भारत में नागरिकता: कानूनी ढांचा, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और दोहरी नागरिकता पर चर्चा

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता पर उठे सवालों से भारत में नागरिकता से संबंधित कई नए सवालों ने जन्म लिया।
गौरतलब है कि राहुल गांधी के कथित दोहरी नागरिकता का मामला 2015 में उठा जब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने ब्रिटेन में एक कंपनी (BackOps Ltd.) के दस्तावेजों में खुद को ब्रिटिश नागरिक बताया था। उन्होंने गृह मंत्रालय से उनकी भारतीय नागरिकता रद्द करने की मांग की थी।
भारतीय संविधान के तहत दोहरी नागरिकता मान्य नहीं है, इसलिए यह विवाद का विषय बन गया। गृह मंत्रालय ने 2019 में राहुल गांधी से स्पष्टीकरण मांगा।
अब मामला दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है।
आइए समझते हैं भारतीय नागरिकता से जुड़े हर कानून पहलू को और जानते हैं इस पर भारतीय संविधान क्या कहता है।
भारत में एकल नागरिकता (Single Citizenship) की व्यवस्था है, जिसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति केवल भारतीय नागरिक (Indian Citizen) हो सकता है और किसी अन्य देश की नागरिकता के साथ-साथ भारतीय नागरिकता नहीं रख सकता। यह व्यवस्था अमेरिका और कनाडा जैसे देशों से अलग है, जहां नागरिकों को दोहरी नागरिकता (Dual Citizenship) रखने की अनुमति है।
भारत में दोहरी नागरिकता को लेकर अक्सर चर्चा होती रही है, खासकर भारतीय प्रवासी (Indian Diaspora), विदेशों में काम कर रहे पेशेवरों और देशभक्ति (Allegiance) से जुड़े मुद्दों को लेकर। सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम मामलों में नागरिकता संबंधी कानूनों की व्याख्या (Interpretation) की है और यह स्पष्ट किया है कि भारतीय नागरिकता किन परिस्थितियों में प्राप्त की जा सकती है और किन परिस्थितियों में खोई जा सकती है।
संविधान और कानूनी ढांचा (Constitutional and Legal Framework)
भारत का संविधान (Indian Constitution) नागरिकता से जुड़े प्रावधानों को भाग II (Part II) के तहत निर्धारित करता है। इसके अलावा, नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955) भारतीय नागरिकता प्राप्त करने और समाप्त होने के नियम तय करता है।
अन्य देशों की तुलना में, भारत दोहरी नागरिकता को मान्यता (Recognition) नहीं देता। हालाँकि, भारत सरकार ने एक विशेष दर्जा (Special Status) दिया है जिसे ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI - Overseas Citizen of India) कहा जाता है। हालांकि, यह पूर्ण नागरिकता (Full Citizenship) नहीं है।
नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता प्राप्त करने के चार प्रमुख तरीके हैं – जन्म (Birth), वंश (Descent), पंजीकरण (Registration), और प्राकृतिककरण (Naturalization)। लेकिन यह अधिनियम यह भी बताता है कि किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता किन परिस्थितियों में समाप्त हो सकती है, विशेष रूप से यदि वह किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर ले।
सुप्रीम कोर्ट के नागरिकता से जुड़े अहम फैसले (Supreme Court Rulings on Citizenship)
भारत में दोहरी नागरिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। इन फैसलों ने यह साफ किया है कि भारत सिर्फ एकल नागरिकता की नीति (Single Citizenship Policy) का पालन करता है।
प्रदीप जैन बनाम भारत सरकार, 1984 (Pradeep Jain v. Union of India, 1984)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिकों (Indian Origin Citizens) के अधिकारों पर विचार किया। अदालत ने कहा कि भले ही विदेश में रहने वाले भारतीय कुछ विशेष सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं, लेकिन अगर उन्होंने किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर ली है, तो वे संविधान द्वारा दिए गए कुछ मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का दावा नहीं कर सकते।
आंध्र प्रदेश सरकार बनाम सैयद मोहम्मद खान, 1962 (Government of Andhra Pradesh v. Syed Mohd. Khan, 1962)
इस मामले में एक व्यक्ति ने पाकिस्तानी नागरिकता (Pakistani Citizenship) ले ली थी और इसके बावजूद खुद को भारतीय नागरिक मान रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से (Voluntarily) किसी अन्य देश की नागरिकता लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वचालित रूप (Automatically) से समाप्त हो जाती है।
सर्बानंद सोनोवाल बनाम भारत सरकार, 2005 (Sarbananda Sonowal v. Union of India, 2005)
यह मामला असम में अवैध प्रवास (Illegal Migration) और नागरिकता से जुड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में नागरिकता के लिए सख्त नियम (Strict Rules) हैं और जो लोग विदेशी नागरिकता ले चुके हैं, वे भारतीय नागरिकता का दावा नहीं कर सकते।
लुईस डी रीड बनाम भारत सरकार, 1991 (Louis De Raedt v. Union of India, 1991)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों (Foreign Nationals) के अधिकारों पर विचार किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकों की तरह संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) का दावा नहीं कर सकते।
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला – 31 जुलाई 2024 (Delhi High Court's Decision on Dual Citizenship – July 31, 2024)
प्रवासी कानूनी प्रकोष्ठ (Pravasi Legal Cell) द्वारा प्रवासी भारतीयों (Indian Diaspora) के लिए दोहरी नागरिकता की मांग करते हुए एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation - PIL) दायर की गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह संसद (Parliament) के अधिकार क्षेत्र में आता है और इसे अदालत द्वारा तय नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि दोहरी नागरिकता का मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) से जुड़ा हुआ है और इसके दूरगामी प्रभाव (Wide-ranging Implications) हो सकते हैं।
के.एल. मोदी बनाम भारत सरकार – 15 अप्रैल 1969 (K.L. Modi vs. Union of India – April 15, 1969)
इस केस में, याचिकाकर्ता (Petitioner) ने अपनी भारतीय नागरिकता समाप्त होने को अदालत में चुनौती दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले को दोहराते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति विदेशी नागरिकता लेता है, तो भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है। अदालत ने फिर से यह स्पष्ट किया कि भारत में दोहरी नागरिकता का कोई प्रावधान नहीं है और यदि कोई भारतीय नागरिक विदेशी नागरिकता लेता है, तो वह भारतीय नागरिक नहीं रहेगा।
ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI) – दोहरी नागरिकता का विकल्प नहीं
भारत सरकार ने 2005 में एक विशेष दर्जा ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI) की शुरुआत की, जिससे भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों (Foreign Citizens of Indian Origin) को कुछ विशेष सुविधाएँ मिल सकें। हालांकि, यह दोहरी नागरिकता (Dual Citizenship) नहीं है।
OCI कार्डधारकों को मल्टीपल-एंट्री वीजा (Multiple-Entry Visa), विदेशी पंजीकरण कार्यालय (FRRO - Foreigners Regional Registration Office) में पंजीकरण से छूट, और कुछ संपत्ति खरीदने की अनुमति मिलती है। लेकिन वे भारत में वोट (Voting), सरकारी नौकरियों (Government Jobs) या संवैधानिक पदों (Constitutional Positions) के लिए आवेदन नहीं कर सकते।
विदेशी नागरिकता प्राप्त करने के परिणाम (Consequences of Acquiring Foreign Citizenship)
अगर कोई भारतीय नागरिक विदेशी नागरिकता प्राप्त कर लेता है, तो भारतीय कानूनों के तहत उसे कई बड़े बदलावों का सामना करना पड़ता है।
1. भारतीय पासपोर्ट की समाप्ति (Loss of Indian Passport) – भारत दोहरी नागरिकता को मान्यता नहीं देता, इसलिए यदि कोई व्यक्ति विदेशी नागरिकता लेता है, तो उसे भारतीय पासपोर्ट अनिवार्य रूप से (Mandatory) जमा करना होता है।
2. भारतीय नागरिक के अधिकार समाप्त (Loss of Rights as an Indian Citizen) – विदेशी नागरिकता लेने के बाद व्यक्ति मतदान (Voting), चुनाव लड़ने (Contesting Elections) और सरकारी नौकरियों (Government Jobs) के लिए पात्र नहीं रहता।
3. वीजा की आवश्यकता (Visa Requirement) – जो लोग भारतीय नागरिकता खो चुके हैं, उन्हें भारत में प्रवेश करने के लिए वीजा प्राप्त करना अनिवार्य (Mandatory) होगा, जब तक कि उनके पास OCI कार्ड न हो।
भविष्य में दोहरी नागरिकता की संभावना (Future Possibilities of Dual Citizenship)
भारत के बाहर रहने वाले कई भारतीय यह मांग कर रहे हैं कि भारत को दोहरी नागरिकता की अनुमति (Allow Dual Citizenship) देनी चाहिए, ताकि वैश्विक स्तर पर भारतीय समुदाय के साथ संबंध मजबूत किए जा सकें।
हालाँकि, इसके विरोधियों का कहना है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) के लिए खतरा बन सकता है और इससे राजनीतिक और कूटनीतिक (Diplomatic) मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं।
भारत में सिर्फ एकल नागरिकता (Single Citizenship) की नीति है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में स्पष्ट किया है। जो लोग स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं, वे भारतीय नागरिकता स्वतः (Automatically) खो देते हैं।
हालाँकि, प्रवासी भारतीयों की मांगों को देखते हुए, सरकार ने OCI जैसी योजना शुरू की है, जो कुछ विशेष सुविधाएँ देती है लेकिन इसे दोहरी नागरिकता नहीं माना जा सकता। जब तक संसद नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act) में संशोधन नहीं करती, तब तक भारत में दोहरी नागरिकता की कोई संभावना नहीं है।