Constitution में ग्राम पंचायतों का उल्लेख

Update: 2024-12-21 03:08 GMT

भारत के कांस्टीट्यूशन ने समाज की अंतिम पंक्ति तक लोकतंत्र को भेजने के प्रयास किए हैं। कांस्टीट्यूशन के भाग 9 कांस्टीट्यूशन के 73वें संशोधन और भाग 9(ए) कांस्टीट्यूशन के 74 वें संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा कांस्टीट्यूशन में जोड़े गए हैं। कांस्टीट्यूशन के 73वें संशोधन के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं और 74 वें कांस्टीट्यूशन संशोधन द्वारा नगर पालिका लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है।

कांस्टीट्यूशन में आर्टिकल 40 के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद इस दिशा में समुचित कदम नहीं उठाए गए थे, स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में ग्राम पंचायतों की स्थापना के लिए महात्मा गांधी भी प्रयासरत रहे हैं और उन्होंने भी इस पर बल दिया था।

अंत में लंबे विलंब के बाद 73 व 74 वें कांस्टीट्यूशन संशोधन द्वारा इन ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं की स्थापना और उन्हें संवैधानिक मान्यता प्रदान कर 1 साल में कार्य किया गया कांस्टीट्यूशन के 73 74 वें संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायतों और नगर पालिकाओं के स्तर पर लोकतंत्र को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है। प्रत्येक राज्य में ग्राम पंचायतों में नगर पालिका की स्थापना की गई थी किंतु इसकी स्थापना और चुनाव राज्य विधान मंडल द्वारा निर्मित अधिनियम के अधीन की जाती है।

कांस्टीट्यूशन के भाग 9 आर्टिकल 243 (ए) से लेकर आर्टिकल 243(ओ) तक पंचायतों से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। सन 1992 में कांस्टीट्यूशन संशोधन करके भाग 9 जोड़ा गया है। इस भाग में 16 नए आर्टिकल और एक नई अनुसूची जोड़ी गई है।

इस भाग में ग्रामों में पंचायतों के गठन उनके निर्वाचन शक्तियों और उत्तरदायित्व के लिए पर्याप्त उपबंध किए गए हैं। आर्टिकल 243 यह कहता है कि गांव सभा के स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग किया जाएगा और ऐसे कार्यों को किया जाएगा जो राज्य विधानमंडल विधि बनाकर उपबंध करें।

आर्टिकल 243(ए) कहता है कि प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर मध्यवर्ती उच्च स्तर पर पंचायतों का गठन किया जाएगा किंतु उस राज्य में जिस की जनसंख्या 20,00,000 से अधिक नहीं है वहां मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन करना आवश्यक नहीं होगा।

आर्टिकल 243 के अधीन राज्य विधानमंडल को विधि द्वारा पंचायतों की संरचना के लिए उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गई है परंतु किसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या और इसी पंचायत में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या के बीच अनुपात समस्त राज्य में एक ही होगा।

पंचायतों के सभी स्थान पंचायत राज क्षेत्र के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए व्यक्तियों से भरे जाएंगे। इस प्रयोजन के लिए प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को ऐसे रीति से निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा कि निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या और उसको आवंटित करने की संख्या के बीच अनुपात समस्त पंचायत क्षेत्र में एक ही होगा।

आर्टिकल 243 के अनुसार प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे। इसे आरक्षित स्थानों की संख्या उसी अनुपात में होगी जो उस पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गए स्थानों का अनुपात है और उसका निर्धारण उस क्षेत्र की उनकी जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा। ऐसे स्थानों को प्रत्येक पंचायतों के चक्र अनुक्रम से आवंटित किया जाएगा।

पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा, इसके पूर्व भी उनका विघटन किया जा सकता है। किसी पंचायत के गठन के लिए निर्वाचन 5 वर्ष की अवधि के पूर्व और विघटन की तिथि से 6 माह की अवधि के अवसान से पूरा करा लिया जाएगा परंतु ऐसी अवधि 6 मार्च से कम है जिसकी अवधि का विघटित पंचायत रहती है तो इसी पंचायत का गठन करने के लिए निर्वाचन कराना आवश्यक होगा।

जहां अवधि की समाप्ति से पूर्व पंचायत के गठन के लिए निर्वाचन किया जाता है तो वह केवल शेष अवधि के लिए बनी रहे जिस अवधि के लिए पंचायत खंड 4 से विघटित नहीं की जाती है बनी रहती है।

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