क्या घरेलू हिंसा कानून के तहत वयस्क महिला रिश्तेदारों को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

Update: 2024-10-25 12:44 GMT

Hiral P. Harsora और अन्य बनाम Kusum Narottamdas Harsora और अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 (घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा कानून) की धारा 2(q) की संवैधानिक वैधता पर विचार किया। इस धारा में केवल “adult male person” (वयस्क पुरुष) को ही प्रतिवादी (Respondent) के रूप में शामिल किया गया था, जिसका अर्थ था कि महिला रिश्तेदारों को घरेलू हिंसा के आरोपों से बाहर रखा गया।

अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या यह प्रावधान महिलाओं को पर्याप्त सुरक्षा देने के उद्देश्य से मेल खाता है और क्या कानून का दायरा बढ़ाकर महिला रिश्तेदारों को भी शामिल किया जा सकता है।

मामले के तथ्य (Facts of the Case)

मामला तब शुरू हुआ जब एक मां और बेटी ने अपने बेटे और बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई। शिकायत वापस ले ली गई थी, लेकिन कुछ सालों बाद फिर से दायर की गई। प्रतिवादियों (Respondents) ने तर्क दिया कि धारा 2(q) के अनुसार, केवल वयस्क पुरुषों के खिलाफ ही शिकायत दर्ज की जा सकती है, इसलिए महिला रिश्तेदारों के खिलाफ मामला नहीं बनता।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस तर्क को मानते हुए महिला प्रतिवादियों को मामले से मुक्त कर दिया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां कानून की संवैधानिकता (Constitutional Validity) पर चर्चा की गई।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य मुद्दा (Issue before the Supreme Court)

मामले का मुख्य सवाल यह था कि क्या धारा 2(q), जिसमें केवल वयस्क पुरुष को प्रतिवादी माना गया था, संविधान के अनुच्छेद 14 (Article 14 - समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। एक और प्रश्न यह था कि क्या महिला रिश्तेदारों को जिम्मेदार ठहराने से कानून का उद्देश्य अधिक प्रभावी ढंग से पूरा हो सकता है।

धारा 2(q) की व्याख्या (Interpretation of Section 2(q))

अदालत ने धारा 2(q) पर विस्तार से विचार करते हुए कहा कि यह प्रावधान घरेलू हिंसा के मामलों में जिम्मेदारी को सीमित कर देता है। Domestic Relationship (घरेलू संबंध) में महिलाएं भी शामिल होती हैं, जैसे सास या ननद, जो घरेलू हिंसा में शामिल या उसे बढ़ावा दे सकती हैं। केवल पुरुषों को दोषी ठहराना कानून के उद्देश्य को कमजोर करता है।

अदालत ने कहा कि Domestic Violence Act का उद्देश्य महिलाओं को हर प्रकार की हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है, चाहे वह हिंसा किसी पुरुष या महिला द्वारा की गई हो।

महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख (Reference to Important Judgments)

इस फैसले में अदालत ने Sandhya Manoj Wankhade v. Manoj Bhimrao Wankhade के मामले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि यदि महिला रिश्तेदार घरेलू हिंसा को बढ़ावा देती हैं, तो उन्हें भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

इसके अलावा, Indra Sarma v. V.K.V. Sarma के मामले का उल्लेख करते हुए अदालत ने बताया कि कानून को हर प्रकार के घरेलू संबंधों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए, चाहे वह औपचारिक विवाह हो या अनौपचारिक संबंध।

धारा 2(q) का संशोधन (Modification of Section 2(q))

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि धारा 2(q) में “adult male person” शब्द को हटाना चाहिए, ताकि कानून का दायरा बढ़ाकर सभी लिंगों को शामिल किया जा सके।

अदालत ने कहा कि अगर महिला रिश्तेदारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, तो यह कानून के उद्देश्य के खिलाफ होगा। इस व्याख्या के अनुसार अब महिला रिश्तेदार भी प्रतिवादी के रूप में शामिल हो सकती हैं, यदि वे घरेलू हिंसा में शामिल पाई जाती हैं।

फैसले के प्रभाव (Implications of the Judgment)

इस फैसले ने अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार को मजबूत किया। अब घरेलू हिंसा कानून के तहत पुरुष और महिला दोनों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यह निर्णय Gender-Neutral Approach (लैंगिक-तटस्थ दृष्टिकोण) को बढ़ावा देता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि घरेलू संबंधों में कोई भी दोषी छूट न पाए।

Hiral P. Harsora बनाम Kusum Narottamdas Harsora मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि घरेलू हिंसा कानून का उद्देश्य महिलाओं को व्यापक सुरक्षा देना है और इसमें लिंग आधारित बाधाओं को जगह नहीं दी जा सकती।

इस फैसले से यह सुनिश्चित हुआ है कि Domestic Violence Act को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए और सभी दोषियों को उनके लिंग के आधार पर छूट न मिले।

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