झूठे सबूत और गलत साक्ष्य गढ़ने के परिणाम और किसी को झूठी गवाही देने के लिए धमकाना: BNS, 2023 के तहत धारा 230 - धारा 232

Update: 2024-10-05 13:53 GMT

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को बदल दिया है। इसमें कई प्रावधान दिए गए हैं जो न्याय प्रणाली की ईमानदारी को बनाए रखने के उद्देश्य से बनाए गए हैं।

इसमें धारा 230, धारा 231, और धारा 232 विशेष रूप से उन अपराधों से संबंधित हैं, जिनमें झूठे सबूत दिए जाते हैं या गढ़े जाते हैं, और जिसके परिणामस्वरूप गलत दोषसिद्धि हो सकती है, खासकर उन मामलों में जो गंभीर अपराध हैं। ये प्रावधान झूठी गवाही (Perjury) और न्यायिक प्रक्रिया पर इसके प्रभाव को गंभीरता से लेते हैं।

धारा 230: झूठे सबूत जिससे मौत की सज़ा (Capital Offence) हो सकती है

धारा 230(1) उस व्यक्ति के लिए सज़ा का प्रावधान करती है, जो जानबूझकर झूठे सबूत देता है या गढ़ता है, यह जानते हुए कि इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है जो कानून के तहत मृत्यु दंड (Capital Punishment) के योग्य है, जैसे हत्या या देशद्रोह।

इस कानून के तहत सज़ा इस प्रकार हो सकती है:

• आजीवन कारावास (Imprisonment for life), या

• अधिकतम दस साल की कठोर सज़ा (Rigorous Imprisonment)।

• अधिकतम पचास हज़ार रुपये का जुर्माना (Fine up to fifty thousand rupees)।

यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक प्रक्रिया को गलत तरीके से प्रभावित करने के उद्देश्य से झूठे सबूत पेश करता है, जिससे किसी को मौत की सज़ा मिल सकती है, उसे कठोर दंड का सामना करना पड़ेगा।

धारा 230(2) और भी सख्त है।

अगर झूठे सबूतों के कारण कोई निर्दोष व्यक्ति फांसी पर चढ़ जाता है, तो झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति को:

• मृत्युदंड (Death penalty)।

• धारा 230(1) में वर्णित सज़ा (आजीवन कारावास या दस साल तक की कठोर सज़ा) का सामना करना पड़ेगा।

यह प्रावधान उन मामलों की गंभीरता को दर्शाता है, जहाँ झूठे सबूतों के कारण किसी निर्दोष व्यक्ति को फांसी की सजा दी जाती है।

उदाहरण:

कल्पना करें कि A अदालत में झूठी गवाही देकर Z पर हत्या का झूठा आरोप लगाता है। A की झूठी गवाही के कारण Z को मौत की सजा सुनाई जाती है। यदि बाद में यह साबित होता है कि A ने झूठे सबूत पेश किए थे, तो A को धारा 230 के तहत मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। अगर Z को गलत तरीके से फांसी दी जाती है, तो A को भी मृत्युदंड का सामना करना पड़ सकता है।

धारा 231: जीवन कारावास (Life Imprisonment) या कम गंभीर अपराधों के लिए झूठे सबूत

धारा 231 उन मामलों से संबंधित है, जहाँ झूठे सबूत दिए जाते हैं या गढ़े जाते हैं, जिनसे किसी व्यक्ति को गंभीर लेकिन गैर-मौत की सज़ा (Non-Capital Offence) के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। इसमें वे अपराध शामिल हैं जिनकी सज़ा आजीवन कारावास (Life Imprisonment) या सात साल या उससे अधिक की सज़ा हो सकती है।

ऐसे मामलों में झूठे सबूत देने या गढ़ने वाले व्यक्ति को उसी प्रकार की सज़ा दी जाएगी, जो उस व्यक्ति को मिलती जिसे गलत तरीके से दोषी ठहराया गया है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि झूठे सबूत पेश करने वाले व्यक्ति को वही सज़ा मिलेगी जो दोषी व्यक्ति को दी जाती।

उदाहरण:

अगर A अदालत में झूठी गवाही देता है ताकि Z को डकैती (Dacoity) के लिए दोषी ठहराया जा सके, जिसकी सजा आजीवन कारावास या दस साल तक की कठोर सजा हो सकती है, तो A को भी आजीवन कारावास या दस साल तक की सजा का सामना करना पड़ेगा।

धारा 232: किसी को झूठी गवाही देने के लिए धमकाना (Threatening to Give False Evidence)

धारा 232(1) उन मामलों से संबंधित है, जहाँ कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को चोट पहुँचाने, बदनामी (Reputation) या संपत्ति के नुकसान की धमकी देता है ताकि वह व्यक्ति झूठी गवाही दे। यह धमकी उस व्यक्ति के किसी रिश्तेदार या करीबी के खिलाफ भी हो सकती है।

ऐसे मामलों में सज़ा इस प्रकार हो सकती है:

• अधिकतम सात साल तक की सज़ा (Imprisonment for up to seven years), या

• जुर्माना (Fine), या

• दोनों (Imprisonment and Fine)।

धारा 232(2) में यह कहा गया है कि अगर किसी निर्दोष व्यक्ति को झूठी गवाही के कारण फांसी या सात साल से अधिक की सज़ा होती है, तो धमकी देने वाले व्यक्ति को भी वही सजा दी जाएगी जो निर्दोष व्यक्ति को मिली है।

उदाहरण:

मान लीजिए A ने B को धमकी दी कि वह अदालत में झूठी गवाही दे कि Z ने अपराध किया है। अगर B, A की धमकी के कारण झूठी गवाही देता है और इसके परिणामस्वरूप Z को दस साल की सज़ा हो जाती है, तो A को भी दस साल की सज़ा का सामना करना पड़ेगा।

धारा 230, 231 और 232 के बीच संबंध

भारतीय न्याय संहिता में इन प्रावधानों का मुख्य उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया की ईमानदारी को बनाए रखना है। धारा 230 सबसे गंभीर मामलों पर ध्यान देती है जिनमें मृत्यु दंड का खतरा होता है, जबकि धारा 231 गैर-मौत की सज़ा वाले गंभीर अपराधों पर लागू होती है। धारा 232 उन मामलों से संबंधित है जहाँ लोगों को झूठी गवाही देने के लिए धमकाया जाता है।

तीनों धाराएँ इस बात पर जोर देती हैं कि झूठी गवाही के परिणामस्वरूप गलत तरीके से किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने से बचा जाए, विशेष रूप से उन मामलों में जहाँ सजा बहुत गंभीर होती है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 230, धारा 231 और धारा 232 न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन प्रावधानों के तहत झूठे सबूत देने या गढ़ने वालों के खिलाफ कठोर सज़ाओं का प्रावधान किया गया है, ताकि न्याय प्रणाली का दुरुपयोग न हो सके।

यह कानून इस बात को सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति न्याय प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ न कर सके और निर्दोष लोगों को गलत तरीके से दोषी न ठहराया जाए।

इन प्रावधानों को समझने के लिए, हमारे पिछले लेखों में दी गई धारा 227 (झूठी गवाही) और धारा 228 (गलत सबूत गढ़ना) का भी अवलोकन करें। इससे आपको भारतीय न्याय संहिता, 2023 में झूठी गवाही से संबंधित संपूर्ण जानकारी मिलेगी।

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