अलग-अलग पुलिस थानों के बीच किस प्रकार से तलाशी की प्रक्रिया को संचालित किया जाए : धारा 186 BNSS 2023

Update: 2024-09-14 13:56 GMT

धारा 186 (Section 186) की गहन जानकारी: पुलिस थानों के बीच जांच और तलाशी का समन्वय

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की एक महत्वपूर्ण धारा 186 है, जो पुलिस थानों के बीच तलाशी (Search) और ज़ब्ती (Seizure) से संबंधित है। धारा 186 यह स्पष्ट करती है कि अलग-अलग पुलिस थानों के बीच किस प्रकार से तलाशी की प्रक्रिया को संचालित किया जाए ताकि पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित हो सके। यह धारा विशेष रूप से धारा 185 और धारा 103 के प्रावधानों (Provisions) से जुड़ी हुई है, जो तलाशी और ज़ब्ती की बुनियादी प्रक्रियाओं को निर्धारित करती हैं।

इस लेख में, हम धारा 186 को सरल भाषा में समझाएंगे ताकि सामान्य पाठक इसे आसानी से समझ सकें। धारा 103 और 185 की गहन जानकारी के लिए, आप Live Law Hindi में प्रकाशित हमारे पिछले लेख को पढ़ सकते हैं।

धारा 186: विभिन्न पुलिस थानों के बीच तलाशी (Search) की प्रक्रिया

धारा 186(1): दूसरे पुलिस थाने से तलाशी की माँग

इस प्रावधान (Provision) के तहत, जब एक पुलिस स्टेशन का अधिकारी या कोई जांच अधिकारी किसी मामले की जांच कर रहा हो, तो वह दूसरे पुलिस स्टेशन के अधिकारी से अनुरोध कर सकता है कि वह किसी जगह पर तलाशी करवाए। यह तब होता है जब पहला अधिकारी अपनी सीमा (Jurisdiction) के भीतर तलाशी कराने का अधिकार रखता है, लेकिन उसे दूसरे पुलिस स्टेशन की सहायता की आवश्यकता होती है, चाहे वह पुलिस स्टेशन उसी जिले में हो या किसी अन्य जिले में।

उदाहरण के तौर पर, यदि पुलिस स्टेशन 'A' का अधिकारी किसी अपराध की जांच कर रहा है और उसे लगता है कि सबूत स्टेशन 'B' के अधिकार क्षेत्र में हैं, तो वह स्टेशन 'B' के अधिकारी से उस स्थान पर तलाशी करवाने के लिए अनुरोध कर सकता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सबूत एकाधिक स्थानों पर फैले होने पर भी बरामद किए जा सकें।

धारा 186(2): अनुरोध प्राप्त करने वाले अधिकारी की प्रक्रिया

जब दूसरा पुलिस स्टेशन (स्टेशन 'B') इस प्रकार का अनुरोध प्राप्त करता है, तो उसे धारा 185 के प्रावधानों के अनुसार कार्य करना होता है। धारा 185 के अनुसार, अधिकारी को तलाशी प्रक्रिया के दौरान सभी आवश्यक रिकॉर्ड बनाए रखने होते हैं और यदि कोई वस्तु (Thing) मिलती है, तो उसे उस अधिकारी को भेजना होता है जिसने मूल अनुरोध किया था।

सरल भाषा में, यदि स्टेशन 'B' का अधिकारी तलाशी के दौरान कोई सबूत प्राप्त करता है, तो उसे इसे स्टेशन 'A' के अधिकारी को भेजना होता है, जिसने तलाशी का अनुरोध किया था। यह सुनिश्चित करता है कि सबूत बिना किसी देरी के जांच अधिकारी तक पहुँच जाए।

धारा 186(3): बिना अन्य पुलिस स्टेशन को शामिल किए तुरंत तलाशी

कभी-कभी ऐसे हालात हो सकते हैं जब दूसरे पुलिस स्टेशन को शामिल करने में होने वाली देरी के कारण महत्वपूर्ण सबूत नष्ट हो सकते हैं या छिपाए जा सकते हैं। इस स्थिति में, धारा 186(3) के तहत पुलिस स्टेशन का अधिकारी या जांच अधिकारी दूसरे पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में सीधे तलाशी कर सकता है, बिना औपचारिक रूप से उस स्टेशन की सहायता मांगे।

उदाहरण के लिए, यदि स्टेशन 'A' का अधिकारी महसूस करता है कि स्टेशन 'B' के अधिकारी को शामिल करने में देरी से सबूत नष्ट हो सकते हैं, तो वह सीधे स्टेशन 'B' के अधिकार क्षेत्र में तलाशी कर सकता है, जैसे कि वह जगह उसी के पुलिस स्टेशन की सीमा में हो। यह प्रावधान उन मामलों में सहायक है, जहाँ समय की कमी होती है, जैसे दस्तावेज़ नष्ट होने से पहले उन्हें प्राप्त करना।

धारा 186(4): तुरंत तलाशी के बाद सूचना और रिकॉर्ड-रखाव

अगर कोई अधिकारी धारा 186(3) के तहत दूसरे पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में तलाशी करता है, तो उसे तुरंत उस पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को सूचित करना आवश्यक है। इसके साथ ही, उस अधिकारी को धारा 103 के तहत बनाए गए वस्तुओं की सूची की एक प्रति भी भेजनी होती है। धारा 103 तलाशी के दौरान रिकॉर्ड रखने और प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की प्रक्रिया का विवरण देती है।

इसके अतिरिक्त, तलाशी का संचालन करने वाला अधिकारी इन रिकॉर्ड्स की एक प्रति निकटतम मजिस्ट्रेट (Magistrate) को भेजता है, जिसे इस अपराध का संज्ञान लेने का अधिकार होता है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी कार्य कानूनी रूप से दर्ज और न्यायिक निगरानी में हों। धारा 103 और इसकी तलाशी प्रक्रियाओं में गहन जानकारी के लिए आप हमारे पिछले Live Law Hindi लेख का संदर्भ ले सकते हैं।

धारा 186(5): तलाशी के स्थान के मालिक या निवासकर्ता के अधिकार

धारा 186(5) उस जगह के मालिक या निवासकर्ता को यह अधिकार देता है कि वह मजिस्ट्रेट को भेजे गए रिकॉर्ड्स की एक प्रति मुफ्त में प्राप्त कर सके। यह प्रावधान पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और उन व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा करता है जिनके स्थान की तलाशी ली गई हो, ताकि पुलिस के अधिकारों का दुरुपयोग न हो सके।

उदाहरण के लिए, यदि किसी के घर या व्यवसाय की तलाशी ली जाती है, तो वह व्यक्ति मजिस्ट्रेट को भेजे गए तलाशी रिकॉर्ड की एक प्रति मुफ्त में प्राप्त कर सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि तलाशी की प्रक्रिया पारदर्शी हो और उस व्यक्ति के पास उसके संपत्ति पर हुई तलाशी की जानकारी हो।

बेहतर समझ के लिए उदाहरण

1. उदाहरण 1: दूसरे पुलिस स्टेशन से तलाशी की माँग

पुलिस स्टेशन 'A' का अधिकारी एक डकैती की जांच कर रहा है। जांच के दौरान, उसे पता चलता है कि चोरी किया गया सामान स्टेशन 'B' के अधिकार क्षेत्र में एक गोदाम में छिपा हो सकता है। चूँकि वह अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर तलाशी नहीं कर सकता, इसलिए वह स्टेशन 'B' के अधिकारी से अनुरोध करता है कि वह तलाशी करवाए। स्टेशन 'B' का अधिकारी धारा 185 के प्रावधानों का पालन करते हुए तलाशी करता है और जो भी वस्तुएं मिलती हैं, उन्हें स्टेशन 'A' के अधिकारी को भेजता है।

2. उदाहरण 2: बिना इंतजार किए तुरंत तलाशी

स्टेशन 'A' का एक अधिकारी गैरकानूनी ड्रग्स की तस्करी का पीछा कर रहा है। उसे सूचना मिलती है कि ड्रग्स को स्टेशन 'B' की सीमा में कहीं छुपाया जा रहा है। स्टेशन 'B' के शामिल होने में देरी होने से सबूत खो सकते हैं, इसलिए स्टेशन 'A' का अधिकारी सीधे स्टेशन 'B' के अधिकार क्षेत्र में तलाशी करता है, ड्रग्स बरामद करता है और धारा 186(4) के तहत स्टेशन 'B' के अधिकारी और मजिस्ट्रेट को सूचित करता है।

3. उदाहरण 3: तलाशी रिकॉर्ड प्राप्त करने का अधिकार

एक व्यवसायी के गोदाम की तलाशी पुलिस अधिकारी करते हैं, जिन्हें संदेह है कि वहां नकली माल रखा गया है। तलाशी के बाद, व्यवसायी मजिस्ट्रेट को भेजे गए तलाशी रिकॉर्ड की एक प्रति मुफ्त में प्राप्त करने के लिए आवेदन करता है, जिससे तलाशी की पारदर्शिता सुनिश्चित होती है और व्यवसायी को यह पता चल जाता है कि तलाशी में क्या पाया गया।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 186 स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया का विवरण देती है कि कैसे पुलिस अधिकारी विभिन्न पुलिस थानों के बीच तालमेल बिठाकर तलाशी कर सकते हैं। चाहे वह दूसरे पुलिस स्टेशन से सहायता का अनुरोध हो या सबूत नष्ट होने से पहले तुरंत तलाशी का प्रावधान, इस धारा के अंतर्गत तलाशी की प्रक्रिया को निष्पक्ष और कानूनी ढंग से अंजाम देने के प्रावधान किए गए हैं। उचित रिकॉर्ड-रखाव और प्रभावित व्यक्तियों को रिकॉर्ड की प्रतियां उपलब्ध कराने से यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें।

धारा 103 और धारा 185 के प्रावधानों को गहराई से समझने के लिए, हम Live Law Hindi पर प्रकाशित हमारे पिछले लेख को पढ़ने की सलाह देते हैं।

Tags:    

Similar News