लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 12: लैंगिक हमले के लिए दंड
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 8 लैंगिक हमले के लिए दंड का उल्लेख करती है। धारा 7 में इस अपराध का अस्तित्व प्रस्तुत किया गया है जो इस अपराध की परिभाषा है और धारा 8 में धारा 7 में उल्लेखित अपराध के लिए दंड रखा गया है। इस आलेख में धारा 8 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है
धारा 8
लैंगिक हमले के लिए दंड- जो कोई लैंगिक हमला कारित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
लैंगिक हमले के अपराध में कम से कम कारावास तीन वर्ष का रखा गया है और अधिकतम पांच वर्ष तक हो सकता है। इस प्रकार लैंगिग हमले का अपराध भी अपने आप में एक गंभीर अपराध है जिसके लिए कठोर दंड है।
दण्डादेश का उपान्तरण
एक मामले में अभियुक्त को पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के अधीन 5,000 रुपये के जुर्माने के साथ पांच वर्ष का कठोर कारावास भुगतने के लिए दण्डादेशित किया गया था जो यह अधिकतम दण्डादेश है, जो प्रदान किया जा सकता है। नामिक नामावली यह प्रकट करती है कि अभियुक्त 2 मास और 20 दिन के परिहार के अलावा एक वर्ष, सात मास और 27 दिन का बन्दीकरण भुगत चुका है। उसे पहले दोषसिद्ध नहीं किया गया है और वह किसी अन्य आपराधिक मामले में शामिल नहीं है।
जेल में उसका संपूर्ण आचरण सन्तोषजनक है। दण्डादेश का आदेश यह अभिलिखित करता है कि अभियुक्त पत्नी तथा तीन स्कूल जाने वाले बच्चों को रखने वाला विवाहित व्यक्ति है। सभी परिस्थितियों पर विचार करने के पश्चात् पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के अधीन प्रदान किये जाने वाले पांच वर्ष के कठोर कारावास के देश को चार वर्ष के कठोर कारावास में उपान्तरित किया गया।
अर्जुन सुब्बा के मामले में लड़की पर लैंगिक हमले का सबूत अभियुक्त यह स्पष्ट करने में विफल हुआ था कि वह बालक के सामने नंगा क्यों हुआ था, जिसने स्वयं अपने कथन में यह कहा है कि वह सो रही थी और अभियोजन साक्षी के अभियुक्त को बुलाते हुए चिल्लाने पर जग गयी थी और यह पायी थी कि उसका पायजामा नीचे गिरा हुआ था। नंगी स्थिति में अभियुक्त की उपस्थिति लैगिक हमले का पर्याप्त सबूत होती है इसलिए अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित अभिनिर्धारित की गयी।
भारत का महान्यायवादी बनाम सतीष एवं एक अन्य 2022 के मामले में उच्च न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति क्योंकि कोई धर्म से धर्म का सम्पर्क नहीं था लैंगिक हमले का अपराध अभियुक्त द्वारा अपील में उच्च न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति, इस आधार पर कि अभियुक्त का अपराध कारित करने का कोई लैगिक आशय नहीं था क्योंकि कोई प्रत्यक्ष शारीरिक सम्पर्क नहीं था। यह विनिश्चय खतरनाक पूर्व-निर्णय हो सकता है। इस प्रकार, उच्चतम न्यायालय ने अभियुक्त की दोषमुक्ति को स्थगित करने के पश्चात महान्यायवादी को उच्च न्यायालय के उस विनिश्चय के विरुद्ध समुचित याचिका दाखिल करने की अनुमति दी थी और मामले में नोटिस जारी करने का निर्देश दिया था।
संदेह का लाभ साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि अभियुक्त ने अपने क्रोध के कारण लड़की को थप्पड़ मारा था और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में युक्तियुक्त रूप में यह भिन्न विचार अपनाया जा सकता है कि थप्पड़ मारने की घटना परिवादी और अभियुक्त के बीच पहले से विद्यमान दुश्मनी के कारण बढ़ सकती है। इस प्रकार अभियुक्त ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के अधीन अपराध कारित नहीं किया है और अभियुक्त संदेह के लाभ का हकदार है।
लज्जा भंग करना गुस्से में लड़की को मात्र थप्पड़ मारना स्त्री की लज्जा भंग करने की परिभाषा की परिधि के भीतर नहीं आता।
राजू बनाम उत्तराखण्ड राज्य, 2019 के प्रकरण में चिकित्सीय साक्ष्य चिकित्सा अधिकारी ने प्रतिपरीक्षा में यह स्वीकार किया था कि पीड़िता के शरीर पर कोई क्षति नहीं पायी गयी थी और वह प्राधिकारिक रूप में यह नहीं बता सकी थी कि पीड़िता को गुदा मैथुन के अधीन बनाया गया था। गुदा के क्षेत्र पर पायी जाने वाली कोमलता किसी अन्य कारण से भी हो सकती थी। मात्र विरोधी अभियोजन के प्रकथन तथा साक्षियों के कथनों पर अभियुक्त की दोषसिद्धि संधार्य नहीं हो सकती है।
निक्का राम बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य 2019 क्रिमिनल लॉ ज 1834 अवयस्क पर लैंगिक हमला पीड़िता का यह प्रकथन कि अभियुक्त ने उसे बेवस्त्र कर दिया था और तब बलात्संग कारित किया था, स्वयं पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के अर्थ के अन्तर्गत तथा उसकी धारा 8 के अधीन दण्डनीय लैंगिक हमले का अपराध कारित करने को करने के लिए पर्याप्त है। अभियुक्त ने अभियोजन साक्षियों की प्रतिपरीक्षा करते समय अपने विरुद्ध पीड़िता के अभिकथन को विनिर्दिष्ट रूप में गंभीरतापूर्वक विवादित नहीं किया है और अपेक्षाकृत स्वयं मात्र इस सुझाव से सन्तुष्ट था कि उसे मिथ्या रूप में गया है।
तथापि स्वयं पीडिता लड़की तथा उसके माता-पिता के कथनों से भी यह साबित हुआ है कि अभियुक्त उसे प्रत्येक और सभी अवसर पर 10 रुपये और कुछ टाफियों दिया करता था। इसलिए मैथुन के लिए अपनी कामवासना को सन्तुष्ट करने हेतु पीड़िता लड़की का शोषण करने का आशय अभिलेख पर साबित हुआ है। इसलिए दिये गये तथ्यों तथा परिस्थितियों में अभियुक्त के द्वारा कारित किया गया अपराध पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के न कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 अथवा अधिनियम की धारा 6 के अधीन है।
आरोप का परिवर्तन
पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 और धारा 12 के अधीन अपराध विभिन्न श्रेणियों के अधीन आता है दिये गये मामले में अधिनियम की धारा 12 के अधीन आरोप विरचित करने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं हो सकती है परन्तु यदि अधिनियम की धारा 3 के अधीन आरोप विरचित करने के लिए सामग्रियों हो, तो अन्वेषण अधिकारी को सदैव आरोप को परिवर्तित करने का विकल्प प्राप्त होता है।
अवयस्क बालिका लड़की पर लैंगिक हमला
एक मामले में यह अभिकथन था कि अभियुक्त लगभग 10 वर्षीय अवयस्क पीड़िता लड़की को अपने पायजामे में उसका हाथ डालने के लिए और उसके जननांग को सहलाने के लिए विवश किया था और उसे पचास रुपये दिया पीड़िता के माता-पिता यह अभिसाक्ष्य दिए थे कि पीड़िता अपने भाईयों के साथ मंदिर घूमने के लिए गयी थी। साक्षी, जो पीड़िता का भाई है।
घटना के सम्बन्ध में तब तक सारवान रूप में वही कथन किए थे, जब तक वे घटना स्थल से भाग नहीं गये थे। उस शुद्ध समय जब पीड़िता घूमने गयी थी के बारे में साक्ष्य में विरोध था और जहाँ पर वे अभियुक्त से मिले थे, सारवान खण्डन में नहीं था। पीड़िता के द्वारा तात्विक तथ्यों का अभिसाक्ष्य दिया गया। था। वह प्रतिपरीक्षा के दौरान अटल रही थी। दोषसिद्धि को उचित होना अभिनिर्धारित किया गया था।
मुल्तान दास बनाम त्रिपुरा राज्य, 2021 के मामले में लैंगिक हमला के सबूत अभियुक्त ने अभिकथित रूप से पीड़िता के घर में अतिचार किया था और बलपूर्वक उसके साथ बलात्संग कारित किया था जन्म प्रमाण-पत्र पीड़िता की 15 अर्थात् सम्मति की आयु से कम होना साबित किया था पीडिता लड़की के कथन पर अविश्वास करने के लिये कोई कारण नहीं है, जिसकी सार्वभूत रूप से अभिपुष्टि उसके -पिता और अन्य साक्षियों द्वारा की गयी थी।
इस प्रकार साक्ष्य प्रचूर है की अभियुक्त ने पीड़िता का मुख दबाया था और लैंगिक हमला कारित किया था, जैसा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के अधीन परिभाषित किया गया है और पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के अधीन नीय था। इसलिये पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के अधीन अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित नित की गयी थी।
लैंगिक हमला के आशय से गृह अतिचार
राखाल सरकार बनाम त्रिपुरा राज्य, 2021 के मामले में यह अभिकथित किया गया है कि अभियुक्त ने पीड़िता की लज्जा भंग करने लैंगिक रूप से उस पर हमला करने के आशय से गृह अतिचार किया था। पीड़िता तथा सूचनादाता-पीड़िता की माता और पिता के कथन में पर्याप्त फर्क है। अन्यथा पीड़िता का पिता श्रुत साक्षी है। सूचनादाता-माता पीड़िता के कथन का समर्थन नहीं किया था और पीड़िता भी सूचनादाता के कथन का समर्थन नहीं किया था। स्वतन्त्र साक्षी न तो पीड़िता और न ही सूचनादाता की कथन की अभिपुष्टि किये थे।
अन्वेषण अधिकारी ने पहने हुये कपड़ों में से किसी विशिष्ट रूप से उस फ्राक का अभिग्रहण नहीं किया था, जिसे अभियुक्त पूरा फाड़े जाने का दावा किया गया था। इसलिये, प्रतिकूल अनुमान अभियोजन के कथन के विरुद्ध निकाला जा सकता है और अभियोजन कहानी को अविश्वसनीय बनाता है। इस प्रकार, अपराध के निष्कर्ष को कायम नहीं रखा जा सकता।
सदोष अवरोध और लैंगिक उत्पीड़न का सबूत
रमन कुमार उर्फ रमनिया बनाम बिहार राज्य, 2021 के प्रकरण में यह अभिकथित किया गया है कि अभियुक्त ने अभियोक्त्री को पकड़ा था और उसका लैंगिक उत्पीड़न किया था। अभियोजन साक्षी स्वीकार किये हैं कि अभियुक्त की भाभी अभियोक्त्री और परिवार के अन्य सदस्यों के विरुद्ध पूर्व मामला दाखिल किया किन्तु तथ्य का दमन अभियोजन द्वारा किया गया था।
एफआईआर में अभियोक्त्री का दावा, कि अभियुक्त ने गाल के विभिन्न भागों पर दाँत से काटा था, कि अभिपुष्टि चिकित्सीय साक्ष्य द्वारा नहीं की गयी है और न ही अभियोक्त्री अन्य खरोंच को स्पष्ट की है, जिसका उल्लेख चिकित्सक द्वारा किया गया है। प्रतिरक्षा साक्षियों पर अविश्वास करने के लिये कोई कारण नहीं है, जिसने अभिसाक्ष्य दिया है कि अभिकथित घटना के समय वे घटना स्थल के नजदीक थे और कोई ऐसी घटना नहीं हुई थी। पूर्वोक्त तात्विक परस्पर विरोध अभियोजन मामले पर सन्देह करने के लिये पर्याप्त क्षेत्र छोड़ता है और अभियुक्त की दोषसिद्धि अपास्त की जाती है।