सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 179: आदेश 32 नियम 12 एवं 13 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 32 का नाम 'अवयस्कों और विकृतचित्त व्यक्तियों द्वारा या उनके विरुद्ध वाद है। इस आदेश का संबंध ऐसे वादों से है जो अवयस्क और मानसिक रूप से कमज़ोर लोगों के विरुद्ध लाए जाते हैं या फिर उन लोगों द्वारा लाए जाते हैं। इस वर्ग के लोग अपना भला बुरा समझ नहीं पाते हैं इसलिए सिविल कानून में इनके लिए अलग व्यवस्था की गयी है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 32 के नियम 12 एवं 13 पर प्रकाश डाला जा रहा है।
नियम-12 अवयस्क वादी या आवेदक द्वारा वयस्क होने पर अनुसरण की जाने वाली निर्वाचन (1) अवयस्क वादी या वह अवयस्क जो वाद में पक्षकार तो नहीं है किन्तु जिसकी ओर से आवेदन लम्बित है, वयस्क होने पर यह निर्वाचित करेगा कि वह वाद या आवेदन आगे चलाएगा या नहीं।
(2) जहां वह वाद या आवेदन आगे चलाने का निर्वाचन करता है वहां वह वाद-मित्र के उन्मोचन के आदेश के लिए और स्वयं अपने नाम से आगे कार्यवाही चलाने की इजाजत के लिए आवेदन करेगा।
(3) ऐसी दशा में उस वाद या आवेदन का शीर्षक इस भांति शुद्ध किया जाएगा कि उसका रूप तत्पश्चात् निम्न प्रकार का हो जाए -
"क ख, भूतपूर्व अवयस्क अपने वाद-मित्र ग घ द्वारा, किन्तु जो अब वयस्क है।"
(4) जहां वह वाद या आवेदन का परित्याग करने का निर्वाचन करता है वहां, यदि वह एकमात्र वादी या एकमात्र आवेदक है तो, वह इस आदेश के लिए आवेदन करेगा कि जो खर्च प्रतिवादी या विरोधी पक्षकार द्वारा उपगत किया गया है या जो उसके वाद-मित्र द्वारा दिया गया है, उस खर्चे के प्रतिसंदाय पर वाद या आवेदन खारिज कर दिया जाए।
(5) इस नियम के अधीन कोई आवेदन एकपक्षीय किया जा सकेगा, किन्तु वाद-मित्र को उन्मोचित करने वाला और अवयस्क वादी को स्वयं अपने नाम से आगे कार्यवाही करने के लिए अनुज्ञा देने वाला कोई भी आवेदन वाद-मित्र को सूचना दिए बिना नहीं किया जाएगा।
नियम-13 जहां अवयस्क सहवादी, वयस्क होने पर वाद का निराकरण करने की वांछण करता है-
(1) जहां अवयस्क सहवादी, वयस्क होने पर वाद का निराकरण करने की वांछा करता है वहां वह यह आवेदन करेगा कि सहवादी की हैसियत से उसका नाम काट दिया जाए और यदि न्यायालय का यह निष्कर्ष हो कि वह आवश्यक पक्षकार नहीं है तो न्यायालय खर्चों के सम्बन्ध में या अन्यथा ऐसे निबन्धनों पर जो वह ठीक समझे, उसे वाद से खारिज कर देगा।
(2) आवेदन की सूचना की तामील वाद-मित्र पर, किसी सहवादी पर और प्रतिवादी पर की जाएगी।
(3) ऐसे आवेदन के सभी पक्षकारों के और वाद में कि तब तक की गई सभी या किन्हीं कार्यवाहियों के खर्चे ऐसे व्यक्तियों द्वारा दिए जाएंगे जिन्हें न्यायालय निदिष्ट करे।
(4) जहां आवेदक वाद का आवश्यक पक्षकार है वहां न्यायालय उसे प्रतिवादी बनाए जाने का निदेश दे सकेगा।
नियम 12 अवयस्क वादी के वयस्क होने पर तथा नियम 13 अवयस्क सहवादी के वयस्क हो जाने पर किसी वाद में की जाने वाली कार्यवाही की व्यवस्था करते हैं।
वयस्क हो जाने पर निर्वाचन (चयन) तथा वाद की प्रक्रिया (नियम-12) -
(1) निर्वाचन का अवसर (उपनियम 1) अवयस्क वादी या वह अवयस्क जो पक्षकार नहीं है, पर जिसकी ओर से आवेदन किया गया है, वयस्क हो जाता है, तो उसे निर्वाचन करने (चुनने) का अवसर दिया जाएगा कि वह वाद आगे चलायेगा या नहीं।
(2) वाद आगे चलाना - (उपनियम-2, 3 व 5) जब वयस्क हो जाने पर वह अवयस्क वाद या आवेदन को आगे चलाना चाहता है, तो आगे निम्न कार्यवाही की जावेगी -
(i) वह न्यायालय में एक आवेदन करेगा कि (क) वादमित्र का उन्मोचन (मुक्ति/ छुट्टी) कर दिया जावे और उसे स्वयं वाद या आवेदन को स्वयं के नाम से चलाने की इजाजत दी जावे। (उपनियम-2)
(ii) इस आवेदन की सूचना वादमित्र को दी जावेगी और फिर आदेश किया जावेगा। इस प्रकार उस वादमित्र को भी सुना जावेगा। (उपनियम-5)
(iii) इस पर वादपत्र या आवेदन के शीर्षक में संशोधन किया जाएगा, जो इस प्रकार होगा - (उपनियम-3) "क ख भूतपूर्व अवयस्क अपने वादमित्र ग घ द्वारा जो अब वयस्क है।"
इसके बाद आगे उस वाद या आवेदन की कार्यवाही उस वयस्क के नाम से चलाई जावेगी।
(3) वाद का परित्याग करना (उपनियम-4 व 5)- जब वह अवयस्क वयस्क हो जाने पर उस वाद या आवेदन का परित्याग करने का चयन करता है, और वह यदि एक मात्र वादी या आवेदक है, तो वह न्यायालय में आवेदन करेगा कि - (i) प्रतिवादी या विरोधी पक्षकार द्वारा किए गए खर्चे का वह भुगतान करने को तैयार है,
(ii) अतः वाद या आवेदन खारिज कर दिया जाए। इस आवेदन पर एकपक्षीय आदेश किया जा सकेगा। (उपनियम-5)
अवयस्क सहवादी द्वारा निराकरण (नियम 13) (1) जब किसी वाद का अवयस्क सहवादी वयस्क हो जाता है और वह उस वाद का निराकरण (छुटकारा) करने की वांछा (चाहना) करता है, तो वह न्यायालय में आवेदन करेगा कि उसका नाम सहवादी के रूप में से काट दिया जाए।
यदि न्यायालय का निष्कर्ष यह हो कि वह आवश्यक पक्षकार नहीं है, तो न्यायालय उस वाद को खर्चों के सम्बन्ध में या अन्य शर्ते लगाकर जो वह उचित समझे, उस वाद को खारिज कर देगा।
इस आवेदन के प्राप्त होने पर इसकी सूचना की तामील वादमित्र, सहवादी और प्रतिवादी पर की जाएगी (उपनियम-2), इसके बाद ही आदेश किया जाएगा।
ऐसे आवेदन या वाद के खर्चों के बारे में न्यायालय निदेश देगा। (उपनियम-3), और यदि वह आवेदक (सहवादी) वाद का आवश्यक पक्षकार है, तो उसे न्यायालय प्रतिवादी बनाने का निदेश सकेगा। इसके बाद उस आवेदन या वाद की कार्यवाही आगे चलेगी।
नियम 12 के संबंध में न्यायालयों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त -
नियम 12 की अपेक्षा एक अवयस्क यह चुनाव नहीं कर पा रहा है कि क्या वह वयस्क हो जाने पर इस बाद को जारी रखेगा। आदेश 32, नियम 12 यह अपेक्षा नहीं करता कि उस वाद को खारिज कर दिया जाए।
वयस्क हो जाने पर निर्वाचन (विकल्प) नियम 12(3) केवल एक वादी या अपीलार्थी को लागू होता है, पर एक प्रतिवादी या प्रत्यर्थी को नहीं। अतः जब एक प्रतिवादी वयस्क हो जाता है, तो वह स्वयं अभिलेख पर आ जाता है और न्यायालय को इसकी सूचना देता है। फिर वह अपनी प्रतिरक्षा स्वयं कर सकेगा, सन्नु उसके ऐसा न करने पर यह माना जावेगा कि उसने उस वाद के होने वाले निर्णय को उस विवाद के बारे में मानने का चयन कर लिया (या विकल्प दे दिया) है।
समझौता वापस खोलना अवयस्क की ओर से समझौता करने के लिए संरक्षक द्वारा आवेदन किया गया, परन्तु उसके साथ संरक्षक का यह शपथ पत्र संलम नहीं था कि उसके अभिमत में यह समझौता अवयस्क के परिलाभ (benefit) के लिए था। न्यायालय ने उस अनुमति की स्वीकार कर समझौता करने की अनुमति दे दी। अभिनिर्धारित कि वयस्कता की आयु प्राप्त करने पर वह अवयस्क उस समझौते को वापस खोल सकता है।
समझौता बाध्य नहीं वाद के लम्बित रहते वयस्कता प्राप्त कर लेने पर जब एक वाद लम्बित है और उसी बीच वह अवयस्क यदि वयस्कता प्राप्त कर लेता है, तो उसके संरक्षक द्वारा किया गया समझौता उस पर बाध्यकर नहीं होगा, चाहे न्यायालय ने उसकी स्वीकृति दे दी हो।
वाद का निराकरण अवयस्क द्वारा चालू किये वाद के लम्बित रहने के दौरान यदि वह वयस्कता प्राप्त कर लेता है, तो ऐसे वाद का विधिवत् निराकरण किया जा सकता है।
अवयस्क मानकर वाद करना
वादी ने अपने को अवयस्क मानकर बाद संस्थित किया, जब न्यायालय को यह पता हो जाय कि वादी वयस्क है और अवयस्क नहीं है, तो वह उस अवयस्क के वादमित्र को हटा देगा।
जब अन्तिम डिक्री हो गई जब एक अवयस्क जिसका प्रतिनिधित्व वादार्थ-संरक्षक द्वारा किया जा रहा है प्रारम्भिक डिक्री पारित होने के बाद वयस्कता प्राप्त हो गया। वह अवयस्क स्वयं बाद में उपस्थित हुआ, पर उसने संरक्षक को पदमुक्त नहीं करवाया। ऐसी स्थिति में प्रतिवादी के रूप में वह अन्तिम डिक्री से बाध्य है।
जब डिक्री शून्य हो गई यदि वयस्क को अवयस्क बता कर कोई डिक्री प्राप्त कर ली जाती है, तो वह डिक्री शून्य होगी, परन्तु निष्पादन के विरुद्ध धारा 47 सीपीसी के अधीन कोई आक्षेप नहीं किया जा सकता। अतः ऐसी डिक्री को अवैध घोषित करने के लिए बाद लाया जा सकता है।
गलती से अवयस्क मानकर कार्यवाही करना एक व्यक्ति को जो वयस्क हो गया था, गलती से अवयस्क मानकर संरक्षक के माध्यम से कार्यवाही संस्थित की गई। इस मामले में उस वयस्क ने आदेश 32, नियम 12 के अधीन संरक्षक को मुक्त करने और स्वयं द्वारा कार्यवाही जारी रखने के लिए आवेदन किया। अभिनिर्धारित किया कि- ऐसे मामले में उस गलती को आदेश 1, नियम 10 के अधीन वादशीर्ष में संशोधन कर सही किया जा सकता है।
जब वादी के अवयस्क होने के सद्भावी विश्वास पर वादी के वादमित्र के द्वारा अपील की गई, तो उस अपील को अक्षम मानकर खारिज नहीं किया जा सकता था। यह भूल आदेश 1, नियम 10 के अधीन शुद्ध करने योग्य थी और वादी के द्वारा आदेश 32, नियम 12 के अधीन प्रस्तुत आवेदन को, जो कि गलत धारणा से फाइल किया गया था, अपील में आदेश 1, नियम 10 के अधीन वादशीर्ष में संशोधन का आवेदन मानकर तद्नुसार स्वीकार कर लेना चाहिये था। अतः अपील तथा आवेदन दोनों को खारिज करने का आदेश चलने योग्य नहीं है, उसे अपास्त किया गया।