क्या रजिस्ट्रेशन अधिकारी पावर ऑफ अटॉर्नी की वैधता की जांच कर सकता है?

Update: 2025-01-07 16:26 GMT

अमर नाथ बनाम ग्यान चंद (2022) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 (Registration Act, 1908) की कई धाराओं की व्याख्या की। यह मामला विशेष रूप से पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) धारक द्वारा दस्तावेज़ों की वैधता और रजिस्ट्रेशन अधिकारी (Registering Officer) की जांच की सीमा पर केंद्रित था।

यह लेख सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए मुख्य कानूनी मुद्दों (Legal Issues) और उनके निर्णय को सरल शब्दों में प्रस्तुत करता है।

रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 की प्रमुख धाराएँ (Key Provisions of the Registration Act, 1908)

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मुख्यतः धारा 32, 33, 34 और 35 की व्याख्या की। इन धाराओं का उद्देश्य दस्तावेज़ों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को नियंत्रित करना है। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश द्वारा जोड़ी गई धारा 18ए (Section 18A) का भी उल्लेख किया गया।

1. धारा 32 (Section 32):

o यह धारा बताती है कि दस्तावेज़ को रजिस्ट्रेशन के लिए कौन प्रस्तुत कर सकता है:

 दस्तावेज़ बनाने वाला व्यक्ति (Executant),

 दस्तावेज़ के तहत दावा करने वाला व्यक्ति (Claimant),

 या उनके प्रतिनिधि या एजेंट (Agent)।

o इसमें क्लॉज (Clause) (a), (b), और (c) में इनके अधिकार तय किए गए हैं।

2. धारा 33 (Section 33):

o यह धारा बताती है कि रजिस्ट्रेशन के लिए मान्य पावर ऑफ अटॉर्नी कैसे प्रमाणित (Authenticate) होनी चाहिए। इसे मजिस्ट्रेट (Magistrate), रजिस्ट्रार (Registrar), या अन्य अधिकारी के सामने सत्यापित (Attested) किया जाना चाहिए।

3. धारा 34 (Section 34):

o यह रजिस्ट्रेशन अधिकारी की जिम्मेदारियों (Responsibilities) को परिभाषित करती है, जैसे व्यक्तियों की पहचान (Identity) सुनिश्चित करना और दस्तावेज़ के निष्पादन (Execution) को प्रमाणित करना।

4. धारा 35 (Section 35):

o यह उन परिस्थितियों को बताती है जहां रजिस्ट्रेशन अधिकारी दस्तावेज़ का पंजीकरण (Registration) अस्वीकार कर सकता है।

मामले में उठाए गए मूलभूत मुद्दे (Fundamental Issues in the Case)

यह विवाद एक पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा प्रस्तुत किए गए बिक्री विलेख (Sale Deed) की वैधता पर था।

इस मामले में मुख्य रूप से निम्नलिखित सवाल उठे:

1. रजिस्ट्रेशन के दौरान मूल पावर ऑफ अटॉर्नी (Original Power of Attorney) की आवश्यकता

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 32(a) के तहत, दस्तावेज़ का निष्पादन करने वाला व्यक्ति (Executant) उसे रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत कर सकता है। यदि निष्पादक (Executant) ने पावर ऑफ अटॉर्नी का उपयोग किया है, तो मूल पावर ऑफ अटॉर्नी प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं है।

2. रजिस्ट्रेशन अधिकारी की जांच का दायरा (Scope of Registering Officer's Inquiry)

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि धारा 34 के तहत, जांच केवल दस्तावेज़ के निष्पादन (Execution) और प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति की पहचान तक सीमित है। यह यह जांचने का दायरा नहीं देता कि पावर ऑफ अटॉर्नी वैध (Valid) थी या नहीं। इस व्याख्या का आधार राजनी टंडन बनाम दुलाल रंजन घोष दस्तिदार (2009) का फैसला है।

3. धारा 18ए (Section 18A) का उद्देश्य

यह प्रावधान दस्तावेज़ों की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को तेज करने के लिए जोड़ा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह केवल रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत दस्तावेज़ों पर लागू होता है, न कि सहायक दस्तावेज़ों (Ancillary Documents) जैसे कि पावर ऑफ अटॉर्नी।

4. रजिस्ट्रेशन के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी रद्द करने और नोटिस (Notice) देने की प्रक्रिया

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि रजिस्टर्ड पावर ऑफ अटॉर्नी को रद्द (Cancel) करने के लिए भी रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता है। केवल मौखिक या अनौपचारिक रद्दीकरण (Informal Cancellation) पर्याप्त नहीं है। इस संदर्भ में दया शंकर बनाम राजेंद्र कुमार (2016) के फैसले को आधार बनाया गया।

महत्वपूर्ण निर्णयों का संदर्भ (Relevant Precedents)

सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया:

1. राजनी टंडन बनाम दुलाल रंजन घोष दस्तिदार (2009):

o पावर ऑफ अटॉर्नी धारक को निष्पादक (Executant) माना जाता है, और वह दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकता है।

2. जम्बू प्रसाद बनाम मोहम्मद नवाब अफताब अली खान (1914):

o रजिस्ट्रेशन अधिकारी का अधिकार वैध प्रस्तुति (Valid Presentation) पर आधारित है।

3. अनाथुला सुधाकर बनाम टी. बुच्ची रेड्डी (2008):

o संपत्ति विवादों (Property Disputes) में घोषणात्मक राहतों (Declaratory Reliefs) की प्रक्रिया पर प्रकाश।

4. रतिलाल नाथुभाई बनाम रासिकलाल मगनलाल (1950):

o पंजीकृत दस्तावेज़ों से जुड़ी साक्ष्यात्मक धारणा (Evidentiary Presumption) पर जोर।

अमर नाथ बनाम ग्यान चंद के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले कठोर नियमों (Strict Procedural Framework) और रजिस्ट्रेशन अधिकारियों की सीमित जांच के दायरे (Limited Inquiry) पर जोर दिया।

कोर्ट ने धारा 32, 33 और 34 की व्याख्या करते हुए यह सुनिश्चित किया कि दस्तावेज़ पंजीकरण की प्रक्रिया पारदर्शी और धोखाधड़ी (Fraud) रहित हो। यह निर्णय पावर ऑफ अटॉर्नी से जुड़े मामलों में कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

Tags:    

Similar News