क्या अदालतें दिवालिया मामलों में तय सीमा से परे देरी को माफ कर सकती हैं?

Update: 2024-12-27 12:11 GMT

नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड बनाम अनिल कोहली, रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल फॉर दूनर फूड्स लिमिटेड (2021) के मामले ने यह महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठाया कि क्या अदालतें, विशेष रूप से Insolvency and Bankruptcy Code (IBC), 2016 के तहत, अपीलीय ट्रिब्यूनल (Appellate Tribunals) द्वारा स्पष्ट रूप से तय सीमा से परे देरी को माफ कर सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए यह स्पष्ट किया कि क्या न्यायालय विधायिका द्वारा निर्धारित सीमा (Statutory Limits) का उल्लंघन कर सकते हैं। यह लेख इस फैसले की न्यायिक व्याख्या और इसके प्रभावों का विश्लेषण करता है, जो विधायी आदेश और न्यायिक लचीलापन (Judicial Flexibility) के बीच संतुलन पर केंद्रित है।

IBC की मुख्य प्रावधानों (Key Provisions) पर चर्चा

इस मामले में मुख्य मुद्दा IBC की धारा 61(2) (Section 61(2)) था, जो National Company Law Appellate Tribunal (NCLAT) में अपील दाखिल करने के लिए 30 दिनों की समय सीमा तय करता है, और "पर्याप्त कारण" (Sufficient Cause) होने पर अधिकतम 15 दिनों की देरी माफ करने की अनुमति देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये समयसीमाएं (Timelines) सख्त हैं और इन्हें अनुच्छेद 142 (Article 142) के तहत भी नहीं बदला जा सकता, जो सुप्रीम कोर्ट को "पूर्ण न्याय" (Complete Justice) करने की असाधारण शक्ति प्रदान करता है।

न्यायालय द्वारा उठाए गए मुख्य मुद्दे (Fundamental Issues Addressed by the Court)

1. कानूनी सीमा की प्रकृति (Nature of Statutory Limitation)

अदालत ने दोहराया कि विशेष कानूनों (Special Laws) जैसे IBC में निर्धारित समयसीमाओं का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। Popular Construction Co. (2001) और Hilli Multipurpose Cold Storage Pvt. Ltd. (2020) जैसे मामलों का हवाला देते हुए अदालत ने यह स्पष्ट किया कि विशेष कानून अक्सर Limitation Act, 1963 के सामान्य प्रावधानों जैसे धारा 5 (Section 5) को लागू होने से रोकते हैं। धारा 61(2) में "परंतु इसके बाद नहीं" (But Not Thereafter) जैसे शब्दों की व्याख्या करते हुए अदालत ने इसे किसी भी अतिरिक्त माफी की स्पष्ट निषेध (Express Exclusion) माना।

2. अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की शक्तियां (Judicial Powers under Article 142)

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत देरी को माफ करना चाहिए। हालांकि, अदालत ने Oil and Natural Gas Corporation Ltd. बनाम गुजरात एनर्जी ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (2017) जैसे मामलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 142 का उपयोग विधायी प्रावधानों (Statutory Provisions) का उल्लंघन करने के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने इस सिद्धांत को दोहराया कि अदालतें, यहां तक कि असाधारण स्थितियों में भी, विधायिका (Legislature) द्वारा निर्धारित आदेशों को पलट नहीं सकतीं।

3. सार्वजनिक नीति और विधायी उद्देश्य (Public Policy and Legislative Intent)

अदालत ने यह भी नोट किया कि IBC एक विशेष कानून है जो दिवालिया मामलों (Insolvency Cases) के समयबद्ध समाधान (Timely Resolution) को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यदि निर्धारित समयसीमाओं से विचलन (Deviation) किया जाए, तो यह IBC की दक्षता (Efficiency) और पूर्वानुमान (Predictability) को कमजोर कर सकता है। अदालत ने यह माना कि समयसीमा का पालन करना IBC के व्यापक सार्वजनिक नीति उद्देश्यों (Public Policy Objectives) का अभिन्न हिस्सा है।

प्रमुख मिसालें (Key Precedents)

इस निर्णय ने अपने तर्क को मजबूत करने के लिए पिछले निर्णयों पर भारी भरोसा किया:

• Popular Construction Co. बनाम भारत संघ (2001): इसने रेखांकित किया कि विशेष कानूनों में निर्धारित समयसीमा, Limitation Act के सामान्य प्रावधानों को बाहर कर देती है।

• Hilli Multipurpose Cold Storage Pvt. Ltd. बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2020): यह माना कि समयसीमाओं का सख्ती से पालन करना अनिवार्य है।

• Oil and Natural Gas Corporation Ltd. बनाम गुजरात एनर्जी ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (2017): दोहराया कि अनुच्छेद 142 का उपयोग विधायी आदेशों के उल्लंघन के लिए नहीं किया जा सकता।

नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड बनाम अनिल कोहली मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि IBC जैसे विशेष कानूनों में निर्धारित समयसीमा पवित्र (Sacrosanct) है और इसे तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक कि कानून स्पष्ट रूप से अनुमति न दे।

यह निर्णय विधि का शासन (Rule of Law) और शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत को मजबूती प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि अदालतें विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करें। IBC के विधायी उद्देश्य का पालन करके अदालत ने दिवालिया समाधान प्रणाली (Insolvency Resolution System) में समयबद्धता (Timeliness) और विश्वास (Confidence) को बढ़ावा दिया है।

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