क्या मौजूदा कानूनी ढांचा एसिड हमले के पीड़ितों के मुआवजे और पुनर्वास के लिए पर्याप्त है?

Update: 2024-11-11 15:51 GMT

परिवर्तन केंद्र बनाम भारत संघ (2015) के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड हमले के पीड़ितों के मुआवजे और पुनर्वास की गंभीर समस्या पर चर्चा की।

इस मामले ने भारत में कानूनी और प्रशासनिक ढांचे की कमियों को उजागर किया, जो एसिड हमले के पीड़ितों को पर्याप्त चिकित्सा उपचार (Medical Treatment), दीर्घकालिक देखभाल और वित्तीय सहायता प्रदान करने में असमर्थ है।

अदालत ने लक्ष्मी बनाम भारत संघ (2013) जैसे पिछले महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देते हुए एसिड हमले के पीड़ितों के अधिकारों और राज्य की जिम्मेदारियों पर विचार किया।

पीड़ित मुआवजा योजना (Victim Compensation Scheme, VCS) के तहत मुआवजा (Compensation)

परिवर्तन केंद्र फैसले ने अलग-अलग राज्यों में मुआवजा योजनाओं में असमानता और अपर्याप्तता को उजागर किया। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 357A के तहत, राज्य सरकारों को एक पीड़ित मुआवजा योजना (Victim Compensation Scheme) तैयार करने की आवश्यकता है ताकि अपराध के कारण हुए नुकसान या चोट से पीड़ित लोगों को मुआवजा दिया जा सके।

लेकिन मुआवजा राशि राज्यों में बहुत भिन्न थी, कुछ राज्यों में केवल ₹25,000, तो कहीं ₹2 लाख तक की राशि दी जा रही थी।

अदालत ने लक्ष्मी बनाम भारत संघ में दिए गए निर्देशों को दोहराया, जिसमें एसिड हमले के पीड़ितों के लिए ₹3 लाख का न्यूनतम मुआवजा अनिवार्य किया गया था।

इसमें घटना के 15 दिनों के भीतर तत्काल चिकित्सा जरूरतों के लिए ₹1 लाख, और दो महीने के भीतर शेष ₹2 लाख देने का प्रावधान किया गया था। इस निर्देश का उद्देश्य देश भर में एसिड हमले के पीड़ितों के लिए न्यूनतम समर्थन सुनिश्चित करना था, हालांकि राज्यों को अधिक मुआवजा देने का अधिकार था।

मुफ्त और व्यापक चिकित्सा उपचार (Comprehensive Medical Treatment) का दायित्व

परिवर्तन केंद्र और लक्ष्मी दोनों मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी एसिड हमले के पीड़ितों को मुफ्त और संपूर्ण चिकित्सा उपचार प्राप्त हो।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 357C के अनुसार, सरकारी और निजी अस्पतालों को अपराध के पीड़ितों, विशेषकर एसिड हमले के पीड़ितों का तुरंत और मुफ्त इलाज करना अनिवार्य है।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि कई निजी अस्पताल एसिड हमले के पीड़ितों का उपचार करने से इनकार कर रहे हैं या उन्हें विशेष उपचार नहीं दे रहे हैं, जैसे कि पुनर्निर्माण सर्जरी (Reconstructive Surgery)।

इसके जवाब में, अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे निजी अस्पतालों को जवाबदेह बनाएँ और यह सुनिश्चित करें कि एसिड हमले के पीड़ितों को सभी आवश्यक चिकित्सा सेवाएँ, जैसे प्लास्टिक सर्जरी, मानसिक परामर्श (Psychological Counseling) और पुनर्निर्माण सर्जरी मुफ्त में मिलें।

एसिड बिक्री विनियमन (Regulation) और रोकथाम के उपाय

इस फैसले में एसिड की बिक्री पर नियंत्रण में विफलता पर भी चिंता जताई गई, भले ही इसके लिए पहले भी कोर्ट द्वारा आदेश दिए गए थे।

अदालत ने लक्ष्मी बनाम भारत संघ के फैसले में दिए गए दिशा-निर्देशों के सख्त कार्यान्वयन पर जोर दिया, जिसमें शामिल हैं:

1. उचित पंजीकरण (Registration) के बिना एसिड की ओवर-द-काउंटर बिक्री पर प्रतिबंध।

2. विक्रेताओं के लिए एक लॉगबुक रखना अनिवार्य है, जिसमें खरीदारों का विवरण दर्ज हो।

3. इन नियमों का पालन न करने वाले विक्रेताओं पर जुर्माना।

इस ढाँचे का उद्देश्य एसिड की आसान उपलब्धता को कम करना है, जो एसिड हमलों की बढ़ती घटनाओं का प्रमुख कारण है।

विकलांगता लाभों (Disability Benefits) के तहत एसिड हमले के पीड़ितों को शामिल करना

एसिड हमले के पीड़ितों द्वारा झेले जाने वाले लंबे समय तक चलने वाले शारीरिक और मानसिक आघात को मान्यता देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने परिवर्तन केंद्र फैसले में सुझाव दिया कि एसिड हमले के पीड़ितों को विकलांगता श्रेणियों के तहत शामिल किया जाए। इससे उन्हें शिक्षा, रोजगार के अवसर और अन्य प्रकार की सामाजिक सहायता जैसे अतिरिक्त लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

लक्ष्मी बनाम भारत संघ और अन्य महत्वपूर्ण फैसलों का संदर्भ

परिवर्तन केंद्र के फैसले में लक्ष्मी मामले का व्यापक रूप से हवाला दिया गया, जिसने एसिड हमले के पीड़ितों के पुनर्वास और मुआवजे के लिए एक रूपरेखा तैयार की थी। लक्ष्मी मामले में, अदालत ने एसिड हमले के पीड़ितों के पुनर्वास के खर्च के लिए राज्य को जिम्मेदार ठहराते हुए एक ढाँचा प्रदान किया था।

अदालत ने स्टेट ऑफ पंजाब बनाम विनोद कुमार और दिल्ली घरेलू कामकाजी महिला मंच बनाम भारत संघ जैसे मामलों का भी उल्लेख किया, जिसमें यह पुष्टि की गई कि राज्य का दायित्व है कि वह हिंसक हमलों से पीड़ित महिलाओं जैसे अपराध पीड़ितों को मुआवजा और समर्थन प्रदान करे।

एसिड हमले के पीड़ितों के प्रति राज्य का कर्तव्य

परिवर्तन केंद्र मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह पुष्टि की कि एसिड हमले के पीड़ितों की सुरक्षा और सहायता के लिए राज्य का कर्तव्य है। इसके तहत राज्य को पर्याप्त वित्तीय मुआवजा, संपूर्ण चिकित्सा उपचार और एसिड की बिक्री पर सख्त नियंत्रण रखना चाहिए। यह फैसला लक्ष्मी जैसे अन्य फैसलों के साथ मिलकर एसिड हमले के पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक ठोस कानूनी और प्रशासनिक ढाँचे को स्थापित करता है।

अदालत ने दोहराया कि इन पीड़ितों की पीड़ा और आघात को दूर करने के लिए एक मजबूत कानूनी और प्रशासनिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है और सरकार को एसिड हमले के पीड़ितों के अधिकारों और गरिमा को बनाए रखने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।

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