क्या UAPA मामलों में राज्य पुलिस को जांच तुरंत रोकनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1967 (Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 - UAPA) भारत का मुख्य कानून है जो देश की संप्रभुता (Sovereignty) और अखंडता (Integrity) को खतरा पहुंचाने वाली गतिविधियों से निपटने के लिए बनाया गया है।
यह कानून राज्य और केंद्र की एजेंसियों को आतंकवाद और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों की जांच के लिए प्रावधान (Provisions) देता है।
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी एक्ट, 2008 (National Investigation Agency Act, 2008 - NIA Act) के तहत नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) को UAPA के तहत गंभीर मामलों की जांच सौंपी जाती है।
हाल ही में नासेर बिन अबू बकर याफाई बनाम महाराष्ट्र राज्य (Naser Bin Abu Bakr Yafai v. State of Maharashtra) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि NIA द्वारा जांच संभालने से पहले राज्य पुलिस की क्या भूमिका होनी चाहिए।
इस लेख में, इस निर्णय का विश्लेषण (Analysis) किया गया है, जिसमें कानूनी प्रावधानों (Legal Provisions) और न्यायालय द्वारा सुलझाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों (Fundamental Issues) पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
विधायी ढांचा: UAPA और NIA अधिनियम (Legislative Framework: UAPA and NIA Act)
UAPA कानून राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अपराधों को परिभाषित करता है। NIA Act, 2008 इस प्रकार के अपराधों की जांच के लिए एक केंद्रीकृत और विशेषज्ञ प्रणाली प्रदान करता है।
NIA अधिनियम की धारा 6 (Section 6 of NIA Act)
1. सूचना और निर्देश (Notification and Direction): यदि केंद्र सरकार को कोई अपराध उपयुक्त लगता है, तो वह धारा 6(4) या 6(5) के तहत NIA को जांच सौंपने का निर्देश देती है।
2. राज्य एजेंसी की भूमिका (Role of State Agency): धारा 6(6) के अनुसार, राज्य पुलिस को जांच तुरंत रोकनी होती है और सभी दस्तावेज़ (Documents) NIA को सौंपने होते हैं। लेकिन धारा 6(7) यह स्पष्ट करती है कि जब तक NIA जांच अपने हाथ में नहीं लेती, राज्य पुलिस को जांच जारी रखनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट की धारा 6 की व्याख्या (Supreme Court's Interpretation of Section 6)
नासेर बिन अबू बकर याफाई मामले में मुख्य प्रश्न यह था कि क्या राज्य की ATS (Anti-Terrorism Squad) जांच जारी रख सकती थी, जबकि केंद्र सरकार ने NIA को जांच सौंपने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला किया कि धारा 6(7) के तहत NIA द्वारा जांच संभालने तक ATS की जांच जारी रखना अनिवार्य है।
महत्वपूर्ण बिंदु (Key Points):
1. जांच में अंतराल नहीं होना चाहिए (No Hiatus in Investigation): धारा 6(7) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केंद्र सरकार के निर्देश और NIA द्वारा जांच संभालने के बीच कोई अंतराल न हो।
2. राज्य एजेंसियों का दायित्व (Duties of State Agencies): जब तक NIA दस्तावेज़ प्राप्त नहीं करती और जांच शुरू नहीं करती, राज्य पुलिस को जांच जारी रखने का अधिकार और कर्तव्य (Duty) है।
अधिकार क्षेत्र के मुद्दे: मजिस्ट्रेट और विशेष अदालतों की भूमिका (Jurisdictional Issues: Role of Magistrates and Special Courts)
मामले में यह भी तर्क दिया गया कि UAPA के तहत अपराधों को केवल NIA Act के तहत गठित विशेष अदालतों (Special Courts) में सुना जा सकता है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित स्पष्ट किया:
1. NIA जांच से पहले का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction Before NIA Takeover): जब तक NIA जांच नहीं संभालती, राज्य द्वारा नामित अदालतें (State-Designated Courts) मामलों की सुनवाई कर सकती हैं।
2. विशेष अदालतों का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction of Special Courts): NIA द्वारा जांच शुरू करने के बाद, विशेष अदालतों को ही इन मामलों की सुनवाई का अधिकार है।
पूर्ववर्ती मामलों का विश्लेषण (Analysis of Precedents)
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कई पूर्व मामलों का हवाला दिया:
1. H.N. Rishbud बनाम दिल्ली राज्य (1955): यह मामला स्पष्ट करता है कि जांच में हुई गड़बड़ियां तब तक मुकदमे को रद्द नहीं करतीं, जब तक वे न्याय में बाधा नहीं बनतीं।
2. बिक्रमजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (2020): इस मामले में कहा गया कि UAPA के तहत अपराधों की सुनवाई केवल NIA Act के तहत गठित विशेष अदालतों में होनी चाहिए।
3. Union of India बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा (2003): इसमें "जांच" की परिभाषा (Definition of Investigation) को व्यापक (Comprehensive) रूप से समझाया गया।
निर्णय के प्रभाव (Implications of the Judgment)
इस निर्णय ने NIA Act और UAPA के तहत राज्य और केंद्र की एजेंसियों के बीच संबंधों को स्पष्ट किया। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 6(7) की व्याख्या को एक एहतियाती कदम (Safeguard) बताया, जिससे आतंकवाद से जुड़े मामलों में किसी भी देरी को रोका जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय नासेर बिन अबू बकर याफाई मामले में यह स्पष्ट करता है कि UAPA के तहत राज्य पुलिस को तब तक जांच जारी रखनी चाहिए जब तक NIA जांच अपने हाथ में नहीं लेती। यह निर्णय न केवल कानूनी प्रक्रियाओं की निरंतरता (Continuity) सुनिश्चित करता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में एक संगठित (Organized) दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करता है।
यह निर्णय NIA Act और UAPA के तहत अधिकार क्षेत्र और प्रक्रियात्मक जटिलताओं (Procedural Complexities) को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल (Precedent) के रूप में काम करेगा।