पुलिस शिकायतकर्ता के वकील की तरह नहीं होती है बल्कि निष्पक्ष है

Update: 2022-05-30 04:55 GMT

हमारे देश में प्रदेश की आंतरिक सुरक्षा और विधि शासन को बनाए रखने का काम पुलिस के जरिए लिया जाता है। पार्लियामेंट और राज्य की विधान परिषद जिस भी कार्य को अपराध बनाती है उस कार्य को करने पर मुकदमा बनाने का काम पुलिस का होता है। पुलिस अपराधियों को पकड़ती है, उन पर मुकदमे बनाती है और उसे न्यायालय में पेश करती है।

समझा यह जाता है कि पुलिस किसी भी मामले में शिकायतकर्ता की वकील होती है जबकि यह बात ठीक नहीं है। पुलिस को भारतीय कानून में पूरी तरह से निष्पक्ष बनाया गया है। किसी व्यक्ति की शिकायत मात्र से पुलिस उसकी वकील नहीं बन जाती है। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति पुलिस को यह शिकायत करता है कि किसी दूसरे व्यक्ति ने उसका बलात्कार कर लिया है, इस तरह उसने बलात्कार का अपराध कारित किया है। पुलिस को ऐसी शिकायत मिलने पर उसका कर्तव्य यह है कि वह दोनों पक्षों के मामलों को देखें, परिस्थितियों की जांच करें, सबूतों को देखें और फिर किसी आरोपी पर अपराध पंजीबद्ध करें।

इसे पुलिस द्वारा की जाने वाली जांच कहा जाता है। किसी भी अपराध को दर्ज करने के पहले पुलिस जांच करती है और मामले के अनुसंधान के बाद इस नतीजे पर पहुंचती है कि क्या किसी व्यक्ति ने वाकई में कोई अपराध किया है। अगर उसे यह लगता है कि हां किसी व्यक्ति ने अपराध किया है और उसके बारे में की गई शिकायत पूरी तरह से ठीक है तब वह एफआईआर दर्ज करती है।

अनुसंधान में पुलिस की निष्पक्ष भूमिका

पुलिस ने कोई मुकदमा दर्ज किया है ऐसा मुकदमा किसी विशिष्ट अपराध की कोटि में दर्ज किया जाता है। जैसे कि हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार, मारपीट इत्यादि। अपराध दर्ज करने के बाद पुलिस पर यह दबाव नहीं होता है कि वह जैसा अपराध दर्ज किया है उसके अनुसार ही अनुसंधान करें। जैसे पुलिस ने प्रारंभिक स्तर पर यह पाया कि किसी व्यक्ति की गई शिकायत सही है और ऐसी शिकायत पर अपराध दर्ज किया जाना चाहिए एवं पुलिस ने अपराध दर्ज कर लिया, अब अपराध दर्ज होने के बाद पुलिस पर यह किसी भी तरह का दबाव नहीं होता है कि जैसा अपराध दर्ज किया है वैसा का वैसा ही अनुसंधान भी करें।

कानून ने पुलिस को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वे निष्पक्ष होकर अनुसंधान करें। वह घटनास्थल पर जाए, वहां का नक्शा मौका बनाएं, शिकायतकर्ता के बयान दर्ज करें, जो स्वतंत्र गवाह है उनके बयान दर्ज करें, जो चश्मदीद गवाह है उनके बयान दर्ज करें, अगर अपराध से पीड़ित व्यक्ति को किसी तरह की कोई चोट है तब उसका मेडिकल परीक्षण करवाने हेतु उसे अस्पताल भेजें और डॉक्टर से उसके निष्पक्ष मेडिकल परीक्षण की जांच प्राप्त करें।

पुलिस की यह जिम्मेदारी होती है कि वह अनुसंधान में वही बातें डाले हैं जो बातें उसे मिलती हैं। कोई भी ऐसी बात किसी भी गवाह के बयान में नहीं दें जो सत्य नहीं है। गवाह जैसा बयान देते हैं वैसा का वैसा बयान ही पुलिस को अपने मामले में लिखना होता है। यही उसका कर्तव्य भी है।

पीड़ित का बयान, चश्मदीद गवाह का बयान, किसी डॉक्टर का बयान, यह सभी पुलिस को निष्पक्ष रूप से लिखना चाहिए। समझा यह जाता है कि पुलिस आरोपी को फंसा रही है और परंपरा भी यही बन गई है कि पुलिस आरोपी को आवश्यक रूप से मुकदमे में फंसा देगी। जबकि कानून तो पुलिस से पूरी तरह निष्पक्ष होने की आशा रखता है।

जब किसी मुकदमे को न्यायालय में लाया जाता है तब न्यायालय में भी पुलिस को अपने आप को निष्पक्ष रूप से बताना होता है। उन्हें यह स्पष्ट बताना होता है कि उनके पास शिकायत आई है उन्होंने शिकायत दर्ज की और जो गवाहों ने कहा वह वह बयान उन लोगों ने दर्ज कर लिए।

पुलिस निष्पक्ष है इसलिए दंड प्रक्रिया संहिता का रूप भी कुछ अलग तरह का है। जैसे दंड प्रक्रिया संहिता धारा 154 में एफआईआर दर्ज करने का उल्लेख करती है। उसके बाद पुलिस को अनुसंधान करने को कहती है। धारा 169 पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट से संबंधित है। इस धारा में यह उल्लेख किया गया है कि अगर पुलिस को कोई सबूत नहीं मिलते हैं तब वह क्लोजर रिपोर्ट भी दे सकती है।

अर्थात पुलिस के पास यह शक्ति भी है कि वह किसी भी व्यक्ति के संबंध में यह कह सकती है कि शिकायतकर्ता ने जो शिकायत की थी वह असत्य आधारों पर थी लेकिन हमने हमारे अनुसंधान में यह पाया कि आरोपी किसी भी तरह से किसी अपराध को करने का जिम्मेदार नहीं है। इसलिए पुलिस को क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत करने की शक्ति है।

इसी तरह धारा 173 अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का उल्लेख करती है। इस धारा में जब पुलिस को पूरी तरह सबूत मिल जाए तब वह अपना अंतिम प्रतिवेदन कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कर देती है। अंतिम प्रतिवेदन में किसी व्यक्ति को आरोपी बना कर ही पेश किया जाता है।

सामान्य रूप से होता यह है कि पुलिस एफआईआर दर्ज करने के पहले ही मामले में जांच कर लेती है और ऐसी जांच के बाद ही मुकदमा दर्ज करती है। इसलिए किसी आरोपी के बारे में उससे किसी भी तरह की कोई चूक नहीं होती है। प्रारंभिक स्तर पर की गई जांच के परिणामस्वरूप अनुसंधान में भी वह व्यक्ति आरोपी ही मिलता है।

इसलिए जनता को भी यह समझना चाहिए कि पुलिस पूरी तरह से निष्पक्ष कार्य करने के लिए है। किसी व्यक्ति की शिकायत पर पुलिस रोबोट की तरह कार्य नहीं करती है बल्कि उसके पास यह शक्ति है कि वह उस मामले की प्रारंभिक जांच करें और यह तो पता करें की शिकायत क्या किसी झूठे आधार पर तो नहीं की गई है।

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