिये, आपराधिक कार्य को करने के लिये प्रत्यक्ष उत्प्रेरण होना चाहिये।
दुष्प्रेरण का अपराध दुष्प्रेरण का अपराध प्रारम्भिक अपराध के संवर्ग में आता है। आपराधिक न्यायशास्त्र में. प्रारम्भिक अपराध वर्ग है, जो अपूर्ण" या "आरम्भिक अपराध के रूप मे भी ज्ञात है। ऐसे अपराधों में, जो प्रारम्भिक या अपूर्ण बना रहता है, आशयित प्रमुख अपराध है।
उकसाना अथवा उत्प्रेरणा किस कोटि में आता है
इसके बारे में कि अपराध कारित करने के लिए उकसाना क्या गठित करेगा, प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा।
इसलिए इस बात को निश्चित करने के लिए कि क्या किसी व्यक्ति ने अपराध कारित करने को उकसाने के द्वारा दुष्प्रेरित किया है अथवा नहीं, दुष्प्रेरण के कृत्य को-
(क) मामले में प्रत्यक्ष साक्ष्य के परिदृश्य में निर्णीत किया जाना है, और
(ख) अभियुक्त को आरोपित को पृथक रूप में नहीं देखा अथवा परीक्षित किया जाना है। अपराध कारित करने के लिए एक अन्य व्यक्ति को उकसाना' उस कृत्य को करने के लिए प्रेरित करना अथवा निवेदन करना अथवा प्रकोपित करना अथवा उत्साहित करना है। कौन-सा कृत्य उकसाने अथवा उत्प्रेरित करने की कोटि में आएगा। प्रत्येक मामले के विशिष्ट तथ्यों पर निर्भर करेगा।
यह अतात्विक है कि क्या उत्प्रेरित व्यक्ति अपराध कारित करता है अथवा नहीं अथवा एक साथ षडयंत्र करने वाले व्यक्ति वास्तविक रूप में षड़यंत्र के उद्देश्य को क्रियान्वित करते हैं।
साशय सहायता करने की परिधि आत्महत्या कारित करने के पहले अथवा कारित करने के समय आत्महत्या को सुकर बनाने के लिए किया गया कोई कृत्य, लेकिन जो वास्तविक रूप में तत्पश्चात् हो सकता है, दण्ड संहिता की धारा 107 में यथोलिखित साशय सहायता करने की परिधि के अन्तर्गत आच्छादित होता है।
बलात्संग के दुष्प्रेरण के अपराध के लिए आरोपित कोई व्यक्ति, जो बलात्संग का अपराध कारित करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है अथवा अभियोक्त्री की सम्मति के दिना लैंगिक हमला करने के लिए षडयंत्र में एक अथवा अधिक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के साथ शामिल होता है अथवा लैंगिक हमला कारित करने में साशय सहायता प्रदान करता है, बलात्संग के दुष्प्रेरण के अपराध के लिए आरोपित किया जा सकता है।
मामले के तथ्यों के लिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 की उपधारा (2) का कोई अनुप्रयोग नहीं है, क्योंकि लड़की अभियोजन के अनुसार 14 वर्ष से अधिक आयु की थी। वह स्थिति होने के कारण पहले भुगते गये बन्दीकरण की अवधि (जो लगभग 7 वर्ष हो कथित किया गया है) के तथ्य को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने दण्डादेश को, जहाँ तक धारा 376 के सापेक्षिक अपराध का सम्बन्ध है 7 वर्ष तक कम किया था। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 के सम्बन्ध में अधिरोपित दण्डादेश को कायम रखा गया। व्यतिक्रम अनुबन्ध के साथ अधिरोपित जुर्माना कोई हस्तक्षेप प्राधिकृत नहीं करता है। यदि अधिरोपित जुर्माना को जमा कर दिया गया हो अथवा जमा कर दिया जाता है, तब उसे पीड़िता के पिता को संदत किया जाएगा।
सह-अभियुक्त अभियोक्त्री को अभियुक्त, जो उसका मित्र था, के द्वारा भेजा गया उपहार दिया करता था। उसने किसी व्यक्ति को अवैध कृत्य करने के लिए नहीं उकसाया था और किसी व्यक्ति के साथ शामिल नहीं हुआ था। तथ्य का कोई स्वैच्छिक व्यपदेशन अथवा छिपाव नहीं था इसलिए, सह-अभियुक्त को दुष्प्रेरण के लिए दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है।
बलात्संग का अपराध कारित करने को दुष्प्रेरित करना
एम. जिगनेश बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य, 2003 क्रि लॉ ज 739 एपी के मामले में चूंकि अभियोजन अपीलार्थी और एन के बीच पीड़िता के साथ बलात्संग कारित करने के षड़यंत्र को सभी युक्तियुक्त संदेह के परे साबित करने में विफल हुआ था और चूंकि अभिलेख पर साक्ष्य भी यह साबित नहीं करता है कि अपीलार्थी ने ए-1 को अ सा 2 के साथ बलात्संग कारित करने के लिए दुष्प्रेरित किया था, परन्तु यह नहीं बल्कि कहा जा सकता है कि अभियोजन अपीलार्थी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120-ख 109 सपठित धारा 376 के अधीन आरोप को साबित करने में विफल हुआ था।
अभिलेख पर साक्ष्य और ऊपर किए गये विचार
तेज खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 2004 क्रि लॉ ज 276 के मामले में विमर्श से यह साबित हुआ है कि गफूरन ने उसके पति के द्वारा कारित किए गये अपराध में और उसे सरक्षित करने में भी सक्रिय भूमिका निभाया था। इस सम्बन्ध में हसीना का कथन यह है कि यह अपीलार्थी गफूरन, जो उसे उसके घर पर इस बहाने से ले गयी थी कि उसका चाचा उसे बुला रहा था और यह वह थी. जिसने दरवाजा को बाहर से बन्द कर लिया था और अपराध कारित करने को दुष्प्रेरित किया था।
यह निष्कर्ष कि वह अपने पति के साथ षडयंत्र में शामिल थी. विधिक और विश्वसनीय साक्ष्य पर आधारित है और इस सम्बन्ध में अभियोजन के साक्ष्य को केवल इस कारण से नामजूर नहीं किया जा सकता है कि पत्नी लड़की के साथ बलात्संग कारित करने में अपने पति की सहायता नहीं करेगी।
अभियोजन के द्वारा प्रस्तुत किए गये साक्ष्य से युक्तियुक्त संदेह से परे यह साबित होता है कि अपीलार्थी-तेज खान ने 11 वर्षीय हसीना के साथ बलात्संग कारित किया था और उसकी पत्नी, अपीलार्धिनी- गफूरन अपने पति के साथ षडयंत्र की थी और अपराध कारित करने में उसे सहायता प्रदान की थी। इसलिए दोनों अपीलार्थीगण की दोषसिद्धि उचित है।
राम कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 1995 क्रि लॉ ज 3621 के मामले में जहाँ पर अभियोक्त्री का साक्ष्य विश्वसनीय था और वह उसके पति के साक्ष्य और स्थानीय लोगों के साक्ष्य के द्वारा संपुष्ट था तथा अभियुक्त ने अपनी स्थिति का दुरुपयोग करते हुए अभियोक्त्री के साथ बलात्संग कारित किया था, जबकि सह-अभियुक्त अपने पति की देखभाल कर रही थी वहां पर यह अभिनिर्धारित किया गया था कि उच्च न्यायालय के द्वारा बलात्संग का अपराध कारित करने के लिए अभियुक्त का 7 वर्ष का कठोर कारावास का दण्डादेश तथा बलात्संग का अपराध कारित करने को दुष्प्रेरित करने के लिए सह-अभियुक्त का 2 वर्ष का कठोर कारावास का दण्डादेश उचित था।
दुष्प्रेरण को साबित करने के लिए यह साबित किया जाना है कि साशय सहायता थी। मात्र सहायता प्रदान करना दुष्प्रेरण की कोटि में नहीं आ सकता है, जब तक यह साशय न हो। किसी व्यक्ति की ओर से मात्र कृत्य अथवा लोप, जो वास्तव में अपराध कारित करने को सुकर बनाने में परिणामित होता है. स्पष्टीकरण 2 की अपेक्षाओं को संतुष्ट नहीं करेगा जो साबित किया जाना आवश्यक है, यह है कि व्यक्ति, जिसके विरुद्ध दुष्प्रेरण का आरोप विरचित किया गया है, अपराध कारित करने को सुकर बनाने के लिए क्या कुछ चीज किया था।
इसलिए जो आवश्यक है, वह यह है कि व्यक्ति, जिसके विरुद्ध दुष्प्रेरण का आरोप लगाया गया है को ऐसी कुछ चीज प्रयोजनपूर्ण रूप में साबित करना है, जो अपराध कारित करने को आसान बनाती हो। मात्र इस कारण से कि कोई व्यक्ति किसी ऐसी चीज को करता है अथवा किसी ऐसी चीज का लोप करता है, जो अपराध कारित करने को आसान बनाती हो, उसे तीसरे खण्ड सपठित स्पष्टीकरण 2 के द्वारा यथाअनुचिन्तित या तो कृत्य अथवा अवैध लोप के द्वारा अपराध कारित करने में साशय सहायता प्रदान करने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
दुष्प्रेरण का आरोप सामान्यतः उस समय विफल हो जाता है, जब मुख्य अपराधी के विरुद्ध सारवान अपराध साबित न हुआ हो।
बलात्संग के दुष्प्रेरण का अपराध अपीलार्थी संख्या 2 के विरुद्ध बलात्संग के दुष्प्रेरण के अपराध को साबित करने के लिए उस रीति, जिसमें वह अभियोक्त्री के साथ अपीलार्थी संख्या 1 के द्वारा बलात्संग कारित करने को दुष्प्रेरित किया था, को दर्शाते हुए कुछ साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहिए। ऐसे किसी साक्ष्य के पूर्ण अभाव में अपीलार्थी संख्या 2 को भारतीय दण्ड सहिता की धारा 376, सपठित धारा 109 के अधीन अपराध के लिए दोषमुक्त करना उचित नहीं होगा।
जहाँ पर मुख्य अथवा प्रमुख अभियुक्त को अपराध से दोषमुक्त कर दिया गया हो, वहां पर उस व्यक्ति जो केवल उस अपराध के दुष्प्रेरण से आरोपित किया गया हो, को दोषी नहीं पाया जा सकता है अथवा दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है।
एक मामले में अभियुक्त ने अभिकथित रूप में एक 14 वर्षीय गांव की लड़की पर आक्रमण तथा उसके साथ बलात्संग कारित किया था। 6 अभियुक्त थे, उनमें से तीन को वास्तविक रूप में भाग लेने के लिए अभिकथित किया गया था और शेष तीनों षडयंत्रकारी तथा दुष्प्रेरक थे। परिवाद दर्ज कराने में विलम्ब इतना पर्याप्त नहीं था कि वह अभियोजन मामले को समाप्त कर दे। हमला में अभियुक्तगण संख्या 1 4 और 5 के शामिल होने को साबित करने के लिए निश्चायक साक्ष्य था। लेकिन चिकित्सीय साक्ष्य हल्का-सा कमजोर था और पीड़िता के साक्ष्य में शैथिल्यता थी।
अभियुक्तगण संख्या 1 4 और 5 यद्यपि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दोषसिद्ध किए जाने के लिए दायी थे, फिर भी वे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 379 और 109 के अधीन संदेह के लाभ के हकदार हैं। चूंकि अभियुक्तगण संख्या 2, 3 और 6 को न्यायालय के समक्ष पीडिता के द्वारा विनिर्दिष्ट रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया था, इसलिए वे दोषमुक्त किए जाने के लिए हकदार है।
धारा 17
दुष्प्रेरण के लिए दंड
जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाता है, तो वह उस दंड से दंडित किया जाएगा जो उस अपराध के लिए उपबंधित है। स्पष्टीकरण–कोई कार्य या अपराध दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप तब किया गया कहा जाता है जब वह उस उकसाहट के परिणामस्वरूप या उस षड्यंत्र के अनुसरण में या उस सहायता से किया जाता है, जिससे दुष्प्रेरण गठित होता है।