भारत के बाहर किए गए अपराधों पर न्यायिक प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के अंतर्गत धारा 207, 208, और 209

Update: 2024-09-30 12:50 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई, 2024 से प्रभाव में आई है, ने भारत के बाहर किए गए अपराधों को सुलझाने के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रस्तुत किया है। इस संहिता के अंतर्गत धारा 207, 208, और 209 में स्पष्ट रूप से निर्देश दिए गए हैं कि ऐसे मामलों में न्यायालय क्या कार्रवाई करेगा जहां अपराध स्थानीय अधिकार क्षेत्र से बाहर हुआ है। इस लेख में हम इन प्रावधानों का सरल हिंदी में विस्तार से वर्णन करेंगे।

धारा 207: स्थानीय अधिकार क्षेत्र के बाहर किए गए अपराधों का निपटान (Handling Offences Committed Outside Local Jurisdiction but Triable in India)

धारा 207 उन स्थितियों को संबोधित करती है जहां एक अपराध स्थानीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर किया गया है, लेकिन फिर भी वह भारत में विचारणीय (Triable) है। यह उन मामलों पर लागू होती है जब अपराध किसी अन्य क्षेत्र में या भारत से बाहर हुआ हो, लेकिन भारतीय न्यायालयों के तहत सुनवाई के योग्य है।

प्रमुख प्रावधान:

• प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (First Class Magistrate) अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर किए गए अपराधों की जांच कर सकते हैं, यदि वह भारतीय कानून के तहत विचारणीय है।

• मजिस्ट्रेट अपराध की जांच अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर हुए अपराध की तरह कर सकते हैं और आरोपी को उनके सामने पेश होने के लिए बाध्य कर सकते हैं।

• यदि अपराध मृत्युदंड (Death) या आजीवन कारावास (Life Imprisonment) के लिए दंडनीय नहीं है और आरोपी जमानत (Bail) देने को तैयार है, तो मजिस्ट्रेट जमानत बॉन्ड स्वीकार कर सकते हैं और उसे उस न्यायालय में पेश होने का निर्देश दे सकते हैं, जिसके पास मामले पर अधिकार है।

उदाहरण:

मान लीजिए एक व्यक्ति ने किसी दूसरे राज्य में वित्तीय धोखाधड़ी (Fraud) की है और जयपुर के प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को लगता है कि इस व्यक्ति ने अपराध किया है। मजिस्ट्रेट व्यक्ति को उनके सामने पेश होने का आदेश दे सकते हैं, भले ही अपराध उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर हुआ हो, और मामले को उपयुक्त न्यायालय में भेज सकते हैं।

यदि अपराध भारत के बाहर हुआ है, तो भी मजिस्ट्रेट प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं, बशर्ते वह अपराध भारतीय कानून के तहत विचारणीय हो।

धारा 208: भारत के बाहर भारतीय नागरिकों या भारतीय-पंजीकृत जहाजों पर किए गए अपराधों का निपटान (Handling Offences Committed Outside India by Indian Citizens or on Indian-Registered Vessels)

धारा 208 उन अपराधों से संबंधित है, जो भारत के बाहर भारतीय नागरिकों द्वारा या भारतीय-पंजीकृत (Registered) जहाजों या विमानों पर किए गए हैं। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय नागरिकों को उनके द्वारा किए गए अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके, भले ही वे भारत के बाहर किए गए हों।

प्रमुख प्रावधान:

• यदि कोई भारतीय नागरिक भारत के बाहर कोई अपराध करता है, चाहे वह समुद्र में हो या कहीं और, या यदि कोई व्यक्ति किसी भारतीय-पंजीकृत जहाज या विमान में कोई अपराध करता है, तो उसे भारत में सुनवाई के लिए लाया जा सकता है।

• अपराध को ऐसे समझा जाएगा मानो वह भारत में ही किया गया हो, जहां भी आरोपी पाया जाता है।

• लेकिन, इस तरह के किसी भी अपराध की जांच या सुनवाई भारत में तब तक नहीं की जा सकती जब तक केंद्र सरकार (Central Government) से पूर्व अनुमति (Sanction) नहीं मिल जाती।

उदाहरण:

मान लीजिए कि एक भारतीय नागरिक समुद्र में एक क्रूज जहाज पर हमला (Assault) करता है। भले ही अपराध भारतीय क्षेत्र के बाहर हुआ हो, आरोपी को भारत में इसलिए मुकदमे के लिए लाया जा सकता है क्योंकि जहाज भारतीय-पंजीकृत है और आरोपी एक भारतीय नागरिक है। हालांकि, भारत में सुनवाई शुरू करने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।

धारा 209: भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए साक्ष्य का प्रावधान (Handling Evidence for Offences Committed Outside India)

धारा 209 उन प्रक्रियाओं पर केंद्रित है जिनमें भारत के बाहर किए गए अपराधों के मामलों में साक्ष्य (Evidence) को भारतीय न्यायालयों में स्वीकार किया जाता है। केंद्र सरकार को अधिकार दिया गया है कि वह विदेशी न्यायिक अधिकारियों (Foreign Judicial Officers) या भारतीय राजनयिक या वाणिज्यिक प्रतिनिधियों (Diplomatic or Consular Representatives) द्वारा जमा किए गए साक्ष्यों को भारतीय अदालतों में पेश करने की अनुमति दे सकती है।

प्रमुख प्रावधान:

• यदि भारत के बाहर किए गए अपराध का भारत में धारा 208 के तहत परीक्षण हो रहा है, तो केंद्र सरकार विदेशी साक्ष्यों को भारतीय अदालत में पेश करने की अनुमति दे सकती है।

• ये साक्ष्य न्यायिक अधिकारी (Judicial Officer) या राजनयिक या वाणिज्यिक प्रतिनिधि के सामने जमा किए गए बयान या दस्तावेज हो सकते हैं।

• ऐसे साक्ष्य का उपयोग आयोग द्वारा साक्ष्य लेने के बजाय किया जा सकता है।

उदाहरण:

मान लीजिए कि एक भारतीय नागरिक किसी दूसरे देश में अपराध करता है और मामला भारत में चल रहा है। उस देश में भारतीय दूतावास (Embassy) के सामने दिए गए बयान या विदेशी अदालत द्वारा लिए गए बयान भारतीय अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए जा सकते हैं, बशर्ते केंद्र सरकार इसकी अनुमति दे।

केंद्र सरकार की भूमिका का महत्व (Importance of Central Government's Role)

धारा 208 और 209 दोनों में केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। भारत के बाहर किए गए अपराधों की सुनवाई से पहले केंद्र सरकार की अनुमति अनिवार्य है। इसी प्रकार, विदेशी साक्ष्य को स्वीकार करने के लिए भी सरकार की मंजूरी आवश्यक है।

पूर्व धारा से संबंध (Connection to Previous Sections)

इन प्रावधानों को पूरी तरह समझने के लिए, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की पूर्व धारा 197-206 का संदर्भ लेना आवश्यक है। ये धाराएँ अधिकार क्षेत्र (Jurisdictional Authority) से संबंधित हैं, जिसमें अपराधों के बीच राज्यों की सीमा (State Boundaries) और इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) साधनों के माध्यम से किए गए अपराध शामिल हैं। इन धाराओं पर विस्तृत चर्चा के लिए, Live Law Hindi में प्रकाशित पिछले लेखों को देख सकते हैं।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में दिए गए ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि भारतीय न्यायालय अधिकार क्षेत्र से बाहर किए गए अपराधों पर भी सुनवाई कर सकते हैं, चाहे वह भारत के भीतर या बाहर हों। केंद्र सरकार की मंजूरी और विदेशी साक्ष्य को स्वीकार करने जैसे प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि सीमा-पार अपराधों (Cross-border crimes) और अधिकार क्षेत्र के बाहर किए गए अपराधों पर न्याय सुनिश्चित किया जा सके।

इन नए प्रावधानों के साथ, भारत अंतर्राष्ट्रीय आयामों वाले अपराधों से निपटने में बेहतर रूप से सक्षम हो गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि न्याय हर स्थिति में प्रदान किया जाए, चाहे अपराध कहीं भी किया गया हो।

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