भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 17 : अपराधिक मानव वध और हत्या का अपराध

Update: 2020-12-22 04:15 GMT

पिछले आलेख में भारतीय दंड संहिता के अध्याय 15 के अंतर्गत भारत में धर्म से संबंधित अपराधों का अध्ययन किया गया था इस आलेख में मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के संबंध में चर्चा की जा रही है।

मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराध

भारतीय दंड संहिता 1860 के अध्याय 16 के अंतर्गत मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के संबंध में विस्तार से प्रावधान किए गए। यदि महत्ता दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय दंड संहिता का अध्याय 16 संपूर्ण दंड संहिता का हृदय मालूम होता है। यूं तो हर एक अपराध समाज के लिए घातक होता है तथा राज्य का यह कर्तव्य होता है कि वह किसी भी प्रकार के अपराध को करने वालों को दंडित करें परंतु भारतीय दंड संहिता के अध्याय 16 के अंतर्गत दिए गए मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराध चिरकाल से महत्वपूर्ण अपराध रहे।

वर्तमान परिक्षेप में राज्य का कर्तव्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है परंतु जिस समय से सत्ता और शासन अस्तित्व में आया उस समय से ही राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करें, नागरिकों के शरीर संपत्ति और उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा करना राज्य का परम कर्तव्य है। शरीर, संपत्ति, प्रतिष्ठा में सर्वोच्च स्थान शरीर का है क्योंकि जीवन से अधिक मूल्यवान कुछ भी नहीं है। जीवन सर्वोच्च है कोई भी विचार मानव जीवन को सर्वोच्च मानता है, इस धरती पर मनुष्य को सर्वोच्च प्राणी माना गया है तथा किसी दूसरे मनुष्य को किसी प्रकार से उपहति कारित करना दंडनीय अपराध है। प्रत्येक राज्य का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने प्रत्येक नागरिक के शरीर की रक्षा करें। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है संविधान के इस अनुच्छेद के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बगैर वंचित नहीं किया जा सकता। यदि राज्य किसी व्यक्ति को प्राण दैहिक स्वतंत्रता से वंचित करता है तो इस प्रकार का वंचित किया जाना विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से होना चाहिए अन्यथा नहीं।

जैसा कि लेखक द्वारा उल्लेख किया गया है कि भारतीय दंड संहिता के अध्याय 16 का अत्यधिक महत्व है, इस अध्याय के अंतर्गत धारा 299 से लेकर धारा 277 तक प्रावधान किए गए, यह सभी प्रावधान मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के संबंध में है अर्थात ऐसे अपराध जो किसी न किसी प्रकार से मनुष्य के शरीर को क्षति कर रहे हैं तथा जीवन के लिए घातक है मनुष्य के शरीर के लिए घातक है।

इस अध्याय के अंतर्गत सर्वाधिक दंड के प्रावधान किए गए, इस अध्याय की अनेकों धाराओं के अंतर्गत मृत्युदंड तक के प्रावधान है, इस ही अध्याय के अंतर्गत हत्या, दहेज हत्या, अपहरण, बलात्कार और प्रकृति के विरुद्ध जैसे गंभीर अपराधों के संबंध में उल्लेख है।

यदि अध्ययन की दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय दंड संहिता के अध्याय 16 को निम्न भागों में बांटा जा सकता है-

जीवन के लिए संकटकारी अपराध।

गर्भपात करना।

उपहति।

सदोष अवरोध और सदोष परिरोध।

आपराधिक बल और हमला।

व्यापहरण, अपहरण, दासत्व, बलतश्रम।

बलात्कार।

प्रकृति के विरुद्ध अपराध।

दंड संहिता के इस अध्याय के अंतर्गत कुल 80 धाराएं हैं, यह अध्याय दैहिक क्षति पहुंचाने वाले समस्त अपराधों से व्यवहार करता है इसलिए इसके प्रावधानों को मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों की संज्ञा प्रदान की गई है।

जीवन के लिए संकटकारी अपराध

भारतीय दंड संहिता के अध्याय 16 के अंतर्गत जीवन के लिए संकटकारी अपराधों का उल्लेख धारा 299 से लेकर 311 तक किया गया है। इस भाग में अपराधिक मानव वध और हत्या अत्यधिक महत्वपूर्ण अपराध है। इस आलेख में आगे अपराधिक मानव वध और हत्या को समझने का प्रयास किया जा रहा है तथा भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत इन दोनों के लिए दंड के प्रावधानों पर विमर्श किया जा रहा है।

अपराधिक मानव वध और हत्या

अपराधिक मानव वध और हत्या अत्यंत भ्रमित करने वाले विषय रहा है। विधि के नवीन छात्रों के लिए अपराधिक मानव वध और हत्या के अपराध में अंतर करना अत्यधिक कठिनाई वाला काम है। भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत इन दोनों अपराधों का उल्लेख किया गया है, इन दोनों ही अपराधों में मानव मृत्यु कारित होती है, मनुष्य की मृत्यु कारित की जाती है तथा दोनों ही अपराधों में हत्या करने का आशय भी होता है परंतु फिर भी इन दोनों अपराधों में एक महीन रेखा खींची गई तथा दोनों में अंतर है।

मानव शरीर के विरुद्ध किए जाने वाले अपराधों की संख्या में प्रथम एवं गंभीर अपराध आपराधिक मानव वध है। मानव वध से अभिप्राय किसी मनुष्य की मृत्यु कारित करने से है किसी पशु अथवा जीव जंतु की मृत्यु अथवा हत्या इसमें सम्मिलित नहीं है।

अपराधिक मानव वध को अंग्रेजी भाषा में कल्पेबल होमीसाइड कहा जाता है। कल्पेबल होमीसाइड लेटिन भाषा से लिए गए शब्द है। कल्पेबल का अर्थ आपराधिक तरीके से किसी व्यक्ति को काटना या मारना होता है क्योंकि कल्पेबल के बाद आने वाला शब्द ह्यूमो मानव का प्रतीक है, होमो से अर्थ ह्यूमन है।

मानव वध दो प्रकार के होते हैं पहला विधिपूर्ण मानव वध और दूसरा अवधिपूर्ण मानव वध। विधिपूर्ण मानव वध एक साधारण मानव वध होता है जो संहिता के अध्याय 4 में वर्णित साधारण अपवाद के अंतर्गत होता है जिनका उल्लेख लेखक द्वारा पूर्व के आलेख में किया जा चुका है। विधिपूर्ण मानव वध को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है अर्थात वह दंडनीय अपराध नहीं है क्योंकि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत साधारण अपवाद में उन अपराधों को छूट दी गई है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 299, धारा 300, धारा 302, धारा 304 यह चारों धारा अपराधिक मानव वध और हत्या से संबंधित है। अपराधिक मानव वध तथा हत्या के रहस्य इन चारों धाराओं के अंतर्गत ही समाहित है। यदि गहनतापूर्वक इन चारों धाराओं का अध्ययन कर लिया जाए तो अपराधिक मानव वध एवं हत्या की अवधारणा को स्पष्ट किया जा सकता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 299 अपराधिक मानव वध की परिभाषा प्रस्तुत करती है, धारा 300 हत्या की परिभाषा प्रस्तुत करती है और धारा 302 हत्या के लिए दंड का प्रावधान करती है तथा धारा 304 अपराधिक मानव वध के लिए दंड का प्रावधान करती है।

इन चारों धाराओं के अंतर्गत अपराधिक मानव वध और हत्या पर संपूर्ण प्रावधान कर दिए गए। दो धाराओं के अंतर्गत परिभाषाएं दी गई हैं तथा दो धाराओं के अंतर्गत उन परिभाषाओं के लिए दंड दिया गया है, पहले अपराध बता दिया गया है फिर उस अपराध के लिए दंड का निर्धारण कर दिया गया है।

अपराधिक मानव वध

भारतीय दंड संहिता की धारा 299 अपराधिक मानव वध की परिभाषा प्रस्तुत करती है, इस धारा के अनुसार अविधि पूर्ण मानव वध को सबसे पहला अपराध करार दिया गया है। इस धारा के अनुसार मानव कृत्य द्वारा हत्या कारित किया जाना जो विधि द्वारा दंडनीय हो। सभी तरह की हत्याएं मानव वध होती है पर सभी मानव वध हत्याएं नहीं होतें।

मानव वध को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

1)- मानव वध जो हत्या की सीमा तक कारित होते हैं हत्या कहलाते हैं।

2)- अपराधिक मानव वध जो हत्या नहीं होते।

अपराधिक मानव वध और हत्या दोनों में ही समान रूप से मृत्यु होती है तथा मृत्यु कार्य करने का आशय रहता है दोनों में अंतर सिर्फ आपराधिक कार्य की मात्रा और परिणाम का है। हत्या में आपराधिक मानव वध से आशय या ज्ञान की अधिकता होती है।

यदि भारतीय दंड संहिता की धारा 299 का गहनता से अध्ययन किया जाए तो इस धारा के अनुसार अपराधिक मानव वध में निम्न तत्व दिखाई देंगे-

1)- किसी मानवीय प्राणी की मृत्यु कारित करना।

2)- ऐसी मृत्यु का ऐसे किसी कार्य के द्वारा कारित होना।

3)- जो मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो

4)- जो ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे मृत्यु कारित किया जाना संभव है।

5)- जो यह जानकर किया गया हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभव है।

इब्राहिम शेख के मामले में यह कहा गया है कि जहां कोई कार्य विचारपूर्वक किया गया हो वह दुर्घटना या लापरवाही का परिणाम नहीं हो तो यह स्पष्ट है कि आपराधिक मानव वध हुआ होगा।

सामान्य तौर पर यह समझ लिया जाए कि अपराधिक मानव वध में किसी मनुष्य की मृत्यु कारित की जाती है। मृत्यु इस प्रकार से कारित की जाती है कि मृत्यु कारित करना संभव हो कोई भी ऐसा प्रकार जिससे किसी मनुष्य की मृत्यु हो सकती है। उस प्रकार के कार्य द्वारा जब मनुष्य का वध किया जाता है तब आपराधिक मानव वध का अपराध बन जाता है। अपराधिक मानव वध आगे चलकर हत्या का रूप लेता है अपराधिक मानव वध कब हत्या होता है इसका उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 300 में मिलता है।

हत्या

भारतीय दंड संहिता की धारा 300 हत्या की परिभाषा प्रस्तुत करती है। दंड संहिता की इस परिभाषा में ही अपराधिक मानव वध और हत्या में अंतर स्पष्ट हो जाता है। धारा 300 के अनुसार हत्या और आपराधिक मानव वध का एक गंभीर और विस्तृत रूप है, सहिंता की धारा 300 में हत्या के बारे में सभी उल्लेख कर दिए गए हैं।

कुछ परिस्थितियां ऐसी है जिनमें कोई आपराधिक मानव वध हत्या का रूप धारण कर लेता है।

ऐसा कोई कार्य जो मृत्यु कारित करने के आशय से किया जाता है जिससे मृत्यु कारित हो जाती है जैसे कि किसी व्यक्ति को जहर देना या ऐसे व्यक्ति को जो की झोपड़ी में है उसमें आग लगाकर मृत्यु कारित कर देना हत्या का अपराध होगा क्योंकि यहां पर मृतक का हत्या करने का स्पष्ट आशय था।

किसी व्यक्ति को इस आशय से कोई चोट पहुंचाई गई हो जिसके लिए वह जानता हो कि ऐसी चोट उसकी मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है। हत्या का अपराध माना जाएगा अगर किसी बीमार आदमी को एक जोरदार घूंसा मारा जाए और उस घुसे से उस व्यक्ति की मौत हो जाए तो यह माना जाएगा कि एक बीमार व्यक्ति की मृत्यु एक घूंसे से भी हो सकती है।

यदि किसी व्यक्ति को जिसे मशीनों के द्वारा ऑक्सीजन पर रखा जा रहा है उसके मुंह से ऑक्सीजन का माक्स निकाल दिया जाए तो उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी। उस बीमार व्यक्ति के मरने के लिए मुंह से ऑक्सीजन का माक्स निकाल देना ही केवल मृत्यु होने के परिणामस्वरुप हत्या का अपराध बनता है। हत्या के लिए कोई छोटे से कार्य से भी हत्या हो सकती है यह मरने वाले व्यक्ति की वर्तमान परिस्थिति पर निर्भर करता है।

किसी साधारण मनुष्य के मुंह से ऑक्सीजन का माक्स निकाल देना उसकी मृत्यु का कारण नहीं बनेगा परंतु किसी ऐसे व्यक्ति के मुंह से ऑक्सीजन का माक्स निकाल देना जिसे ऑक्सीजन के माध्यम से जीवित रखा गया है उसकी मृत्यु का कारण बन जाएगा। कोई ऐसी शारीरिक चोट पहुंचाना जो प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में मृत्यु के लिए पर्याप्त है।

दंड सहिंता की धारा 300 के अंतर्गत हत्या का अपराध साबित होने के लिए आशय का कोई विशेष महत्व नहीं है इसमें सिर्फ यह सिद्ध कर देना पर्याप्त होता है कोई शारीरिक चोट पहुंचाई गई हो। चोट की प्रकृति इस प्रकार की हो जिससे मृत्यु कारित हो जाए। इस प्रकार की चोट आशयपूर्वक पहुंचाई गई हो।

यूनुस बनाम मध्यप्रदेश राज्य एआईआर 2003 उच्चतम न्यायालय 540 के प्रकरण में कहा गया है कि जहां मृत्यु कारित किया जाना तथा अभियुक्त द्वारा कार्य किया जाना साबित और स्पष्ट हो वहां आशय का तथ्य अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाता। जहां किसी अभियुक्त को मात्र परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर हत्या के लिए दोषसिद्ध किए जाने वाला हो वहां न्यायालय को बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।

भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अंतर्गत पांच अपवाद दिए गए। यदि किसी आपराधिक मानव वध में इस प्रकार के अपवाद होते हैं तो वह हत्या नहीं होगा। केवल इन 5 अपवादों को कंठस्थ कर लेना चाहिए। किसी भी अपराधिक मानव वध में यदि इन 5 अपवादों में से कोई एक अपवाद मिलता है तो वह आपराधिक मानव वध हत्या नहीं होगा यदि उस आपराधिक मानववाद में इन 5 अपवादों में से कोई एक भी अपवाद नहीं मिलता है तो फिर वह हत्या होगा।

दंड संहिता की धारा 300 के अनुसार वह 5 अपराध इस प्रकार है

1)- गंभीर उत्तेजना

धारा 300 का पहला अपवाद गंभीर उत्तेजना है। यदि कोई अपराधिक मानव वध में गंभीर उत्तेजना पाई जाती है तो इस प्रकार का अपराधिक मानव वध हत्या नहीं होगा यदि अपराधी उस समय जबकि गंभीर अचानक प्रकोपन से आत्म संयम खो कर उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दें जिसने उसे प्रकोपित किया हो या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल दुर्घटनावश कारित कर दे।

परमेश्वर बनाम कृष्ण पिल्ले एआईआर 1966 के प्रकरण में अभियुक्त की पत्नी ने बिना किसी पूर्व कारण के हमेशा के लिए छोड़ कर चले जाने की धमकी दी और अभियुक्त ने उसके सर और नाक पर थाली फेंकी इस प्रकरण में अभियुक्त हत्या का अपराधी नहीं माना गया।

1938 इलाहाबाद उच्चतम न्यायालय में बल्कु का एक महत्वपूर्ण मामला है। इस प्रकरण में अभियुक्त और उसकी पत्नी की बहन का पति एक ही चारपाई पर सोए हुए थे और पास के कमरे में अभियुक्त की पत्नी सोई हुई थी। रात्रि में किसी समय ख जागा और उस कमरे में चला गया जिसमें अभियुक्त की पत्नी सोई हुई थी। इसी बीच अभियुक्त उठा और एक छेद से उस कमरे में देखा तो ख तथा अभियुक्त की पत्नी को लैंगिक संभोग करते हुए पाया गया। उस समय अभियुक्त वापस आकर चारपाई पर सो गया। कुछ समय बाद ख कमरे से बाहर आकर अभियुक्त के पास चारपाई पर सो गया।

जब ख को गहरी नींद आ गई तो अभियुक्त उस पर चाकू से प्रहार करने लगा जिसके परिणामस्वरूप ख की मृत्यु हो गई। इस प्रकरण में यह धारण किया गया कि अभियुक्त अत्यधिक प्रकोपन और अचानक उत्तेजना के अंतर्गत अपराधिक मानव वध कर बैठा तथा वह हत्या का नहीं अपितु अपराधिक मानव वध का दोषी है।

2)- निजी सुरक्षा के अधिकार के प्रयोग करते हुए आपराधिक मानव वध

भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अंतर्गत दूसरा अपवाद निजी सुरक्षा के अंतर्गत आपराधिक मानव वध का कारित करना है। पूर्व के आलेख में साधारण अपवाद के अंतर्गत में यह उल्लेख किया गया था कि निजी सुरक्षा के अधिकार के अंतर्गत कोई अपराध कारित किया जा सकता है तथा उसे अपवाद के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाएगा।

निजी सुरक्षा के अधिकार का प्रयोग इसके अनुसार कोई अपराधिक मानव वध हत्या नहीं है। अभियुक्त अपराध शरीर या संपत्ति की निजी सुरक्षा के अधिकार को सदभावनापूर्वक प्रयोग में लाते हुए विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण कर दें और पूर्व चिंतन बिना किसी सुरक्षा के प्रयोजन से जितनी अपहानि कारित करना आवश्यक हो उससे अधिक करने के किसी आशय के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दें जिसके विरुद्ध वह निजी सुरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रहा हो।

यदि हत्या प्राइवेट परीक्षा के अंतर्गत की जा रही है तथा प्राइवेट प्रतिरक्षा का उपयोग उस सीमा तक किया जा रहा है जिस सीमा तक उस संदर्भ में किया जाना चाहिए तब कोई अपराधिक मानव वध हत्या नहीं होता है।

3)- लोक सेवक द्वारा अपनी शक्तियों के प्रयोग में अतिरेक

धारा 300 के अंतर्गत तीसरा अपवाद अपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी ऐसा लोकसेवक होते हुए लोक न्याय के अनुसरण में कार्य कर रहे लोकसेवक को सहायता देते हुए उसे विधि द्वारा प्रदत शक्ति से आगे बढ़ जाए और कोई ऐसा कार्य करके जिसे वह विधि पूर्ण और ऐसे लोक सेवक के नाते उसके कर्तव्य के सम्यक निर्वाहन के लिए आवश्यक होने का सदभावनापूर्वक विश्वास करता है और ऐसे उस व्यक्ति के प्रति जिसकी कारित कार्य की गई है वैमनस्य के बिना मृत्यु कारित करें।

जैसे कि पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किया गया संदिग्ध चोर पुलिस अभिरक्षा से बच निकलने के लिए गाड़ी से कूदता है और पुलिस अधिकारी के पास उसे रोकने का कोई उपाय नहीं है अतः वह उस पर गोली चलाता है लेकिन वह गोली एक अन्य व्यक्ति को लग जाती है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है कि धारण किया गया कि अभियुक्त आपराधिक मानववाद जो हत्या नहीं है क्या अपराध का दोषी।

4)- अचानक लड़ाई

धारा 300 का चौथा अपवाद अचानक लड़ाई है। अचानक लड़ाई के अनुसार आपराधिक मानववाद हत्या नहीं है यदि वह मानव वध अचानक झगड़े के आवेश की तीव्रता में हुई। अचानक लड़ाई में पूर्व अनुसंधान के बिना पूर्व अनु चिंतन के और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाएं बिना या क्रूरतापूर्ण या अप्रिय कृत्य के कार्य किए बिना किया गया हो।

जब भी कोई आपराधिक मानव वध हुआ जिस प्रकार का पाया जाता है तो इसमें यह बात महत्वहीन होती है कि कौन पक्ष प्रकोपन देता है या पहले हमला करता है।

स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम वजीर चंद्र एआईआर 1978 उच्चतम न्यायालय 315 के प्रकरण में कहा गया है कि जहां दो समूहों में अचानक झगड़ा हो गया हो और उनमें से एक व्यक्ति को अभियुक्त द्वारा किसी घातक औजार से संगीन चोट कारित की गई हो वह मारा गया हो, यह अपराध धारा 304 के अंतर्गत आएगा।

अचानक झगड़े में पूर्व अनु चिंतन के बगैर किया गया अपराधिक मानव वध हत्या नहीं होता है क्योंकि इसके लिए कोई पूर्व की योजना नहीं होती केवल झगड़ा होता है और झगड़े के परिणामस्वरूप अपराधिक मानव वध कर दिया जाता है।

जगरूप सिंह बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि बिना किसी पूर्व योजना के क्षणिक आवेश में आकर किया गया हमला इस अपराध के अंतर्गत आता है।

जीवन कटप्पा बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश एआईआर 2008 एससी 462 के प्रकरण में कहा गया है कि अभियुक्त एवं मृतक दोनों भाई थे दोनों के संबंध बुरे थे। घटना के समय दोनों भाइयों में गर्मा गर्मी हो गई तथा अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। इसके परिणामस्वरूप अभियुक्त द्वारा मृतक की छाती पर चाकू से वार किया गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई, इसे धारा 300 के चतुर्थ अपवाद के अंतर्गत अपराध माना गया।

सहमति द्वारा मृत्यु

कभी-कभी ऐसी पर परिस्थितियों का जन्म हो जाता है कि कोई मृत्यु सहमति द्वारा कारित हो जाती है। जैसे कि कोई रोगी बहुत अधिक पीड़ादायक रोग से पीड़ित है तथा उसके द्वारा मृत्यु मांगी जा रही है तथा यह कहा जा रहा है कि मुझे मृत्यु दे दो और उस व्यक्ति को अभियुक्त द्वारा मृत्यु दे दी गई। इसे सहमति द्वारा मृत्यु कहा जाता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 300 का पांचवा अपवाद सहमति द्वारा मृत्यु है। यदि कोई अपराधिक मानव वध सहमति द्वारा मृत्यु कारित कर किया जाता है तो इस प्रकार का अपराधिक मानव वध मृत्यु होने के परिणामस्वरुप हत्या नहीं होता है।

जैसे कि दो प्रेमी एक दूसरे से अत्यधिक प्रेम करते हैं पर समाज द्वारा उन्हें साथ में नहीं रहने दिया जाता है तथा शादी के लिए माता-पिता द्वारा इनकार किया जाता है।

इस परिस्थिति में दोनों प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे से आपस में यह सहमति कर लेते हैं कि हम दोनों द्वारा कोई जहर के लड्डू खाए जाएंगे। दोनों प्रेमी और प्रेमिका इस समझौते के तहत दो जहर के लड्डू तैयार करते हैं तथा उन लड्डू को खाने के लिए किसी पार्क में बैठते हैं। प्रेमी द्वारा प्रेमिका को जहर का लड्डू खिला दिया जाता है तथा जब प्रेमिका प्रेमी को लड्डू खिला रही होती है पब्लिक उस स्थान पर जमा हो जाती है और लड्डू खिलाने से प्रेमिका को निवारित कर देती है। ऐसी स्थिति में प्रेमिका की मृत्यु हो जाती है परंतु प्रेमी जीवित रह जाता है। यह सहमति द्वारा आपराधिक मानव वध है इसमें प्रेमी हत्या का आरोपी नहीं होगा अपितु आपराधिक मानव वध का दोषी होगा।

हत्या और आपराधिक मानववाद के लिए दंड

भारतीय दंड संहिता की धारा 302 हत्या के लिए अपराध के दंड का निर्धारण कर रही है। आपराधिक मानव वध और हत्या में कोई विशेष अंतर दंड में नहीं दिया गया है। आपराधिक मानव वध के लिए आजीवन कारावास तक के दंड का निर्धारण किया गया है जिसका उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के अंतर्गत दिया गया है और हत्या के लिए मृत्युदंड के दंड का निर्धारण किया गया है।

आज के परिवेश में नर्स हत्या करने के परिणामस्वरुप ही मृत्यु दंड दिया जा रहा है और साधारण रूप से की जाने वाली हत्या के लिए सामान्य तौर पर आजीवन कारावास ही दिया जाता है मृत्युदंड जैसा दंड विरल से विरलतम मामलों में दिया जा रहा है।

इतना ध्यान देना चाहिए कि आपराधिक मानव वध के लिए आजीवन कारावास तक का दंड या फिर 10 वर्ष का दंड तथा हत्या के लिए मृत्यु दंड है।

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