कर्नाटक हाइकोर्ट ने कथित बांग्लादेशी जासूस की 'एग्जिट परमिट' को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
कर्नाटक हाइकोर्ट ने कहा कि बिना किसी दस्तावेज़ के देश में समय से अधिक समय तक रहने वाले अन्य देशों के नागरिकों को निष्कासित करने की भारत सरकार की शक्ति पूर्ण और निरंकुश है।
जस्टिस एम नागाप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने बांग्लादेशी नागरिक रक्तिमा खानम द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसने विदेशी रिजिनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस द्वारा उसे निकास परमिट जारी करने पर सवाल उठाया था। इसके परिणामस्वरूप उसे बांग्लादेश निर्वासित किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,
“याचिकाकर्ता को किसी भी प्रकार की सहानुभूति पर दिखाया गया कोई भी अनुग्रह सरकार, FRRO और इमिग्रेशन ब्यूरो के विवेक पर प्रतिबंध लगाएगा। खासकर उन मामलों में जहां किसी की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होने की संभावना है।"
मामले में कहा गया कि विदेशी नागरिकों के प्रवेश, रहने, पारगमन और निकास से संबंधित मामले पासपोर्ट भारत में प्रवेश अधिनियम, 1920 (Entry into India Act 1920) विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939 (Registration of foreigners Act 1939) विदेशी अधिनियम, 1946 नागरिकता अधिनियम 1955 (Citizenship Act 1955 ) इमिग्रेशन वाहक 2008 दायित्व के प्रावधानों द्वारा शासित होते है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि सोशल मीडिया के माध्यम से वह जनार्दन रेड्डी के संपर्क में आई। उन्होंने 25-12-2017 को शादी कर ली और फिर चेन्नई में रहने लगे। उसे 1-03-2019 को प्रवेश वीजा (एक्स-2 आश्रित वीजा) जारी किया गया। फरवरी, 2020 में इसकी समाप्ति पर याचिकाकर्ता को छह महीने का विस्तार दिया गया। उसके बाद 9 महीने का विस्तार दिया गया। 21-06-2023 को जब याचिकाकर्ता ने एक और विस्तार की मांग की तो FRRO ने भारत में उसके रहने के समर्थन में पति या पत्नी से वचन पत्र जैसे कुछ दस्तावेजों की मांग की। इसे प्रस्तुत करने में विफल रहने पर उसके खिलाफ एग्जिट परमिट जारी किया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके पति ने उसकी उपेक्षा की। इसलिए उसकी सहमति के बिना उसका वीजा बढ़ाया जाना चाहिए।
वहीं अधिकारियों ने "गोपनीय रिपोर्टों" का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया, जिससे संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता आतंकवाद विरोधी अभियान में शामिल है और उसके विशेष सेवा समूह के साथ संबंध हैं। इसके बदले में पड़ोसी देश की सेना के साथ संबंध हैं। यह प्रस्तुत किया गया कि वीज़ा मैनुअल स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि यदि कोई संदेह है तो वीज़ा का विस्तार नहीं दिया जाएगा, विशेष रूप से प्रवेश एक्स-2 वीज़ा का। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता यह तर्क नहीं दे सकती कि उसके खिलाफ प्रतिकूल जानकारी होने के बावजूद उसे भारत में रहने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने वीजा को बदलने की मांग की। इसमें कहा गया कि इस तरह के रूपांतरण के लिए तीन आवश्यक शर्तें हैं, "जिनमें से एक उसकी वैवाहिक स्थिति के बारे में रिपोर्ट है, जिसमें उसके पूर्ववृत्त और उनके साथ रहने की पुष्टि और सुरक्षा मंजूरी शामिल है।"
हालांकि, इस मामले में कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने पति के खिलाफ भरण-पोषण की कार्यवाही तभी शुरू की जब FRRO ने उससे अनिवार्य दस्तावेज मांगे। इसके अलावा, यह नोट किया गया कि व्हाट्सएप, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के ढेर सारे रिकॉर्ड को SSG के प्रमुख या मेंबर्स के साथ याचिकाकर्ता की बातचीत को दिखाते हुए रिकॉर्ड में रखा गया।
अदालत ने आगे कहा,
“जैसा कि ऊपर देखा गया, मूल अभिलेखों का अवलोकन करने से कोई संदेह नहीं रह जाता कि भारत में याचिकाकर्ता की गतिविधियां संदिग्ध हैं। इसलिए इस दलील पर कि अब उसे चौथे प्रतिवादी - पति द्वारा अधर में छोड़ दिया गया। अब याचिकाकर्ता को किसी भी सहानुभूति से रोके रखना, राष्ट्र की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करेगा।''
आगे इसने टिप्पणी की,
“यह आश्चर्यजनक है कि जब FRRO के पास याचिकाकर्ता के पूर्ववृत्त के बारे में सारी जानकारी है तो वे याचिकाकर्ता को देश की धरती से बाहर भेजने के लिए शुल्क के भुगतान के बारे में चिंतित हैं। इसलिए जैसा भी मामला हो, FRRO या ब्यूरो ऑफ माइग्रेशन को बिना किसी देरी के तेजी से कार्य करना चाहिए और एग्जिट परमिट निष्पादित करना चाहिए।"
तदनुसार, कोर्ट ने FRRO को याचिकाकर्ता से किसी भी शुल्क पर जोर दिए बिना निकास परमिट निष्पादित करने का निर्देश देते हुए याचिका खारिज कर दी।
अपीयरेंस-
याचिकाकर्ता के लिए वकील- डोरे राज.बी.एच.।
प्रतिवादी 1 और 2 के लिए वकील- एच. शांति भूषण।
उत्तरदाता 3 की ओर से वकील- नव्या शेखर।
साइटेशन नंबर: लाइव लॉ (कर) 35 2024
केस टाइटल- रक्तिमा खानम और भारत संघ एवं अन्य
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केस नंबर- रिट याचिका संख्या 26769 ऑफ़ 2023