केरल हाईकोर्ट ने IAS अधिकारी के खिलाफ स्पेशल जज की अनुचित टिप्पणी खारिज की, कहा- अनावश्यक पूछताछ लोक सेवक का करियर खराब करती है

Update: 2024-06-22 08:26 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत नियुक्त स्पेशल जज के लापरवाह दृष्टिकोण की आलोचना की, जो राज्य के राजस्व विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत IAS अधिकारी के खिलाफ गलत तरीके से प्रतिकूल टिप्पणी करता है।

जस्टिस के. बाबू की एकल पीठ ने कहा,

"पीसी अधिनियम (PC Act) के तहत कार्यरत स्पेशल जज को अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों के प्रति सचेत होना चाहिए। यहां तक ​​कि अनावश्यक प्रारंभिक जांच भी किसी लोक सेवक के करियर में कलंक लगा सकती है।"

वर्तमान मामले में स्पेशल जज ने याचिकाओं को नहीं समझा और यह मानकर आगे बढ़े कि शिकायतकर्ता ने तत्कालीन अतिरिक्त सचिव के खिलाफ आरोप लगाए, जबकि शिकायतकर्ता ने तत्कालीन मुख्य सचिव के खिलाफ कर्तव्य में लापरवाही के आरोप लगाए।

तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर शिकायतकर्ता ने कहा कि तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) ए जयतिलक ने मुख्य सचिव वीपी जॉय के समक्ष उनकी पदोन्नति के लिए सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र के साथ प्रस्ताव भेजा था लेकिन मुख्य सचिव यूपीएससी चयन समिति के समक्ष अपना प्रस्ताव प्रस्तुत करने में विफल रहे। इसके बाद राजस्व और सामान्य प्रशासन विभागों के कुछ अधिकारियों ने उनसे अवैध रिश्वत की मांग की।

हाईकोर्ट के समक्ष शिकायतकर्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने IAS अधिकारी जयतिलक के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया।

इसी पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने शिकायत से निपटने में स्पेशल जज के हल्के और लापरवाह दृष्टिकोण"ल की आलोचना की।

सरकारी वकील ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता को कई वर्षों से पदोन्नति के लिए विचार किया जा रहा था। हालांकि, अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित होने और उस पर जुर्माना लगाए जाने के कारण विभिन्न चयन समितियों ने उसे पदोन्नति के लिए अनुशंसित नहीं किया।

उन्होंने आगे तर्क दिया कि शिकायतकर्ता को सरकारी अधिकारियों के खिलाफ तुच्छ मुकदमे दायर करने की आदत थी।

इससे सहमत होते हुए न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही से उसकी पदोन्नति के पहलुओं में बाधा उत्पन्न होगी। इसने आगे कहा कि शिकायतकर्ता प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में विफल रहा और सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा उससे रिश्वत मांगने के आरोप अविश्वसनीय प्रतीत होते हैं।

इस प्रकार हाईकोर्ट ने विशेष न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया।

केस टाइटल- केरल राज्य बनाम मुरलीधरन के.वी.

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