क्रेता की ओर से निरंतर तत्परता और इच्छा, विशिष्ट प्रदर्शन की राहत प्रदान करने के लिए शर्त: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि वादी (क्रेता) की ओर से निरंतर तत्परता और इच्छा, न्यायालय द्वारा विशिष्ट प्रदर्शन की राहत प्रदान करने के लिए एक शर्त है।
जस्टिस एच.पी. संदेश की एकल न्यायाधीश पीठ ने ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाले बायलामूर्ति द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें विशिष्ट राहत के लिए उनकी प्रार्थना खारिज की गई थी।
न्यायालय ने कहा,
"न्यायालय को आचरण पर ध्यान देना होगा और रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं रखा गया कि वह 3,65,000 रुपये का शेष भुगतान करने के लिए 2003 (बिक्री के लिए समझौता) से 2008 (विशिष्ट प्रदर्शन के लिए नोटिस जारी) के बीच अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार और इच्छुक था। इसलिए मुझे ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय कोर्ट द्वारा विशिष्ट प्रदर्शन की राहत देने से इनकार करने में कोई त्रुटि नहीं दिखती है।”
बायलामूर्ति ने दावा किया कि उन्होंने वर्ष 2003 में एम जी गंगालक्ष्मम्मा के पिता और अन्य के साथ 8,65,000 रुपये के विक्रय मूल्य पर बिक्री समझौता किया, जिसमें से 4,00,000 रुपये का भुगतान किया गया। इसके बाद, 21.07.2004 को 1,00,000 रुपये की राशि का भुगतान भी किया गया। हालांकि, 2005 में प्रतिवादियों के पिता की मृत्यु हो गई।
ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट ने माना कि वादी और प्रतिवादियों के पिता के बीच बिक्री समझौता था। हालांकि, वर्ष 2003 में अस्तित्व में आया बिक्री समझौता और 21.07.2004 को 1,00,000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया गया। निष्पादनकर्ता का वर्ष 2005 में निधन हो गया और अपीलकर्ता द्वारा वर्ष 2008 में पहला नोटिस जारी किया गया। सेल डीड निष्पादित करने के लिए 2003 से 2008 के बीच कोई प्रयास नहीं किया गया। इसलिए वादी द्वारा विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 16 (सी) का अनुपालन नहीं किया गया।
अदालत के समक्ष अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने मृतक की संपत्ति सहित मुकदमे की संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त किया। इसलिए प्रतिवादी शेष बिक्री प्रतिफल प्राप्त करने के बाद सेल डीड निष्पादित करने के लिए बाध्य हैं।
इसके अलावा राशि का बड़ा हिस्सा भुगतान किया गया, नोटिस जारी करना अनिवार्य नहीं है। इस प्रकार तत्परता और इच्छा को सीधे-सीधे सूत्र के रूप में नहीं माना जा सकता। पक्षकारों के इरादे और आचरण से संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मुद्दों पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
पीठ ने कहा कि जब विशिष्ट निष्पादन की राहत के लिए वाद दायर किया जाता है तो न्यायालय को अभिलेख पर उपलब्ध कुल साक्ष्यों पर ध्यान देना होता है। इसने कहा कि केवल बिक्री समझौते का निष्पादन ही विशिष्ट निष्पादन की राहत प्रदान करने का आधार नहीं है, विशिष्ट निष्पादन की राहत प्रदान करते समय पक्षों के आचरण पर विचार किया जाना चाहिए। तत्परता और इच्छा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, कि वादी विशिष्ट निष्पादन की राहत का हकदार है या नहीं।
इसके बाद उन्होने कहा,
"बिक्री समझौते के निष्पादन के लगभग 5 वर्ष बाद, दिनांक 05.02.2003 को बिक्री समझौते के निष्पादन के बाद 17.06.2008 को नोटिस दिया गया और 25.06.2008 को जवाब दिया गया। वर्ष 2005 में बिक्री समझौते के मूल निष्पादक की मृत्यु के बाद भी नोटिस जारी होने तक वादी द्वारा 2005 से 2008 के बीच कोई प्रयास नहीं किया गया।"
इसके बाद उसने कहा,
"अदालत को आचरण पर ध्यान देना होगा और रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं रखा गया कि वह 2003 से 2008 के बीच अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार और इच्छुक था, जिससे 3,65,000 रुपये का शेष भुगतान किया जा सके। इसलिए मुझे ट्रायल कोर्ट और साथ ही प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा विशिष्ट प्रदर्शन की राहत देने से इनकार करने में कोई त्रुटि नहीं मिली।"
केस टाइटल- बायलामूर्ति और एम.जी गंगालक्ष्मम्मा और अन्य