सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 9 पक्षकारों के अदालत में उपस्थित होने एवं नहीं होने के संबंध में प्रावधान निश्चित करता है। आदेश 9 का नियम 4 अनुपस्थिति में वाद के खारिज होने के पश्चात नया वाद लाने के संबंध में है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 4 प्रकाश डाला जा रहा है।
नियम-4 वादी नया वाद ला सकेगा या न्यायालय को फाइल पर प्रत्यावर्तित कर सकेगा- जहाँ वाद नियम 2 या नियम 3 के अधीन खारिज कर दिया जाता है वहाँ वादी नया वाद (परिसीमा विधि के अधीन रहते हुए) ला सकेगा या वह उस खारिजी को अपास्त कराने के आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा और यदि वह न्यायालय का समाधान कर देता है कि, [ यथास्थिति, नियम 2 में निर्दिष्ट असफलता के लिए या उसकी अपनी अनुपसंजाति के लिए पर्याप्त हेतुक था तो न्यायालय खारिजों को अपास्त करने के लिए आदेश करेगा और वाद में आगे कार्यवाही करने के लिए दिन नियत करेगा।
नियम 2 या नियम 3 के अधीन वाद के खारिज होने के पश्चात क्या उपचार हो सकते हैं यह इस नियम में बताया गया है। इस प्रकार वाद के खारिज होने पर निम्न उपचार उपलब्ध होते हैं-
नया वाद लाना या फिर न्यायालय में उस आदेश को अपास्त कर वाद को पुनः स्थापित करने के लिए आवेदन करना।
नया वाद लाना -
नियम 2 या नियम 3 के अधीन जब चूक के आधार पर किसी वाद को न्यायालय खारिज कर देता है तो नियम 4 नया वाद लाने को छूट देता है। जब दूसरा उपचार स्वीकार नही हो और आवेदन खारिज कर दिया जाए, तो फिर नया वाद लाना हो एकमात्र उपाय रह जाता है, जिसके लिए परिसीमा विधि के अधीन रहकर हो आगे याद लाया जा सकेगा। आदेश 2 का नियम 2 भी इस मामले में विचारणीय होगा।
एक मामले में सम्पत्ति के सहस्वामी द्वारा प्रस्तुत स्थायी निषेधाज्ञा का वाद वादी को अनुपस्थिति के कारण खारिज कर दिया गया एवं पुनस्थापन का आवेदन दो वर्ष के विलंब से बिना युक्ति संगत कारण के प्रस्तुत होने से खारिज कर दिया गया वहाँ अन्य सहस्वामी स्वत्व के आधार पर आवर्ती वाद हेतुक होने के कारण नया वाद ला सकता है।
पुनः स्थापना का आवेदन व शर्तें - यह एक सरल व प्रभावशाली उपाय है जब कोई वाद- (1) नियम 2 के अधीन तामील की फीस जमा न कराने या वादपत्र को प्रति समन के साथ न लगाने पर खारिज किया जाता है या- (2) नियम 3 के अधीन दोनों पक्षकारों को अनुपस्थिति के कारण खारिज किया जाता है- तो इस खारिजी के आदेश को रद्द करने और वाद को पुनः स्थापित करने के लिए उससे न्यायालय में एक आवेदन इसी नियम के अधीन किया जायेगा। इस आवेदन में वादी को उस न्यायालय का समाधान करना होगा कि- नियम 2 में ऊपर बताई गई चूकें या,
(2) नियम 3 में हुई अनुपस्थिति को चूक जो भी हो के लिए "लपर्याप्त हेतुक था। इस कारण को एक शपथ पत्र द्वारा स्थापित करना होगा या न्यायालय चाहे, तो इसके लिए आवश्यक साक्ष्य भी पेश करनी होगी।
जब न्यायालय इस नियम के अधीन वाद को पुन. स्थापित करता है और खारिजी को अपास्त कर देता है, तो कार्यवाही आगे चलेंगी, जिसके लिए दिन (अगली पेशी) नियत किया जावेगा।
एक मामले में वाद का विचारण आंरभ हुआ, तो वादी ने कुछ दस्तावेज प्राप्त करने के आधार पर समय मांगते हुए आवेदन किया। एकल-न्यायाधीश ने स्थगन देने से मना कर दिया और यह अवलोकन करते हुए वाद को खारिज कर दिया कि-वादी ने साक्ष्य देने और वाद का अभियोजन करने से मना कर दिया। वाद को पुनः स्थापित करने के आवेदन को चलने योग्य नहीं होने से खारिज कर दिया। अभिनिर्धारित कि-पक्षकार उपस्थित उपस्थित था, परन्तु उसको यह उपस्थिति केवल स्थगन की प्रार्थना करने के प्रयोजन से समझो गई। जब एक बार स्थगन के लिए मना कर दिया तो आगे का अभियोजन करने में उसकी चूक थी। हालांकि न्यायाधीश ने कहा है कि वह इस वाद को आदेश 17, नियम 3 में निपटा रहा है, परन्तु न्यायालय को कार्यवाही का वास्तविक अर्थ और सार यह था कि-वाद को केवल उसका अभियोजन न करने के लिए खारिज किया गया था। अतः पुनः स्थापना का आवेदन चलने योग्य है।
एक अन्य वाद में दोनो पक्षकार पेशी पर अनुपस्थित रहे, तो आदेश 9, नियम 4 के अधीन वाद के पुनः स्थापन का आवेदन करना होगा, जिसमें अनुपस्थिति के पर्याप्त कारण के बारे में कम कठोरता से (अर्थात् उदारता से) विचार करना चाहिए।
प्रतिवादी को सूचना -
उपस्थिति की चूक के कारण वाद को खारिज किए जाने का आदेश प्रतिवादी को सूचना दिये बिना प्रत्यास्थापित किया जा सकता है। जब खारिजी का आदेश रद्द किया गया, तो प्रतिवादी को अगली पेशी को सूचना देनी होगी। न्यायालय को वाद का प्रत्यास्थापन करते समय खर्चे आदि की शर्ते लगाने को अधिकारिता नहीं है।
न्यायालय ने प्रतिवादी की अनुपस्थिति में, वादी के अनुपस्थित रहने के कारण उसके वाद को खारिज कर दिया। फिर वादी ने उस वाद की पुनस्थापना के लिए आवेदन किया, तो प्रतिवादी को उस आवेदन का नोटिस न्यायालय द्वारा जारी किए जाने की आवश्यतकता नहीं है।
एक प्रकरण में व्यतिक्रम (अनुपस्थिति) के कारण एक वाद को खारिज कर दिया गया, जिसे वादी के आवेदन पर प्रतिवादी को नोटिस दिए बिना पुन:स्थापित कर दिया गया। अभिनिर्धारित कि प्रतिवादी को यह सूचना दिये बिना कि उक्त याद को पुनःस्थापित कर दिया गया है, न्यायालय आगे की कोई कार्यवाही उस वाद में नहीं कर सकता।
वाद के पुनःस्थापन का प्रभाव-
जब अनुपस्थिति के कारण खारिज किए गए किसी वाद को न्यायालय प्रत्यास्थापित करता है, तो उसमें दिये गये अन्तर्वतीय आदेशों का पुनजीवित होना उस खारिजी के आदेश और पुन:स्थापन के आदेश पर निर्भर करेगा। जब वाद को ऐसे आदेशों का प्रसंग दिये बिना ही खारिज किया गया हो, तो वे आदेश जीवित हो जायेंगे, परन्तु उनको स्पष्ट रूप से रद कर दिया जाने पर वे वाद के प्रत्यास्थापन पर पुनजीवित नहीं होंगे।
सोनम कुमारी विरुद्ध जगदीश प्रसाद के मामले में धारा 151 के अधीन अन्तर्निहित शक्ति का प्रयोग उचित माना गया। न्यायालय ने एक प्रतिवादी के विधिक-प्रतिनिधि के प्रतिस्थापन के लिए आवेदन पर सुनवाई की तारीख नियत की, जिस पर वादी नहीं आ सका और न्यायालय ने वाद को चूक के कारण खारिज कर दिया। वादी ने धारा 151 सपठित आदेश 9 नियम 4 के अधीन उस वाद के पुनःस्थापन का आवेदन किया। अभिनिर्धारित कि क्योंकि यह न्यायालय की गलती थी। अतः धारा 151 के अधीन पुन:स्थापन किया जा सकता है, आदेश 9 यहां लागू होता नहीं होता है।
वाद की खारिजी चूक के कारण परिसीमा-
आदेश 9, नियम 4 के अधीन वाद को पुनः स्थापित करने के आवेदन को परिसीमा अधिनियम की धारा 5 देरी को क्षमा करने के लिए लागू होती है। वादी का यह कथन था कि वह सुनवाई की दिनांक से प्रत्यास्थापन के आवेदन की दिनांक तक बीमार रहा। यह कथन नियम 4 के अधीन चूक तथा धारा 5 के अधीन देरी दोनों का स्पष्टीकरण है। अत: आवेदन को गुणागुण पर निपटाया जावेगा। यह माना गया कि प्रत्यास्थापन के आवेदन को खारिज करने से न्यायालय ने अवैध रूप से कार्य किया है।
वाद का पुन:स्थापन-समन की तामील के बाद चूक में वाद को खारिज कर दिया गया। वाद को पुनःस्थापित करवाने के लिए उपचार आदेश 9, नियम 9 (1) में उपलब्ध है। वादी ने इसके बजाय आदेश 9, नियम 4 में आवेदन किया। यह उचित नहीं है। येनकेन, इस आवेदन में वे सभी बातें मौजूद है, जिन पर वाद की खारिजी को अपास्त किया जा सकता है। अतः इस आवेदन को आदेश 9, नियम 9 के अधीन दिया गया समझा जा सकता है। परिणामस्वरूप अपील की जा सकती है और परिसीमा में देरी को क्षमा किया जा सकता है।
वाद की खारिजी के आदेश को वापस लेना (आदेश १, नियम 4-धारा 151)-प्रतिवादी समय के भीतर लिखित-कथन फाइल करने में असफल रहा। अतः लिखित कथन पेश करने का अधिकार समाप्त हो गया। वादी को एकतरफा साक्ष्य पेश करने की अनुमति दे दी गई। कई बार अवसर दिये जाने पर तथा खर्च लगाने पर भी वादी ने साक्ष्य का शपथपत्र फाइल नहीं किया। इस प्रकार अनुसरण नहीं करने पर वाद खारिज कर दिया गया। वादी ने बताया कि खर्च जमा करने में देरी का कारण गलत नाम से भुगतान आदेश बनाना था। यह तथ्य विचारण- न्यायालय के ध्यान में नहीं लाया गया।