धारा 194 के अंतर्गत इन्क्वेस्ट रिपोर्ट के दौरान लोगों को बुलाने की प्रक्रिया - धारा 195, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Update: 2024-09-21 12:31 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) 1 जुलाई 2024 से लागू हुई और इसने दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया। इस नए कानून का उद्देश्य भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को सरल और आधुनिक बनाना है। धारा 195 इस संहिता में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो धारा 194 के अंतर्गत मौतों की जांच के दौरान लोगों को बुलाने की प्रक्रिया का वर्णन करता है। इस लेख में हम धारा 195 और धारा 194 को सरल भाषा में समझाएंगे और उदाहरणों के माध्यम से इसे और स्पष्ट करेंगे।

धारा 195 (1): जांच के लिए व्यक्तियों को बुलाने का प्रावधान (Summoning Persons for Investigation)

धारा 195 (1) के अनुसार, पुलिस अधिकारी को अधिकार है कि वह धारा 194 के अंतर्गत होने वाली मौतों की जांच के दौरान दो या अधिक स्थानीय सम्मानित व्यक्तियों (Respectable persons) और ऐसे किसी व्यक्ति को बुला सकता है जो मामले के तथ्यों से परिचित हो। इसका अर्थ यह है कि पुलिस ऐसे व्यक्तियों को बुला सकती है जो मौत से संबंधित कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी दे सकते हों।

जिन व्यक्तियों को पुलिस द्वारा बुलाया गया है, उन्हें जांच में उपस्थित होना और सच्चाई से सभी सवालों के जवाब देना आवश्यक होता है। हालांकि, कानून में यह सुरक्षा दी गई है कि यदि कोई सवाल किसी व्यक्ति को आपराधिक आरोप (Criminal charge), जुर्माना (Penalty) या संपत्ति की हानि (Forfeiture) की स्थिति में डाल सकता है, तो वह उस सवाल का जवाब देने से मना कर सकता है। यह प्रावधान व्यक्ति के कानूनी अधिकारों की रक्षा करता है।

इसके अतिरिक्त, कुछ विशेष समूहों के व्यक्तियों के लिए सुरक्षा दी गई है। 15 वर्ष से कम आयु के लड़के, 60 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष, महिलाएं, मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम (Disabled) व्यक्ति, और गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को उनके निवास स्थान के अलावा कहीं और उपस्थित होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। लेकिन यदि वे स्वेच्छा से पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने के लिए तैयार हों, तो उन्हें वहां उपस्थित होने की अनुमति दी जा सकती है।

उदाहरण: मान लीजिए एक छोटे शहर में एक संदिग्ध मौत का मामला सामने आता है। पुलिस अधिकारी को शक है कि पड़ोस में रहने वाले दो व्यक्तियों को इस मामले की जानकारी हो सकती है। पुलिस अधिकारी उन दोनों को लिखित आदेश द्वारा जांच में उपस्थित होने के लिए बुलाता है। वे दोनों व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन जाकर सवालों का जवाब देना होता है। हालांकि, उनमें से एक व्यक्ति 65 साल का वृद्ध है। कानून उसे पुलिस स्टेशन जाने के लिए मजबूर नहीं करता है। उसे केवल उसके घर पर ही पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है, जब तक कि वह खुद पुलिस स्टेशन जाने के लिए तैयार न हो।

धारा 195 (2): मजिस्ट्रेट की अदालत में उपस्थिति का प्रावधान (Attendance at Magistrate's Court)

धारा 195 (2) यह स्पष्ट करती है कि यदि धारा 194 के अंतर्गत की गई जांच में ऐसे तथ्य सामने नहीं आते हैं जो किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) को दर्शाते हों, तो पुलिस द्वारा बुलाए गए व्यक्तियों को मजिस्ट्रेट की अदालत में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होती है। संज्ञेय अपराध वह अपराध होता है जिसमें पुलिस बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तारी कर सकती है, जैसे हत्या या चोरी के मामले।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि यदि जांच में कोई गंभीर अपराध सामने नहीं आता है, तो लोगों को अनावश्यक रूप से न्यायिक प्रणाली में नहीं घसीटा जाएगा। इससे उन व्यक्तियों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता जिन्हें जांच के दौरान बुलाया जाता है।

उदाहरण: उपरोक्त मामले में, मान लीजिए कि पुलिस की जांच से यह निष्कर्ष निकलता है कि मृतक की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है और इसमें कोई आपराधिक गतिविधि नहीं है। इस स्थिति में, जो पड़ोसी जांच के लिए बुलाए गए थे, उन्हें मजिस्ट्रेट की अदालत में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि कोई संज्ञेय अपराध नहीं पाया गया। उन्होंने जांच में सहयोग किया, लेकिन कोई अपराध साबित न होने पर उनकी कानूनी जिम्मेदारी समाप्त हो गई।

धारा 194: संदिग्ध मौतों की जांच (Investigating Suspicious Deaths)

धारा 195, धारा 194 का संदर्भ देती है, इसलिए यह समझना आवश्यक है कि धारा 194 कैसे काम करती है। धारा 194 उन मौतों की जांच की प्रक्रिया का वर्णन करती है जो संदिग्ध परिस्थितियों में होती हैं। जब किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को सूचना मिलती है कि कोई व्यक्ति आत्महत्या (Suicide), जानवर के हमले, दुर्घटना (Accident) या किसी अन्य संदिग्ध कारण से मरा है, तो उसे तुरंत निकटतम कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) को सूचित करना होता है।

इसके बाद, पुलिस अधिकारी को उस स्थान पर जाना होता है जहां शव पाया गया है, और दो या अधिक स्थानीय सम्मानित व्यक्तियों की उपस्थिति में मौत की जांच करनी होती है। पुलिस अधिकारी मौत का कारण बताते हुए एक रिपोर्ट तैयार करता है, जिसमें शव पर दिखाई देने वाले चोट के निशान, घाव (Injuries), और अन्य संकेतों का विवरण होता है। यदि यह मामला किसी महिला की शादी के सात साल के भीतर मौत से संबंधित है, या यदि मौत के कारणों में संदेह है, तो अधिकारी को शव को चिकित्सीय जांच (Medical examination) के लिए भेजना आवश्यक होता है।

उदाहरण: मान लीजिए एक महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाती है। उसकी शादी को पांच साल हो चुके हैं, और उसके परिवार को संदेह है कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है। पुलिस को इसकी सूचना दी जाती है और धारा 194 के अंतर्गत जांच शुरू की जाती है। पुलिस दो स्थानीय निवासियों की उपस्थिति में शव का निरीक्षण करती है और उसके हाथों पर चोट के निशान पाती है। इसके बाद पुलिस अधिकारी पोस्टमॉर्टम (Post-mortem) के लिए शव भेजता है ताकि मौत का सही कारण पता लगाया जा सके। इसके साथ ही, पुलिस पड़ोसियों को बुलाकर उनसे भी पूछताछ करती है।

धारा 195 का महत्व (Importance of Section 195)

धारा 194 और धारा 195 एक साथ मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि संदिग्ध परिस्थितियों में होने वाली मौतों की जांच निष्पक्ष (Fair) और कानूनी प्रक्रिया के तहत हो। धारा 194 पुलिस को मौत की जांच की रूपरेखा (Framework) देती है, जबकि धारा 195 पुलिस को साक्ष्यों (Evidence) और जानकारियों के लिए गवाहों (Witnesses) और संबंधित व्यक्तियों को बुलाने का अधिकार देती है।

धारा 195 के तहत दिए गए सुरक्षा प्रावधान महत्वपूर्ण हैं। लोग खुद को दोषी सिद्ध करने वाले सवालों का जवाब देने के लिए मजबूर नहीं हो सकते, और विशेष समूहों (जैसे कि महिलाएं, वृद्ध, और अक्षम लोग) को अतिरिक्त सुरक्षा दी गई है ताकि उन्हें अनावश्यक कठिनाइयों का सामना न करना पड़े। वहीं, कानून यह भी सुनिश्चित करता है कि लोग अपनी कानूनी जिम्मेदारी से बच न सकें और जांच में सहयोग करें।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, और धारा 194 और धारा 195 संदिग्ध मौतों की जांच प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा हैं। धारा 194 यह निर्धारित करती है कि पुलिस को ऐसी मौतों की जांच कैसे करनी चाहिए, जबकि धारा 195 पुलिस को गवाहों और संबंधित व्यक्तियों को बुलाने का अधिकार देती है, और साथ ही, लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए सुरक्षा प्रावधान भी शामिल करती है।

इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जांच प्रक्रिया पारदर्शी (Transparent) और निष्पक्ष हो, और किसी भी प्रकार की आपराधिक गतिविधि की सच्चाई सामने आए।

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