आज महंगाई के साथ कानूनी सेवाएं भी अत्यंत महंगी हो चली है। किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन काल में कई दफा अदालत का काम पड़ता है। कई लोगों पर आपराधिक प्रकरण बना दिए जाते हैं और कई लोग अपने सिविल प्रकरण लेकर अदालत के समक्ष उपस्थित होते हैं। भारत की कानूनी प्रक्रिया अत्यंत विशद है। ऐसे में कोई भी आम व्यक्ति इस प्रक्रिया को समझ नहीं सकता है।
कानूनी बारीकियों को केवल एक अधिवक्ता ही समझ सकता है। फिर किसी व्यक्ति पर यदि कोई आपराधिक प्रकरण बनाया गया है तब ऐसे अपराधिक प्रकरण में सरकार की ओर से सरकारी वकील पर भी करते हैं। एक वकील का सामना वकील ही कर सकता है, आम आदमी स्वयं अपना मुकदमा अदालत में नहीं लड़ सकता। उसे वकील की आवश्यकता होती ही है। वकीलों की सेवाएं महंगी सेवाओं में से एक ह। अब प्रश्न यह आता है कि अगर वकीलों की सेवाएं महंगी है तब गरीब लोगों को कानूनी सहायता कैसे मिल पाएगी?
कोई भी गरीब व्यक्ति अपना मुकदमा अदालत में केस चला पाएगा और अपने पर लगे हुए आपराधिक प्रकरण में स्वयं का बचाव कैसे कर पाएगा। क्योंकि गरीब व्यक्ति के पास इतने साधन नहीं होते हैं कि वह एक महंगे वकील को नियुक्त कर सके।
भारत सरकार ने और भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस समस्या से निपटने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण नाम का एक विभाग बनाया है। इसका निर्माण सन 1997 में किया गया था। जब गरीब लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता देने की घोषणा की गई थी।
इस प्राधिकरण के माध्यम से भारत के उन गरीब लोगों को मुफ्त में विधिक सेवाएं दी जाती है जो अपना मामला न्यायालय के समक्ष रख पाने में असमर्थ है। जिनके पास इतने रुपए पैसे नहीं है और आय के कोई साधन नहीं है कि वह अपना मामला अदालत के समक्ष रख सके।
जैसे कि अगर किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा किसी मामले में आरोपी बना दिया जाता है, अब उस व्यक्ति को वकील नियुक्त करना होगा। अगर उसके पास इतना धन नहीं होता है कि वे कोई वकील नियुक्त कर सके तब उसे बगैर वकील के ही नहीं छोड़ा जा सकता। बल्कि उसे अपना बचाव करने के लिए सरकार की तरफ से निशुल्क वकील दिया जाता है।
ऐसा वकील विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से दिया जाता है। विधिक सेवा प्राधिकरण में वकीलों को नियुक्त किया जाता है। इन वकीलों को उनकी सेवाओं के बदले भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है। यह वकील ऐसे गरीब वर्ग के लोगों के मुकदमे अदालतों में रखते हैं। सिविल और आपराधिक दोनों प्रकार के मामलों में इन वकीलों को नियुक्त किया जा सकता है।
कैसे प्राप्त करें सहायता
विधिक सेवा प्राधिकरण से सहायता प्राप्त करने के लिए कुछ प्रक्रिया है। कुछ पात्रता बताई गई है जिसके दायरे में आने वाले व्यक्तियों को ही विधिक सेवा प्राधिकरण की सेवाएं प्राप्त होती हैं। इस प्राधिकरण से सेवा प्राप्त करने के लिए दो श्रेणी के लोगों को रखा गया है।
पहली श्रेणी
इस श्रेणी में समाज के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एवं महिला बच्चे 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति, मानसिक या कोई शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति, यह सभी पहली श्रेणी के लोग हैं। अगर इन लोगों द्वारा अपने शपथ पत्र के माध्यम से यह कहा जाता है कि वह इस श्रेणी में आते हैं और उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता मिलना चाहिए तब उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान कर दी जाती है।
दूसरी श्रेणी
इस श्रेणी में समाज के गरीब लोग आते हैं जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं। ऐसे लोगों के पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड होता है और यह किसी प्रकार का आयकर भुगतान नहीं करते हैं। इन लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं होता है। जैसे कोई नौकरी नहीं होती है, कोई व्यवसाय नहीं होता है। यह लोग छुट्टी मजदूरी पर निर्भर रहते हैं, इन लोगों को निशुल्क कानूनी सहायता मिल जाती है।
सरकार ने हर जिले के जिला न्यायालय में विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया है। विधिक सेवा प्राधिकरण राष्ट्रीय स्तर से जिला स्तर तक कार्य करता है। व्यक्ति को जिस भी जिले में विधिक सेवा प्राप्त करनी है, उस जिले के जिला अदालत में जाना चाहिए और वहां विधिक सेवा प्राधिकरण का दफ्तर तलाशना चाहिए।
इस दफ्तर से उन्हें एक फॉर्म मिलता है, जिस फार्म को उन्हें सही-सही जानकारियों के साथ भरना होता है और इसी के साथ एक शपथ पत्र भी देना होता है। यह बताना होता है कि वे किस तरह से मुफ्त विधिक सहायता पाने के पात्र हैं।
अगर वे विकलांग है तब वह अपनी विकलांगता का प्रमाण पत्र लगाएं। अगर वे लोग गरीब हैं तब वह अपनी गरीबी का प्रमाण पत्र लगाएं। अगर उनके पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड है तब उन्हें गरीब की श्रेणी में रखा जाता है।
ऐसे गरीब लोग अगर फार्म के साथ अपनी सही जानकारी भरते हैं तब उन्हें अपने किसी भी मामले में मुफ्त विधिक सहायता प्राप्त हो जाती है। अब भले ही ऐसा मामला सिविल प्रकृति का हो या फिर आपराधिक प्रकृति का हो।
अगर किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा पकड़ कर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। तब मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष जाने को कह सकता है, अगर उस व्यक्ति द्वारा अपना वकील नियुक्त नहीं किया गया है। लेकिन मजिस्ट्रेट यहां पर प्राथमिक स्तर पर जांच करता है कि जिस व्यक्ति को विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष भेजा जा रहा है, क्या वह व्यक्ति वाकई में गरीब है।
मजिस्ट्रेट द्वारा भेजे जाने के बाद विधिक सेवा प्राधिकरण ऐसे व्यक्ति की जांच करता है, जांच के बाद जब यह पता है कि वह व्यक्ति वास्तव में मुफ्त कानूनी सहायता पाने का पात्र है तब उसे एक अधिवक्ता नियुक्त कर दिया जाता है। वह अधिवक्ता एक प्राइवेट अधिवक्ता की तरह ही कार्य करता है, लेकिन वह अधिवक्ता उस व्यक्ति से किसी भी तरह की कोई फीस नहीं लेता है। मामले की जो भी फीस होती है, उस व्यक्ति द्वारा अदा नहीं की जाती है अपितु अधिवक्ता को सरकार द्वारा अदा की जाती है।
सिविल केस में भी मिल सकती है सहायता
किसी भी सिविल केस में व्यक्ति जब भी अपना मामला न्यायालय के समक्ष लेकर जाता है तब उसे कोर्ट फीस अदा करनी होती है। ऐसी कोर्ट फीस की गढ़ना कोर्ट फीस अधिनियम के अंतर्गत होती है।
संपत्ति या रुपए पैसों से संबंधित मामले में संपत्ति के बाजार मूल्य के आधार पर कोर्ट फीस की गणना होती है। कोर्ट फीस ऑनलाइन माध्यम से जमा करनी होती है, लेकिन अगर व्यक्ति गरीब है और उसके पास उस संपत्ति के अलावा दूसरा कोई साधन नहीं है तब उस व्यक्ति को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश के 33 के अंतर्गत कोर्ट फीस से मुक्ति मिल जाती है।
इसके लिए उसे विधिक सेवा प्राधिकरण और इसी के साथ संबंधित कोर्ट के मजिस्ट्रेट को सूचित करना होता है। अपना आवेदन देना होता है, मजिस्ट्रेट ऐसे आवेदन की जांच करता है। उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति की जांच होती है, यदि व्यक्ति वास्तव में गरीब पाया जाता है तब उसे कोर्ट फीस से मुक्ति मिल जाती है।
फिर उसका मामला बगैर किसी कोर्ट फीस के अदालत में दर्ज कर लिया जाता है। लेकिन अगर वे मामले में न्यायालय द्वारा निर्णय दे दिया जाता है और निर्णय उस व्यक्ति के पक्ष में जाता है तब सबसे पहले कोर्ट फीस अदा करनी होती है। जैसे किसी मकान से संबंधित कोई मामला न्यायालय में दर्ज किया गया है और मकान का फैसला अदालत द्वारा उस व्यक्ति के पक्ष में दे दिया गया जो मामले को कोर्ट में आया था तब मकान पर कोर्ट फीस एक कर्ज की तरह होती है।
सबसे पहले इस फोर्ट फीस को अदा करना होता है, तब ही मकान का स्वामित्व मुकदमा लाने वाले व्यक्ति को सौंपा जाता है। इस तरह कोई गरीब व्यक्ति अपने सिविल और आपराधिक दोनों प्रकरणों में मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है। लेकिन इतना भान रहना चाहिए कि यह कानूनी सहायता केवल गरीब लोगों को ही प्राप्त होती है। कोई भी न्यायालय की अवमानना, मानहानि और अर्थदंड से संबंधित मामले में ऐसी विधिक सहायता प्राप्त नहीं होती है।