सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 127: आदेश 21 नियम 67, 68 व 69 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 67, 68 एवं 69 पर विवेचना की जा रही है।
नियम-67 उद्घोषणा करने की रीति- (1) हर उद्घोषणा, जहां तक हो सके, ऐसी रीति से की जाएगी और प्रकाशित की जाएगी जो नियम 54 के उपनियम (2) द्वारा विहित है।
(2) जहां न्यायालय ऐसा निदेश देता है वहां ऐसी उद्घोषणा राजपत्र या स्थानीय समाचार पत्र में भी या दोनों में प्रकाशित की जाएगी और ऐसे प्रकाशन के खर्चे विक्रय के खर्चे समझे जाएंगे।
(3) जहां सम्पत्ति पृथक रूप से विक्रय किए जाने के प्रयोजन से लाटों में विभाजित की गई है वहां हर एक लाट के लिए पृथक उद्घोषणा करना तब तक आवश्यक नहीं होगा जब तक कि न्यायालय की यह राय न हो कि विक्रय की उचित सूचना अन्यथा नहीं दी जा सकती।
नियम-68 विक्रय का समय-नियम 43 के परन्तुक में वर्णित किस्म की सम्पत्ति की दशा में के सिवाय, इसके अधीन कोई भी विक्रय निर्णीत ऋणी की लिखित सहमति के बिना तब तक न होगा जब तक कि उस तारीख से जिसको उद्घोषणा की प्रति विक्रय का आदेश देने वाले न्यायाधीश के न्याय-सदन में लगाई गई है, गणना करके स्थावर सम्पत्ति की दशा में कम से कम (पन्द्रह दिन) का और जंगम सम्पत्ति की दशा में कम से कम (सात दिन) का अवसान न हो गया हो।
नियम-69 विक्रय का स्थगन या रोका जाना (1) न्यायालय इसके विक्रय को किसी विनिर्दिष्ट दिन और घण्टे तक के लिए स्वविवेकानुसार स्थगित कर सकेगा और ऐसे किसी विक्रय का संचालन करने वाला अधिकारी स्थगन के अपने कारणों को लेखबद्ध करते हुए विक्रय को स्वविवेकानुसार स्थगित कर सकेगा :
परन्तु जहाँ विक्रय न्याय-सदन में या उसकी प्रसीमाओं के भीतर किया जाता है वहाँ ऐसा कोई भी स्थगन न्यायालय की इजाजत के बिना नहीं किया जाएगा।
(2) जहाँ विक्रय [तीस दिन] से अधिक की अवधि के लिए उपनियम (1) के अधीन स्थगित किया जाता है वहाँ, तब के सिवाय जब कि निर्णीत ऋणी उसका अधित्यजन करने के लिए अपनी सहमति दे दे, नियम 67 के अधीन नई उद्घोषणा की जाएगी।
(3) यदि लाट के लिए बोली के समाप्त होने से पहले ही ऋण ओर खर्चे (विक्रय के खर्चों के सहित) विक्रय का संचालन करने वाले अधिकारी को निविदत्त कर दिए जाते हैं या उसकी समाधानप्रद रूप में यह सबूत दे दिया जाता है कि ऐसे ऋण की रकम और खर्चे उस न्यायालय में जमा करा दिया गए हैं जिसने विक्रय के लिए आदेश दिया था तो ऐसा हर विक्रय रोक दिया जाएगा।
नियम 67 में विक्रय की सूचना देने के लिए उसकी उद्घोषणा करने का तरीका बताया गया है। विक्रय की उद्घोषणा नियम 66 के अनुसार संहिता की पहली अनुसूची के परिशिष्ट (ड़) के प्ररूप सं. 29 में की जाएगी।
आदेश 21, नियम 54 (2) में उद्घोषणा करने का तरीका इस प्रकार बताया गया है-
वह आदेश ऐसी सम्पत्ति में के या उसके पाश्र्वस्थ (पास में/पड़ौस में स्थित) किसी स्थान पर डोंडी पिटवाकर या अन्य रूढ़िक (परम्परा के अनुसार) ढंग से उद्घोषित किया जाएगा। इस प्रकार पड़ौस में सभी को इस उद्घोषणा का पता लग जाना चाहिये। उस आदेश की प्रति निम्न स्थानों पर लगाई (चिपकाई/चस्पा कराई) जावेगी- (क) उस सम्पत्ति के दिखाई देने वाले किसी भाग पर,
(ख) न्याय-सदन (न्यायालय भवन) के दिखाई देने वाले भाग पर, और (ग) कलक्टर के कार्यालय में (यदि राजस्व देने वाली भूमि हो) और (घ) ग्राम पंचायत के कार्यालय में (यदि भूमि गांव में स्थित हो।)
उद्घोषणा का प्रकाशन (उपनियम-2)- इस नियम के अधीन न्यायालय के निदेश देने पर उद्घोषणा को राजपत्र (गजट) या स्थानीय समाचार पत्र या दोनों में प्रकाशित किया जाएगा। इसका खर्च विक्रय का खर्च समझा जवेगा।
भाग का बिक्री (उपनियम-3) - जब सम्पत्ति को कई लाटों में बाँटकर अलग-अलग बेचा जाए, तो प्रत्येक लाट के लिए अलग उद्घोषणा करना आवश्यक नहीं है यदि इससे ठीक सूचना नहीं दी जा सकती हो, तो न्यायालय उद्घोषणाएँ अलग-अलग भी निकाल सकता है।
उद्घोषणा का प्रकाशन व प्रचार - नियम 67 के उपनियम (1) में शब्द "किया जाना (मेड)" का प्रसंग विक्रय की उद्घोषणा को तैयार करने से नहीं है, पर विक्रय को ढोंढी पिटवाकर या चिपका कर या उद्घोषणा द्वारा प्रकाशित करने से है। इस नियम के विरुद्ध यदि उद्घोषणा नियमानुसार नहीं की गई हो, तो विक्रय शून्य हो जाएगा, परन्तु नियम के उपबंधों की पालना का लोप करने के तथ्य मात्र से विक्रय शून्य नहीं होता। यह नियम 90 के अधीन एक तात्विक अनियमितता है, अतः यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि इस अनियमितता से तात्विक क्षति हुई है, तो वह विक्रय को अपास्त कर देगा। यदि उद्घोषणा को किसी स्थानीय समाचार पत्र में प्रकाशित कर दिया गया है, तो प्रकाशन के दिनांक से कितनी विशेष अवधि पूरी होनी चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है।
नियम 68 की अनुपालना का प्रभाव- कलकत्ता उच्च न्यायालय के मतानुसार इस नियम में निर्धारित समय के पहले विक्रय कर देने पर ऐसा विक्रय शून्य नहीं होता, परन्तु नियम 90 के अर्थ में यह एक तात्विक अनियमितता है, जिससे सारवान् क्षति होने पर उस विक्रय को अपास्त कर दिया जाएगा। परन्तु नागपुर उच्च न्यायालय के अनुसार इस नियम की शर्तें आज्ञापक हैं और दो गई अवधि से पहले किया गया विक्रय दूषित हो गया, जिसे बिना शर्त अपास्त करना होगा। न्यायालय द्वारा की गई उद्घोषणा की तारीख से 15 दिवस को गणना की जावेगी।
आदेश 21 के नियम 69 में विक्रय की कार्यवाही के स्थगन और रोकने के उपबंध किये गये हैं। उपनियम (2) में पहले सात दिन की अवधि थी, जिसे बढाकर 1976 के संशोधन द्वारा तीस दिन कर दिया गया है।
विक्रय का स्थगन और नई उद्घोषणा - [ उपनियम (1) तथा (2)]- विक्रय का संचालन कर्ता अधिकारी कारण लेखबद्ध करते हुए विक्रय को अपने विवेक से किसी निश्चित दिन और घंटे तक के लिए स्थगित कर सकता है, परन्तु न्यायालय की इजाजत लेकर ही ऐसा स्थगन किया जा सकेगा। यदि विक्रय तीस दिन से अधिक के लिए स्थगित किया जावे, तो नियम 67 के अधीन दुबारा नई उद्घोषणा करनी होगी, परन्तु यदि निर्णीत-ऋणी ऐसी उद्घोषणा न करने की सहमति दे दे, तो नई उद्घोषणा की आवश्यकता नहीं रहेगी।
विक्रय को रोका जाना [ उपनियम (3)] -जब एक लाट के लिए बोली समाप्त होने से पहले यदि-(1) ऋण और खर्च, मय विक्रय के खर्चे के विक्रयकर्ता अधिकारी को दे दिये जाते हैं, या (2) न्यायालय में ऐसा ऋण या खर्च जमा कराने का सबूत (रसीद या चालान) दे दिया जाता है, तो विक्रय को आगे रोक दिया जाएगा और सम्पत्ति नीलाम नहीं की जाएगी।
सारवान् अनियमितता का अर्थ-नीलाम-विक्रय में सारवान् अनियमितता से ऐसी अनियमितता अभिप्रेत है जिसके कारण आवेदन-कर्ता को क्षति पहुंचे। नई उद्घोषणा जारी नहीं करने से तात्विक अनियमितता होती है और नियम 40 लागू होता है।
परन्तु जब नीलामी कई दिनों तक लगातार चले, तो नई उद्घोषणा की आवश्यकता नहीं है नियम 69 स्थगनों (एडजर्नमेंट) के बारे में है, विक्रय की अवधि या उसके चालू रहने के बारे में नहीं है। विक्रय-उद्घोषणा में दी गई दिनांक के बाद, दूसरे दिनांक पर विक्रय करने का आदेश दिया गया, तो यह उप-नियम (2) के भीतर स्थगन करना नहीं है। स्थगन के लिए पहले से निश्चित की गई दिनांक से पहले आदेश करना होगा। इस प्रकार बाद के दिनांक को किया गया विक्रय अविधिमान्य तथा अवैध है।
स्थगित किए गए विक्रय का समय निश्चित नहीं करने का प्रभाव- जब विक्रय (नीलामी) को स्थगित किया जाता है, तो अगला दिन व समय तय करना आवश्यक है। यदि समय व दिन नहीं बताया गया, और विक्रय कर दिया गया, तो यह नियम 90 के अधीन एक तात्विक अनियमितता है, जिससे वह विक्रय शून्य नहीं हो जाता।
विक्रय के स्थान का परिवर्तन-जब विक्रय (नीलामी) बिना नई उद्घोषणा के दूसरे दिनांक व दूसरे स्थान पर किया गया, तो वह विक्रय शून्य है। हालांकि विक्रय का स्थान बदलने पर नई उद्घोषणा की जानी चाहिये, पर इसमें असफल रहने पर विक्रय शून्य करणीय होगा।
बंधक-डिक्री के निष्पादन में विक्रय (उपनियम-3)- एक बंधक दार-निर्णीत-ऋणी वास्तव में विक्रय होने से पहले और अन्तिम डिक्री के पारित हो जाने के बाद ऋण का भुगतान कर के बन्धक-डिक्री के निष्पादन में बंधकित-सम्पत्ति के विक्रय को स्थगित कराने को अधिकृत है।
शब्दावली ऋण और खर्चे में उस दावेदार को आनुपातिक वितरण के लिए देय राशि सम्मिलित है, जिसका दावा न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है। उप-नियम (3) के अधीन विक्रय को रोकने के लिए दी गई धनराशि नियम 73 के अर्थ में आनुपातिक वितरण की आस्तियाँ हैं।