राजस्व न्यायालयों और नियंत्रण प्रणाली की संरचना: राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 20-A से 23

Update: 2025-04-26 11:12 GMT
राजस्व न्यायालयों और नियंत्रण प्रणाली की संरचना: राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 20-A से 23

राज्य में भूमि से जुड़े विवादों की संख्या बहुत अधिक होती है, और इनमें निर्णय लेने के लिए एक न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता होती है। राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 में पहले ही राजस्व अधिकारियों की नियुक्ति और उनके अधिकारों का वर्णन किया गया है।

अब Sections 20-A से 23 में राजस्व अपीलीय प्राधिकारी, पद के अनुसार की गई नियुक्तियाँ, उनकी अधिसूचना, और न्यायिक तथा गैर-न्यायिक कार्यों पर नियंत्रण से संबंधित प्रावधानों को दर्शाया गया है।

Section 20-A – राजस्व अपीलीय प्राधिकारी (Revenue Appellate Authority)

यह धारा राज्य सरकार को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह तीन या उससे अधिक ऐसे अधिकारी नियुक्त करे जो राजस्व न्यायिक मामलों में अपीलें (Appeals), पुनरीक्षण (Revisions), और संदर्भ (References) को सुन सकें और उनका निस्तारण कर सकें। ये सभी अधिकारी Revenue Appellate Authority के नाम से जाने जाएंगे।

यह प्रावधान इसलिए लाया गया ताकि ज़मीन से जुड़े विवादों की न्यायिक अपीलें सुनने के लिए एक अलग और विशेष प्राधिकरण (Authority) हो, जो अन्य कार्यों से स्वतंत्र रूप से अपना निर्णय ले सके। इससे न्याय मिलने में तेजी आती है और Collector या अन्य अधिकारियों पर कार्यभार नहीं बढ़ता।

धारा का दूसरा उपखंड बताता है कि ये Revenue Appellate Authorities कहां बैठेंगे और काम करेंगे, यह राज्य सरकार समय-समय पर तय करती है।

उदाहरण: यदि भरतपुर, धौलपुर और करौली ज़िलों में भूमि विवादों की संख्या अधिक हो जाती है, तो राज्य सरकार इन जिलों के लिए संयुक्त रूप से एक Revenue Appellate Authority नियुक्त कर सकती है, जो भरतपुर में बैठे और इन तीनों जिलों से संबंधित अपीलें सुने।

यह भी जरूरी है कि कम से कम तीन अधिकारी नियुक्त किए जाएं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अपीलीय कार्य निष्पक्ष, सुव्यवस्थित और बिना देरी के पूरे हों।

Section 21 – पदेन नियुक्तियाँ (Appointment ex-officio)

इस धारा के अनुसार, जो अधिकारी धारा 17, 18, 19, 20, 20-A अथवा 20-3A के अंतर्गत नियुक्त किए जा सकते हैं, उन्हें "पदेन" आधार पर भी नियुक्त किया जा सकता है। "पदेन" (Ex-officio) का अर्थ होता है कि कोई व्यक्ति जब किसी एक पद पर नियुक्त होता है, तो वह अपने उस पद के कारण दूसरे पद पर भी स्वाभाविक रूप से कार्य करेगा।

इस प्रकार की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल बनाना और अधिकारियों की भूमिकाओं को प्रभावी बनाना होता है।

उदाहरण: यदि राज्य सरकार एक व्यक्ति को Jaipur Division का Commissioner नियुक्त करती है, तो उसी व्यक्ति को ex-officio Additional Settlement Commissioner भी नियुक्त किया जा सकता है, यदि उसके पास उस कार्य को करने की क्षमता और अनुभव हो। इससे न केवल सरकार के संसाधनों की बचत होती है बल्कि कार्यों में समन्वय भी बना रहता है।

यह प्रावधान यह भी दर्शाता है कि सरकार प्रशासनिक आवश्यकता अनुसार एक ही अधिकारी को एक से अधिक जिम्मेदारियाँ सौंप सकती है।

Section 22 – नियुक्तियों की अधिसूचना (Notification of Appointment)

इस धारा के अनुसार, जो भी नियुक्तियाँ धारा 17 से लेकर धारा 21 के अंतर्गत की जाती हैं, उन्हें राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाना अनिवार्य है। राजपत्र में प्रकाशन का उद्देश्य यह होता है कि आम जनता को यह सूचना प्राप्त हो सके कि कौन-कौन से अधिकारी किस पद पर नियुक्त किए गए हैं।

हालांकि, इस धारा में यह स्पष्ट छूट दी गई है कि Naib-Tehsildar की नियुक्ति को राजपत्र में प्रकाशित करना आवश्यक नहीं है। इसका कारण यह है कि Naib-Tehsildar का पद अधीनस्थ होता है और उनकी नियुक्तियाँ बहुत सामान्य प्रशासनिक प्रकिया से होती हैं।

उदाहरण: यदि राज्य सरकार किसी जिले में एक नया Additional Collector नियुक्त करती है, तो यह नियुक्ति राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी। इससे अधीनस्थ अधिकारी, नागरिक और अधिवक्ता सभी यह जान सकेंगे कि वह अधिकारी किस न्यायिक या प्रशासनिक कार्य में सक्षम है।

लेकिन अगर किसी तहसील में Naib-Tehsildar नियुक्त किया गया है, तो उसकी जानकारी स्थानीय नोटिस बोर्ड या आंतरिक प्रशासनिक माध्यम से दी जा सकती है, राजपत्र में उसकी सूचना देना आवश्यक नहीं है।

Section 23 – नियंत्रण की शक्ति (Controlling Power)

यह धारा दो भागों में विभाजित है और राज्य के राजस्व कार्यों के नियंत्रण की व्यवस्था स्पष्ट करती है।

उपधारा (1) के अनुसार, जो भी गैर-न्यायिक राजस्व कार्य (non-judicial revenue matters) हैं—जैसे कि भूमि रिकॉर्ड का संधारण, नाप-जोख, फसल गिरदावरी आदि—उनका नियंत्रण राज्य सरकार के अधीन होगा।

वहीं, जो भी न्यायिक कार्य हैं—जैसे ज़मीन के स्वामित्व का विवाद, किरायेदारी, कब्जा हटाना आदि—और जो Settlement से संबंधित हैं, वे सभी कार्य राजस्व मंडल (Board of Revenue) के नियंत्रण में होंगे।

उदाहरण: अगर किसी किसान की भूमि रिकॉर्ड में नाम गलत दर्ज हो गया है, और वह उस गलती को दुरुस्त कराना चाहता है, तो यह एक गैर-न्यायिक मामला होगा और इसका नियंत्रण राज्य सरकार के प्रशासनिक आदेशों के तहत होगा। लेकिन यदि दो पक्षों के बीच उस भूमि को लेकर विवाद है कि असली मालिक कौन है, तो यह न्यायिक मामला होगा और यह कार्य राजस्व मंडल के अधीन आता है।

उपधारा (2) में यह स्पष्ट किया गया है कि "न्यायिक कार्य" का अर्थ ऐसे मामले होते हैं जिनमें राजस्व अदालत (Revenue Court) या अधिकारी को किसी पक्ष के अधिकारों और दायित्वों का निर्णय करना होता है। ऐसे सभी कार्य—मूल प्रक्रिया, अपील, पुनरीक्षण, और संदर्भ (reference)—को न्यायिक मामला माना जाएगा। प्रथम अनुसूची (First Schedule) में जो मामले सूचीबद्ध हैं, वे सभी न्यायिक माने जाएंगे।

उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति को सरकारी रिकॉर्ड में भूमि का मालिक बताया गया है लेकिन दूसरा व्यक्ति दावा करता है कि वह असली मालिक है, तो इस विवाद को न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही निपटाया जाएगा। और यदि यह मामला अपील या पुनरीक्षण में जाता है, तो वह भी न्यायिक ही माना जाएगा और उसका नियंत्रण Board of Revenue के पास रहेगा।

धारा 20-A से 23 तक राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की वे महत्वपूर्ण धाराएँ हैं जो राज्य में राजस्व न्यायालयों की स्थापना, पदेन नियुक्तियों की वैधता, नियुक्तियों की सार्वजनिकता और नियंत्रण की व्यवस्था को स्पष्ट करती हैं।

धारा 20-A न्यायिक अपीलों के लिए एक विशेष प्राधिकरण के गठन की बात करती है।

धारा 21 नियुक्तियों को पदेन आधार पर वैध बनाती है।

धारा 22 पारदर्शिता लाते हुए नियुक्तियों को राजपत्र में प्रकाशित करने की अनिवार्यता को स्थापित करती है।

धारा 23 प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों के नियंत्रण का विभाजन कर दोनों क्षेत्रों में जवाबदेही तय करती है।

इन प्रावधानों के माध्यम से न केवल राज्य में भूमि से जुड़े विवादों के निष्पादन को सुव्यवस्थित किया गया है बल्कि यह भी सुनिश्चित किया गया है कि न्याय और प्रशासन दोनों ही पारदर्शी, उत्तरदायी और प्रभावी बने रहें।

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