आखिर वकीलों को क्यों देनी चाहिए प्रो-बोनो (निशुल्क) कानूनी सहायता?: कुछ सुझाव
'प्रो बोनो पब्लिको' एक लैटिन वाक्यांश है जिसका अर्थ है "लोगों की भलाई के लिए"। यह आमतौर पर अपने संक्षिप्त रूप "प्रो बोनो" के रूप में उपयोग किया जाता है। कानूनी क्षेत्र में, "प्रो बोनो" शब्द का अर्थ उन कानूनी सेवाओं से है जो जनता की भलाई के लिए या तो मुफ्त में या कम शुल्क पर दी जाती हैं।
नि:शुल्क कानूनी सहायता (pro bono legal service) को पारंपरिक कानूनी सहायता सेवाओं, जो कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा वकीलों के माध्यम से मुहैया करायी जाती है, से अलग समझा जाना चाहिए। यह उम्मीद की जाती है कि नि:शुल्क सेवाओं के माध्यम से उच्च प्रशिक्षित, सफल, शीर्ष कानूनी पेशेवरों के साथ-साथ नए वकीलों के कौशल का लाभ ऐसे लोगों को मिल सके, जो वकीलों की महंगी फीस को वहन करने में असमर्थ हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में, सामुदायिक सेवाओं के रूप में प्रो-बोनो कानूनी सहायता, बेहद शक्तिशाली प्रणाली बन चुकी है। इन देशों में प्रो-बोनो कानूनी सेवाओं की विशेषता यह है कि यह समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों, जिन्हें जागरूकता और वित्तीय बाधाओं की कमी के कारण अक्सर न्याय तक पहुंच से वंचित रखा जाता है, को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए काम करती हैं।
हमे यह जानना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के मुताबिक, एक उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण ट्रायल के अंतर्गत गरीबों के लिए मुफ्त कानूनी सेवाएं दिया जाना शामिल होगा। (हुसैनारा खातून एवं अन्य बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य, AIR 1369 SC 1979)। वहीँ सुक दास एवं अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश के मामले में यह कहा गया था कि आर्थिक रूप से अक्षम लोगों के लिए उचित कानूनी प्रतिनिधित्व के अभाव में किया गया एक ट्रायल, अनुचित होगा।
भारत में प्रो-बोनो कानूनी सहायता के सम्बन्ध में कानूनी प्रावधान
चूंकि भारत की कानूनी प्रणाली, ब्रिटिश प्रणाली पर आधारित है, इसलिए यहाँ प्रो-बोनो कार्य उतना प्रचलित नहीं है। हालाँकि, भारत में प्रो-बोनो सेवाओं की अवधारणा विदेशी नहीं है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के तहत यह कहा गया है कि प्रत्येक अधिवक्ता को यह ध्यान में रखना होगा कि जो कोई भी व्यक्ति, वास्तव में वकील की आवश्यकता में है, वह कानूनी सहायता का हकदार है, भले ही उसके लिए वह भुगतान न कर सके या पर्याप्त रूप से भुगतान न कर सके। एक अधिवक्ता की आर्थिक स्थिति की सीमा के भीतर, एक अधिवक्ता को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य किया जाता है।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश 33, नियम 1 में अकिंचन-वाद को लेकर प्रावधान हैं, इसके अंतर्गत एक निर्धन व्यक्ति को कोर्ट-फीस देने से छूट दी जाती है। इसी प्रकार से दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-304 भी यह प्रावधान करती है कि जहाँ एक मामला कोर्ट के समक्ष चल रहा हो और कोर्ट (पीठासीन अधिकारी) को यह प्रतीत होता है कि उसके सामने उपस्थिति अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा के लिये किसी प्लीडर की नियुक्ति करने में असमर्थ है तो ऐसा पीठासीन अधिकारी ऐसे अभियुक्त को राज्य सरकार के खर्चे पर प्लीडर उपलब्ध करवायेगा।
इसके अलावा भारत के संविधान के अनुच्छेद 39 के अंतर्गत राज्य को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं कि विधिक तंत्र इस प्रकार से काम करे कि समान अवसर के आधार पर सबके लिए न्याय सुलभ हो और राज्य, विशिष्टया, यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से नि:शुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी राज्य की है।
यही नहीं, इसके अलावा, संविधान का अनुच्छेद 14 और 22 (2) कानून के समक्ष समानता को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास - लक्ष्य के अंतर्गत भी राज्यों का यह दायित्व है कि सभी लोगों के लिए न्याय तक पहुँच प्राप्त करने के लिए समान अवसर मौजूद हों।
इंडियन काउंसिल ऑफ़ लीगल ऐड एवं एडवाइस बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया 1995 SCC (1) 732 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि, आम तौर पर यह माना जाता है कि कानूनी पेशे के सदस्यों के कुछ सामाजिक दायित्व होते हैं, उदाहरण के लिए, गरीबों और वंचितों के लिए "प्रो बोनो" सेवा प्रदान करना। एक वकील का कर्तव्य न्याय के प्रशासन में अदालत की सहायता करना भी है, क्योंकि कानून का अभ्यास अपने आप में एक सार्वजनिक उपयोगिता का पेशा है।
आखिर क्यों वकीलों को देनी चाहिए प्रो-बोनो सेवाएं?
इसके कई जवाब हो सकते हैं और तमाम कारण भी, जिसके चलते वकीलों को प्रो-बोनो कानूनी सहायता देनी चाहिए। हम कुछ कारणों के अलावा कुछ सुझावों का यहाँ उल्लेख कर रहे हैं
• नए वकीलों को प्रो-बोनो कानूनी सहायता देने पर इसलिए विचार करना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें अनुभव भी मिलता है और वे अपने कौशल को अदालत में दिखाने का अवसर भी प्राप्त कर पाते हैं। यह अवसर वह है जो आमतौर पर नए अधिवक्ताओं को अपने करियर की शुरुआत में नहीं मिल पाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आमतौर पर एक नया वकील किसी अनुभवशील सीनियर के अंतर्गत वकालत की शुरुआत करता है और उसे अदालत में स्वयं से बहस करने में 2-3 वर्ष का समय लग जाता है।
हालाँकि, यदि ऐसा वकील प्रो-बोनो कानूनी सहायता देने की शुरुआत करे तो वह स्वयं से अदालत के सामने पेश होकर उस मामले में बहस भी कर सकता है और अनुभव के साथ साथ अपना नाम भी बना सकता है। यह इसीलिए भी फायदेमंद रहता है क्योंकि इसके जरिये एक नया वकील अपने कौशल को अपने बल बूते पर निखार सकता हैं।
• नि:शुल्क कानूनी सेवाएं देते हुए वकील-गण सेवा करने की इच्छा और नेक इरादे के साथ कार्य करते हैं। वकील और उनके मुवक्किल, दोनों के लिए प्रो-बोनो सहायता के दौरान अपनी अनुकूलता का आकलन करने का अवसर होता है। मुवक्किल को यह भी पता होता है कि चूँकि वकील अपनी मर्जी से नि:शुल्क सहायता दे रहा है तो वह उसके सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखेगा।
इससे आपसी सम्मान, विश्वास और सामंजस्यपूर्ण कार्य संबंध का विकास होता है। एक और महत्वपूर्ण कारक जो प्रो-बोनो सिस्टम के लाभ के लिए काम करता है, वह यह है कि क्लाइंट और वकील दोनों के पास यह अधिकार होता है कि वे बिना किसी सवाल के अपने एंगेजमेंट को जब चाहें खत्म कर सकते हैं।
• आपको अपने कार्यक्षेत्र, क्षमताओं और महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप प्रो-बोनो कानूनी सेवाएं देनी चाहिए। उदाहरण के लिए, जो वकील कम अनुभवी हैं, वे प्रशासनिक कार्यों के साथ प्रो-बोनो कानूनी सेवा देने की शुरुआत कर सकते हैं, जैसे कि एक लॉ क्लिनिक में किसी वकील की मदद करना। यदि आपको लगता है कि आप अदालत के सामने सहज हैं, तो आप मामले में स्वयं बहस भी कर सकते हैं। अन्य वकील अपने लेखन और केस-रिसर्च कौशल को विकसित करने वाले शोध-आधारित काम कर सकते हैं।
• एक बात जरुर ध्यान में रखें कि कभी भी ऐसा कार्य अपने हाथ में न लें, जिसको लेकर आपको पूर्व अनुभव न हो, क्योंकि आपके हाथ में किसी जरूरतमंद की जिंदगी होती है। हाँ, यह जरुरी नहीं कि अनुभव उम्र से ही आये, हो सकता है कि आप किसी कानून में काफी सहज हों और कानून की पढाई करने के दौरान आपने अपने कौशल को निखार लिया हो तो आप जरुर जरुरतमंदों की सहायता कर सकते हैं।
• यदि आपने वकालत के क्षेत्र में अच्छा खासा या ठीक ठाक नाम या अनुभव कमा लिया है, फिर भी आपको कुछ जरूरतमंद लोगों के मामलों में नियमित रूप से बिना किसी शुल्क लिए कानूनी सेवाएं देने पर विचार करना चाहिए। इससे न केवल आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी बल्कि आप समाज के एक तबके के काम आ पाएंगे।
• आप जेल प्रशासन से संपर्क करके यह जानकारी ले सकते हैं कि ऐसे कितने लोग जेल में बंद हैं जो कानूनी सहायता के अभाव में अदालत में अपनी लडाई नहीं लड़ पा रहे या उन्हें उनके अधिकारों का ज्ञान नहीं है। आप ऐसे लोगों की मदद करके प्रो-बोनो कानूनी सहायता देने की शुरुआत कर सकते हैं।
• जब आप नि:शुल्क कानूनी सहायता देने की शुरुआत करते हैं और यदि आप उचित ढंग से अपना कार्य कर रहे हैं तो इस बात की बहुत सम्भावना होती है कि आपके बारे में न्यायिक अधिकारी एवं अन्य वकीलों को पता चलेगा और शायद आपको प्रेरणास्रोत मानते हुए वो भी अपने स्तर से ऐसी सेवाएं देने पर विचार करें।
• आप नि:शुल्क सहायता देने के लिए अपने शहर के लॉ कॉलेज के कुछ छात्रों से भी संपर्क कर सकते हैं और उनको यह कार्य करने के लिए प्रोत्साहित भी कर सकते हैं, जिससे आपकी मदद भी हो जाये और जरुरतमंदों का भला भी हो जाये।
• प्रो-बोनो कानूनी सहायता देते हुए आपको क्लाइंट-काउंसलिंग का अनुभव भी प्राप्त हो सकता है, मसलन क्लाइंट की समस्याओं को कैसे समझना है और उसका निवारण कैसे करना है इस बात का अच्छा ख़ासा ज्ञान आपको हो सकता है। आपको इससे विभिन्न प्रकार के मामलों का ज्ञान भी होगा और आप स्वयं कि क्षमताओं को चुनौती भी दे सकेंगे।
जब हम कानून के क्षेत्र में आये ही हैं तो यह हमारी जिम्मेदारी अवश्य बनती है कि हम यह सुनिश्चित करें कि कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति, न्याय पाने से वंचित न रह जाये और यह हमारा समाज के प्रति एवं न्याय के प्रति भी सच्चा सम्पर्पण होगा यदि हम ऐसे लोगों की मदद कर सकें जो वाकई में जरूरतमंद हैं।
जैसा कि ए. ए. हजा मुनिउद्दीन बनाम भारतीय रेलवे, (1992) 4 एससीसी 736, के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देखा था कि किसी व्यक्ति को न्याय की पहुँच से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसके पास उसके लिए शुल्क का भुगतान करने का साधन मौजूद नहीं है। हमे भी यह ध्यान में रखना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति पैसों के आभाव में न्याय से वंचित न रह जाये।
अंत में, भारत में प्रो-बोनो कानूनी सहायता ने एक अवधारणा के रूप में और न्याय तक पहुंच के लिए एक स्थायी योगदान प्रदान करने के साधन के रूप में बहुत अधिक सफलता अभी तक प्राप्त नहीं की है। हालांकि कुछ पेशेवरों/NGO और कानून के फर्मों और यहां तक कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा प्रशंसनीय मुफ्त सेवाएं पहले से ही प्रदान की जा रही हैं, लेकिन इस प्रणाली को इसकी उचित मान्यता नहीं मिली है और यह केवल कुछ मुट्ठी भर लोगों के व्यक्तिगत अभ्यास के रूप में जारी है। इसलिए यह जरुरी है कि हम सभी लोग आगे आयें और जरूरतमंद लोगों का सहारा बनें।