डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ: सुप्रीम कोर्ट का मैन्युअल स्कैवेंजिंग और मजबूरी से श्रम पर ऐतिहासिक फैसला
डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ का यह मामला मैन्युअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) के उन्मूलन (Eradication) पर आधारित है, जिसे भारत में लंबे समय से अमानवीय और असंवैधानिक (Unconstitutional) माना गया है। हालांकि मैन्युअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन यह प्रथा (Practice) अब भी जारी है, जिससे भारतीय संविधान में निहित (Guaranteed) मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लंघन हो रहा है। यह मामला राज्य की उन विफलताओं (Failures) को उजागर करता है, जिनमें मैन्युअल स्कैवेंजिंग पर बने कानूनों और पुनर्वास कार्यक्रमों (Rehabilitation Programs) को लागू करने में कमी रही है, जो इस अमानवीय काम में लगे लोगों की सुरक्षा के लिए बनाए गए थे।
मामले के तथ्य (Facts of the Case)
इस मामले में याचिकाकर्ता (Petitioner) डॉ. बलराम सिंह ने संविधान के अनुच्छेद 32 (Article 32) के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें मैन्युअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन से जुड़े 1993 और 2013 के कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की गई थी। याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि इन कानूनों के बावजूद, मैन्युअल स्कैवेंजिंग अभी भी जारी है, और कई लोग सीवरेज की सफाई (Sewer Cleaning) के दौरान उचित सुरक्षा उपकरणों (Protective Gear) की कमी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं।
मैन्युअल स्कैवेंजिंग में सूखे शौचालय (Dry Latrines) और खुले नालों (Open Drains) से मानव मल की सफाई शामिल है। यह प्रथा भारतीय समाज में गहराई से जड़ें जमा चुकी है, और इसे खत्म करने के लिए बनाए गए कानूनों के बावजूद, कई लोग विशेष रूप से हाशिए के समुदायों से, इस काम में लगे रहते हैं।
याचिका में यह भी बताया गया कि जो लोग मैन्युअल स्कैवेंजिंग में लगे हुए थे, उन्हें कानून के अनुसार पुनर्वासित (Rehabilitate) करने के लिए सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे। याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया कि वह सरकार को मैन्युअल स्कैवेंजिंग करने वालों का पुनर्वास सुनिश्चित करने और सीवर, सेप्टिक टैंक (Septic Tank), और अन्य कचरा निपटान इकाइयों की खतरनाक सफाई (Hazardous Cleaning) को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए निर्देश दे।
कानूनी प्रावधान और तर्क (Legal Provisions and Arguments)
इस मामले में मुख्य रूप से दो प्रमुख कानूनों का जिक्र किया गया:
1. द एम्प्लॉयमेंट ऑफ मैन्युअल स्कैवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिन्स (प्रोहिबिशन) एक्ट, 1993: यह कानून मैन्युअल स्कैवेंजिंग को पहली बार अपराध (Criminalized) बनाने की कोशिश थी। इसमें सूखे शौचालयों के निर्माण और उन्हें साफ करने के लिए लोगों को नियुक्त करने पर प्रतिबंध लगाया गया था।
2. द प्रोहीबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एज मैन्युअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रीहैबिलिटेशन एक्ट, 2013: यह कानून 1993 के कानून का विस्तार करता है और इसमें अस्वास्थ्यकर शौचालयों, सीवरों, और गड्ढों की सफाई के काम को भी शामिल किया गया है। इस कानून का उद्देश्य मैन्युअल स्कैवेंजिंग में लगे लोगों की गरिमा (Dignity) और सुरक्षा सुनिश्चित करना था और उनके पुनर्वास के लिए वित्तीय सहायता (Financial Assistance), आवास (Housing), और वैकल्पिक रोजगार (Alternative Employment) के अवसर प्रदान करना था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इन कानूनी सुरक्षा उपायों के बावजूद, देश के कई हिस्सों में मैन्युअल स्कैवेंजिंग जारी है। उन्होंने कई उदाहरण प्रस्तुत किए, जहाँ उचित सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण सीवेज की सफाई के दौरान लोगों की मौत हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एस. रविंद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार के नेतृत्व में, 2013 के कानून के प्रावधानों और राज्य तथा केंद्र सरकारों की विफलताओं पर विस्तृत रूप से विचार किया। कोर्ट ने यह पुनः पुष्टि की कि संविधान के अनुच्छेद 21 (Right to Life - जीवन का अधिकार), अनुच्छेद 23 (Prohibition of Forced Labour - जबरन श्रम का निषेध), और अनुच्छेद 17 (Abolition of Untouchability - अस्पृश्यता का उन्मूलन) द्वारा हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार (Right to Dignity) प्रदान किया गया है।
अदालत ने पाया कि सेंट्रल मॉनिटरिंग कमेटी (Central Monitoring Committee - CMC) और स्टेट मॉनिटरिंग कमेटियों (State Monitoring Committees - SMCs), जिन्हें 2013 के कानून के कार्यान्वयन (Implementation) की निगरानी करनी थी, ज्यादातर काम नहीं कर रही थीं। अदालत ने यह भी देखा कि मैन्युअल स्कैवेंजर्स की पहचान, जो उनके पुनर्वास के लिए पहला कदम है, सही तरीके से नहीं की जा रही थी। 2013 और 2018 में किए गए सर्वेक्षण (Surveys) अपर्याप्त थे, और देशभर में वास्तव में कितने लोग मैन्युअल स्कैवेंजिंग में लगे हुए हैं, इसका कोई सटीक डेटा उपलब्ध नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (National Commission for Safai Karamcharis - NCSK), जो सफाई कर्मचारियों के कल्याण की निगरानी के लिए जिम्मेदार है, को पर्याप्त स्टाफ और बजट (Understaffed and Underfunded) की कमी का सामना करना पड़ रहा है। NCSK, अपनी जिम्मेदारी के बावजूद, कानूनी रूप से आवश्यक कदम उठाने में असमर्थ था क्योंकि इसके पास पर्याप्त अधिकार (Powers) नहीं थे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Judgment by the Supreme Court)
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण निर्देश (Directions) जारी किए, जिनका उद्देश्य 2013 के कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना था:
1. मैन्युअल स्कैवेंजर्स की पहचान और पुनर्वास (Identification and Rehabilitation of Manual Scavengers): अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे सभी मैन्युअल स्कैवेंजिंग में लगे लोगों की पहचान के लिए नए सर्वेक्षण (Surveys) करें और एक निश्चित समय सीमा (Time-Bound) में उनका पुनर्वास सुनिश्चित करें। इसमें वित्तीय सहायता, आवास और वैकल्पिक रोजगार के लिए प्रशिक्षण (Training) शामिल था।
2. खतरनाक सफाई के लिए सुरक्षा उपाय (Safety Measures for Hazardous Cleaning): अदालत ने जोर दिया कि किसी भी आपात स्थिति में बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर या सेप्टिक टैंकों में प्रवेश करना अपराध माना जाएगा। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि खतरनाक सफाई के दौरान किसी व्यक्ति की मौत हो जाने पर उसके परिवार को ₹10 लाख का मुआवजा (Compensation) दिया जाएगा।
3. सफाई की प्रक्रिया का मशीनीकरण (Strict Enforcement of Mechanization): अदालत ने रेल मंत्रालय (Ministry of Railways) और कैंटोनमेंट बोर्ड्स (Cantonment Boards) को तुरंत मैन्युअल शौचालयों और ट्रैक की सफाई के मशीनीकरण (Mechanization) का आदेश दिया। उन्होंने सफाई कर्मचारियों के लिए उचित सुरक्षा उपकरण (Safety Gear) उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया।
4. निगरानी और जवाबदेही (Monitoring and Accountability): अदालत ने सेंट्रल मॉनिटरिंग कमेटी (CMC) को नियमित रूप से बैठक करने और 2013 के कानून के कार्यान्वयन की समीक्षा करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, राज्यों को स्टेट-लेवल सर्वे कमेटी (SLSCs) और डिस्ट्रिक्ट-लेवल सर्वे कमेटी (DLSCs) का गठन करने का आदेश दिया, ताकि निचले स्तर पर निगरानी की जा सके।
5. डेटा संग्रहण और पारदर्शिता (Data Collection and Transparency): अदालत ने विभिन्न सरकारी निकायों द्वारा प्रस्तुत किए गए डेटा में विसंगतियों (Discrepancies) पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने निर्देश दिया कि एक विश्वसनीय, केंद्रीकृत डेटाबेस (Centralized Database) रखा जाए, और मैन्युअल स्कैवेंजिंग में लगे सभी लोगों की पहचान और पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए डेटा संग्रहण (Data Collection) को पारदर्शी और सटीक बनाया जाए।
फैसले का प्रभाव (Impact of the Judgment)
डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मैन्युअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन और सफाई कर्मचारियों के संरक्षण से संबंधित कानूनों को लागू करने के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत द्वारा जवाबदेही (Accountability) और मशीनीकरण के सख्त प्रवर्तन (Enforcement) पर जोर देने से मैन्युअल श्रम को समाप्त करने और इन लोगों की गरिमा की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव होंगे।
इस फैसले ने यह भी स्पष्ट किया कि जबरन श्रम (Forced Labour) असंवैधानिक है, भले ही लोग आर्थिक दबाव में इस काम को करने के लिए सहमत हों। अदालत का यह निर्णय संविधान के व्यापक उद्देश्य, विशेष रूप से हाशिए के समुदायों के लिए सामाजिक न्याय (Social Justice) और समानता (Equality) सुनिश्चित करने के सिद्धांत के अनुरूप है।
डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मैन्युअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने और इससे प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए एक ऐतिहासिक फैसला है। अदालत द्वारा राज्य को कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराने और सर्वेक्षण, मशीनीकरण और सुरक्षा उपायों पर जोर देने से मैन्युअल श्रम के शोषण (Exploitation) को समाप्त करने की दिशा में वास्तविक बदलाव की नींव रखी गई है।
यह फैसला याद दिलाता है कि कानून बनाने के साथ-साथ उनका प्रभावी कार्यान्वयन भी आवश्यक है, ताकि समाज के सबसे कमजोर वर्गों के साथ न्याय सुनिश्चित किया जा सके। अदालत के निर्देश मैन्युअल स्कैवेंजिंग में लगे लोगों के शोषण को समाप्त करने और उन्हें गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं।