आपराधिक मुकदमा सत्य की यात्रा है, दोषसिद्धि उद्देश्य नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी को गवाहों से सामना करने के लिए मुकदमे में मीडिया इंटरव्यू दिखाने की अनुमति दी
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी द्वारा दायर आवेदन खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया। उक्त आदेश में पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में मीडिया द्वारा रिकॉर्ड किए गए वीडियो फुटेज को चलाकर पीडब्लू-1 (शिकायतकर्ता) से सामना करने की अनुमति मांगी गई थी, जब मृतक को घटना के बाद सरकारी अस्पताल लाया गया था।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने अरविंद रेड्डी द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए कहा,
“संबंधित न्यायालय का आदेश यह मानता है कि यह पिछला बयान नहीं होगा और डीवीडी/डीवीआर/वीडियो फुटेज को चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, यह अस्थिर है। यदि इससे सत्य का पता चलता है और सत्य के पता चलने से अभियुक्त निर्दोष साबित होता है तो इसे रिकॉर्ड पर आने दिया जाना चाहिए।”
याचिकाकर्ता को अन्य अभियुक्तों के साथ अभियुक्त बनाया गया और उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 114, 143, 147, 148, 149, 302, 307, 324, 447, 109 और 120बी तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति 3 (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की धारा 3(1)(आर), 3(1)(एस), 3(1)(डब्ल्यू), 3(2)(वी), 3(2)(वीए) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप लगाए गए। अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान अभियुक्त ने वीडियो फुटेज चलाने की मांग करते हुए आवेदन दिया, जिसमें दावा किया गया कि अभियोजन पक्ष का तर्क है कि शिकायतकर्ता के पति को अस्पताल में मृत अवस्था में लाया गया था।
हालांकि याचिकाकर्ता के अनुसार वीडियो फुटेज में कुछ अलग था, जो अभियोजन पक्ष के मामले को पूरी तरह से ध्वस्त कर देगा, क्योंकि उसे मृत अवस्था में नहीं लाया गया।
शिकायतकर्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अपराध स्थल के आसपास के लोगों द्वारा मीडिया को दिए गए कुछ बयानों का यह मतलब नहीं हो सकता कि वे किसी गवाह के पूर्व बयान बन जाएंगे।
यह कहा गया कि उन बयानों का उपयोग अभियुक्त द्वारा अभियोजन पक्ष के गवाह से सामना करने के लिए नहीं किया जा सकता है और केवल उन पूर्व बयानों और आरोप पत्र या पूरक आरोप पत्र में संलग्न गवाहों के बयान ही अभियुक्त को उपलब्ध कराए जाएंगे।
निष्कर्ष:
रिकॉर्ड देखने के बाद पीठ ने कहा कि पीडब्लू-2 से पीडब्लू-4 (घायल गवाहों) की जांच की गई और उन्होंने ऐसे बयान दिए, जो याचिकाकर्ता के मामले के लिए महत्वपूर्ण हैं। उक्त इलेक्ट्रॉनिक बयान को इस बहाने से अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि यह पिछला बयान नहीं है।
इसमें कहा गया,
“स्वीकृति या साबित करना सबूत का मामला है। बचाव में सबूतों को रोकना निस्संदेह आपराधिक मुकदमे में सत्य की खोज की दिशा में यात्रा को विफल कर देगा।"
नोट किया कि मामले में याचिकाकर्ता जो मांग कर रहा है, वह आरोप पत्र या पूरक आरोप पत्र दाखिल करने के बाद दिया गया बयान नहीं है।
अदालत ने कहा कि आरोपी अपराध के दिन बयान मांग रहा था जिसे पुलिस की मौजूदगी में प्रेस को दिया गया था।
अदालत ने कहा,
"यह स्थापित सिद्धांत है कि प्रत्येक आपराधिक मुकदमा सत्य की खोज की ओर एक यात्रा या जलयात्रा है, क्योंकि केवल दोषसिद्धि ही आपराधिक मुकदमे का उद्देश्य नहीं है। इसका उद्देश्य सत्य तक पहुंचना है और यही इसका उद्देश्य है। यह निर्विवाद तथ्य है कि निष्पक्ष जांच के बाद निष्पक्ष सुनवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 21, जीवन के अधिकार का मूल है। अभियोजन पक्ष का यह कर्तव्य भी नहीं है कि वह हर कीमत पर आरोपी को दोषसिद्धि दिलाए।"
इसके बाद उन्होंने कहा,
"अभियोजन पक्ष द्वारा कुछ तथ्य, दस्तावेज या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जा सकते हैं और उन्हें आरोप पत्र या पूरक आरोप पत्र के साथ नहीं रखा जा सकता है। लेकिन, कुछ ऐसे साक्ष्य होंगे जो बचाव पक्ष के लिए अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए आवश्यक होंगे। यह ऐसा ही मामला है।"
याचिका स्वीकार करते हुए न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह गवाह से सामना कराने के लिए वीडियो फुटेज चलाने की अनुमति दे।
उन्होंने निष्कर्ष निकाला,
"यह किसी भी तरह से कार्यवाही को लंबा खींचने के लिए अभियुक्तों के लिए एक चाल नहीं होगी। वीडियो फुटेज के आधार पर जांच और क्रॉस एग्जामिनेशन संबंधित न्यायालय द्वारा तय किए गए एकांत दिन में पूरी की जानी चाहिए।”
केस टाइटल- अरविंदा रेड्डी और कर्नाटक राज्य और अन्य