घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 13: मजिस्ट्रेट को अंतरिम और एकपक्षीय आदेश जारी करने की शक्ति
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 23 मजिस्ट्रेट को किसी भी कार्यवाही के चलते किसी भी मामले को एकपक्षीय करने और अंतरिम आदेश देने की शक्ति प्राप्त है। मजिस्ट्रेट को ऐसी शक्ति से संपन्न करने का उद्देश्य पीड़ित महिलाओं को शीघ्र से शीघ्र न्याय प्रदान करना और महिलाओं पर घरेलू हिंसा कारित करने वाले लोगों को रोकना है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 23 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा के शब्द है
धारा 23
अन्तरिम और एकपक्षीय आदेश देने की शक्ति
(1) मजिस्ट्रेट, इस अधिनियम के अधीन उसके समक्ष किसी कार्यवाही में, ऐसा अन्तरिम आदेश, जो न्यायसंगत और उपयुक्त हो, पारित कर सकेगा।
(2) यदि मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो जाता है कि प्रथमदृष्ट्या उसका कोई आवेदन यह प्रकट करता है कि प्रत्यर्थी घरेलू हिंसा का कोई कार्य कर रहा है या उसने किया है, या यह सम्भावना है कि प्रत्यर्थी घरेलू हिंसा का कोई कार्य कर सकता है, तो वह व्यथित व्यक्ति के ऐसे प्ररूप में जो विहित किया जाये, शपथ-पत्र के आधार पर, यथास्थिति, धारा 18, धारा 19, धारा 20, धारा 21 या धारा 22 के अधीन प्रत्यर्थी के विरुद्ध एकपक्षीय आदेश दे सकेगा।
धारा 23 अन्तरिम एवं एकक्षीय आदेशों को पारित करने की शक्ति प्रावधानित करता है।
अधिनियम की धारा 23 मजिस्ट्रेट को अन्तरिम एवं एकपक्षीय आदेश पारित करने के लिए सशक्त करती है जो वह न्यायसंगत एवं उपयुक्त समझे जिसमें अधिनियम की धारा 18 से 22 के अधीन आदेश शामिल है। धारा 23 के अधीन, मजिस्ट्रेट ऐसा कोई अन्तरिम आदेश पारित करने में सक्षम है जो वह मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों में उचित समझे। इस प्रकार यह देखा जाता है कि आदेश जो अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अधीन मजिस्ट्रेट पारित करता है निश्चित रूप से सिविल प्रकृति का होता है।
एकपक्षीय अन्तरिम आदेश का अनुदान
धारा 23 की उपधारा (2) की भाषा एकदम स्पष्ट है। विहित प्रारूप में दाखिल शपथ-पत्र पर, मजिस्ट्रेट उक्त अधिनियम की धारा 15,19, 20, 21 या 22 के अधीन एकपक्षीय अन्तरिम आदेश के अनुदान को प्रदान करने को शक्ति का प्रयोग कर सकता है परन्तु मजिस्ट्रेट संतुष्ट हो कि उक्त आवेदन प्रथम दृष्ट्या यह प्रकट करता है कि प्रत्यर्थी घरेलू हिंसा का कोई कार्य कर रहा है या उसने किया है या यह सम्भावना है कि घरेलू हिंसा का कोई कार्य कर सकता है।
धारा 23 की योजना प्रतीत होता है कि शपथ पत्र के आधार पर उपधारा (2) के अधीन, एकपक्षीय अन्तरिम आदेश प्रत्यर्थी को पूर्व नोटिस के बिना मजिस्ट्रेट द्वारा प्रत्यर्थी के विरुद्ध धारा 18, 19, 20, 21 या 22 के अधीन पारित किया जा सकता है। उपधारा (1) अन्तरिम आदेश पारित करने को प्रावधानित करती है जो धारा 12 को उपधारा (1) के अधीन मुख्य आवेदन के अन्तिम निस्तारण या उसके नवीकृत होने तक लागू होती है।
हालांकि अन्तरिम अनुतोष के अनुदान के लिए पृथक् आवेदन की आवश्यकता नहीं होती है, नैसर्गिक न्याय का सिद्धान्त अपेक्षा करता है कि धारा 23 को उपधारा (1) के अधीन अन्तरिम अनुतोष प्रदान करने से पहले मुख्य आवेदन में प्रत्यर्थी सुन लिया जाय। इस प्रकार, धारा 23 को उपधारा (1) के अधीन अन्तरिम अनुतोष अनुदान करने से पहले, प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामीलो हो जानी चाहिए। [
उपधारा (1) धारा 23 को उपधारा (1) के अधीन अनुतोष जो अधिनियम को धारा 18 से 22 में से किसी के द्वारा आच्छादित नहीं है अनुदत्त नहीं किये जा सकते। इस प्रकार संक्षेप में, धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन शक्ति अधिनियम की धारा 18 से 22 के निबन्धनों में एकपक्षीय अन्तरिम आदेश के अनुदान के लिए है एवं उपधारा (1) के अधीन शक्ति अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन मुख्य आवेदन के अन्तिम निस्तारण के सम्बित रहते हुए अन्तरिम अनुतोष के अनुदान के लिए है।
प्रक्रिया
2005 के अधिनियम की धारा 23 को उपधारा (2) 2005 के अधिनियम की धारा 12 या धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन आवेदन के निस्तारण के लिए न्यायालय द्वारा स्वयं निर्धारित प्रक्रिया का प्रावधान करती है। प्रक्रिया जो विद्वान अवर न्यायालय द्वारा अपनाई जा सकती है, आवेदन के निस्तारण तक सीमित होती है, परन्तु आदेश के निष्पादन के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता के सामान्य प्रावधानों का सहारा लिया जाना है।
भूतलक्षी प्रभाव
श्याम लाल बनाम कान्ता बाई 11 (2009) में निर्णय के प्रस्तर 4 में अभिलिखित किया गया है कि याचीगण को प्रत्यर्थी द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिए अभियोजित किया गया था। उच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क किया गया कि याचीगण को 26 अक्टूबर, 2006 के पूर्व घटित किसी अपराध के लिए अभियोजित नहीं किया जा सकता है। यह निष्कर्पित करते हुए अधिनियम के अधीन कार्यवाहियाँ खारिज कर दी गई थी कि अधिनियम के प्रावधानों को भूतलक्षी प्रभाव नहीं दिया गया था।
अधिनियम की धारा 23 घरेलू हिंसा के कृत्यों को कारित करने के कारण किसी व्यक्ति को दण्ड के लिए प्रावधान नहीं करती है। यह केवल मजिस्ट्रेट को अन्तरिम आदेश पारित करने के लिए सशक्त करती है जो वह न्यायसंगत एवं उचित समझे। यह केवल आदेश का उल्लंघन है, यदि कोई मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया जाता है, जो अधिनियम की धारा 31 के अधीन दण्डनीय बनाया गया है।
चूँकि अधिनियम की धारा 18 या धारा 23 के अधीन आदेश, जैसा भी मामला हो, केवल अधिनियम के लागू होने के बाद ही पारित किया जा सकता है इसलिए अधिनियम के लागू होने के पूर्व कारित घरेलू हिंसा के कृत्य के सम्बन्ध में विचारित करने में यह नहीं कहा जा सकता कि यह संविधान के अनुच्छेद 20 (1) के अधीन वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हैम
सामान्यतः प्रभावी अनुकल्पिक उपचार की उपलब्धता निश्चित रूप से इस न्यायालय को इसके बारे में स्पष्टीकरण पर विचार करने के लिए तत्पर बनायेगी कि ऐसे उपलब्ध प्रावधान का प्रयोग क्यों नहीं किया जा रहा है और केवल यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि उस समय भी अपवादजनक प्रकार के विवशकारी कारण होते हैं, यदि यह न्यायालय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन शक्तियों का आश्रय लेना पसन्द करेगी, जब याची के द्वारा ऐसे अनुकल्पित उपचारों का आश्रय न लिया गया हो
अभिव्यक्ति "आवेदन"धारा 23 (2) में निर्दिष्ट आवेदन स्पष्ट रूप से धारा 18 से 22 के अधीन अनुतोष का दावा करते हुए धारा 12 के अधीन आवेदन होता है। यह समझना असंभाव्य होता है कि धारा 23 (2) में अभिव्यक्ति "आवेदन" इस अपेक्षा को आवश्यक बनाता है कि धारा 23 के अधीन अन्तरिम आदेश के अनुतोष का दावा करने के लिए पृथक् आवेदन दाखिल किया जाना चाहिए।
संविधि के द्वारा धारा 23 में प्रयुक्त स्पष्ट भाषा से ऐसे दृष्टांत को अभिव्यक्त करना असंभाव्य है कि न्यायालय को अपेक्षित अधिकारिता सम्बन्धी सक्षमता से तथा दावाकर्ता को धारा 23 के अधीन अन्तरिम आदेश के अनुतोष का दावा करने के अधिकार से आच्छादित करने के लिए धारा 23 के अधीन पृथक् आवेदन दाखिल किया जाना चाहिए।
शपथ-पत्र
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियम, 2006 का नियम 7 यह प्रावधान करता है कि धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन एकपक्षीय आदेश प्राप्त करने के लिए प्रत्येक शपथ-पत्र प्ररूप 3 में दाखिल किया जायेगा। धारा 23 की उपधारा (2), सपठित नियम 7 स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि उक्त अधिनियम की धारा 23 के अधीन अन्तरिम अनुतोष के लिए पृथक् आवेदन दाखिल करने की कोई अपेक्षा नहीं होती है।
अन्तर्वर्ती आदेश
यह सत्य है कि धारा 23 अन्तर्वती आदेशों को विनिर्दिष्ट रूप से अभिव्यक्ति 'आदेश' की परिधि से अपवर्जित नहीं करती है। परन्तु अधिनियम की धारा 23 में ऐसे विनिर्दिष्ट अपवर्जन के बिना भी यह अभिनिर्धारित किया जाना है कि शुद्ध रूप से अन्तर्वर्ती आदेश, जो पक्षकारों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करते हैं, अपीलीय नहीं होंगे।
मजिस्ट्रेट की शक्तियां
अधिनियम की धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट अधिनियम की धारा 18 से 22 के निबन्धनों में एकपक्षीय अन्तरिम आदेश जारी करने के लिए सशक्त किया गया है। उपधारा (1) के अधीन शक्ति अधिनियम की धारा 18 से 22 के निबन्धनों में अन्तरिम अनुतोष प्रदान करने की है। उपधारा (1) के अधीन अन्तरिम अनुतोष प्रदान करने के पहले प्रत्यर्थी को सुने जाने का अवसर प्रदान किया जाना आवश्यक है।
मजिस्ट्रेट की अधिकारिता
वर्तमान मामले में चूंकि हिंसा का कृत्य स्वयं द्वारा अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध गठित नहीं करता है और यह केवल अधिनियम की धारा 18 अथवा 23 के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किये गये आदेश का भंग है, जो दण्डनीय बनाया गया है, तारीख, जिस पर घरेलू हिंसा का कृत्य कारित किया गया था, का पूर्ण रूप से मामले के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी प्रकार यह पूर्ण रूप से अतात्विक है कि क्या 'व्यथित व्यक्ति अपराध कारित करने की तारीख पर प्रत्यर्थी के साथ रह रहा था अथवा नहीं।
जब एक बार मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो जाता है कि याची अधिनियम की धारा 2 (क) के अर्थान्तर्गत 'व्यथित व्यक्ति' है और घरेलू हिंसा हुई है अथवा होनी संभाव्य है, तब वह अधिनियम की धारा 18 के निबन्धनों में संरक्षण आदेश अथवा धारा 23 के निबन्धनों में अन्तरिम आदेश पारित करने के लिए सक्षम होता है। शब्दों 'घरेलू नातेदारी में है अथवा रही है' का प्रयोग इसमें कोई संदेह नहीं छोड़ता है कि यह आवश्यक नहीं है कि व्यथित व्यक्ति को अधिनियम के प्रवर्तन में आने की तारीख पर अथवा उसके पश्चात्वर्ती तारीख पर उसके अधिनियम के प्रावधानों के अधीन मजिस्ट्रेट की अधिकारिता का आश्रय ले सकने के पहले प्रत्यर्थों के साथ रहना आवश्यक है
अन्तरिम अनुतोष का दावा जब व्यथित व्यक्ति अधिनियम की धारा 23 के अधीन किसी अन्तरिम अनुतोष के लिए दावा करना चाहता है, तब व्यथित व्यक्ति के लिए अन्तरिम अनुतोष का पृथक् आवेदन लाना आवश्यक नहीं होता है और विधि की केवल अपेक्षा यह होती है कि नियम के प्ररूप तीन में विहित शपथ पत्र व्यथित व्यक्ति के द्वारा दाखिल किया जाना है।
उपधारा (2) यह प्रावधान करती है कि जब ऐसा शपथ पत्र व्यथित व्यक्ति के द्वारा विहित प्ररूप में दाखिल किया जाता है और यदि अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन आवेदन प्रथम दृष्ट्या यह प्रकट करता है कि प्रत्यर्थी घरेलू हिंसा का कृत्य कारित कर रहा है अथवा किया है अथवा यह कि इस बात की संभावना है कि प्रत्यर्थी घरेलू हिंसा का कृत्य कारित कर सकता है, तब मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी के विरुद्ध धारा 18, 19, 20, 21 अथवा जैसे भी स्थिति हो, धारा 22 के अधीन एकपक्षीय आदेश पारित कर सकता है।
इस प्रकार धारा 23 को उपधारा (2) मजिस्ट्रेट पर एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष प्रदान करने की शक्ति प्रदत्त करती हैं। उक्त एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष को उक्त अधिनियम की धारा 18 से 22 के अधीन अनुतोषों के निवन्धनों में प्रदान किया जा सकता है।
अन्तरिम और एकपक्षीय अन्तरिम आदेश जारी करने की शक्ति
अधिनियम को धारा 23 के अधीन, अधिनियम की धारा 19, 20, 21 अथवा 22 के निबन्धनों में अन्तरिम तथा एकपक्षीय आदेश प्रदान करने की शक्ति मजिस्ट्रेट पर प्रदत्त की गई है।
एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष
यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि याची का यह मामला नहीं है कि शपथ पत्र, जिसे घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियम, 2006 के नियम 7 के अधीन दाखिल किया जाना आवश्यक है, प्रथम प्रत्यर्थी के द्वारा दाखिल नहीं किया गया था। इस प्रकार याची के द्वारा उठाया गया यह तर्क स्वीकार करना संभव नहीं है कि अधिनियम की धारा 23 के अधीन अन्तरिम अनुतोष केवल व्यथित व्यक्ति के द्वारा अन्तरिम अनुतोष के लिए प्रस्तुत किये गये केवल पृथक् आवेदन पर हो प्रदान किया जा सकता है।
अधिनियम की योजना तथा प्रावधानों और विशेष रूप में अधिनियम की धारा 23, सपठित धारा 28 और उक्त नियम के नियम 7 से यह प्रकट है कि विधि की ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है। विधि की केवल अपेक्षा यह है कि एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष की मांग करने वाली व्यथित व्यक्ति को नियम 7 सपठित अधिनियम की धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन यथोबन्धित विहित प्ररूप में शपथ पत्र दाखिल करना होगा। बाद के तथ्यों में याची के द्वारा अपीलीय न्यायालय के समक्ष अथवा इस याचिका में ऐसी कोई शिकायत नहीं की गई है. कि ऐसा आवेदन दाखिल नहीं किया गया था।
एकपक्षीय अन्तरिम आदेश पारित करने के पहले सावधानी और सतर्कता की मात्रा धारा 18 से 22 के अधीन संभाव्य आदेशों तथा अन्तरिम आदेश जो धारा के अधीन ऐसी शक्तियों का आश्रय लेते हुए पारित किये जा सकते हैं, कि प्रकृति अभी भी सावधानी तथा सतर्कता की सहवर्ती मात्रा, जो धारा 23, सपठित धारा 18 से 22 के अधीन एकपक्षीय अन्तरिम आदेश पारित करने के पहले आवश्यक है।
मजिस्ट्रेट को अभी भी ध्यान में रखना चाहिए। ऐसे मामलों में, जहाँ विवाह का अस्तित्व विवादित हो, आदि, ऐसा एकपक्षीय अन्तरिम आदेश पारित करने के पहले निश्चित रूप से मस्तिष्क का सतर्क अनुप्रयोग आवश्यक होगा। केवल यह उल्लेख करने की आवश्यकता है कि मजिस्ट्रेट को ऐसे एकपक्षीय अन्तरिम आदेशों, जो अधिनियम की धारा 23 के अधीन पारित किये जा सकते हैं, की प्रतिक्रियाओं तथा प्रचण्डताओं को ध्यान में रखना चाहिए।
अन्तरिम अनुतोष केवल अन्तिम अनुतोष की सहायता से ही प्रदान किया जा सकता की यह सुनिश्चित स्थिति है कि अन्तरिम अनुतोष केवल अन्तिम अनुतोष, जो मुख्य कार्यवाही में प्रदान किये जा सकते हैं, की सहायता से ही प्रदान किया जा सकता है।
अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही के मामले में मजिस्ट्रेट अधिनियम की धारा 18, 19, 20, 21 अथवा 22 के द्वारा आच्छादित अन्तिम आदेशों को पारित कर सकता है और इसलिए यह स्पष्ट है कि अन्तरिम आदेश, जो धारा 23 की उपधारा (1) के अधीन पारित किया जा सकता है, केवल उक्त अधिनियम की धारा 18 से 22 में उपबन्धित अनुतोषों के निबन्धनों में ही हो सकता है।
अन्तरिम आदेश के उपान्तरण अथवा निरस्तीकरण के लिए प्रार्थना
सामान्यतः व्यक्ति जो आदेश से पीड़ित है, मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होगा और अन्तरिम आदेश के उपान्तरण/निरस्तीकरण के लिए अथवा धारा 23 के अधीन पारित किये गये अन्तरिम आदेश को विस्तारित न करने के लिए प्रार्थना करेगा।
अन्तरिम आदेश का उपान्तरण मात्र यह तथ्य कि प्रत्यर्थी, जो अन्तरिम आदेश से पौड़ित है, हो धारा 23 के अधीन पारित किये गये आदेश के उपान्तरण की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट के समक्ष जा सकता है और अभियान के साथ आदेश को शीघ्र सुनिश्चित कर सकता है, भी धारा 29 का निर्वाचन धारा 23 के अधीन अन्तरिम आदेश के विरुद्ध अपील के किसो अधिकार को अपवर्जित करने के लिए करने का कोई आधार नहीं होता है।
अन्तरिम आदेश
धारा 23 सपठित धारा 18 से 22 के अधीन पारित किये गये अन्तरिम आदेश पक्षकारों के अधिकार को सारवान् रूप से प्रभावित करेगा और ऐसे आदेशों के विरुद्ध धारा 29 के अधीन अपील के लिए प्रावधान भी उपलब्ध होंगे।
अन्तरिम मौखिक अनुतोष के लिए आवेदन
जहां इस धारा के अधीन आवेदन मुख्य आवेदन को दाखिल करने के दो वर्ष पश्चात् दाखिल किया गया था, वहां ऐसे आवेदन को पोषणीय न करना नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसे तब दाखिल किया गया था, जब आवश्यकता शैक्षिक खर्च और भरण-पोषण को वहन करने के लिए पत्नी और बच्चों के लिए उत्पन्न हुई है।
अन्तरिम संरक्षण का आदेश
जब मजिस्ट्रेट ने स्वयं परिवाद की लम्बितता के दौरान घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 23 के अधीन शक्ति के प्रयोग में अन्तरिम आदेश के रूप में स्वीकृत रूप से आदेश पारित किया था, तब क्या इसको इसे अभिखण्डित करने के बारे में प्रतिकूल होना कहा जा सकता है? उत्तर स्पष्ट रूप से "नहीं" है। अन्तरिम संरक्षण का आदेश प्रदान न करना पत्नी तथा उसके अवयस्क पुत्र को अन्य व्यक्तियों की दया पर छोड़ेगा और यह घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के अक्षरशः भावना के प्रतिकूल कार्य करेगा।
अन्तरिम प्रक्रम में त्वरित आदेश
कोई महिला, जो परिवार भीतर होने वाली घरेलू हिंसा से पीड़ित हो, जिसके सम्बन्ध में सक्षम न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया हो, मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया है, के लिए अधिनियम को धारा 23 के अधीन अन्तरिम प्रक्रम पर त्वरित आदेश पारित करना आवश्यक है, जैसे मजिस्ट्रेट न्याय संगत और उचित समझे। इसका उद्देश्य अधिनियम के अधीन महिला/ परिवादिनी को त्वरित रूप से संरक्षण का प्रावधान करना है।
धारा 23 के अधीन आदेश के विरुद्ध अपील की व्याप्ति सीमित होगी। एकपक्षीय अन्तरिम आदेश के विरुद्ध अपील पर विचार करते समय सत्र न्यायालय ऐसे आदेशों में हस्तक्षेप करने के लिए सुस्त होगा, जब तक आदेश प्रतिकूल अथवा अभिव्यक्त रूप से अवैध न हो। हालांकि, अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन आवेदन पर अन्तिम आदेश के विरुद्ध अपील की व्याप्ति पूर्वोक्त अवरोधों के द्वारा शासित नहीं होगी।
अन्तर्वती आदेश के विरुद्ध अपील का अधिकार मात्र यह तथ्य की अन्तर्वर्ती आदेश के विरुद्ध अपील प्रस्तुत की गई है, आवश्यक रूप से धारा 18 से 22 के अधीन आवेदनों के निस्तारण की प्रगति को मन्दित करना आवश्यक नहीं है। यह मानना गलत होगा कि अन्तवंत आदेश के विरुद्ध अपील का अधिकार आवश्यक रूप से अध्याय 4 के अधीन आवेदनों के निस्तारण में विलम्ब कारित करेगा।
अपील का अधिकार ऐसी पीड़ित महिला को भी उपलब्ध होगा, यदि उसके पक्ष में धारा 23 के अधीन आदेश पारित न किया गया हो। इसलिए धारा 29 में अभिव्यक्ति 'आदेश' का अध्याय चार के अधीन आवेदनों के निस्तारण में प्रगति के संभाव्य मण्डन के किसी सिद्धान्त पर अथवा इस तर्क पर निर्वाचन करना गलत होगा कि अपील का ऐसा अधिकार लक्ष्यित समूह के हितों प्रतिकूल होगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता द्वारा विहित प्रक्रिया की प्रयोग्यता-
धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन एक पक्षीय आदेश द्वारा आवेदन के निस्तारण के लिए उपबन्ध परिकल्पना करता है कि धारा 28 की उपधारा (1) न्यायालय को ऐसे आवेदन के निस्तारण के लिए अपनी प्रक्रिया अधिकथित करने से निवारित करेगी। अन्य शब्दों में, दण्ड प्रक्रिया संहिता द्वारा विहित प्रक्रिया को इस धारा और अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन कार्यवाही में जांच के लिए लागू बनाया जाता है, फिर भी इस धारा की उपधारा (2) के अधीन एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष को प्रदान करने के लिए निर्दिष्ट कार्यवाही को बचाया जाता है।
घरेलू हिंसा के सबूत की अपेक्षा
घरेलू हिंसा के कारित किये जाने के कार्य के बारे में या यह कि ऐसे कार्य का कारित किया जाना सम्भाव्य है, इसके बारे में प्रथम दृष्टया समाधान के अभिलिखित करने की अपेक्षा नहीं की जाती यह अपेक्षा भरण-पोषण के लिए और न कि अन्यथा किसी एकपक्षीय आदेश की स्वीकृति के सम्बन्ध में है।