बलात्कार के अपराध के संबंध में जानिए मुख्य बातें

Update: 2020-02-29 09:45 GMT

बलात्कार का अपराध संपूर्ण भारत को हिला चुका है तथा यह अपराध भारतीय समाज के लिए एक महामारी के रूप में सामने आया है। राज्य और भारतीय विधान द्वारा इस अपराध को रोके जाने के कई प्रयास किए जा रहे हैं। सामाज में बलात्कार का अपराध एक अभिशाप बनकर आया है, विभिन्न सामाजिक स्तरों पर बलात्कार को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।

बलात्कार जैसे अपराध से केवल वयस्क स्त्रियां ही पीड़ित नहीं हैं, अपितु दुधमुंही बच्चियां भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से पीड़ित हो रही हैं।अपराधी दुधमुंही बच्चियों के भी बलात्कार कर उनकी हत्याएं कारित कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व एक वर्ष की बच्ची का बलात्कार किया गया तथा बलात्कार के उपरांत उसकी हत्या भी कर दी गई।

श्री बुद्धिमान गौतम बनाम शुभ्रा चक्रवर्ती एआईआर 1996 एस सी 922 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि बलात्कार का अपराध मानव अधिकारों के विरुद्ध अपराध है। इससे जीने के अधिकार का अतिलंघन होता है। यदि कोई अध्यापक अपनी शिष्या के साथ भगवान के सामने विवाह कर उसके साथ संभोग करता है और गर्भपात कराता है तथा बाद में उसे पत्नी मानने से इंकार कर देता है तो यह घृणित कार्य है। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को अत्यंत गंभीरता से लिया तथा मामले में विचारण काल तक शिक्षक से ₹1000 प्रतिकर स्वरूप दिलाए जाने का आदेश दिया।

बलात्कार के अपराध के संबंध में भारतीय दंड संहिता में दो धाराओं को रखा गया है। धारा 375 और धारा 376

धारा 375

भारतीय दंड संहिता की धारा बलात्कार की परिभाषा के संबंध में है। यह धारा बलात्कार की स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत करती है।

बलात्कार ऐसा अपराध है जिसमें संभोग के साथ स्त्री की सहमति पर प्रश्न होता है। संभोग की भी अपनी परिभाषा इस धारा के अंतर्गत दी गई है। किसी समय लिंग का योनि में प्रवेश संभोग माना जाता था, परंतु समय के साथ इस परिभाषा में परिवर्तन किए गए।

सन 2013 में इस धारा के अंतर्गत क्रांतिकारी संशोधन किए गए हैं। संभोग की अलग परिभाषा दी गई है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अंतर्गत संभोग निम्न भांति से हो सकता है-

कोई पुरुष-

(क)- किसी स्त्री की योनि, उसके मुंह, मूत्र मार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी स्तर पर प्रवेश करता है या उससे ऐसा अपने किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है या

(ख)- किसी स्त्री की योनि, मूत्र मार्ग,या गुदा में ऐसी कोई वस्तु यह शरीर का कोई भाग जो लिंग ना हो किसी भी सीमा तक अनुप्रविष्ट करता है या उससे ऐसा अपने किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है या

(ग)- किसी स्त्री के शरीर में किसी भाग का इस प्रकार हस्तसाधन करता है जिससे किसी स्त्री की योनि, गुदा, मूत्र मार्ग शरीर के किसी भाग में प्रवेशन कारित किया जा सके या उससे ऐसा अपने किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है या

(घ)- किसी स्त्री की योनि, गुदा, मूत्र मार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है।

इस तरह का कोई भी कार्य सात परिस्थितियों के अधीन करता है, जिनका उल्लेख दंड संहिता की धारा 375 के अधीन किया गया है तो ऐसा समझा जाता है कि उसने बलात्कार है।

संभोग की ऊपर उक्त परिभाषा से यह प्रतीत होता है कि दंड संहिता के अंदर संभोग की परिभाषा को स्त्री के पक्ष में अत्यंत विस्तृत कर दिया गया है तथा योनि पर मुंह तक लगाने या फिर उंगली तक डालने को बलात्कार माना जाएगा और इस प्रकार का संभोग करना ही अपराध नहीं है अपितु ऐसा संभोग करवाना भी अपराध है।

वे सात परिस्थितियां निम्न हैं-

पहला-उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध।

दूसरा-उस स्त्री की सहमति के बिना।

तीसरा-उस स्त्री की सम्मति से जब उसकी सम्मति उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति के भय में डालकर अभिप्राप्त की गई है।

चौथा- उस स्त्री की सम्मति से जब कि वह पुरुष यह जानता है कि वह उसका पति नहीं है और उसने सम्मति इस कारण दी है कि वह यह विश्वास करती है कि ऐसा अन्य पुरुष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है।

पांचवा- उस स्त्री की सम्मति से जब ऐसी सम्मति देने के समय वह विकृतचित्त या मत्तता के कारण या उस पुरुष द्वारा व्यक्तिगत रूप से किसी अन्य के माध्यम से कोई संज्ञाशून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदार्थ दिए जाने के कारण उस बात की जिसके बारे में वह सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है।

छठवां- उस स्त्री की सम्मति से या उसके बिना जब 18 वर्ष से कम आयु की है।

सातवा- जब स्त्री सम्मति संसूचित करने में असमर्थ है।

जब यह सात परिस्थितियों में किसी स्त्री के साथ ऊपर दी गई संभोग की परिभाषा के अनुसार संभोग किया जाता है तो बलात्कार का अपराध कारित हो जाता है।

बलात्कार के अपराध के संबंध में परिभाषा बहुत विस्तृत है क्योंकि केवल सहमति नहीं होना ही अपराध नहीं माना गया है अपितु यह सहमति किस भांति ली गई है इस पर भी ध्यान दिया गया है।यह सहमति डरा धमका कर,नशा देकर,पति होने का विश्वास दिला कर या फिर विकृत चित्त स्त्री से या फिर सहमति दे पाने में असमर्थ स्त्री से ली गयी है तो ऐसे सहमति से संभोग बलात्कार हो जाता है।

अवयस्क के संबंध में

नाबालिग स्त्री जो 18 वर्षों से कम है उसके साथ भी संभोग को बलात्कार माना गया है।भले ही इनसे संभोग के लिए उसकी सहमति रही हो,उसने स्पष्ट रूप से ऐसी सहमति दे दी थी।ऐसी सहमति के होने के बाद भी अभियुक्त बलात्कार का दोषी माना जाएगा,यदि वह किसी 18 वर्ष से कम की स्त्री के साथ संभोग करता है।

इस मामले में लालता प्रसाद बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश एआईआर 1997 एससी 1276 का इस प्रकरण है। इस बात का सबूत नहीं था कि लड़की की आयु 16 वर्ष से कम थी, उसके साथ उसकी सहमति के बिना लैंगिक संभोग किया गया था अतः यह धारण किया गया कि अभियुक्त बलात्कार का दोषी नहीं था।

बलात्कार के अपराध में क्या साक्ष्य हो सकते हैं

बलात्कार के अपराध में प्रत्यक्ष साक्षी का अभाव होता है। न्यायालय को बलात्कार के मामले में साक्ष्य के संबंध में अत्यंत सावधानी बरतनी होती है और सावधानी से ही मामले का मूल्यांकन, विश्लेषण करना होता है। बलात्कार से व्यथित स्त्री की गुप्तांगों पर चोट के निशान होना, उसके कपड़ों पर खून के दाग होना तब घटना के तुरंत बाद अपने माता-पिता को इससे अवगत करा देना कुछ ऐसे तथ्य जो बलात्कार के अपराध को साबित करने में सहायक होते हैं अतः निर्णय के समय इन तथ्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

भूपेंद्र शर्मा बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि बलात्कार के मामलों में बलात्कार की शिकार महिला का साक्ष्य पर्याप्त हो सकता है, उसकी अभिपुष्टि आवश्यक नहीं है।

इसी प्रकार सुधांशु शेखर साहू बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा ए आई आर 2003 एसी 4684 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि केवल बलात्कार की शिकार महिला की साक्ष्य पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जा सकता है, परन्तु वह सुरक्षित और विश्वसनीय योग्य हो।

बलात्कार की एफआईआर

बलात्कार के मामलों में प्रथम दृष्टया प्रथम सूचना रिपोर्ट अविलंब दर्ज कराए जाने की अपेक्षा की जाती है लेकिन या कोई कठोर नियम नहीं है। कारणवश वे लंबित हो सकता है केवल विलंब के आधार पर अभियोजन पक्ष के मामले को अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता।

इस संबंध में दिलदार सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब का एक अच्छा प्रकरण है। इसमें एक अध्यापक द्वारा अपने आवेश में शिष्या के साथ बलात्कार किया गया था। उसने भय के कारण यह बात किसी को नहीं बताई लेकिन जब उसे पता चला कि वह गर्भवती हो गई तो 3 माह बाद उसे सारी घटना अपनी माता को बताने के लिए विवश होना पड़ा। इस प्रकार 3 माह बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई उच्चतम न्यायालय ने इसे क्षम्य माना।

बलात्कार की एफआई आर में किसी कारणवश विलंब हो सकता है तथा न्यायालय ऐसा युक्तियुक्त कारण मान सकता है और विलंब को अनदेखा किया जा सकता है।

पत्नी के साथ बलात्कार

अभी हाल ही के कुछ मामलों में पत्नी के साथ बलात्कार जैसा विषय भी निकल कर सामने आया है। कुछ मामलों में उच्चतम न्यायालय ने पत्नी द्वारा बलात्कार की एफआईआर दर्ज करवाए जाने को वैध भी माना है, परंतु बाद के मामलों में उसे पलट दिया गया।

धारा 375 के दूसरे अपवाद में यह कहा गया है कि कोई भी स्त्री जो पुरुष की पत्नी है। यदि उसके साथ उसके पति द्वारा मैथुन किया जाता है या कोई और यौन क्रिया की जाती है तो ऐसी परिस्थिति में वह स्त्री बलात्कार का मुकदमा नहीं ला सकती।

यदि वह 15 वर्ष से कम आयु की है तो ऐसी परिस्थिति में वे बलात्कार का मुकदमा ला सकती है तथा 15 वर्षों से छोटी उम्र की स्त्री के साथ यदि मैथुन किया गया और उन निम्न सात परिस्थितियों में से कोई परिस्थिति रही तो बलात्कार का अपराध बन जाता है।

बलात्कार का अभियुक्त केवल पुरुष होगा

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अंतर्गत सबसे पहला शब्द पुरुष उपयोग किया गया है। उसके बाद संपूर्ण धारा के अंतर्गत बलात्कार जैसे अपराध का उल्लेख किया गया है। इस अपराध को बलात्संग भी कहा जाता है।

किसी भी परिस्थिति में बलात्कार जैसे अपराध में बलात्कार की मुख्य अभियुक्त स्त्री नहीं होती है। स्त्री पर बलात्कार का अभियोजन कोई पुरुष को व्यथित बना कर नहीं चलाया जा सकता क्योंकि बलात्कार की परिभाषा के प्रारंभ में ही पुरुष शब्द का उपयोग होता है।

इस लेख में बलात्कार की परिभाषा है एवं धारा 375 का उल्लेख किया गया है। इसके अगले भाग में बलात्कार से संबंधित मुख्य बातों में बलात्कार के लिए दंड का भी उल्लेख किया जाएगा। 

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