सुप्रीम कोर्ट ने Indian School, Jodhpur & Anr. बनाम State of Rajasthan & Ors. (2021) के मामले में राजस्थान स्कूल (फीस का नियमन) अधिनियम, 2016 की संवैधानिकता पर विचार किया। इस कानून का उद्देश्य निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस को नियंत्रित करना था।
इस मामले का मुख्य सवाल था कि क्या यह नियमन (Regulation) संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यवसाय करने के मौलिक अधिकार (Fundamental Right) का उल्लंघन करता है।
कोर्ट ने यह विचार किया कि राज्य (State) निजी शैक्षणिक संस्थानों (Educational Institutions) को किस हद तक नियंत्रित कर सकता है, और कैसे संस्थानों की स्वायत्तता (Autonomy) और सार्वजनिक कल्याण (Public Welfare) के बीच संतुलन बनाया जा सकता है।
मौलिक अधिकार और स्वायत्तता (Fundamental Right and Autonomy)
निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल, शिक्षा व्यवस्था (Education System) के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। T.M.A. Pai Foundation बनाम State of Karnataka (2002) में संविधान पीठ (Constitution Bench) ने निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को अपनी फीस निर्धारित करने का अधिकार दिया। कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यवसाय करने के अधिकार का हिस्सा माना।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिकार (Right) पूर्ण (Absolute) नहीं है। राज्य (State) सार्वजनिक हित (Public Interest) में इसका नियमन (Regulation) कर सकता है, ताकि शोषण (Exploitation) और लाभ कमाने (Profiteering) से बचा जा सके।
Indian School, Jodhpur के मामले में याचिकाकर्ताओं (Petitioners) ने तर्क दिया कि 2016 का अधिनियम, विशेष रूप से फीस निर्धारण के लिए कमेटी (Committee) बनाने का प्रावधान, स्कूलों की स्वायत्तता को बहुत अधिक सीमित करता है। उन्होंने इसे संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) के उल्लंघन का आरोप लगाया।
राज्य का हस्तक्षेप और सार्वजनिक कल्याण (State Regulation and Public Welfare)
राज्य ने यह दावा किया कि फीस का नियमन (Regulation) शिक्षा को व्यापार (Business) नहीं बनने देने और गुणवत्ता युक्त शिक्षा (Quality Education) की सुलभता (Accessibility) सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
इस तर्क का समर्थन Islamic Academy of Education बनाम State of Karnataka (2003) और Modern School बनाम Union of India (2004) जैसे मामलों से किया गया, जहां कोर्ट ने फीस पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करने के लिए राज्य के हस्तक्षेप को सही ठहराया।
कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19(6) के तहत उचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions) लगाए जा सकते हैं। शिक्षा (Education) एक कल्याणकारी गतिविधि (Welfare Activity) है, जिसका समाज पर गहरा प्रभाव है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि फीस ऐसी न हो जो छात्रों को शिक्षा के अधिकार (Right to Education) से वंचित कर दे।
2016 अधिनियम के प्रावधान (Provisions of the 2016 Act)
राजस्थान स्कूल (फीस का नियमन) अधिनियम, 2016, प्रत्येक स्कूल में स्कूल स्तरीय फीस कमेटी (School Level Fee Committee या SLFC) बनाने का प्रावधान करता है। यह कमेटी स्कूल प्रबंधन (Management), माता-पिता (Parents), और शिक्षकों (Teachers) के प्रतिनिधियों (Representatives) से मिलकर बनाई जाती है।
कमेटी स्कूल द्वारा प्रस्तावित फीस संरचना (Fee Structure) की जांच करती है और यह सुनिश्चित करती है कि फीस निर्धारित करते समय निम्नलिखित कारकों (Factors) का ध्यान रखा गया:
• स्कूल का स्थान (Location)।
• छात्रों को उपलब्ध कराई गई सुविधाएँ (Facilities)।
• शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों का वेतन (Salaries)।
• प्रशासन और रख-रखाव (Administration and Maintenance) पर खर्च।
• स्कूल के विकास (Development) के लिए उचित अधिशेष (Reasonable Surplus)।
यह प्रावधान Modern Dental College and Research Centre बनाम State of Madhya Pradesh (2016) में स्थापित सिद्धांतों के अनुरूप है। इसके साथ ही, 2017 के नियमों (Rules) का नियम 10 अतिरिक्त कारकों का उल्लेख करता है, जैसे कि छात्रों की संख्या (Strength of Students) और विशेष कार्यक्रम (Special Programs)।
अनुपातिकता का सिद्धांत (Doctrine of Proportionality)
कोर्ट ने यह जांचने के लिए अनुपातिकता (Proportionality) का सिद्धांत लागू किया कि 2016 अधिनियम के प्रतिबंध उचित (Reasonable) हैं या नहीं। Puttaswamy बनाम Union of India (2017) के सिद्धांतों के अनुसार, कोई भी प्रतिबंध वैध उद्देश्य (Legitimate Aim) को पूरा करना चाहिए और competing interests के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
कोर्ट ने पाया कि अधिनियम स्कूलों को फीस प्रस्तावित करने की अनुमति देता है और माता-पिता तथा शिक्षकों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करके लोकतांत्रिक ढांचा (Democratic Framework) सुनिश्चित करता है।
कोर्ट ने Action Committee, Unaided Private Schools बनाम Director of Education (2009) के सिद्धांतों का भी समर्थन किया, जिसमें कहा गया था कि फीस संरचना में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक है।
शिक्षा में व्यावसायीकरण और शोषण रोकना (Preventing Commercialization and Exploitation)
Modern Dental College and Research Centre बनाम State of Madhya Pradesh (2016) के निर्णय में, कोर्ट ने दोहराया कि निजी संस्थानों को फीस निर्धारित करने का अधिकार है, लेकिन राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है कि फीस अनुचित न हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिक्षा केवल आर्थिक गतिविधि (Economic Activity) नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय (Social Justice) का एक साधन है।
इसके अलावा, P.A. Inamdar बनाम State of Maharashtra (2005) में, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि निजी संस्थान स्वायत्तता के नाम पर अत्यधिक शुल्क नहीं ले सकते और न ही capitation fees चार्ज कर सकते हैं।
नियमन पर पहले के निर्णय (Precedents on Regulation)
कोर्ट ने नियमन (Regulation) के समर्थन में कई निर्णयों का उल्लेख किया:
1. Society for Unaided Private Schools of Rajasthan बनाम Union of India (2012): कोर्ट ने शिक्षा को सार्वजनिक संपत्ति (Public Good) माना और निजी स्कूलों पर उचित प्रतिबंध को सही ठहराया।
2. Modern School बनाम Union of India (2004): कोर्ट ने फीस में अत्यधिक लाभ कमाने से रोकने के लिए राज्य के अधिकार को मान्यता दी।
3. Islamic Academy of Education बनाम State of Karnataka (2003): फीस संरचना की निगरानी के लिए नियामक समितियों (Regulatory Committees) की स्थापना को सही ठहराया।
4. Association of Private Dental and Medical Colleges बनाम State of Madhya Pradesh (2009): कोर्ट ने राज्य की भूमिका को मान्यता दी कि फीस वास्तविक लागत और उचित अधिशेष को दर्शाए।
स्वायत्तता और जवाबदेही का संतुलन (Balancing Autonomy and Accountability)
सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि संस्थानों की स्वायत्तता और जवाबदेही (Accountability) के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि निजी संस्थान गुणवत्ता युक्त शिक्षा (Quality Education) प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन बिना नियंत्रण के स्वायत्तता शोषण को बढ़ावा दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का Indian School, Jodhpur का निर्णय, फीस के नियमन (Regulation) के लिए बनाए गए राजस्थान स्कूल (फीस का नियमन) अधिनियम, 2016 की संवैधानिकता को मान्यता देता है।
यह निर्णय यह सिद्ध करता है कि निजी संस्थान वाणिज्यिक संगठन (Commercial Entities) के रूप में कार्य नहीं कर सकते। शिक्षा एक सार्वजनिक संपत्ति (Public Good) है, जिसे सभी के लिए सुलभ और सस्ती बनाना राज्य की जिम्मेदारी है।
यह निर्णय न्यायपालिका की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसमें यह competing interests के बीच संतुलन बनाता है—निजी शैक्षणिक संस्थानों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और शिक्षा की पहुंच (Accessibility), वहनीयता (Affordability), और समानता (Equity) को सुनिश्चित करता है।